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उत्तराखंड चुनाव: मज़बूत विपक्ष के उद्देश्य से चुनावी रण में डटे हैं वामदल

“…वामदलों ने ये चुनौती ली है कि लूट-खसोट और उन्माद की राजनीति के खिलाफ एक ध्रुव बनना चाहिए। ये ध्रुव भले ही छोटा ही क्यों न हो, लेकिन इस राजनीतिक शून्यता को खत्म करना चाहिए। इस लिहाज से वामदलों का हस्तक्षेप बहुत जरूरी है”।
उत्तराखंड चुनाव: मज़बूत विपक्ष के उद्देश्य से चुनावी रण में डटे हैं वामदल
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में संयुक्त वाम मोर्चा 10 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है

उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों पर कुल 571 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें 10 उम्मीदवार संयुक्त वाम मोर्चा के भी हैं। भाजपा-कांग्रेस को छोड़ यूकेडी, आम आदमी पार्टी, एसपी-बीएसपी जैसे दलों ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। जबकि वामदल अपने कामकाज के आधार पर सीमित सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इनका उद्देश्य है कि राज्य के मुद्दों पर बात करने के लिए एक मज़बूत विपक्ष बनाया जा सके।

संयुक्त वाममोर्चा के 10 प्रत्याशी

सीपीआई, सीपीआई-एम और सीपीआई-एमएल का संयुक्त वाम मोर्चा राज्य की 10 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। उत्तरकाशी से सीपीआई के महावीर भट्ट चुनाव मैदान में हैं। हरीश रावत के चुनाव लड़ने से महत्वपूर्ण हुई सीट लालकुआं से सीपीआई-एमएल के बहादुर सिंह जंगी चुनाव लड़ रहे हैं। कर्णप्रयाग से सीपीआई-एमएल के इंद्रेश मैखुरी हैं। नरेंद्रनगर से सीपीआई के जगदीश कुलियाल, सहसपुर से सीपीएम के कमरुद्दीन। केदारनाथ से सीपीएम के राजाराम सेमवाल, रानीपुर (भेल) से सीपीएम के आरसी धीमान, थराली से सीपीएम के कुंवर राम, बदरीनाथ से सीपीआई के विनोद जोशी और रुद्रप्रयाग से सीपीआई के सुधीर रौथाण चुनाव मैदान में हैं।

सभाओं पर रोक के चलते घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करते संयुक्त वाम मोर्चा के प्रत्याशी इंद्रेश मैखुरी

 

धनबल-बाहुबल के बीच वामदल

कोरोना संक्रमण के चलते रोक से पहले ही भाजपा और कांग्रेस ने राज्य में ज़ोरदार तरीके से चुनाव प्रचार किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के अमित शाह तक चुनाव प्रचार के लिए आए। कांग्रेस की कमान राहुल गांधी ने संभाली। इस समय भी दोनों दलों के दिग्गज नेता बतौर स्टार प्रचारक राज्य में आ रहे हैं। चुनावी रैलियों पर रोक के चलते बड़े-बड़े डिजिटल कैंपेन और डिजिटल स्टुडियो तैयार किए गए हैं। तो धनबल और कार्यकर्ताओं की संख्या के आधार पर बाहुबल का चुनाव में ज़ोर रहता है।

निर्वाचन आयोग ने भी इस बार प्रति प्रत्याशी चुनाव प्रचार खर्च सीमा 28 लाख से बढ़ाकर 40 लाख कर दी है।

चमोली के कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से वाममोर्चा प्रत्याशी इंद्रेश मैखुरी कहते हैं “वे सोशल मीडिया और अन्य प्रचार अभियान के ज़रिये मीडिया में छाए रह सकते हैं। ये स्थितियां तीसरे मोर्चे की राह को और मुश्किल बना रही हैं। हम इस समय डोर-टु-डोर कैंपेन कर रहे हैं। पहाड़ों के गांवों में दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां होती हैं। घर-घर जाने और लोगों से मिलने में हमारी पहुंच कम हो जाती है। जबकि हम किसी एक जगह सभा करते हैं तो 400-500 लोग खुद-ब-खुद हमें सुनने चले आते हैं”।

सीपीआई के राज्य सचिव समर भंडारी कहते हैं “इस तरह बहुत ही अ-समान चुनाव हो जाता है। एक तरफ बडी पार्टियां प्रचार में करोड़ों रुपए खर्च करती हैं। अखबारों में बड़े विज्ञापन देती हैं। लेकिन वामदल प्रतिबद्धता के साथ समाज के वंचित तबके के सवालों पर बात करते हैं”।

