कैसे होगा? कौन कराएगा? ज़ख़्मी शाहनवाज़ का इलाज
बिहार के एक प्रवासी दिहाड़ी मज़दूर मोहम्मद शाहनवाज़ की कश्मीर में पैलेट गन के चपेट में आने से आंख की रोशनी खत्म हो गई है। इनकी कहानी भी अन्य प्रवासी मज़दूर की तरह ही है। वे भी रोज़गार की तलाश में अपने घर से हज़ारों किलोमीटर दूर जाकर काम करने को मज़बूर हैं। बिहार देश के उन राज्यों में से एक है जहाँ से आज भी भारी संख्या में लोग रोजगार और शिक्षा की तलाश में देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर बसते हैं। इस दौरन उन्हें हर राज्य में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कभी महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्यों में उन्हें उत्तर भारतीयों के नाम पर पीटा जाता है, यहाँ तक की देश की राजधानी दिल्ली में भी बिहारी शब्द को एक गाली की तरह प्रयोग किया जाता है।
इन प्रवासी मज़दूरों के लिए पूरे देश में सबसे बड़ी समस्या एक ही रहती है उनकी सुरक्षा की। इसको लेकर मज़दूर संगठनों की काफी लंबे समय से मांग रही है कि प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए जाएं लेकिन कभी भी किसी सरकार ने इस पर गौर नहीं किया। यही वजह है की कभी वो कहीं अपमानित हो रहे हैं, कहीं पीटे जा रहे और कहीं पैलेट गन का शिकार हो रहे हैं परन्तु इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
बिहार की ही बात करे तो नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले दावा कर रहे थे कि पलायन में कमी आई है और आज बिहार में रोजगार की कोई कमी नहीं है। लोग शौक के लिए बाहर जाते हैं लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि आज भी बिहार के युवा रोजी-रोजगार की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
इस घटना के बाद वाम दलों ने इसकी आलोचना की और नीतीश सरकार से मांग की है कि वो बिहार के प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और मोहम्मद शाहनवाज की आर्थिक हालत ठीक नहीं है इसलिए उसके इलाज का पूरा भार सरकार खुद वहन करे।
भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया है और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई के साथ-साथ पीड़ित मज़दूर के उचित इलाज की मांग केंद्र सरकार से की है।
माले राज्य सचिव ने कहा कि शाहनवाज की आर्थिक हालत बेहद खराब है और वे अपना इलाज करवाने में पूरी तरह असमर्थ हैं। इसलिए केंद्र व बिहार सरकार को इसमें तत्काल पहलकदमी लेते हुए उनके इलाज की गारंटी करनी चाहिए। प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के सवाल को भाकपा-माले लंबे अरसे से उठाते आई है और इस पर कानून बनाने की मांग करते आई है। यदि उनके लिए सच में कानून बन गया होता तो शाहनवाज जैसे लोगों को उचित समय पर मदद पहुंचायी जा सकती थी और उनकी सुरक्षा की भी गारंटी हो सकती थी।
क्या था पूरा मामला?
दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में पिछले शुक्रवार को सुरक्षा-बलों द्वारा पैलेट गन की फायरिंग से बिहार का मजदूर शाहनवाजज़ख्मी हो गया। बिहार के अररिया जिला के पथराहा गांव निवासी 14 वर्षीय मो. शाहनवाज सुरक्षा-बलों के पैलेट गन का शिकार तब हुए, जब पिछले शुक्रवार को अंसार गजवातुल हिन्द (ए जी एच) प्रमुख और सुरक्षा-बलों द्वारा मोस्ट वांटेड कमांडर जाकिर मूसा के एक मुठभेड़ में मारे जाने के बाद स्थानीय निवासियों और बलों के बीच संघर्ष हो रहा था। इस दौर तक़रीबन 50 से अधिक नागरिक भी घायल हुए।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए शाहनवाज ने कहा कि वो यहाँ आया था काम के लिए, क्योंकि यहां दिहाड़ी बिहार से ज्यादा है और यहां मौसम भी अच्छा है। हम अनजान थे हमें नहीं पता था यहाँ स्थिति इतनी खराब है।
