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केजरीवाल की ईमानदारी का पोस्टर गली-गली तक पहुंचाने वाला ऑटो चालक अब क्या सोचता है? (ग्राउंड रिपोर्ट)

दक्षिण दिल्ली के ऑटो चालकों का कहना था कि- शिक्षा, स्वास्थ्य के मामलें में केजरीवाल सरकार अच्छी है। लेकिन हम लोगों को इस सरकार से कुछ दिक्कते भी हैं। वादे इतने किये गये लेकिन पूरा कुछ नहीं हुआ। पार्किंग की व्यवस्था न होने की वजह से पुलिस चालान काटती है। 
auto rikshaw
image courtesy- catch news

अन्ना आन्दोलन से निकली आम आदमी पार्टी पहली बार 2013 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ी। 70 में से 28 सीटें मिली। विपक्ष पर लोकपाल बिल पास न होने देने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने 49 दिन में ही इस्तीफा दे दिया। 2015 में दोबारा विधानसभा चुनाव हुआ। इस बार 67 सीटें मिली। 2013 और 2015 का चुनाव दिल्ली विधानसभा चुनाव के इतिहास में दर्ज हुआ। एक नई पार्टी के आते ही 28 और 67 सीटें जीत गई यह पहले कभी नहीं हुआ था। 

इन दोनों चुनावों में प्रचार के लिए ऑटो रिक्शा वालों का खूब इस्तेमाल किया गया। ऑटो से प्रचार करना सस्ता और ज्यादा से ज्यादा लोगों से जुड़ने में मदद करता है। “शीला बेईमान , अरविन्द ईमानदार” इस स्लोगन को दिल्ली के गली- गली में ऑटो वालों ने पहुँचाया। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान ऑटो के पीछे केजरीवाल बनाम शीला के पोस्टरों की याद भले ही अभी लोगों के ज़ेहन से धुंधली पड़ रही हो। लेकिन लोकसभा का चुनाव सर पर है तो आप को एक बार फिर ऑटो वालों की याद आने लगी है। कभी शीला दीक्षित और पूरे कांग्रेस को बेईमान कहने वाले अरविन्द केजरीवाल आज कांग्रेस से गठबंधन के लिए परेशान है। कभी आप का साथ देने वाले दिल्ली के ऑटो रिक्शा चालक आज क्या सोचते है उनके बारे में? आइये जानते हैं उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।

दिल्ली में इस समय करीब एक लाख ऑटो चल रहे हैं। पार्टियों के तरफ से उनके लिए कई वादे भी किये गये। 

आम आदमी पार्टी के 2015 के घोषणा पत्र में ऑटो चालकों के लिए कई घोषणा की गई थी। जिसमें मुख्य था पार्किंग की संख्या बढ़ाना। ऑटो चालकों के मुताबिक- समय-समय पर केजरीवाल सरकार द्वारा किराया बढ़ाने की बात भी कही गई।
हम कुछ सवाल लेकर उनके बीच थे। आपने केजरीवाल सरकार के लिए विधानसभा में प्रचार किया था? उस समय जो भी वादा किया गया था पूरा हुआ? अभी केजरीवाल सरकार के बारे में क्या सोचते हैं? फिर से उनके लिए चुनाव प्रचार करेंगे? अभी उनसे क्या उम्मीद है? पोस्टर लगाने के लिए पैसे भी मिले? जिस तरह से अन्ना आंदोलन के बाद उनकी छवि बनी क्या वो बरकरार है? आप-कांग्रेस गठबंधन को लेकर क्या राय है? इसके लिए दिल्ली के अलग-अलग जगहों पर जाकर हमने ऑटो चालक से बात किया।

राजीव चौक (कनॉट प्लेस ) के ऑटो चालक कहते है परेशानी है कि सीएनजी गैस का रेट बढ़ा पर ऑटो किराया नहीं बढ़ाया गया । ओला, उबेर के आने से दिक्कतें और बढ़ी है। 

इन दोनों में शेयरिंग की सुविधा होने की वजह से यात्री उसमें जाना पसंद करते हैं। लोगों में उनके प्रति ज्यादा विश्वास है। हमारे प्रति उतना विश्वास नही है, हम चाहकर भी शेयरिंग जैसी सुविधा नही दे सकते। कोई जाएगा ही नही। यात्रा के दौरान अगर हम यात्री के पहचाने रोड से अलग रोड से ले जाने लगे तो वे कई सवाल पूछने लगते हैं। 

पहले पास के लिए कम दाम देना पड़ता था लेकिन बाद में बढ़ा दिया गया। 

सरकार ऑटो के नाम पर लूट रही है नए ऑटो पर 5 लाख तक वसूला जा रहा है जो कि उसका सही दाम एक से डेढ़ लाख रुपया है। जाम एक बहुत बड़ी समस्या है। मीटर से तो सवारी पैसा देने के लिए तैयार नही होती। किराया पहले ही तय हो जाता है। अगर जाम लग गया तो नुकसान भी उठाना पड़ता है।

वैसे तो पोस्टर लगाने का पैसा नहीं मिलता है लेकिन उसके बदले कभी-कभी कुछ दे दिया जाता है गिफ्ट के तौर पर। वैसे तो मोदी जी ईमानदार है लेकिन केजरीवाल के काम में टांग अड़ाते हैं।

वहीं जामा मस्जिद के ऑटो चालक की राय अलग है । वे कहते हैं आप सरकार बढ़िया है। उनके आने के बाद स्कूल - कॉलेज अच्छा हुआ है । और भी कई सुविधाएं मिली हैं । अगर केजरीवाल सरकार के पास सांसद भी होंगे तो और भी विकास होगा। 

