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भारतीय वैज्ञानिकों ने "स्वदेशी गायों से उत्पाद" पर अनुसंधान योजना को वापस लेने का आह्वान किया

इस कार्यक्रम का नेतृत्व विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) कर रहा है जबकि कई अन्य मंत्रालय और अनुसंधान परिषद इसको फ़ंड करने वाले हैं।
स्वदेशी गायों से उत्पाद"
Image Courtesy: Amazon.in

विभिन्न संस्थानों और स्ट्रीम के लगभग 500 से अधिक भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी गायों पर शोध कार्यक्रम को वापस लेने के लिए विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय से अपील किया है। इस कार्यक्रम को साइंटिफिक यूटिलाइजेशन थ्रो रिसर्च ऑग्मेंटेशन-प्राइम प्रोडक्ट्स फ्रॉम इंडिजिनस काऊ (एसयूटीआरए पीआईसी-SUTRA PIC) कहा जाता है और यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के नेतृत्व में किया जा रहा है जबकि कई अन्य मंत्रालय और अनुसंधान परिषद इसको फंड करने वाले हैं।

अकादमिक तथा अनुसंधान संस्थानों और ज़मीनी स्तर के संगठनों से शोध प्रस्तावों की मांग करते हुए इस कार्यक्रम ने पांच विषयगत क्षेत्रों की घोषणा की थी। ये पांच विषय स्वदेशी गायों की विशिष्टता हैं जैसे- चिकित्सा तथा स्वास्थ्य के लिए स्वदेशी गायों से प्रमुख उत्पाद, कृषि अनुप्रयोगों के लिए स्वदेशी गायों से प्रमुख उत्पाद, भोजन तथा पोषण के लिए स्वदेशी गायों से प्रमुख उत्पाद और स्वदेशी गायों पर आधारित उपयोगिता वस्तु से प्रमुख उत्पाद।

वैज्ञानिकों ने इस अपील में कहा है कि अनुसंधान कार्यक्रम का ये प्रस्ताव वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उलझन पैदा कर रहा है। अपील में कहा गया है, "थीम 1 का दावा है कि भारतीय गायें (यह स्पष्ट नहीं है कि कौन सी नस्ल की) के कुछ 'अद्वितीय' और 'विशेष' गुण हैं। यह इस थीम के तहत धार्मिक शास्त्रों से प्राप्त काल्पनिक गुणों की जांच के लिए पैसे को बर्बाद किए जाने की संभावना का मार्ग खोलता है। थीम 2 का दावा है कि प्राचीन आयुर्वेदिक सूत्र असाधारण विकारों की एक श्रृंखला के लिए गाय उत्पाद आधारित उपचार का सुझाव देते हैं।

ऐसा लगता है कि विकारों की इस सूची में कई आधुनिक विकार शामिल हैं, जिसके लिए साक्ष्य-आधारित आधुनिक चिकित्सा उपचार का या तो अभाव है या दीर्घकालिक या महंगा या कठिन है। हालांकि, ये सूची सामान्य ज्ञान को चुनौती देती है क्योंकि कैंसर, मधुमेह, रक्तचाप और हाइपरलिपिडिमिया जैसी कई बीमारियां इन प्राचीन सूत्रों के लेखकों को नहीं पता थीं।"

इस अपील में आगे कहा गया है,"ये 'कॉल फॉर प्रोपोजल' शुरू से आखिर तक अवैज्ञानिक रूप से तैयार की गई है। ये दस्तावेज़ पूरी तरह मान्यताओं पर आधारित है। विज्ञान आमतौर पर मौजूद मान्यताओं की वैधता को नहीं मान सकता। वैधता को परीक्षण के लिए रखा जाना चाहिए, जो कॉल फॉर प्रोपजल में अनुपस्थित है।“ अपील आगे जोड़ती है।

अपील का मसौदा तैयार करने में लगे वैज्ञानिकों में से एक टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के एक वैज्ञानिक अनिकेत सुले ने कहा कि ऐसा नहीं लगता है कि इस कार्यक्रम के थीम उद्देश्यपूर्ण वैज्ञानिक जांच द्वारा तैयार किए गए हैं। साइंस में सूले के हवाले से लिखा गया है, "उन्हें यह साबित करना चाहिए कि पैसा खर्च करने से पहले इस शोध को करने की कुछ योग्यता है।"

यह कोई पहली बार नहीं है जब केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने गायों पर शोध को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। साल 2017 में भाजपा सरकार ने वैज्ञानिक रूप से "पंचगव्य" को मान्यता देने को लेकर शोध करने के लिए एक समिति का गठन किया था। ये पंचगव्य गाय के दूध, दही, घी, गोबर और मूत्र का मिश्रण है जिसमें उपचार के गुण होने का दावा किया जाता है।

भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ने भी पिछले साल कहा था कि उनका स्तन कैंसर गोमूत्र से ठीक हो गया था। साध्वी द्वारा किए गए इस दावे को देश भर के कैंसर चिकित्सा विज्ञानियों की भारी आलोचना का सामना करना पड़ा था।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Indian Scientists Call for Withdrawal of Research Plan on “Products from Indigenous Cows”

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