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इराक़ में ईरान का बढ़ता और घटता प्रभाव

कधिमी ने बतौर प्रधानमंत्री पिछले हफ़्ते ईरान की पहली यात्रा की। यह एक अहम मोड़ है। उनके पास दो विकल्प हैं- कधिमी को इराक़ से अमेरिकी सैनिकों की वापसी करवानी होगी या फिर इराक़ी राजनीतिक ढांचे की नाराज़गी झेलने को तैयार रहना होगा।
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एक तरफ खाई, तो दूसरी तरफ पहाड़। यह कहावत आमतौर पर राजनेता के लिए कभी न कभी सही होती है, जब उन्हें दो कठिन विकल्पों में से एक का चुनाव करना ही पड़ता है। 

इस तरह की विडंबना अफ़गानिस्तान के कम्यूनिस्ट नेता हफीजुल्लाह अमीन के साथ भी बनी थी।  अमीन ने सोवियत संघ पर अपने देश की निर्भरता कम करने की कोशिश की थी। मौजूदा इराकी प्रधानमंत्री मुस्तफ़ा अल कधिमी के मामले में भी कुछ ऐसी ही समानताएं हैं। कधिमी की राजनीतिक निपुणता अपनी सीमाओं को जानने की क्षमता और ज़्यादा दूर तक न जाने की बुद्धिमानी में है।

कधिमी के अमेरिकी और ब्रिटिश इंटेलीजेंस एजेंसियों के साथ करीबी संबंध हैं, यह संबंध तबसे हैं, जबसे कधिमी निर्वास में रह रहे थे। बगदाद में जासूसों के मुखिया बनने के दौरान चार सालों तक भी उन्होंने इन संबंधों को बरकरार रखा। यह संबंध तब खत्म हुए, जब अमेरिका समर्थक राष्ट्रपति बरहाम सालिह ने उन्हें प्रधानमंत्री नामित कर दिया। सालिह एक कुर्दिश राजनेता हैं।

कधिमी को अब भी वाशिंगटन से राजनीतिक, सुरक्षा संबंधी, गुप्त सूचनाएं संबंधी और संसाधनों से जुड़ी मदद मिलती रहती है। कधिमी के सऊदी अरब के राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान से भी व्यक्तिगत रिश्ते हैं।

मई में अमेरिका के दमदार समर्थन के चलते कधिमी को प्रधानमंत्री बनने में मदद मिली होगी, लेकिन वह आपसी झगड़े में उलझे इराकी राजनीतिक धड़ों के बीच समझौते के चलते ही प्रधानमंत्री बने हैं। इन धड़ों ने आने वाले महीनों में चुनाव होने तक एक अंतरिम व्यवस्था के नाम पर कधिमी को स्वीकार किया है।

पिछले साल वाशिंगटन ने इराक़ में राजनीतिक नेतृत्व के भ्रष्टाचार और बिकाऊपन से पैदा हुए जनता के गुस्से को खूब हवा दी। सड़कों पर प्रदर्शनों में बदलने वाले इस गुस्से की वजह बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक असंतोष भी था। इन प्रदर्शनों से शिया राजनीतिक पक्षों और ईरान पीछे हो गए और उन्होंने ऐसी स्थितियों का निर्माण किया, जिनसे कधिमी प्रधानमंत्री बन पाए।

बड़ा सवाल है कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति के आदेश पर जब ड्रोन के ज़रिए ईरान की कुद्स फोर्स के कासिम सुलेमानी और ईरान समर्थित पॉपुलर मोबलाइज़ेशन कमेटी के डेप्यूटी चीफ को बगदाद एयरपोर्ट पर मार गिराया गया, तब इराकी इंटेलीजेंस के मुखिया के तौर पर कधिमी की क्या भूमिका थी। 

इसमें कोई शक नहीं है कि अमेरिका को बग़दाद में सुलेमानी की आने के बारे में पहले से ख़बर थी। इराक़ के कई मिलिशिया पक्षों ने कधिमी पर घालमेल के आरोप लगाए हैं, इन पक्षों का दावा है कि उनके पास इसके पुख़्ता सबूत भी हैं। साथ में वाशिंगटन इराक़ को ईरान पर आर्थिक निर्भरता कम करने और खाड़ी देशों से मदद और निवेश लेने के लिए प्रोत्साहित करता है।