मज़बूत विपक्ष की खातिर

सीपीआई-एमएल के राज्य सचिव राजा बहुगुणा कहते हैं “अलग राज्य बनने के बाद से सदन में हमारा विपक्ष कमजोर ही दिखा है। लूटखसोट की राजनीति में अपनी हिस्सेदारी के लिए सभी लोग छटपटाते रहे। हमने नारा दिया है कि भाजपा हराओ और वाम विपक्ष का निर्माण करो। भाजपा-कांग्रेस के बीच जिस तरह टिकटों की मारामारी हो रही थी, इससे उनका सारा राजनीतिक परिदृश्य दिखाई देता है। आम आदमी पार्टी सोच रही है कि कौन कहां से टूटे तो उसे हम अपना कैंडिडेट बना दें”।

राजा बहुगुणा एक छोटा किंतु मज़बूत विपक्ष बनाने की बात कहते हैं। “राज्य बनने के बाद 2002 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल के चार विधायक बने थे। हमने उनसे एकजुट विपक्ष बनाने का आग्रह किया था। 4 विधायक विधानसभा के अंदर सवाल उठाएं और हम सड़क पर मज़बूत विपक्ष बनाएं। लेकिन वे भी उस समय अवसरवाद के शिकार हो गए। वामदलों ने ये चुनौती ली है कि लूट-खसूट और उन्माद की राजनीति के खिलाफ एक ध्रुव बनना चाहिए। ये ध्रुव भले ही छोटा ही क्यों न हो, लेकिन इस राजनीतिक शून्यता को खत्म करना चाहिए। इस लिहाज से वामदलों का हस्तक्षेप बहुत जरूरी है”।

सीपीआई-एम के राज्य सचिव राजेंद्र सिंह नेगी कहते हैं “भाजपा या कांग्रेस चुनाव में जनता के मुद्दों की बात नहीं कर रहे हैं। नामांकन से ठीक पहले बड़े पैमाने पर दल-बदल हुआ। वामदलों का नारा है कि हम जनता के सवालों को उठाने के लिए मज़बूत विपक्ष बनाना चाहते हैं। हम उन्हीं 10 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जहां हमारा आधार मज़बूत है। हम चाहते हैं कि यहां अपना वोट प्रतिशत बढ़ा सकें”।

2002 विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के अलावा अन्य दल और निर्दलीयों को 32.7 % वोट मिले थे। जबकि 2017 के चुनाव में ये 10.1 % वोट रह गया।  तस्वीर साभार- Indiavotes.com

तीसरे मोर्चे को मज़बूत बनाने की ज़रूरत

2017 के चुनाव में भाजपा की बढ़त ने  राज्य में कांग्रेस के साथ तीसरे मोर्चे को भी कमज़ोर किया था। 2002 विधानसभा चुनाव में 32.7 % वोट से तीसरा पक्ष 2017 के चुनाव में 10.1 % वोट पर आ गया।

2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 36 सीटें 26.9 % वोट मिले थे। भाजपा को 19 सीटें 25.4 % वोट। बीएसपी को 7 सीटें 10.9 % वोट। यूकेडी को 4 सीट 5.5 % वोट। निर्दलीय को 3 सीटें और 16.3 % वोट।

यानी भाजपा-कांग्रेस को छोड़ दें तो बीएसपी, यूकेडी और निर्दलीय को 32.7 % वोट मिले।

2007 में, भाजपा 34 सीट, 31.9 % वोट। कांग्रेस 21 सीट 29.6 % वोट। बीएसपी 8 सीट 11.8 % वोट, निर्दलीय 3 सीट 10.8 % वोट और यूकेडी 3 सीट 5.5 % वोट। तो 28.1 % वोट अन्य दलों को मिले।

2012 में, कांग्रेस 32 सीट 33.8 % वोट। भाजपा 31 सीट, 33.1 % वोट। बीएसपी 3 सीट 12.2 % वोट, निर्दलीय 3 सीट 12.3 % वोट और यूकेडी 1 सीट 1.9 % वोट। तो 26.4 % वोट अन्य दलों को मिले। यहां यूकेडी का वोट प्रतिशत कम हुआ जिसका फायदा भाजपा-कांग्रेस के वोट प्रतिशत को हुआ। यूकेडी अपना जनाधार बुरी तरह खोने लगी।

2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे पूरी तरह एकतरफा आए। भाजपा 57 सीटें 47.0 % वोट। कांग्रेस 11 सीटें 33.8 % वोट शेयर। निर्दलीय 2 सीटें 10.1% वोट।

