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केंद्र को SC की फटकारः इकट्ठा किए गए 3,700 करोड़ विनिर्माण श्रमिकों को क्यों नहीं मिले

1996 के अधिनियम के अनुसार श्रमिकों के कल्याणकारी बोर्डों में योगदान के लिए रियल एस्टेट कंपनियों पर लगने वाले उपकर के रूप में 3,700 करोड़ रुपए से ज़्यादा की राशि जुटाई गई लेकिन इस उद्देश्य के लिए राशि का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

constructor workers

विनिर्माण क्षेत्र के श्रमिकों के कल्याण से संबंधित क़ानून लागू न करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाया है। शीर्ष अदालत ने सरकार से पूछा कि जिन श्रमिकों के कल्याण के लिए 3,700 करोड़ रुपए इकट्ठा किए गए आख़िर उनको क्यों नहीं मिला।

भवन तथा अन्य विनिर्माण श्रमिक (रोज़गार तथा सेवा शर्तों का नियमन) अधिनियम 1996 पारित किया गया था। इस अधिनियम में भवन तथा अन्य विनिर्माण श्रमिकों के रोज़गार तथा सेवा शर्तों का विनियमित करने के साथ ही उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याणकारी उपायों के प्रावधान थे।

इस अधिनियम के तहत कल्याणकारी बोर्ड की स्थापना की गई जिसे भवन तथा अन्य विनिर्माण श्रमिकों का कल्याणकारी बोर्ड कहा जाता था।

इन कल्याण बोर्डों के लिए राशि नियोक्ताओं (विनिर्माण श्रमिकों को रोज़गार देने वाली रियल एस्टेट कंपनियां) द्वारा विनिर्माण पर किए गए व्यय पर लगाए गए उपकर से हासिल होनी थी।

इसलिए कल्याणकारी बोर्डों के संसाधनों को बढ़ाने के मद्देनज़र इस उपकर के लागू करने और वसूलने के लिए भवन तथा अन्य विनिर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम 1996 पास किया गया।

वर्ष 2006 में नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर सेंट्रल लेजिसलेशन ऑन कंस्ट्रक्शन लेबर नाम के एक एनजीओ ने अदालत में जनहित याचिका दाख़िल किया। इस याचिका में संगठन ने आरोप लगाया था कि दो अधिनियमों का उल्लंघन किया जा रहा है।

एनजीओ ने कहा कि रियल एस्टेट फर्मों पर लगाए गए वैधानिक उपकर का विनिर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है क्योंकि लाभार्थियों तक लाभ पहुंचाने के लिए उनकी पहचान करने का कोई तंत्र नहीं था।

1996 के अधिनियम के तहत 3,700 करोड़ रुपए से ज़्यादा की राशि वैधानिक उपकर के रूप में इकट्ठा की गई। नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने एक हलफ़नामा अदालत को सौंपा था जिसमें कहा गया था कि इन राशियों का इस्तेमाल लैपटॉप और वॉशिंग मशीन खरीदने में किया जा रहा था।

17 जनवरी को सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) मनिंदर सिंह को न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा था कि "यह पूरी तरह से बेबस स्थिति है।"

"यह पूरी तरह स्पष्ट है कि सरकार गंभीर नहीं है। ज़मीनी स्तर पर क्या हो रहा है वह बहुत साफ़ है कि आप राशि जिन लोगों के लिए इकट्ठा करते हैं उसे उन्हीं लोगों को नहीं देते हैं।”

पीठ ने कहा कि यह साफ़ था कि इस तरह से 'भवन तथा अन्य विनिर्माण श्रमिक (रोज़गार तथा सेवा शर्तों का नियमन) अधिनियम 1996’ को बिल्कुल ही नहीं लागू किया जा सका है।

इस मामले को लेकर नाराज़ हुए न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि "आप एक हलफ़नामा दर्ज कराते हैं कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश अर्थहीन हैं और उसे कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाता है, इसलिए कोई भी आदेश अब पारित न करें। हमें बताएं कि आप न्यायपूर्ण क्यों नहीं हो सकते।"

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के श्रम सचिवों की निगरानी समिति की हालिया बैठक के बारे में न्यायाधीशों को जानकारी दी।

एनजीओ की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कॉलिन गोन्सालवे ने कहा कि इन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए हाल में बैठक हुई थी जो क़रीब दो घंटे से भी कम समय में ख़त्म हो गई और इसका कोई संतोषजनक हल नहीं निकला।

याचिका में प्रार्थी का ज़िक्र करते हुए पीठ ने कहा, "बैठक और विवरणों से यह स्पष्ट है कि इस अधिनियम को लागू नहीं किया जा सकता है।"

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इस अधिनियम के क्रियान्वयन को केंद्रीकृत किया जाना था क्योंकि राज्यों के अपने अलग-अलग विचार है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक समाज (civil society) समूहों को शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया था और विनिर्माण श्रमिकों के कल्याण से संबंधित गैर-सरकारी संगठनों से सहायता लेने के लिए केंद्र से कहा था।

श्रम तथा रोज़गार मंत्रालय के सचिव ने अदालत को बताया था कि विनिर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए एक राष्ट्रीय पोर्टल की स्थापना की जा रही है और योगदान करने के लिए एनजीओ द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है।

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