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बहिष्कार और समावेशन दोनों समीकरणों के बीच झूलते ट्रांसजेंडर खिलाड़ी

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तैराकी के बाद अब रग्बी के अधिकारियों ने भी ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसको लेकर एक बार फिर तीखी बहस शुरू हो गई है।
लिया थॉमस
image credit- social media

"समावेशन से ज़्यादा ज़रूरी न्याय है"

ये बयान विश्व ऐथलेटिक्स अध्यक्ष सेबास्टियन का है। सेबास्टियन ने महिलाओं की प्रतियोगिताओं में ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के हिस्सा लेने के खिलाफ कड़ी नीतियां लाने का इशारा किया है। ये सिललिसा वॉटर स्पोर्ट्स की गवर्निंग बॉडी फिना के उस नए नियम से शुरू हुआ, जिसमें संस्था ने ट्रांसजेंडर एथलीट्स को महिला एलीट कॉम्पटीशन में भाग लेने से बैन कर दिया है। फीना ने ट्रांस तैराकों के लिए जल्द ही एक 'ओपनकैटेगरी की शुरुआत करने की बात को कही है, जिसमें सभी तरह के तैराक भाग ले सकेंगे। इस नीति के लागू होने के बाद बहुत सारी ट्रांस महिलाएं अब ओलंपिक जैसे टॉप कॉम्पटीशन में हिस्सा नहीं ले पाएंगी।

बता दें कि महिलाओं के खेल में ट्रांसजेंडर महिलाओं को शामिल करने की डिबेट पुरानी है। पूरी दुनिया में चल रही इस बहस ने रूढ़िवादी विचार रखने वालों और कुछ चोटी की महिला खिलाड़ियों को ट्रांस एक्टिविस्टों और उनका समर्थन करने वाले खिलाड़ियों के खिलाफ खड़ा कर दिया है।अमेरिका के दर्जनों राज्य पहले ही की ट्रांसजेंडर्स को महिलाओं को खेलों में भाग लेने से पूरी तरह से प्रतिबंधित कर चुके हैं। अब ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से बाहर करने का अभियान आगे बढ़ता जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तैराकी के बाद अब रग्बी के अधिकारियों ने भी ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों पर प्रतिबंध लगा दिया है।

विश्व कप में ट्रांसजेंडर खिलाड़ी नहीं ले पाएंगे हिस्सा

रग्बी लीग के अधिकारियों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मैचों में ट्रांसजेंडर रग्बी खिलाड़ी नहीं खेल पाएंगे। इस बीच अधिकारी सलाह और रिसर्च के जरिए 2023 तक एक नई नीति तय करने की कोशिश करेंगे। रग्बी अधिकारियों ने कहा कि फैसला खेल और खिलाड़ियों के "कल्याण, कानूनी जोखिम और प्रतिष्ठा को जोखिम" को ध्यान में रख कर लिया गया है। घोषणा का मतलब है कि नवंबर में इंग्लैंड में होने वाले महिला रग्बी लीग विश्व कप में ट्रांसजेंडर खिलाड़ी हिस्सा नहीं ले पाएंगे।

ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के प्रतिबंध को लेकर एक तीखी बहस शुरू हो गई है। इसमें एक तरफ की लोग महिलाओं की तरह प्रतियोगिताओं में भाग लेने के ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के अधिकार के समर्थक हैं, उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ट्रांस महिलाओं पर प्रतिबंध लगाने से स्कूल के मैदान तक सभी स्तरों पर खेलों में भेदभाव की स्पष्ट मिसाल कायम होती है। तो वहीं कई लोग हैं जो मानते हैं कि महिलाओं की तरह प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों को एक अनुचित शारीरिक फायदा बढ़त मिलती है।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक बीते साल 2021 में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने ट्रांसजेंडर एथलीट्स के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए थे। इसमें आईओसी ने इस नियम को हटा दिया था कि ट्रांसजेंडर एथलीट की पात्रता टेस्टोस्टेरोन के स्तर पर आधारित होगी। इसके अलावा लिंग के आधार पर किसी खिलाड़ी के साथ भेदभाव किए बीना आईओसी ने हर खेल से जुड़ी संस्थाओं को अपने हिसाब से योग्यता के पैमाने तय करने की छूट दी थी। इसी के तहत फिना ने ये नई निति बनाई है। इसके लिए संस्था ने कानूनी, मेडिकल और खिलाड़ियों की समितियों से इस विषय की जांच कराई थी। जिसके बाद ये नीति 19 जून 2022 को सबके सामने आई और 20 जून से लागू भी हो चुकी है।

