जन संघर्षों में साथ देने का संकल्प लिया युवाओं ने
सारा देश ‘मोदी-मोदी’ नहीं कर रहा है। ऐसे बहुत से लोग हैं, जो उग्र राष्ट्रवाद को नकारते हुए देश की मौजूदा समस्याओं का समाधान चाहते हैं। वे चाहते हैं कि देश से सांप्रदायिकता खत्म हो, भीड़ की हिंसा खत्म हो, लोगों को बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोजगार मिले, फसलों का वाजिब दाम मिले। ऐसी ही सोच के कुछ युवा, जो अलग-अलग राज्यों में विभिन्न मुद्दों पर चल रहे जन संघर्षों से जुड़े हुए हैं, मध्यप्रदेश के बड़वानी में इकट्ठा हुए। एक ओर जब 23 मई को लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद मोदी सरकार की निरंतरता पर मुहर लग रही थी, तब उसी समय में इन युवाओं ने एक-दूसरे के संघर्षों के साथ खड़े रहने और एकजुटता से जन पक्षीय आवाज़ों को बुलंद करने का संकल्प लिया। लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से राष्ट्रवादी विजय के दौर में उनकी यह एकजुटता धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और प्रगतिशीलता के प्रति एक उम्मीद है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय का वार्षिक युवा संवाद का आयोजन 20 से 23 मई तक बड़वानी में नर्मदा नदी किनारे राजघाट पर आयोजित किया गया। इसमें 7 राज्यों – उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश,ओडिशा और मध्यप्रदेश के लगभग 50 युवाओं ने भाग लिया। ये युवा इन राज्यों में सक्रिय विभिन्न जनसंगठनों - हमसफर, संगति युवा मंच, जन जागरण शक्ति संगठन, सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी, मजदूर किसान शक्ति संगठन, आई.एल.एस. लॉ कॉलेज, संभावना इंस्टीट्यूट, एन.एल.यू.आई, नर्मदा बचाओ आंदोलन, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, शहरी मजदूर संगठन, आवाज,सेंचरी मिल्स और जे़निथ लीगल एड क्लीनिक से जुड़े हुए हैं। इन चार दिनों में विभिन्न राज्यों से आये युवाओं ने नर्मदा घाटी का दौरा कर नर्मदा घाटी के मुद्दों - बड़े बांध की स्थिति, विस्थापन, पुनर्वास, पर्यावरण आदि को समझने का प्रयास किया। उन्होंने विस्थापितों से बातचीत भी की। इसके साथ ही विभिन्न सत्रों में फिल्म शो एवं व्याख्यान और विमर्श के माध्यम से सामयिक मुद्दों को समझने का प्रयास किया।
कार्यक्रम की शुरुआत नर्मदा आंदोलन से जुड़े देवेन्द्र भाई और आशीष मंडलोई की स्मृति को याद करते हुए की गई। नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने बताया कि देवेंद्र भाई एक अनुभवी कार्यकर्ता थे। परियोजना से सीधे प्रभावित नहीं होने के बावजूद उन्होंने आंदोलन के लिए अपना जीवन समर्पित किया। आशीष मंडलोई एक ऊर्जावान और निर्भीक कार्यकर्ता थे जिनके योगदान ने सरदार सरोवर परियोजना की पुनर्वास योजना में फ़र्ज़ी रजिस्ट्रीयों के भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। लोगों के हित में आरटीआई का उपयोग करने के लिए उन्हें उपराष्ट्रपति का पुरस्कार जीता था। उन्होंने युवाओं से इन सामाजिक कार्यकर्ताओं के जीवन से प्रेरणा लेने को कहा।
जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़ी हिमशी ने दृष्टि-पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि युवा संवाद का आयोजन का उद्देश्य है कि यहां देश भर में जन संघर्ष करने वाले युवा एक-दूसरे से सीख सकें और नए दृष्टिकोण हासिल कर सकें। इससे भारत के गांवों और शहरों में विविध संघर्षों में काम करने वाले युवाओं का गठजोड़ होगा।