कांग्रेस को 2012 में जितना वोट प्रतिशत मिला था, उतना ही 2017 के चुनाव में भी रहा। लेकिन यूकेडी और बीएसपी का सफाया हो गया और उनका वोट भाजपा को मिला।

वाम नेता समर भंडारी कहते हैं कि राज्य के शुरुआती चुनाव को देखें तो तीसरे पक्ष के पास बड़ा स्पेस था। लेकिन राज्य आंदोलन से निकली यूकेडी जैसी पार्टी की क्रेडेबिलिटी खत्म हुई है। आप और यूकेडी जैसी पार्टियां 70 सीटों पर सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ रही हैं जो कि ज़मीनी वास्तविकता के उलट है। हम तीसरे मोर्चे को लगातार संगठित करने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्ष यदि विभाजित रहेगा तो विकल्प नहीं बना सकता।

 

चमोली में चुनाव प्रचार के दौरान अपनी हताशा बताते मतदाता, तस्वीर इंद्रेश मैखुरी के फेसबुक वॉल से

मतदाता का मन

चमोली में घर-घर प्रचार अभियान में जुटे इंद्रेश मैखुरी कहते हैं “राज्य में पार्टियों की उपलब्धियों के पुलंदे अपनी जगह हैं और लोगों की सामान्य सी समस्याएं अपनी जगह हैं। लोगों में एक हताशा-निराशा है कि हम वोट देते हैं तो हमें क्या मिलता है। हमारी स्थितियों में तो बदलाव नहीं हुआ”।

इंद्रेश कहते हैं “हमारे विधानसभा क्षेत्र में सड़कों की बहुत बुरी स्थिति है। स्वास्थ्य सुविधाओं का एक बड़ा सवाल है। सारे अस्पताल सिर्फ रेफरल सेंटर बने हुए हैं। कोविड के बाद भी बदलाव नहीं आया है। रोजगार प्रमुख सवाल है। पर्वतीय कृषि की हालत खराब है। जंगली जानवर सूअर, बंदर, बाघ, भालू के हमले भी लोगों के सवाल बने हुए हैं। हमने स्थायी नियमित रोजगार और पुरानी पेंशन का समर्थन किया है”।

वहीं, वाम नेता राजा बहुगुणा कहते हैं “उत्तराखंड सवर्ण बाहुल्य राज्य है। बीजेपी जैसी पार्टियों के लिए स्वाभाविक रूप से जगह बन जाती है। इसीलिए यहां दलित या अल्पसंख्यक समुदाय खुद को अलग-थलग पाता है। हमारी कोशिश है कि उत्तराखंड के दलित, शोषित, महिलाओं और बेरोजगारों का भी एक पॉलिटिकल प्लान बनना चाहिए”।

देहरादून से गीता गैरौला कहती हैं “वोट देते समय हम जुझारू लोगों को क्यों भूल जाते है? जब कहीं किसी मांग के लिए संघर्ष करना हो तभी हमें ये सब लोग याद आते हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं-आशा कार्यकर्ताओं के मुद्दे हों, कहीं ज़मीन हथियाने का मुद्दा हो तो लोग वामदलों के पास आते हैं कि वे उनकी लड़ाई लड़ें। इन्हें याद करने का वक्त अभी आया है”।

घोषणा पत्र “हम लड़ेंगे”

संयुक्त वाम मोर्चा ने अपने घोषणा पत्र “हम लड़ेंगे” में पर्वतीय राज्य के मुद्दों को वरीयता दी है। गैरसैंण स्थायी राजधानी। जल विद्युत परियोजनाओं और ऑल वेदर रोड जैसी त्रासदी जनक परियोजनाओं का विरोध और जनमुखी विकास का ब्लुप्रिंट बनाने वाले के लिए विधानसभा में दबाव बनाएंगे। शराब, खनन, भूमिफाया के वर्चस्व को समाप्त करने का दबाव। भू-संशोधन कानून रद्द। राज्य, जिला और अन्य संपर्क सड़कों का गुणवत्ता पूर्ण निर्माण। शिक्षक-कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली के लिए। किसानों को एमएसपी पर फसल खरीद की गारंटी के लिए कानून बनवाने। सबको शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अधिकार और महंगाई-भ्रष्टाचार के विरद्ध संघर्ष के लिए लड़ने का वादा शामिल है।

इन वादों के साथ संयुक्त वाम मोर्चा विधानसभा में मज़बूत विपक्ष बनाने के लिए चुनाव मैदान में है। 

(वर्षा सिंह देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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