कधिमी इस दिशा में कदम भी उठा रहे हैं। 26 जून को कधिमी ने ईरान द्वारा समर्थन प्राप्त एक  अहम नागरिक सेना के मुख्यालय पर दबिश डालने का आदेश दिया था। कताइब हेज़बुल्लाह नाम का यह संगठन बगदाद के दक्षिण में स्थित था। इस संगठन पर अमेरिका ने अमेरिकी सैनिकों के एक अड्डे पर रॉकेट डालने का आरोप लगाया था। इस तरह कधिमी ने ईरान समर्थित नागरिक सैन्य समूहों के खिलाफ़ कड़ा रवैया दिखाया है। 

19 जुलाई को एक इराकी मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने रियाध की यात्रा की, जिसकी अगुवाई इराक़ के वित्तमंत्री अली अलावी कर रहे थे, इसमें तेल, योजना, बिजली, कृषि और संस्कृति समेत तमाम विभागों के मंत्री शामिल थे। सऊदी अरब ने भी कधिमी की मदद करने की मंशा जताई है।

अमेरिका को इराक़ में लंबे वक़्त के लिए सैन्य मौजूदगी की उम्मीद है। उसे यह उम्मीद है कि ज़रिए अमेरिका के कब्ज़े का विरोध करने वाले राजनीतिक पक्षों, इराक़ के लोकप्रिय नज़रिए और ईरान समर्थित नागरिक समूहों पर कधिमी जीत पा सकेंगे। लेकिन यहां विरोधाभास यह है कि अमेरिका यहां कधिमी पर निर्भर है, जिनका कोई राजनीतिक आधार ही नहीं है।

आखिर तेहरान ने कधिमी के प्रधानमंत्री बनने को किस तरीके से देखा? अमेरिकी विशेषज्ञों का मानना है कि इराक़ में ईरान का प्रभाव, सुलेमानी के मारे जाने के साथ घट रहा है। सुलेमानी इराक़ में ईरान के पूरे सुरक्षा कार्यक्रमों का संचालन करते थे। इराकी संसद द्वारा कधिमी के प्रधानमंत्री बनाए जाने पर मुहर लगाने से भी बगदाद में तेहरान का कम होता प्रभाव नज़र आता है।

लेकिन यह नज़रिया सिर्फ उस आत्मकेंद्रित अमेरिकी विचार को ही दिखाता है, जो कुछ इस तरह बयां किया जाता है- या तो आप हमारे साथ हैं, या फिर आप हमारे खिलाफ़ हैं। जबकि ईरान की इराक़ में क्षेत्रीय रणनीति बहुआयामी है। यह सच है कि तेहरान के लिए कधिमी प्रधानमंत्री पद के लिए कोई आदर्श प्रत्याशी नहीं हैं। उनके साथ तेहरान के कोई पुराने संबंध नहीं हैं। इस बात की भी संभावना है कि तेहरान को कधिमी के अमेरिकी और ब्रिटिश गुप्तचर संस्थाओं के साथ संबंधों के बारे में पता होगा।

दरअसल तेहरान ने सद्दाम हुसैन की सत्ता के खात्मे के बाद कभी बग़दाद में अपनी कठपुतली बिठाने की कोशिश ही नहीं की। ईरान का मुख्य ध्यान इराक़ की स्थिरता और सुरक्षा पर रहता है। यह 2014 में ISIS की इराक़ में बढ़ती कार्रवाई के वक़्त ईरान द्वारा दिखाई गई प्रतिबद्धता से भी पता चलता है। मोसुल और टिकरित में ISIS के कदमों की आहट के साथ ही ईरान ने तब तुरंत सुरक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से अपने संसाधन तैनात कर दिए थे। बल्कि ईरान ने उस वक़्त अमेरिका के साथ मिलकर काम किया था। 

यहां यह बताने की कोशिश है कि ईरान, इराक़ को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के नज़रिए से देखता है। तेहरान के पास वह संसाधन उपलब्ध थे, जिनसे वह इराकी संसद में कधिमी का रास्ता रोक सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इसके एवज़ में कधिमी ने भी ईरान से बातचीत जारी रखी है। ईरान, इराक़ में कठपुतली बिठाने के अमेरिकी अनुभव से सीख ले चुका है कि वहां ऐसा करना खुद के हितों के खिलाफ़ ही काम करता है।

