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जन आन्दोलन के दबाव में राजस्थान सरकार ने स्कूलों के निजीकरण का निर्णय किया स्थगित

"ये हमारे आन्दोलन की जीत है, पर हमारा आन्दोलन तब तक जारी रहेगा जब तक पीपीपी मॉडल की नीति को समाप्त नहीं किया जाता I”
पीपीपी

राजस्थान सरकार को भारी जन विरोध के चलते 300 स्कूलों को पीपीपी मॉडल के अंतर्गत लाने के अपने निर्णय को स्थगित करना पड़ा I शिक्षक और छात्र संगठनों के आलावा सामाजिक कार्यकर्त्ता भी इसे आन्दोलन की जीत की तरह देख रहे हैं I दरअसल पिछले साल सितम्बर में  राजस्थान सरकार ने यह निर्णय लिया था कि वो 300 स्कूलों को पीपीपी यानी पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप के अन्तर्गत निजी कंपनियों को सौंप देगी I इस प्रस्ताव के अंतर्गत सरकार हर स्कूल को सिर्फ 75 लाख की राशि में निजी हाथों को सौंप देगी, साथ ही हर साल उन्हें सरकार 16 लाख रुपये देगी I यानी हर स्कूल के लिए सरकार निजी कंपनियों को 1.20 करोड़ रुपये देगी I

लेकिन राज्यभर में लगातार हो रहे ज़ोरदार प्रदर्शनों के चलते राजस्थान सरकार ने इसे फिलहाल ठन्डे बसते में डालने का निर्णय लिया गया है Iराजस्थान सरकार का कहना है कि विभिन्न जन संगठनों से प्राप्त ज्ञापन और सुझावों की समीक्षा करने के बाद ये निर्णय लिया गया कि सरकारी स्कूलों को पीपीपी मॉडल पर देने की नीति स्थगित कर दिया जाये I इसपर आगे का निर्णय लेने के लिए तीन मंत्रियों की समिति बनाई जा रही है जो इस मॉडल पर विचार करेगी और आगे का निर्णय इसी के बाद लिया जायेगा I

पीपीपी

इसके बाद इस पीपीपी मॉडल के खिलाफ़ आन्दोलन से जुड़े जन संगठनों SFI, AISF, राजस्थान शिक्षक संघ (प्रगतिशील), समता ज्ञान विज्ञान संघ और AIKS आदि ने अपने प्रेस नोट में कहा “ये जन संघर्ष की जीत है”  और उनकी माँग है कि “सरकार 3 सद्सीय कमिटी को भंग करे और पीपीपी मॉडल के फैसले वो वापस लें I”

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इस मुद्दे पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए राजस्थान शिक्षा संघ(शेखावत) के महासचिव महावीर सिहाग  ने कहा “ये न सिर्फ हमारी जीत है, बल्की उन आम लोगों की जीत है जिन्होंने लगातार आन्दोलन जारी रखा I इससे पहले भी राजस्थान में सरकारी नीतियों के खिलाफ काफी आन्दोलन हुए हैं पर ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार अपने कदम से पीछे हटी हो I”

वहीँ SFI (स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ) के राज्य सचिव मंडल सदस्य पवन बेनीवाल का कहना था “हम सभी लोगों के साथ इस पर निर्णय पर बैठक करेंगे और फिर गाँव-गाँव जाकर लोगों को सरकार के निर्णय के इस बारे में सूचना देंगे I ये हमारे आन्दोलन की जीत है, पर हमारा आन्दोलन तब तक जारी रहेगा जब तक पीपीपी मॉडल की नीति को समाप्त नहीं किया जाता I” उन्होंने आगे कहा कि, “हम इस मुद्दे को आने वाले राजस्थान के चुनावों में भी मुद्दा बनाकर पेश करेंगे I”

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गौरलतब है कि कुछ ही दिनों पहले एक स्थानीय अख़बार ने इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि सरकार जिन 300 स्कूलों को पीपीपी के अंतर्गत ला रही है वो करोड़ों की ज़मीन पर स्थित हैं I रिपोर्ट के अनुसार इनमें से ज़्यादातर स्कूल हाइवे के पास हैं और इनकी ज़मीन 2 से 5 बीघा तक है I अखबार ने ये दावा किया है कि जिन स्कूलों की संपत्ति निजी हाथों में सौंपी जा रही है वो अच्छी-खासी स्थिति में हैं I उदाहरण के तौर पर बताया गया है कि अलवर के 17 स्कूल जो पीपीपी के अंतरगत आने वाले थे उनकी ज़मीन की कीमत 100 करोड़ है I इससे पहले जन संगठन भी कह चुके हैं कि ये पीपीपी मॉडल का निर्णय कुछ निजी कंपनियों को फायदा पहुँचाने का ही तरीका है I

जन संगठनों का कहना था कि आम लोगों की करोड़ों की संपत्ति जिसका मकसद आम जन तक शिक्षा पहुँचाना है, उसे इस तरह निजी हाथों में देना गुनाह है I उनका कहना है कि इससे लाखों गरीब बच्चे स्कूली शिक्षा से दूर हो सकते हैं क्योंकि निजी हाथों में शिक्षा महँगी हो जाएगी I साथ ही बताया जा रहा है कि इससे 15,000 मिड डे मील और बाकि करमचारियों और हज़ारों शिक्षकों की नौकरी खतरे में आ सकती है I यही वजह थी कि जनवरी से राजस्थान के विभिन्न ज़िलों में आम जनता सरकार के इस निर्णय के खिलाफ आन्दोलन कर रहे थे I

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