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केंद्र ने असम को अचानक घोषित किया ‘संरक्षित क्षेत्र’, विदेशी पत्रकारों से कहा- राज्य छोड़ें

द असम ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक एनआरसी के प्रकाशन की पूरी प्रक्रिया के राजनीतिकरण पर सवाल उठने के बाद विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने असम को अचानक 'संरक्षित क्षेत्र' की श्रेणी के तहत रख दिया है।
NRC

असम में काम करने वाले सभी विदेशी पत्रकारों को राज्य छोड़ने के लिए कहा गया है। द असम ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक एनआरसी के प्रकाशन की पूरी प्रक्रिया के राजनीतिकरण पर सवाल उठने के बाद विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने असम को अचानक 'संरक्षित क्षेत्र' की श्रेणी के तहत रख दिया है। परिणामस्वरुप विदेशी पत्रकारों को राज्य छोड़ने के लिए कहा गया।

उदाहरण के लिए असम ट्रिब्यून की रिपोर्ट कहती है कि वायर एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस की एक महिला रिपोर्टर को हाल ही में असम पुलिस ने हवाई अड्डे तक पहुंचाया और दिल्ली के लिए अगली उपलब्ध फ्लाइट में डाल दिया। सूत्रों के मुताबिक असम सरकार के अधिकारियों ने उन्हें विनम्रता से राज्य छोड़ने और भारत सरकार से अनुमति लेने के लिए कहा।

गृहमंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि इस आदेश तक विदेशी मीडिया को रिपोर्टिंग का काम केवल जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ पहाड़ी राज्यों में प्रवेश करने पर रोक थी। लेकिन अब असम को अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ संरक्षित क्षेत्री की सूची में जोड़ा गया है।

इसको लेकर जब विदेश मंत्रालय के सूत्रों से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि विदेशी पत्रकारों को अब विदेश मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी और गृहमंत्रालय द्वारा अंतिम मंजूरी दी जाएगी। सरकार का यह आदेश हाल में एनआरसी की अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद तब आया है जब विदेशी मीडिया में इसे बड़े स्तर पर प्रकाशित किया गया।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने रविवार को स्पष्ट किया था कि एनआरसी की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सरकार द्वारा पूरा किया जा रहा है। उन्होंने कहा था कि विदेशी मीडिया के एक बड़े हिस्से में अंतिम एनआरसी के बारे में कुछ टिप्पणियां की गई हैं जो गलत हैं।

यूएनएचसीआर के प्रमुख फिलिपो ग्रांडी ने भी एनआरसी की अंतिम सूची से 1.9 मिलियन लोगों के राज्यविहीन होने के खतरे पर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने जिनेवा के एक बयान में कहा कि मैं भारत से यह सुनिश्चित करने की अपील करता हूं कि इस कार्रवाई में कोई भी राज्यविहीन न हो। इसमें लोगों को सूचना, कानूनी सहायता और उचित प्रक्रिया के उच्चतम मानकों के अनुसार कानूनी पहुंच सुनिश्चित की जाए।

बीते रविवार को ग्रांडी ने अपनी प्रतिक्रिया में चेतावनी दी कि कोई भी प्रक्रिया जो बड़ी संख्या में लोगों को राष्ट्रीयता के बिना छोड़ सकती है, यह वैश्विक प्रयासों को बहुत बड़ा झटका होगा। यूएनएचसीआर ने सरकार से अन्य भारतीय राज्यों में होने वाली ऐसी ही प्रक्रियाओं पर कार्रवाई करने का भी आग्रह किया है और अधिकारियों से आग्रह किया है कि जिनकी राष्ट्रीयता वेरीफाइड नहीं की गई, उन्हें डिपोर्ट न करें।
यूएन एजेंसी ने भारत सरकार को लोगों की राष्ट्रीयता का निर्धारण करने और अपने जनादेश और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार राज्यविहीनता को रोकने में मदद करने के अपने प्रस्ताव को दोहराया।

(साभार : sabrangindia)

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