केंद्र सरकार काम करने नहीं देती है। आप को वोट देंगे। प्रचार के लिए बोला जाएगा तो प्रचार भी करेंगे । पोस्टर लगाने का पैसा नहीं मिलता है । ऑटो चलाने के लिए पहले एक साल के लिए पास मिलता था। अब उसी पैसा में दो साल का कर दिया गया हैं। जिससे पांच से छह हजार का बचत हो जाता है। आप और कांग्रेस में गठबंधन होनी चाहिए। केजरीवाल अच्छे काम के लिए किसी से गठबंधन करते हैं तो अच्छी बात है। अंत में वो हमारे लिए ही काम करेंगे। भाड़ा बढ़ाने के नाम पर केजरीवाल सरकार ने हां भरी है। चुनाव के बाद पूरा होगा।

चांदनी चौक का नजारा कुछ और था यहाँ के कई ऑटो चालकों ने केजरीवाल की आलोचना की तो कईयों ने तारीफ । पहले गाड़ी खड़ी करने के लिए 200 लगता था अब 600 रुपये लगते हैं। केजरीवाल ने वादा किया था कि पार्किंग ,लाइसेंस और पासिंग को आसान करेंगे। आप सरकार के आने से क्या फायदा हुआ? किराया बढ़ाया ही नहीं न ही पार्किंग बनाई गई। लेट फाइन भी बढ़ गया है। पहले हजार रुपया तक लगता था अभी ढाई हजार रुपया तक लग जाता है। ऑटो किराया पिछली शीला सरकार में ही बढ़ाया गया था, अभी तक नहीं बढ़ाया गया है। 

इतनी महंगाई के बाद भी किराया नहीं बढ़ाया गया। यह चौथी बार है। ऑटो किराया बढ़ाने के लिए केजरीवाल सरकार ने हां भरी है। अभी तक बढ़ाया नहीं है। पास खड़े एक चालक का कहना था कि- केजरीवाल सरकार में बिजली, अस्पताल पर काम हुआ है। केजरीवाल को ही वोट करेंगे। कुछ ऑटो चालकों का कहना था कि- “केजरीवाल को गठबंधन नहीं करना चाहिए, अकेले के दम पर चुनाव लड़ना चाहिए”।

राजौरी गार्डन के ऑटो वाले की समस्या ऑटो स्टैंड का नहीं होना है। स्टैंड नहीं होने के कारण ऑटो रोड पर ही लगाना पड़ता है । हमेशा चालान कटने का डर रहता है। 

25 पैसा भी किराया नहीं बढ़ाया है। फिटनेस पहले एक जगह होता था लेकिन अब हर जगह होता है। जब हर काम केंद्र सरकार ही करेगी तो हमने केजरीवाल को क्यों चुना ? हौज खास़ के ऑटो चालक काफी गुस्से में दिखे।

दक्षिण दिल्ली के ऑटो चालकों का कहना था कि- शिक्षा, स्वास्थ्य के मामलें में केजरीवाल सरकार अच्छी है। लेकिन हम लोगों को कुछ दिक्कते भी हैं इस सरकार से। वादे इतने किये गये लेकिन पूरा कुछ नहीं हुआ। पार्किंग की व्यवस्था न होने की वजह से पुलिस चालान काटती है। 


तिलक नगर ऑटो चालक की राय से केजरीवाल खुश हो सकते हैं। फिटनेस के बारह हजार एक साल के लगते थे अब दो साल में लगेंगे। पैसे की बचत होगी। आम आदमी हमारे फायदे के लिए गठबंधन कर रही है। किसी से भी गठबंधन हो वोट हम आम आदमी पार्टी को ही देंगे। 
'आप' के अपने मेनिफेस्टो में भी किराया बढ़ाने की बात कही गई थी। सीएनजी के दामों में बढ़ोतरी हुई है। केजरीवाल ने चालकों को भरोसा दिलाया था कि केंद्र से अनुरोध करेंगे सीएनजी के दाम कम करने के लिए। कम नही हुआ तो ऑटो का किराया बढ़ाने पर विचार किया जाएगा। 

इससे पहले 2 मई, 2013 को आखिरी बार ऑटो के भाड़े में वृद्धि हुई थी। ऑटो यूनियन वाले पिछले कई वर्ष से किराये में वृद्धि की मांग कर रहे थे, लेकिन उनकी मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया। यह अलग बात है कि 2015 में आप सरकार ने सत्ता की बागडोर संभालते ही ऑटो-टैक्सी फेयर फिक्शेसन कमेटी भी गठित की, लेकिन किराये में वृद्धि का मामला आगे नहीं बढ़ पाया।

ऑटो वालों के लिए हर राजनीतिक दलों ने हक दिलाने का वादा किया था। आप पार्टी ने बकायदा एक नया विंग बना कर हर संभव मदद करने का वादा किया था। आम आदमी पार्टी भले ही ऑटो के सहारे चुनाव का सफर तय करने की फिराक में हो पर हाल में ऑटो चालकों के पार्टी से कई मतभेद दिखने को मिला हैं। ऐसा न हो कि ऑटो वाले मंजिल पहुंचने से पहले कहीं और मुड़ जाएं और पार्टी बीच सड़क पर ही रह जाये।

(देवपालिक कुमार गुप्ता, राकेश कुमार राकेश भारतीय जन संचार संस्थान के पत्रकारिता के छात्र हैं और स्वतंत्र तौर पर लेखन से जुड़े हुए हैं )

 

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