इस घटना के बारे में बताते हुए मो. शाहनवाज ने कहा कि वह पुलवामा की एक मस्जिद में शुक्रवार की नमाज अदा करने के बाद कुछ खाद्य-सामग्री खरीदने राशन-दुकान गया था। दुकानदार अन्य ग्राहकों को सामान देने में व्यस्त होने के कारण उसे थोड़ा इंतजार करने को कहा। उसी समय सुरक्षा-बलों के खिलाफ कुछ युवाओं ने पत्थरबाजी शुरू की और सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्रवाई में फायरिंग शुरू की जिससे तेज धमाके के साथ विस्फोट की आवाज आई और वह इतना डर गया कि दुकान से भाग गया। कुछ समय बाद वह फिर दुकान पर राशन लाने गया कि अचानक सुरक्षा-बलों ने उस पर पैलेट गन से फायरिंग कर दी। पैलेट गन के छर्रों से वह घायल हो गया और जमीन पर गिर गया। आधे घण्टे तक सड़क पर पड़ा रहा और फिर कुछ स्थानीय युवाओं ने उसे कंधे पर उठा पुलवामा जिला अस्पताल में भर्ती कराया। शाहनवाज को आंख, चेहरा और सर पर छर्रे लगे थे। बाद में उनके गांव वाले आये और शाहनवाज को श्रीनगर ले गए। डॉक्टर ने बोला समय लगेगा पर वो ठीक हो जाएगा लेकिन पैसा लगेगा।
आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण इलाज कराने में असमर्थ
शाहनवाज के परिवार की आर्थिक बहुत ख़राब है। यही कारण था कि उसे 14 वर्ष की आयु में दिहाड़ी मज़दूरी के लिए कश्मीर जाना पड़ा। ऐसे में उसके इलाज के लिए इतने पैसे कहां से आएंगे यह भी एक सवाल है। अभी उनके बड़े भाई शाहबाज अभी उनकी देख-भाल के लिए पुलवामा के बेल्लाव गांव के एक किराये के कमरे में रह रहे हैं जिसमें पर्याप्त रोशनी भी नही है।
शाहबाज ने बताया कि डॉक्टरों के अनुसार शाहनवाज की दाहिने आंख की रोशनी चली गयी है और बाएं आंख की रोशनी भी काफी कमजोर हो गयी है। शाहनवाज पिछली 7 मई को घाटी में आया था और पुलवामा में सिर्फ 9 दिन निर्माण मजदूर के रूप में काम कर पाया। इसकी भी मजदूरी उसे अभी तक नहीं मिली और आंखों की रोशनी खोने के बाद वह उस आदमी का पता लगाने में भी असमर्थ है जिसने उसे काम पर रखा था।
शाहनवाज के बड़े भाई बताते हैं कि इस घटना ने उनके पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। वे बताते हैं कि उनका छोटा भाई बिहार में बेरोजगारी की हालत से निजात पाने हेतु गांव के कुछ साथियों के साथ काम करने कश्मीर आया था। अपने घायल छोटे भाई को देखने कश्मीर आने के लिए उन्हें अपने पड़ोसी से 15000 रुपया उधार लेना पड़ा। वे बताते हैं कि उनका परिवार बिहार के एक गांव में झोपड़ी में रहकर गुजर-बसर करता है। उन्हें तीन छोटी बहनों की जिम्मेदारी के साथ शारीरिक रूप से अक्षम मां और बूढ़े पिता की भी देखभाल करनी पड़ती है। बड़े भाई शाहबाज बताते हैं कि पूरा परिवार दोनों भाइयों की कमाई पर निर्भर है और आय का कोई दूसरा स्रोत नहीं है। अगर वे काम न करें तो उनके परिवार के सदस्यों को भूखे सोना होगा।
उन्होंने बताया कि शाहनवाज के इलाज के लिये उन्हें अपने सहकर्मी से 11000 रुपये और चाचा से 15000 रुपये उधार लेने पड़े। अभी वे और उनके जख्मी भाई दोनों के पास काम या रोजगार नहीं है, ऐसे में वे नही जानते कि यह कर्ज कैसे चुका पाएंगे। अभी कुछ दिनों में जख्मी शाहनवाज के आंख और चेहरे की सर्जरी होनी है जिसको लेकर बड़े भाई शाहबाज चिंतित हैं कि आगे इलाज के लिए पैसों का इंतजाम कैसे करेंगे। शाहबाज ने लोगों और राज्य-सरकार से वित्तीय सहायता की अपील की है ताकि वे पैलेट गन से जख्मी भाई का इलाज करवा सकें।
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