किसानों की सुनों : गाय पालना और संभालना बनता जा रहा है एक समस्या
गायों की राजनीति ने देश के सामाजिक तानेबाने के साथ अब अर्थनीति को बिगाड़ना शुरू कर दिया है। जिन गायों या गौवंश को किसान संभाल लेते थे उससे अब पूरा किसान समाज परेशान होने लगा है।
इस पूरी परेशानी को उत्तर प्रदेश के संदर्भ में समझने की कोशिश करते हैं जो आवारा गायों से पैदा हो रही है। अभी हाल की ही घटना है कि अलीगढ शहर से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर सायपुर गाँव के गांवावालों ने सरकारी स्कूल में तकरीबन 100 आवारा गायों को लॉक कर दिया। इस गाँव में तकरीबन 600 बीघे की खेतिहर जोत है। गाँववालों को कहना है कि रात भर रखवाली करने के बाद भी आवारा गायों की वजह से आधी से अधिक फसल बर्बाद हो जाती है। इस परेशानी से निजात पाने के लिए हम इस कदम को उठाने पर मजबूर हुए हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहराइच, लखीमपुर खीरी से लेकर पश्चिम उत्तर प्रदेश में मथुरा, मेरठ, अलीगढ और बाग़पत और बुंदेलखंड में उरुई, जालौन तक के लोग आवारा गायों से परेशान हैं। इस परेशानी से निजात पाना मुश्किल होता जा रह है। इसका गुस्सा जाहिर करने के लिए लोग आवारा गायों को सरकारी भवनों जैसे कि स्कूलों, अस्पतालों और पंचायत भवनों में बंद करने लगे हैं।
किसी भी तरह के मवेशी किसानी परितंत्र का हिस्सा होते हैं। यानी इनकी निर्भरता किसानी से जुड़ी होती है। जब इन्हें किसानी से अलग कर दिया जाता है तो इन मवेशियों को संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है। अब यही हो रहा है। योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा गौकशी पर लगाये गये कड़े प्रतिबन्ध और कथित गौ-रक्षकों की गुंडागर्दी के चलते आवारा गायों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है। साल 2012 की मवेशियों के 19वें सेन्सस के मुताबिक उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की संख्या तकरीबन 10 लाख 10 हजार थी। गोकशी प्रतिबन्ध की वजह से इस संख्या में भारी इजाफे का अनुमान लगाया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के तहत राज्य में तकरीबन 495 रजिस्टर्ड गौशालाएं हैं। हर गौशाला में इनकी क्षमता से ज्यादा गायों की संख्या बढ़ती जा रही है। अलीगढ़ के टप्पल गाँव की गौशाला में इस साल के मार्च महीने में 400 गायें थी। इस समय यह बढ़कर 2000 हो गयीं है। यह स्थिति हर गौशाला की है। हर गौशाला में क्षमता से अधिक गायों को रखा जा रहा है। तमाम गौशालाओं से देखभाल की कमी से गायों के मरने की भी ख़बरें आती रही हैं।
अब गौशालाओं के अर्थतंत्र को समझते हैं। बिजनेस स्टैण्डर्ड में छपी रिपोर्ट की तहत मेरठ की गोपाल गौशाला में इस समय तकरीबन 800 गायें हैं, जिनमें से 100 गायों से दूध मिलता है। हर दिन इस गौशाला पर तकरीबन 40 हजार खर्च करना पड़ता है। इस तरह से इस गौशाला में हर साल तकरीबन डेढ़ करोड़ खर्च होता है। लेकिन इस गौशाला से सलाना केवल 1.3 करोड़ की कमाई होती है। इससे भी बदतर हालत टप्पल की गौशाला की है। जहां तकरीबन 2000 गायें रहती हैं, जिनमें से केवल 10 गायों से दूध मिलता है। सलाना तकरीबन डेढ़ करोड़ खर्च करना पड़ता है और कमाई के नाम पर एक रुपया भी नहीं मिलता है। गौशाला से पैदा होने वाले अपशिष्ट पदार्थों जैसे की गौमूत्र और गौ-गोबर आदि के जरिये तकरीबन लाख-दो लाख की कमाई हो जाती है। इतनी कम आय पर गौशाला चलना तो पहले से ही मुश्किल होता था। आवारा गायों की संख्या में इजाफा होने से यह और मुश्किल होता जा रहा है।
अलीगढ़ के जिलाधिकारी चन्द्रभूषण सिंह कहते हैं कि हर सुबह मुझे यह शिकायत मिलती है कि किसानों ने गायों को किसी सरकारी स्कूल, अस्पताल या पंचयत भवन में बंद कर दिया है। शाम तक का समय इन्हीं मामलों का निपटारा करने में लग जाता है। कहने का मतलब यह है कि आवारा गायों की परेशानी इतनी भीषण हो चुकी है कि प्रशासन का एक बड़ा तबका केवल गायों को संभालने में लगा हुआ है।
इन सारी परेशानियों को समझने पर यह बात तो साफ़ हो जाती है कि गाय किसानी से तभी तक जुड़ी रह सकती है जब तक वह उत्पादक हो। अगर गाय की उत्पादकता खत्म हो जाए, किसानी से इसे हटा दिया जाए अथवा किसानी बर्बाद हो जाए तो इसे संभालना मुश्किल हो जाता है। खेती से कम होती आय और जीविका की वजह से गाय या किसी भी तरह के मवेशी का इंसानों के साथ सहअस्तित्व के आधार पर बच पाना गाय पर प्रतिबन्ध लगाने के पहले से ही मुश्किल था।
लेकिन अब यह मुश्किल इतनी भयावह हो चुकी है कि प्रशासन का एक पूरा तबका केवल इसे बचाने में लगा हुआ है। साथ में इसे बचाने के लिए सरकार अब पैसे की व्यवस्था भी कर रही है। शराब से कमाए गये पैसे पर कर लगाकर गौशाला बनाना चाह रही है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक का फैसला यह है कि गायों के आश्रय स्थलों के वित्तीय प्रबंधन के लिए आबकारी विभाग शराब पर दो प्रतिशत 'गौ कल्याण उपकर' लगाएगा। सरकार के प्रवक्ता और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के मुताबिक, आवारा गौवंश की समस्या के हल के लिए कदम उठाया गया है। हर जिले के ग्रामीण और नगरीय क्षेत्र में न्यूनतम 1000 आवारा गायों के लिए गौशाला बनेंगी। इसके लिए मनरेगा के माध्यम से ग्राम पंचायत, विधायक, सांसद निधि से निर्माण कराया जाएगा। इस काम के लिए सरकार ने स्थानीय निकाय को 100 करोड़ रुपये दिए हैं।
पहले शराब पीने वाले कहते थे कि उनकी वजह से सरकार को बहुत अधिक कमाई होती है, अब यह भी कहेंगे कि उनकी वजह से हिन्दू धर्म को बचाया जा रहा है।
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