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कम इस्तेमाल होने के बावजूद भी गैस की कीमतों ने छुआ आसमान

मोदी दावा कर रहे हैं कि उनकी उज्ज्वला योजना से महिलाओं को आजादी मिल गयी है, लेकिन सब्सिडी वाली गैस की कीमत में 21 फीसदी की बढ़ोतरी से सबसे गरीब लोग इसकी पहुंच से बाहर भी हो रहे हैं।
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सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर (14.2 किलोग्राम) की कीमत में 21 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले दो सालों में गैर-सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत में लगभग 80 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जो प्रभावी रूप से प्रधानमंत्री द्वारा घोषित उज्ज्वला योजना को तबाह कर रही है (पीएमयूवाई ) साथ ही साथ करोड़ों लोगों के पारिवारिक बजट को भी प्रभावित कर रही है। इस संबंध में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल के पास यह डेटा उपलब्ध है।

उज्ज्वला योजना की मीडिया और बीजेपी नेताओं ने बहुत सराहना की है। आधिकारिक मान्यता प्राप्त 'गरीबी रेखा से नीचे' (बीपीएल) परिवारों से संबंधित 5 करोड़ से अधिक महिलाओं को एलपीजी कनेक्शन और सिलेंडर प्राप्त करने के लिए 1600 रुपये की एक बार वाली सब्सिडी दिया जाना था। एक बार में पहला सिलेंडर खत्म हो जाने के बाद, परिवारों को सब्सिडी वाली कीमत पर भुगतान कर एक दुसरा भरा सिलेंडर लेना पड़ा। कई गरीब परिवारों के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, 507.42 रुपये प्रति सिलेंडर की वर्तमान कीमत लागत बहुत महंगी है।

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इसने एक अजीब सी स्थिति पैदा कर दी है: परिवार गोबर के उपले, लकड़ी इत्यादि जैसे पारंपरिक खाना पकाने के ईंधन पर वापस जा रहे हैं और गैस का उपयोग कम कर रहे हैं। गैस खपत की आँकड़े कनेक्शन में वृद्धि की तुलना में इस्तेमाल की बहुत धीमी वृद्धि के संकेतों को दर्शाता है, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार जुलाई ये कनेक्शन 2016 में 16.63 करोड़ से बढ़कर 2018 में 23.47 करोड़  हो गए। कुछ रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि "निष्क्रिय" उपभोक्ता (जो तीन महीने के भीतर फिर से सिलेंडर नहीं भरवा पाते हैं) वह कुल  उपभोक्ताओं का 15 प्रतिशत तक हो सकता है। अन्य रिपोर्टों से पता चलता है कि यह संख्या 3.8 करोड़ से  अधिक हो सकती है।

मई 2018 के एक इकोनिमिक एंड पोलिटिकल वीक्ली साप्ताहिक (ईपीडब्लू) के विश्लेषण में बताया गया है कि यह स्थिति 2015-16 में प्रति माह 9.1 किलोग्राम के इस्तेमाल से 2017 में 8 किलोग्राम प्रति माह हो गई है। यह स्थिति एलपीजी इस्तेमाल की प्रति व्यक्ति खपत में गिरावट दिखाती है।

इस बीच, गैर-सब्सिडी वाले एलपीजी उपभोक्ताओं की स्थिति, जो भारतीय उपभोक्ताओं का बड़ा हिस्सा है, भी काफी कठोर हो गईं हैं। मई 2016 में उनके लिए एलपीजी की कीमतें नाटकीय रूप से 527.50 रुपये से बढ़कर नवंबर 2018 में प्रति सिलेंडर में 942.50 रुपये हो गईं। इसकी कीमतों में लगभग 80 प्रतिशत का उछाल है।

 

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ऐसी भी खबरें हैं कि एलपीजी के सिलेंडर को एक समृद्ध काले बाजार में 1200 रुपये में बेचा जा रहा है। एक गरीब परिवार के लिए, जो बीपीएल नहीं है, इस लागत को सहन करना असंभव है। ध्यान दें कि बीपीएल की वर्तमान परिभाषा प्रति दिन 131 रुपये की आय है, जो कि काफी कम है।

मोदी और उनकी पार्टी पीएमयूवाई को हाल ही में चल रहे विधानसभा चुनावों में वोट इकट्ठा करने के साथ-साथ अगले साल आने वाले आम चुनावों में वोट इकट्ठा करने के लिए प्रमुख उपलब्धियों में से इस एक पर भी निर्भर हैं। बीजेपी रणनीतिकारों का निष्कर्ष है कि यदि वे पीएमयूवाई जैसी योजनाओं के 'लाभार्थियों' को संजोते हैं, तो चुनाव जीतने के लिए यह उनकी एक आसान सवारी होगी।

हालांकि, एलपीजी की बढ़ती कीमतों और उसके इस्तेमाल में गिरावट के चलते, मोदी और बीजेपी को एक सदमा लग सकता हैं।

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