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ईवीएम विवाद : 50 न सही कम से कम 10 फीसद वीवीपैट मिलान तो ज़रूरी है

सभी चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव आयोग को केवल एक मतदान केंद्र के ईवीएम और वीवीपैट मिलान करने की अपनी हठ छोड़नी चाहिए। और मतगणना में भरोसा दिलाने के लिए इसे कम से कम 10 फीसदी मतदान केंद्रों पर लागू करना चाहिए।
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image courtesy- daily express

आंकड़ों के तहत  यह स्थापित तथ्य है कि तकरीबन 5 फीसदी ईवीएम में गड़बड़ियां रहती हैं लेकिन यह गड़बड़ी इतनी अधिक नहीं है कि बहुत अधिक गंभीर प्रभाव पड़े। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि ईवीएम की गड़बड़ियां जनता में बहुत अधिक अधिक शंकाएं पैदा ना करें और कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए कि जनता में मतगणना को लेकर भरोसा बना रहे। इसलिए विपक्ष की तरफ से  अब ईवीएम की जगह बैलेट पेपर की मांग नहीं हो रही है बल्कि गिनती का मिलान 50 फीसद वीवीपीएटी मशीन की पर्ची से किए जाने की मांग है। तकरीबन 21 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है कि किसी संसदीय या विधानसभा क्षेत्र के एक नहीं बल्कि तकरीबन 50 फीसदी मतदान केंद्रों के ईवीएम और वीवीपैट के मतों का मिलान करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार किया और चुनाव आयोग से जवाब माँगा। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि संसदीय निर्वाचन क्षेत्र या विधानसभा क्षेत्र में 50% वोटर वेरिफिकेशन पेपर ट्रेल (वीवीपीएटी) सत्यापन संभव नहीं है क्योंकि इससे मतगणना के लिए आवश्यक समय को 6 से 9 दिनों के लिए आगे बढ़ाना पड़ जाएगा। 

इसके साथ चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि बढ़े हुए VVPAT स्लिप काउंटिंग के लिए क्षेत्र में चुनाव अधिकारियों के व्यापक प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता होगी और इस तरह के अधिकारियों को क्षेत्र में तैनाती के लिए पर्याप्त वृद्धि की आवश्यकता होगी। यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक है कि कई विधानसभा क्षेत्रों में, 400 से अधिक मतदान केंद्र हैं, जिनमें वीवीपीएटी स्लिप गणना को पूरा करने के लिए लगभग 8-9 दिनों की आवश्यकता होगी। आगे जब चुनाव सामने हैं और पहले दौर का मतदान 11 अप्रैल, 2019 से शुरू होना है, तो अब इस चुनाव में अपनाई गई व्यवस्था को बदलना संभव नहीं है और इसे भविष्य के चुनावों के लिए ही माना जा सकता है। वर्तमान प्रणाली को सभी पहलुओं पर विस्तृत अध्ययन और विचार के बाद अपनाया गया है और सभी सुरक्षा उपायों और जांच को ध्यान में रखते हुए आवश्यक भी समझा गया है।

इन सारे बहस-मुबाहिसों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सभी विपक्षी दलों को कहा है कि एक सप्ताह के भीतर सभी दल इस पर अपना जवाब रखें। इस मामलें पर अगली सुनवाई अप्रैल 8 को होगी।

क्या है वीवीपैट?

अब इस पूरे मसले पर बात करने से पहले वीवीपैट को समझने की जरूरत है। वीवीपीएटी यानी वोटर वेरिफिकेशन पेपर ट्रेल के तहत एक प्रिंटर बैलेटिंग यूनिट से जुड़ा होता है और उसे वोटिंग कंपार्टमेंट में रखा जाता है। मतदाता के ईवीएम पर बटन दबाने के बाद मतदाता वीवीपीएटी पर मुद्रित पर्ची को देखने की खिड़की के माध्यम से देख सकता है और इस प्रकार ये सत्यापित कर सकता है कि वोट उसकी पसंद के उम्मीदवार के लिए ही रिकॉर्ड किया गया है। पारदर्शी खिड़की के माध्यम से सात (7) सेकंड के लिए वीवीपीएटी पर पेपर स्लिप दिखाई देती है। इस तरह से मतगणना के समय मत के सत्यापन के दो तरीके मौजूद हैं। एक तरीका ईवीएम डिस्प्ले बोर्ड का है- बस बटन दबाइए और किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले यह ईवीएम के डिस्प्ले बोर्ड पर दिख जायेगा। दूसरा वीवीपैट मशीन का है- इस मशीन से पर्ची निकलती है और एक सीलबंद बक्से में जमा होती रहती है। बक्से को खोलकर इन पर्चियों को गिनकर तय किया जा सकता है कि किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले। इस तरह से अगर दोनों के मिलान के बाद एक ही संख्या आती है तो इसका मतलब है कि ईवीएम के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई है। वीवीपैट लाने का मकसद ही यही था कि वोट की किसी भी तरह की गड़बड़ी का पता चल सके या सभी शिकायतें दूर की जा सकें।

