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किस तरह झरिया में कोयला खनन पहुँचा रहा है पर्यावरण और इंसानों को नुक्सान

झरिया जल्द ही इतिहास की किताबों में जगह बनाएगा I इसकी किस्मत में मौत है I
coal mines

भारत के  सबसे बड़े कोयला मैदान झरिया में  भूमि के नीचे आग की लपटें सतह पर दिखाई पड़ने लगी हैं I यहाँ उच्चतम गुणवत्ता का कोयला मिलता है I  ऐसा पिछले दशकों  से  होना शुरू हुआ है क्योंकि यहाँ ओपन-कास्ट खनन (सतह पर होने वाला खनन) की शुरुआत हुई I इसकी वजह से  यहाँ की जनता के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हुआ I

हजारों लोगों ज़हरीली गैस से जूझ रहे हैं और बस्तियों की बस्तियाँ बर्बाद हो गयीं I आखिर इस मानव और  पर्यावरण त्रासदी के पीछे क्या वजह है?

झरिया कोलफील्ड बचाओ समिति के सचिव अशोक अगरवाल ने बताया कि ओपन-कास्ट खनन  इसीलिए किया जा रहा है कि खनन के समय और लागत कम हो सके I उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि “यहाँ पहले से ही भूमिगत खनन किया जा रहा था I बहुत-सीअनुत्पादक  खानों को ढंग से बंद किये बिना छोड़ दिया गया I वहाँ बहुत सारी सुरंगे थीं जो पहले खनन करने वालों ने कोयला निकालने के लिए बनायी थीं I इन सुरंगों में काफी  कोयला बचा हुआ था I जब इनजगहों पर ओपन-कास्ट खनन  शुरू हुआ  तो उन सुरंगों के मुँह खोल दिये गये जहाँ पहले खनन हुआ करता था I इसके परिणामस्वरुप  ऑक्सीज़न के संपर्क में आने से  कम इग्नीशन तापमान की वजह से और आग लगने के दूसरे कारणों की वजह से बचे हुए कोयले में आग लग गयी I अक्सर ये ज़मीन के काफी नीचे होता था इसीलिए इस आग को  दबाना मुश्किल होता था और  आशा की जाती थी कि बचा हुआ कोयला खुद ही जलकर ख़तम हो जाये” I

झरिया भारत में एकलौती खदान है जहाँ अत्यंत ज्वलंतशील खाना पकाने में प्रयुक्त होने वाला कोयला पाया जाता है I यहाँ हर तरफ कोयला है I इस इलाके में रहने वाले एक खनन इंजिनियर ने कहा “ पेशेवर तरीके से खनन करने के लिए सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है और सुरक्षा नियमों का पालन होता है I पर गैर-कानूनी तरीके से खनन करने वाले लोग ज्वलंतशील गैसों से भरी खदानों में मोमबत्ती  या लालटेन लेकर चले जाते हैं जिससे स्तिथि और ख़राब हो जाती है I”

इसके नतीजे भयावह होते हैं I आग की वजह से पर्यावरण और स्वास्थ दोनों के लिए समस्याएँ खड़ी होती हैं I इसने पानी, हवा और ज़मीन तीनों को दूषित कर दिया है I यहाँ की ज़्यादातर जगहों के पेड़ और वनस्पतियाँ मरते जा रहे हैं I

एक स्थानीय अस्पताल के डॉक्टर मंसूर आलम  ने न्यूज़क्लिक को बताया “कार्बन मोनोऑक्साइड,आरसेनिक और सल्फर डाईऑक्साइड जैसी ज़हरिली गैसों के ज़मीन से निकलने की वजह से झरिया के आस-पास टीबी , अस्बेस्टोसिस ( फेफड़ों की एक बीमारी जो धूलभरी हवा में साँस लेने की वजह से होती है, आमतौर पर यह बीमारी काम की जगह के ख़राब पर्यावरण से जुड़ी होती है) और व्हीज़िंग ( साँस लेते समय सीटी की आवाज़े आना  ) के यहाँ काफी सारे मामले  पाए जाते हैं I हमारे पास चिकत्ते और त्वचा रोग की शिकायत करने वाले भी काफी रोगी आते हैंI”

ओपन-कास्ट खनन  के दौरान ज़मीन में डायनामाइट और गनपाउडर से विस्फ़ोट कर   गड्ढा  कर  कोयला निकाला जाता है I उन्होंने कहा “इसकी वजह से धूल और विषैले पदार्थ भारी मात्रा में फ़ैल जाते हैं I इससे लोगों की सेहत पर काफी ख़राब प्रभाव पड़ता है I सेहत पर खतरनाक प्रभाव पड़ने के बावजूद  सरकार के लिए कोयले से आय पैदा करने वालों  के बचाव के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है I उनकी सेहत की सुरक्षा के लिए कोई ख़ास कदम  उठाये जाने चाहिए I

झरिया कोयला खदान 450 स्क्वेयर किलोमीटर में फैली हुई है और इस इलाके से 5 लाख लोगों की ज़िंदगियाँ जुड़ी हुई हैं I 67 विभिन्न इलाकों में ज़मीन के नीचे अब भी आग जल रही है I काफी जगहों पर तो ज़मीन के कुछ मीटर नीचे कोयला 700 डिग्री के तापमान पर लगातार जल रहा है, गहराई की वजह से कई  इंसानी कोशिशों बावजूद उसे बुझाया नहीं जा सका है I

अग्रवाल का कहना है “आग लगातार फैलाती जा रही है I हमें उसके विस्तार का पता नहीं है I झरिया जल्द ही इतिहास की किताबों में जगह बनाएगा I इसकी किस्मत में मौत है I जिस तरह से BBCL आगे बढ़ रहा है ,उन्हें 2020 तक उत्पाद को दोगुना करना है I ज़ाहिर है कि यहाँ  ज़्यादा-से-ज़्यादा खनन किया जायेगा और इससे और भी ज़्यादा गाँववालों को यहाँ से हटाना होगा I जिससे एक दिन  यह जगह गायब हो जाएगी I  इसमें अब ज़्यादा समय नहीं बचाI”

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