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जम्मू कश्मीर: 27 मज़दूर हुए रिहा, परंतु 90 बंधुआ मज़दूर अब भी आज़ादी के इंतज़ार में

जिन 90 बंधुआ मजदूरों की मुक्ति का मामला 7 सितंबर 2022 से सरकार व प्रशासन के गले की हड्डी बन हुआ था एवं मीडिया में अभी भी सुर्खियों पर हैं, उन तमाम बंधुआ मजदूरों को अब तक मुक्ति नहीं मिली पाई है।
bonded labour

मंगवालार को पूरे दिन 90 बंधुआ मजदूर टकटकी लगाए बड़गांव जिला प्रशासन का इंतजार करते रहे किंतु उन्हें आजाद करने कोई नहीं आया। बार-बार मजदूर नेशनल कैंपेन कमिटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ़ बॉन्डेड लेबर के संयोजक निर्मल गोराना को फोन करते रहे। इधर जांजगीर चांपा के लेबर ऑफिसर घनश्याम पाणिग्रही ने मीडिया को बताया कि मजदूरों की मुक्ति हो गई है। किंतु यह सरासर गलत खबर है।

जिन मजदूरों को बड़गांव जिले से कल मुक्त करवाया गया वह कुल संख्या में 27 थे और मुक्ति करने गई टीम को घनश्याम पाणिग्रही ने दूसरी जगह भेज दिया जहां पर बंधुआ मजदूर ना होने की बात सामने आई है। किंतु जहां पर 90 बंधुआ मजदूरों का मामला प्रकाश में आया और बंधुआ मजदूर बार-बार मुक्ति की गुहार कर रहे थे, वहां पर अब मालिक अपने गुंडों को लेकर मजदूरों को कार्यस्थल से हटाने के प्रयास में लगा हुआ है।

इधर निर्मल गोराना ने तत्काल डिप्टी कमिश्नर बड़गांव जिला जम्मू एंड कश्मीर को फोन पर बात करके रात्रि काल में मजदूरों के कार्यस्थल पर एवं आवास पर पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने की बात की है। रात्रि 8:30 पर संबंधित पुलिस मजदूरों को सुरक्षा देने हेतु पहुंच गई है किंतु इन तमाम मजदूरों की मुक्ति हेतु कल बयान दर्ज किए जाएंगे साथ ही निर्मल गोराना ने आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा, रायगढ़ एवं बलोदा बाजार के आला अधिकारी बंधुआ मजदूरों की खबर सुनकर जम्मू कश्मीर जाने के बारे में कोई आतुरता नजर नहीं आ रही है।

जब प्रवास स्थल पर सभी मजदूरों के बयान तोड़ मोड़ कर दर्ज कर लिए जाएंगे और बिना मुक्ति प्रमाण जारी किए मजदूरों को रोड पर या जम्मू स्टेशन पर पटक दिया जायेगा तो उसके बाद छत्तीसगढ़ के अधिकारियों के जाने से क्या फायदा होगा। जबकि होना यह चाहिए कि तत्काल प्रभाव से जांजगीर चापा, बलौदाबाजार एवं रायगढ़ के श्रम अधिकारी एवं प्रशासन के सीनियर ऑफिसर को बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने के लिए तो जम्मू कश्मीर में होना चाहिए था। लेकिन सरकार एवं प्रशासन के कान पर शायद जूं तक नहीं रेंग रही है।

उधर बंधुआ मजदूरों की जान जोखिम में पड़ी हुई है। साथ ही मालिक इस मामले को रफा-दफा करने के लिए प्रशासन के साथ अपना तालमेल बिठाने में लगा हुआ है। मजदूरों के साथ छत्तीसगढ के अधिकारी न होने से न तो मजदूर बयान के वक्त हिम्मत से बोल पाएंगे और न ही मुक्ति प्रमाण पत्र की बात कर पाएंगे।

हमेशा प्रशासन यही अभ्यास करता आया है और बिना मुक्ति प्रमाण पत्र के इन मुक्त बंधुआ मजदूरों को पुनर्वास नहीं मिलेगा और फिर से ये सब दोहरे बंधुआ मजदूर बनकर किसी राज्य के भट्टों, खेतों पर नजर आएंगे।

नेशनल कैंपेन कमिटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ़ बॉन्डेड लेबर की ओर से एक पत्र छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को लिखा गया है ताकि बंधुआ मजदूरों एवं प्रवासी मजदूरों कि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके। क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह ने भी बंधुआ मजदूरों की समस्या के समाधान के लिए वादे किए किंतु वह उन वादों को निभा नहीं पाए। अब सरकार बदल गई है और शायद इसे पूर्ण संवेदनशीलता के साथ चर्चा करके इसका समाधान निकाला जा सकता है।

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