इस नई नीति के तहत ट्रांसजेंडर तैराकों को विमेन्स कैटेगरी में हिस्सा लेने के लिए दो ज़रूरी शर्तें रखी गई हैं। पहली ये कि वो 12 साल की उम्र से पहले ही जेंडर री-असाइनमेंट सर्जरी या सेक्स-चेंज सर्जरी के ज़रिए अपना ट्रांज़िशन करवा लें। और दूसरा, ये कि उन्हें अपने टेस्टोस्टेरोन लेवल को 2.5 नैनोमोल्स प्रति लीटर से नीचे बनाए रखना होगा। फिना की इन नई शर्तों में नियम एक बिल्कुल समझ के परे है कि एक इंडिविजुअल किस जेंडर के साथ आइडेंटिफाई करता है, ये समझने के लिए उसके पास केवल 12 साल का समय है, जो बहुत कम हैं। अब बच्चे के शुरूआती दिनों में उसे ये तो बताया नहीं जा सकता कि तैराकी करनी है तो जल्दी तय कर लो कि तुम जिस जेंडर के साथ पैदा हुए, उसके साथ तुम सहज हो या नहीं।

मालूम हो कि फिना के इस फैसले के बाद अमेरिका की लिया थॉमस जैसी तैराक एथलेटिक्स और विश्व चैंपियनशिप जैसे बड़े इवेंट में भाग नहीं ले पाएंगी। थॉमस इसी साल महिला तैराकी में चैंपियन बनने वाली पहली ट्रांसजेंडर बनी थीं। इस नीति के लागू होने के बाद उन्हें ओलंपिक में भी भाग लेने से रोक दिया जाएगा। लिया थॉमस के नाम पर कई बड़े रिकॉर्ड हैं। इस फ़ैसले का सबसे ज़्यादा असर उन्हीं पर ही पड़ेगा। उन्होंने मार्च 2022 में महिलाओं की 500-यार्ड फ्रीस्टाइल जीता था और पहली ट्रांसजेंडर NCAA चैंपियन बनी थीं। कहा ये भी जा रहा है कि उनके ही रिकॉर्ड्स और गेम को देख कर ये बहस दोबारा शुरू हुई। हालांकि खेल वैज्ञानिकों का कहना है कि ट्रांस खिलाड़ियों को कोई प्राकृतिक बढ़त हासिल होती हो ऐसा साबित करने के लिए ज्यादा डाटा नहीं है। इसलिए, हर खेल को अपनी जरूरतों के हिसाब से ट्रांस महिलाओं की भागीदारी पर फैसला लेना चाहिए।

बाक़ी खेलों में भी हो सकती है ऐसी सख़्ती

कई खेल संस्थाओं ने ट्रांसजेंडर महिलाओं को सामान्य महिला कैटेगरी में भाग लेने की अनुमति दी है, अगर उनके शरीर में टेस्ट्रोन की मात्रा एक तय पैमाने से कम है। पिछले सप्ताह ही अंतरराष्ट्रीय साइकलिंग यूनियन (आईसीयू) ने भी नियमों में सख्ती से बदलाव किए है। नए नियमों के मुताबिक ट्रांसजेंडर एथलीट्स को एक सेक्स से दूसरे में जाने के समय को दुगना कर 12 से 24 महीने कर दिया है। यानी अगर एक एथलीट ट्रांज़िशन कर रहा है तो वो ट्रांज़िशन के दो साल बाद किसी कॉम्पिटिशन में भाग ले सकता है। इसके अलावा ICU ने टेस्टोस्टेरोन लेवल को भी आधा कर से 2.5 नैनोमोल्स/लीटर कर दिया है।

गौरतलब है कि फिना का नया नियम बाकी खेलों में भी ऐसी सख्ती को प्रेरित कर सकता है। फिना जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्था के फैसले को चुनौती देने के लिए अर्टीबीसन स्पोर्ट्स कोर्ट में याचिका लगानी पड़ती है। यह कोर्ट स्विटजरलैंड में स्थित है। अगर इस मामले में कोई याचिका लगती है तो खेल से जुड़ी बाकी संस्थाएं भी इस पर नजर रखेंगी। बहरहाल, प्रतिस्पर्धी खेलों में ट्रांस महिलाओं की उपस्थिति कठिन है। इसे तोड़ना मुश्किल है क्योंकि नुकसान के समीकरण दोनों तरह से झूलते हैं। एक ओर जहां बहिष्करण ट्रांस एथलीटों को नुकसान पहुंचाता है, तो वहीं दूसरी ओर समावेशन संभावित रूप से सिजेंडर महिला एथलीटों को नुकसान पहुंचाता है, और सबसे जरूरी वैचारिक विरोध उन दो शिविरों के बीच प्रोत्साहित करता है जो हर जगह महिलाओं को चोट पहुंचाता है।

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