यहां ईरान ने इराक़ के समाज में अपनी पहुंच वृहद करने पर ध्यान दिया। ताकि ठोस संबंधों का निर्माण किया जा सके। यह आधार न केवल इराक़ के शिया समाज में बनाया गया बल्कि सुन्नी और कुर्द तक भी फैलाया गया। यही चीज ईरान के प्रभाव को दिखाती है और तय करता है कि सद्दाम के कार्यकाल में ईरान के लिए जिस तरीके से सुरक्षा संकट खड़े हो जाते थे, वैसे न हो पाएं।

दूसरी बात, इस बात को समझने में कोई गलती नहीं करनी चाहिए कि इराक़, ईरान के लिए बफर जोन की तरह रहा है, जहां अमेरिका, ईरान के मंतव्यों और क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने में योगदान को बेहतर ढंग से समझ सकता है। तीसरी बात, तेहरान कधिमी को ईरान और सऊदी अरब के रिश्तों को संतुलित करने वाले के तौर पर देखता है।

बल्कि, बिना ख़बरों में आए हुए इलाके में क्षेत्रीय सुरक्षा स्थिति काफ़ी बदल रही है। ईरान के विदेश मंत्री जावेद ज़रीफ ने पिछले हफ़्ते मॉस्को की यात्रा की थी। जिसमें उन्होंने "राष्ट्रपति ट्रंप को राष्ट्रपति रोहानी की तरफ से एक अहम संदेश दिया" और रूस के विदेश मंत्री सर्जी लेवरोव के साथ द्विपक्षीय सहयोग के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक समन्वय पर गहन बातचीत की।

दो दिन बाद, पुतिन ने फोन पर बातचीत में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के बारे में बातचीत की। इसके बाद प्रभावी तेहरान टाइम्स न्यूज़पेपर ने विस्तार से बताया, "पुतिन ने साफ़-साफ़ नहीं बताया है कि वे कैसे ईरान की न्यूक्लियर डील को बचाएंगे। लेकिन उनकी शुरुआती कोशिश से, ईरान के ऊपर यूएन द्वारा लगाए गए हथियार प्रतिबंधों के खात्मे के पहले ईरान और अमेरिका के कूटनीतिक रिश्तों की दोबारा शुरुआत के संकेत दिखाई पड़ते हैं।"

इस पृष्ठभूमि में पिछले हफ़्ते कधिमी की ईरान यात्रा एक अहम मोड़ है। कधिमी ने तेहरान में रहने के दौरान कहा कि "इराक़ अपनी ज़मीन से ईरान के लिए कोई ख़तरा पैदा नहीं होने देगा।" दूसरी तरफ ईरान के शीर्ष नेता अली खुमैनी ने खुले तौर पर कधिमी से कहा कि "पॉपुलर मोबलाइज़ेशन यूनिट्स", इराक़ के लिए वरदान हैं, उनकी रक्षा की जानी चाहिए।

अमेरिका की क्षेत्रीय नीतियों पर खुमैनी का कधिमी के साथ लंबी बातचीत में इस बात का इशारा मिलता है कि कधिमी को तेहरान का समर्थन तभी मिल सकता है, जब वे अमेरिका की कठपुतली की तरह व्यवहार नहीं करेंगे। अब यह तय है कि कधिमी पर इराक़ की अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को दोबारा आकार देने का दबाव बढ़ गया है।

कधिमी के पास अब दो विकल्प हैं- कधिमी इराक़ से अमेरिकी सैनिकों की पूर्ण वापसी ( या बड़ी संख्या में वापसी) करवाएं या फिर इराक़ के राजनीतिक ढांचे का गुस्सा झेलें। कधिमी जो भी विकल्प अपनाएंगे, वह उनका राजनीतिक भविष्य भी तय करेगी। हाल में इराकी सुरक्षा सत्ता के एक विशेषज्ञ की हत्या से भी इस बात का इशारा करती है कि जिस लहर में कधिमी को सत्ता मिली थी, अब वह पलट रही है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

 

Ebb and Flow of Iran’s Influence in Iraq


 

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