कलादास देहरिया ने सांस्कृतिक प्रतिरोध की भूमिका और महत्व पर युवाओं से बात की। उन्होंने केवल औद्योगिक मनोरंजन पर भरोसा करने के बजाय लोगों को अभिव्यक्ति के अपने स्थानीय सांस्कृतिक तरीकों को पुनः प्राप्त करने पर जोर दिया।
लखनऊ के हमसफर से जुड़े रुबीना और ज़ैनब ने युवाओं के साथ जेंडर (लैंगिक) समानता पर एक सत्र लिया। युवाओं ने अपने जीवन में और आंदोलनों में जेंडर की भूमिका पर विचार किया। उन्होंने समाज में जेंडर को लेकर चीजों को बदलने का संकल्प लिया। सूचना के अधिकार अभियान के लिए राष्ट्रीय अभियान से अमृता ने सूचना के अधिकार अधिनियम पर एक सूचनात्मक सत्र आयोजित किया। उन्होंने आरटीआई को भारत में लागू करने और कानून के प्रमुख प्रावधानों को हासिल करने के लिए आंदोलन के इतिहास पर चर्चा की। युवाओं ने इस कानून को इस्तेमाल करने के अपने अनुभवों को साझा किया। युवाओं ने मातृ जन संगठन के विमल भाई के साथ पर्यावरण और बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से संबंधित मुद्दे पर चर्चा की। उन्होंने नदियों पर बांधों के पर्यावरण और सामाजिक लागतों के बारे में बात की। अंबेडकरवादी कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने जाति पर एक सत्र का संचालन किया। उन्होंने उत्पीड़ित जातियों के अधिकारों के लिए लड़ने के अपने अनुभवों को साझा किया। युवाओं ने अपने स्थानीय समुदायों में जाति के अनुभवों को साझा किया और चर्चा की कि वे सुधार करने के लिए क्या कर सकते हैं।
इस आयोजन में सामाजिक मुद्दों पर लघु फिल्मों की स्क्रीनिंग के साथ जन आंदोलनों में मीडिया की भूमिका के बारे में प्रतिरोध का सिनेमा, गोरखपुर के सौरभ और चलचित्र अभियान के आर्यन के नेतृत्व में चर्चा हुई। लिंचिंग पर एक फिल्म ‘लिंच नेशन’ और नर्मदा बचाओ आंदोलन के संघर्ष पर एक फिल्म दिखाई गई।
अंतिम दिन युवाओं ने संकल्प लिया कि - शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार, पर्यावरण, पारंपरिक आजीविका, लैंगिक अधिकार, जाति हिंसा और सांप्रदायिकता की गिरती स्थिति का संज्ञान लेते हुए हम संकल्प करते हैं कि - हम विभिन्न जन आंदोलनों के युवा एक दूसरों के संघर्षों के साथ खड़े रहेंगे और एकजुटता से जन पक्षीय आवाज़ों को बुलंद करेंगे, अन्याय और भेदभाव के खिलाफ सामूहिक राजनैतिक समझ बनाते हुए शोषक ताकतों का सामना कर उन्हें हराने का पुरजोर प्रयास करेंगे, हम लिंग और जेंडर के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेंगे और उनके अधिकारों के संघर्षों में पूरा साथ देंगे, हम संघर्ष करेंगे कि रोटी, कपड़ा,मकान, शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य की बुनियादी जरूरतें सभी तक पहुंचें, हम अपनी प्राकृतिक विरासत का सम्मान करते हुए जल, जंगल तथा जमीन का संरक्षण करेंगे एवं विनाशकारी व विस्थापन नीतियों औरपरियोजनाओं का विरोध करेंगे, हम जाति के उन्मूलन की दिशा में काम करेंगे, हम सांप्रदायिक और पूंजीवादी ताकतों को हराने का प्रयास करेंगे, हम शोषण की जंजीरों को तोड़ने के लिए संघर्ष करेंगे, हम मज़दूर वर्ग के संघर्ष का साथ देते हुए उनकी लड़ाई को मज़बूत करेंगे, हम जन विरोधी कानूनों का पुरजोर विरोध करते हैं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओ की रिहाई की मांग करते हैं, हम एक न्यायसंगत और समान समाज के निर्माण के लिए लड़ेंगे जहां संसाधनों पर मुट्ठी भर लोगों का कब्जा न हो, हम देश में वित्तीय जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग रखते हैं और हम संविधान में निहित मूल्यों और अधिकारों की रक्षा करेंगे।
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