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झारखण्ड राज्य के 18 साल का जश्न; क्यों भूख से मौत नहीं बनता मुद्दा?

राज्य में आज भूख से काल कलवित होते लोग वही हैं जिन्होंने सात दशकों से भी अधिक की लम्बी लड़ाई लड़ कर इस राज्य के गठन के लिए हर क़ीमत चुकाई हैI
starvation death
सांकेतिक चित्र

आज 15 नवम्बर को एक बार फिर झारखण्ड राज्य के स्थापना दिवस पर राज्य के खज़ाने से करोड़ों के सरकारी उत्सवों में मुख्यमंत्री जी अपनी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार के रामराज का बखान कियाI लेकिन राज्य बनने के 18 वर्षों बाद भी भूख से मर रहे लोगों की बढ़ती संख्या को रोकने का कोई कार्य-संकल्प नहीं लियाI राज्य में आज भूख से काल कलवित होते लोग वही हैं जिन्होंने सात दशकों से भी अधिक की लम्बी लड़ाई लड़ कर इस राज्य के गठन के लिए हर क़ीमत चुकाई हैI मीडिया को जारी सूचना के अनुसार इस अवसर पर 1,000 करोड़ की निर्माण योजनाओं की घोषणा करते हुए बताएँगे कि उनकी पार्टी के शासन में किस तरह झारखण्ड राज्य निरंतर विकास की राह पर अग्रसर हैI तथाकथित इस विकास के शोर में लोगों के बदतर हो रहे हालात और गांवों में पसरी भुखमरी, बेकारी-कंगाली जैसे जलते हुए सवालों की चर्चा नहीं हुईI

जबकी दूसरी ओर, प्रदेश की उप-राजधानी कहे जाने वाले दुमका से सटे जामा प्रखंड स्थित महुआटांड गाँव में बीते 11 नवम्बर की रात, सरकार के विकास और राज्य के गरीबों के उत्थान के तमाम दावा-दलीलों को आईना दिखाते हुए, कालेश्वर सोरेन भूख से मर गयाI जिसे जानने समझने के लिए वहाँ आने की बजाय अगले ही दिन क्षेत्र की आदिवासी विधायक और राज्य की समाज कल्याण मंत्री महोदया मृतक के गाँव से चंद किलोमीटर की दूरी पर दुमका शहर के इनडोर स्टेडियम में विधायक निधि से अत्याधुनिक जिम के उद्घाटन में ही व्यस्त रहींI इधर उनके क्षेत्र के मतदाता गरीब आदिवासी किसान कालेश्वर सोरेन का अंतिम संस्कार किया जा रहा था और उधर आदिवासी वोटों से विधायक और मंत्री बनी आदिवासी नेत्री महोदया शहर के चौक के सौन्दर्यीकरण की घोषणा कर रहीं थींI

12 नवम्बर को मौत की खबर सुनकर पूरे लाव-लश्कर के साथ कालेश्वर सोरेन के घर पहुँचे सरकारी अमले ने खुद देखा कि उस समय घर में अनाज का एक दाना तक नहीं थाI प्रशासन के लोगों ने इस बात पर गहरा अफ़सोस भी व्यक्त किया कि उसके परिवार को अब तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलाI गरीबी और बेकारी के कारण उसके तीन बेटे पहले ही बाहर कमाने चले गए थे और छोटा बेटा तथा बेटी बगल के गाँव में रिश्तेदारों के यहाँ रहकर मज़दूरी कर रहे थेI

स्थानीय पंचायत समिति की सदस्या ने बताया कि अनाज के अभाव में कालेश्वर सोरेन कई बार उनके यहाँ खाना माँगने आ जाता था और समय से उसका राशन कार्ड बन जाता तो शायद उसकी जान बच जातीI प्रशासनिक अधिकारियों के सामने आक्रोशित कालेश्वर के परिजनों व ग्रामीणों ने बार-बार कहा कि उसकी मौत बीमारी से नहीं बल्कि खाना नहीं मिलने से हुई हैI अपनी जान बचाने के लिए प्रशासन ने लोगों से कहा कि यदि तुम लोग यह लिखकर दोगे कि कालेश्वर कि मौत बीमारी से हुई है तभी लाश को हम देंगेI ग़मज़दा परिजनों व ग्रामीणों ने वही लिखकर दे दिया और भूख से हुई इस मौत का कारण टी.बी. की बीमारी के रूप में दर्ज हो गयीI   

जाहिर है हमेशा की तरह इस मौत का कारण भी बीमारी से हुई मौत साबित कर विकास पुरुष मख्यमंत्री जी की सरकार अपना पल्ला झाड़ ही लेगीI प्रशासन भी परिजनों को अन्तिम संस्कार के लिए चंद रुपये और कुछ दिनों की खैरात देकर अपनी जिम्मेवारी निभा लेगाI वहीं सरकार की आज्ञापालक मीडिया को इंतज़ार रहेगा, अगली मौत की खबर छापने काI लेकिन ज़मीनी सच का सवाल तो चीख चीखकर पूछेगा ही कि प्रदेश को अत्याधुनिक विकास के 6 लेन में धकेलकर ले जाने के लिए सरकार जो विदेशों और बड़े महानगरों में जा-जाकर बड़ी-बड़ी कंपनियों को राज्य में बुला रही है, प्रदेश के भूख से मर रहे गरीब-गुरबों के बद्दतर हालात को ठीक करने के लिए कौन सा ‘हाईटेक उपाय’ कर रही है? भूख से हो रही मौत का बढ़ता सिलसिला सरकार और प्रशासन की किस प्राथमिकता में है? देश के प्रधान मंत्री महोदय जो इन दिनों अपनी पार्टी की झारखण्ड सरकार के विकास मॉडल का बखान करते नहीं थक रहे, क्या भूख से मर रहे झारखंडी जन उनकी विकासवादी नज़र में कोई महत्व रखते हैं?

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