चुनाव आयोग का आदेश है  (रूल -16.6 ) मतगणना खत्म होने के बाद  रैंडमली यानी बिना किसी तयशुदा तरीके से किसी संसदीय या विधानसभा क्षेत्र से किसी एक मतदान केंद्र के ईवीएम और वीवीपैट के मतों का मिलान किया जाए जिससे गड़बड़ी की सारी शंकाएं दूर हो सके। इसके साथ नियम  यह भी  (रूल - 16.5) है कि मतगणना  खत्म होने के बाद लेकिन परिणाम घोषित होने के पहले  प्रत्याशी किसी मतदान केंद्र या सभी मतदान केंद्र पर ईवीएम और वीवीपैट के मिलान की अर्जी दे सकता है। और उसकी इस अर्जी का फैसला रिटर्निंग अफसर करेगा। 

फरवरी के महीने में तकरीबन 73 रिटायर्ड नौकरशाहों ने भी चुनाव आयोग को एक पत्र लिखा था। पत्र में कहा गया था कि असली मुद्दा ईवीएम बनाम पेपर बैलेट पेपर का नहीं है। असली मुद्दा ईवीएम के साथ वीवीपैट का सही से ऑडिट करने से जुड़ा है। यानी इस बात से कि क्या ईवीएम से मिले मतों और वीवीपैट की से मिले मतों की संख्या में मिलान है। इसके लिए चुनाव आयोग ने किसी भी संसदीय या विधानसभा क्षेत्र में केवल एक मतदान केंद्र चुना है। यह कहीं से भी उचित नहीं लगता है। जैसे कोंस्टीटूएंसी  एरिया बदलने पर ईवीएम की संख्या भी बदल जाती है।  यह बदलाव तकरीबन 20 से 300 के बीच हो सकती है। आखिरकार उत्तर प्रदेश जैसे एक राज्य में तकरीबन डेढ़ लाख ईवीएम हैं और सिक्किम जैसे राज्य में केवल 589  ईवीएम हैं। इन दोनों के बीच कहीं से समानता नहीं है। ऐसे में केवल एक मतदान केंद्र के सत्यापन के जरिये जनता में  ईवीएम की गड़बड़ियों के निवारण के प्रति भरोसा नहीं दिलाया नहीं जा सकता है। 

इस पूरे विषय पर राजनीतिक विश्लेषक और स्वराज इण्डिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव द प्रिंट में लिखते हैं, ''मेरे जानते मौजूदा विवाद को बड़ी आसानी से सुलझाया जा सकता है। चुनाव आयोग का ज़ोर इस बात पर है कि एक निर्वाचन क्षेत्र में किसी एक मतदान केंद्र पर वीवीपीएटी ऑडिट करा लेना पर्याप्त है- ज़ाहिर है, यह बात को जैसे-तैसे निपटाने देने की मनोवृत्ति का परिचायक है और इससे शक पैदा होता है।

रैंडम रीति से चयनित इस छोटे से सैम्पल के जरिये निश्चित ही यह जाना जा सकता है कि ईवीएम के ज़रिये होने वाली मतगणना देशस्तर पर कितनी भरोसेमंद है, लेकिन बहस के केंद्र में यह सवाल तो है ही नहीं। मामला तो मतगणना की व्यवस्था को हर निर्वाचन-क्षेत्र के लिए परखने का है और यह काम कुछ इस तरीके से करने का है कि वह सिर्फ सांख्यिकी की कसौटियों पर खरी न उतरे बल्कि मतदान-प्रक्रिया पर लोगों का भरोसा जगाये। चुनाव आयोग ने जो प्रस्ताव किया है उसमें ये दोनों ही बातें नदारद हैं।''

न्यूजक्लिक के एडिटर इन चीफ प्रबीर पुरकायस्थ इस मुद्दे पर कहते हैं, ''विपक्ष की यह  मांग कि वीवीपैट से  मतों की  मिलान तकरीबन 50 फीसदी मतदान केंद्रों पर की जाए। इससे निश्चित है कि प्रक्रिया लंबी होगी। लेकिन केवल 1 मतदान केंद्र के वीवीपैट  से मिलान कर जनता में मतगणना को लेकर भरोसा नहीं पैदा किया जा सकता है। केवल एक मतदान केंद्र के वीवीपैट का मिलान करने का मतलब होगा कि केवल 1 फीसदी से कम के  इवीएम की जांच परख करना। और इससे जनता का भरोसा हासिल नहीं किया  जा सकता है। इसलिए भले 50 फीसदी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट से  मिलान  न किया जाए लेकिन  इसे एक मतदान केंद्र से तो अधिक होना ही चाहिए। अब यह 10 से लेकर 30 फीसदी कुछ भी हो सकता है। 

पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी  इस पर एक इनोवेटिव विचार रखते हुए कहते हैं कि दूसरे सबसे अधिक मत पाने वाले प्रत्याशी को यह अधिकार देना चाहिए कि वह किसी भी मतदान केंद्र से लेकर अपने सभी मतदान केंद्रों पर पड़े वोटों का मिलान वीवीपैट  से करवा सके।

ऐसे ही सभी चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव आयोग को केवल एक मतदान केंद्र के ईवीएम और वीवीपैट  मिलान करने की अपनी हठ छोड़नी चाहिए। और मतगणना में भरोसा दिलाने के लिए इसे कम से कम 10 फीसदी मतदान केंद्रों पर लागू करना चाहिए। इसकी वजह से रिजल्ट आने में  2 या 3 दिन की देरी कोई बड़ी बात नहीं है। जनता के बीच मतगणना को लेकर भरोसा बना रहे यह बड़ी बात होनी चाहिए। अब देखने  वाली बात यह है कि  आने वाले 8 अप्रैल तक सुप्रीम कोर्ट का इस पर  क्या फैसला आता है? 

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