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केंद्र और राज्य सरकार कर रही है पोलावरम बाँध से प्रभावित आदिवासियों को नज़रअंदाज़

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बीजेपी और टीडीपी दोनों ही पार्टियाँ इस बाँध के बनने से फायदा उठाना चाहती हैं लेकिन दोनों ही बाँध से प्रभावित परिवारों के हक़ों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रही हैं।
National Alliance of People’s Movement

पोलावरम बांध के कारण पश्चिमी गोदावरी के इलाके के कई गाँव डूब जाने के खिलाफ 10 से 16 जुलाई के बीच सैकड़ों आदिवासियों ने मार्च  निकला। उन्होंने माँग की कि सरकार उन्हें जंगल में उनके ज़मीन के पट्टे दे और Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (LARR) Act, 2013 के हिसाब से  उन्हें मुआवज़ा मिले और उनका स्थानांतरण किया जाए। एंजेंसी पोरू नामक इस  यात्रा के बाद आदिवसियों ने 16 जुलाई को इलूरू के ज़िला कलेक्टर के कार्यालय के सामने एक बड़ा जन विरोध  प्रदर्शन  किया। ये प्रदर्शन आंध्रा प्रदेश गिरीजन संग्राम नामक एक संगठन  द्वारा  किया गया जो कि माकपा  से जुड़ा हुआ है। 

पोलावरम बाँध परियोजना से प्रभावित परिवार पिछले चार साल से इस बाँध के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस बाँध को बनाये जाने के दौरान सरकार ने उनके अधिकारों का हनन  किया है। गोदावरी नदी पर बनायी जा रही पोलावरम परियोजना का मकसद 2.91 हैक्टेयर ज़मीन के लिए सिंचाई की व्यवस्था करना  है और 540 गॉंवों के लोगों के लिए पीने का पानी प्रदान करना है। इसकी वजह से करीब तीन  लाख  लोग विस्थापित होंगे जिसमें 150000 आदिवासी और 50000 दलित शामिल हैं , इसके साथ ही बाँध की वजह से 300 आदिवासी बस्तियाँ भी डूप जायेंगे। 

एक राष्ट्रीय परियोजना होने के बावजूद 2014 से आंध्र प्रदेश की टीडीपी सरकार ने पोलावरम बांध के निर्माण की ज़िम्मेदारी ली हुई है। हाल में इस परियोजना की कुल लागत 57,940 करोड़ रुपये (2013 -14 की कीमतों के हिसाब से ) बताई जा रही है लेकिन पहले बताया गया था कि इसमें कुल 16,010.45 करोड़ रुपये (2010 -11 की कीमतों के हिसाब से) का खर्च आएगा। जब टीडीपी बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA गंठबंधन से बाहर हुई तो केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गड़करी ने राज्य पूछा था कि इस परियोजना के खर्च  में इतनी बढ़ौतरी कैसे हुई। अब तक Polavaram Project Authority (PPA) के ज़रिये केंद्र सरकार ने इस परियोजना के लिए 8,662 करोड़ रुपये दिए हैं जबकि राज्य सरकार के अनुसार मई 2018 तक परियोजना में 13,798. 54 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। 

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बीजेपी और टीडीपी दोनों ही पार्टियाँ इस बाँध के बनने से फायदा उठाना चाहती हैं लेकिन दोनों ही बाँध से प्रभावित परिवारों के हक़ों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रही हैं। Andhra Pradesh Vyavasaya Vruttridarula Union (APVVU)के राज्य सचिव बाबजी जुवुला जो कि पोलावरम परियोजना की फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा थे और हाल ही में उन गॉवों में गए थे जो इस परियोजना प्रभावित हैं,ने बताया कि इलाके में सत्ताधारी टीडीपी नेता , विभिन्न पार्टियों के स्थानीय नेता और बिचौलिए वहाँ पुर्नवास प्रक्रिया में भ्रष्टचार के ज़रिये दखल दे रहे हैं। जुवुला ने कहा "पिछले तीन सालों से मैंने परियोजना से जुड़े हुए गुमशुदा दस्तावेज़ों के रिकॉर्ड पाने के लिए कई RTI फाइल कीं थी , ये सभी दस्तावेज़ सरकार के पास हैं और उन्होंने अब एक कोई जवाब नहीं दिया है। इस मामले में एक के बाद एक भष्टाचार मामले बाहर आ रहे हैं इसीलिए APVVU राज्य सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी लड़ रहा है। "

National Alliance of People’s Movement (NAPM) के पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरा, जो कि फैक्ट फाइंडिंग कमिटी से जुड़े हुए थे , ने भी पोलवरम परियोजना में भष्टाचार पर चिंता जताई है। प्रफुल्ल सामंतरा ने कहा "दुर्भाय ये है कि इस परियोजना की वजह से इस इलाके में भष्टाचार प्रवेश कर गया है। जब इलाके में गए तो लोगों ने बताया कि मुआवज़े का बहुत सा पैसा इलाके के राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोगों और उनके साथियों के खतों में जमा हो चुका है।" 3 जुलाई को National Commission for Scheduled Tribes (NCST) ने आंध्र प्रदेश सरकार को कहा है कि वह 55000 आदिवासी परिवारों का पुर्नवास ठीक तरीके से करें और जहाँ पुर्नवास किया जाए वहॉं उपजाऊ ज़मीन हो , जीवनयापन का प्रबंध हो , उन्हें बढ़ाकर मुआवज़ा दिया जाए और उन्हें अच्छे घर मिलें। यह दिशा निर्देश  NCST ने 26 से 28 मार्च तक इलाके का दौरा करने के बाद दिए। 

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