किसानों को धन्नासेठों के हाथों मज़दूर बना देना चाहती है मोदी सरकार : कन्हैया कुमार
पटना: नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग तथा दिल्ली-हरियाणा बार्डर पर किसानों के आंदोलन के समर्थन व एकजुटता में बिहार के तीन प्रमुख वामपंथी दलों- सीपीआई, सीपीआई (एम) तथा सीपीआई (एमएल-लिबरेशन ) के आह्वान पर पूरे बिहार में प्रतिरोध प्रदर्शन अयोजित किया गया। बिहार के लगभग हर जिले में वामपंथी दलों की अगुआई में हुए इस राज्यव्यापी प्रतिरोध में अधिकांश जगहों पर राष्ट्रीय जनता दल ( राजद) व कहीं-कहीं कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया।
पटना में बुद्ध स्मृति पार्क में कम्युनिस्ट पार्टियों के कार्यकर्ता इकट्ठा हुए। बैनर, पोस्टर, फेस्टुन, कट्आउट की सहायता से किसानों की समस्याओं को उठया गया। कृषि क्षेत्र को कैसे कॉरपोरेट के चंगुल में धकेला जा रहा है, उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य मुहैया कराने, कालाबाजारी रोकने जैसे मुद्दों को उठाया गया। ‘‘ जुल्मी, जब-जब जुल्म करेगा, तो सत्ता के हथियारों से, चप्पा-चप्पा गूंज उठेगा, इंकलाब के नारों से’’ ‘‘ अंबानी-अडानी राज नहीं चलेगा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा”, ‘‘ किसानविरोधी तीनों कानूनों को वापस लेना होगा”, किसान आंदोलन जिंदाबाद”, “किसान-मजदूर जिंदाबाद” जैसे नारे ख़ूब जोरशोर से गूंजे।
मधुबनी में वाम दलों के साथ महागठबंधन के सभी दल सड़कों पर उतरे और विशाल जुलूस निकाल प्रधानमंत्री का पुतला दहन किया। बेगूसराय में भी वाम दलों सहित महागठबंधन के सभी दल अपने-अपने कार्यालय से जुलूस निकाल ट्रैफिक चौक से संगठित हो जिलाधिकारी कार्यालय गेट पर पुतला दहन किया। इनके अलावा गया, पूर्वी चम्पारण, मधेपुरा, सहरसा, समस्तीपुर, पश्चिमी चम्पारण, सारण, अरवल, जहानाबाद, मुंगेर, भागलपुर, बांका,वैशाली, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, शिवहर, पूर्णियां, कटिहार में भी वाम दलों सहित महागठबंधन के सभी दल सड़कों पर जुलूस निकाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला दहन किया।
पटना में बुद्धा स्मृति पार्क में प्रतिरोध सभा को संबोधित करते हुए सीपीआई नेता व जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों ‘ कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए, कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए’ के साथ नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा, ‘‘हमारे प्रधानमंत्री ने कहा था कि 2022 तक हर किसान की आमदनी दोगुनी हो जाएगी। दोगुनी होने की बात तो छोड़ ही दें उन्हें अपने ही खेत पर मजदूर बनाने की साजिश चल रही है। किसानों को धन्नासेठों के हाथों मजदूर बना देना चाहती है मोदी सरकार कहती है कि किसानों को भड़काया जा रहा है। किसान हल-बैल से खेती किया करते हैं। खेती में जो किसान भड़के हुए बैलों को नियंत्रित करना जानता है वो भड़की हुई सरकार के भी होश ठिकाने लगाना जानता है।
कन्हैया कुमार ने आगे यह भी जोड़ा, “मोदी जी कहते हैं कि हम किसानों का भला करना चाहते हैं लेकिन देश के किसान नहीं चाहते कि सरकार उनका ऐसा भला करे। बड़े पैमाने पर झूठ बोला जा रहा है, प्रोपेगैंडा फैलाया जा रहा है। बिहार में 2006 में एपीएमसी को खत्म कर दिया गया। उस समय भी यही कहा गया था कि किसानों की आय दुगनी हो जाएगी लेकिन बिहार के किसानों की हालत क्या हो गयी है इसे देखा जा सकता है। कई बार फसल का इतना कम मूल्य रहा है कि किसान फसल को खेत में ही छोड़ देना पसन्द करते हैं। दरअसल जिन धन्नासेठों की बदौलत ये सरकार हवाई जहाज से सफर करती है, उनके मुनाफे के लिए किसानों की धरती को ही बेच देना चाहती है। ये लड़ाई आगे आने जाने वाली पीढ़ी के लिए लड़ना होगा। आखिर ये सवाल हमको पूछना होगा कि किसान का बेटा किसान क्यों नहीं बनना चाहता?’’
आज़ाद मुल्क में किसानों को गुलाम बनाने की कोशिश की जा रही है- दीपंकर भट्टाचार्य
भाकपा-माले-लिबरेशन के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्या ने सभा को संबोधित करते हुए कहा ‘‘अभी देश में किसानों का जो जबर्दस्त आंदोलन चल रहा है वो सिर्फ किसानों का नहीं बल्कि पूरे देश का आंदोलन है। जैसे ही आवश्यक वस्तु अधिनियम से आलू-प्याज को हटाया गया वैसे ही आलू-प्याज की कीमत बढ़ने लगी। ठीक इसी प्रकार यदि फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को बंद किया गया तो थोड़ा बहुत जो भी राशन गरीबों को उपलब्ध होता है वो मिलना बंद हो जाएगा। पूरे देश की जनवितरण प्रणाली वैसे ही काफी कमजेार हो चुकी है। मोदी सरकार के इन कदमों से जो भी बचा-खुचा वो भी खत्म हो गया है।
इन्हीं वजहों से देश का हर गरीब इस बात को समझ रहा है कि यदि किसानों पर हमला हुआ तो हम भी नहीं बचेंगे। अंबानी-अडानी के सहायता जो मोदी सरकार खेती करना चाहती है वह आजादी के पहले बिहार में चंपारण में जैसे ठेका पर नील की खेती हुआ करती थी और जिसके खिलाफ किसानों ने आंदोलन किया
था, लगभग वैसे ही हालात हो जायेंगे। आजाद मुल्क में किसानों और मजदूरों को गुलाम बनाने की कोशिश की जा रही है। संविधान में जो सबकों सामाजिक-आर्थिक न्याय का वादा किया गया था वह पूरा नहीं हो पा रहा है। मोदी जी पूरे देश को चुनौती दे रहे हैं। किसान ठंड में मारे जा रहे हैं। ये पूरे मुल्क की लड़ाई है और गांव-गांव में इस लड़ाई को ले जाना है। ये किसानों के साथ-साथ बैंक-बीमा सबको पूंजीपतियों को सौंपना चाहते हैं। लेकिन बिहार के चुनाव ने बता दिया कि जनता जब आगे बढ़ती है और मजबूत विपक्ष कायम होता है तब तीन दिन के अंदर मेवालाल चौधरी जैसे भ्रष्ट शिक्षा मंत्री को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ता है। पंजाब के किसानों का बिहार और बंगाल ही नहीं पूरे देश के किसान साथ दे रहे हैं।’’
बिहार के किसानों का धान नहीं खरीदा जा रहा- अरुण मिश्रा
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम के केंद्रीय समिति के सदस्य अरूण मिश्रा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘ 26 नवंबर को देश के मजदूरों ने हड़ताल किया। सारी संपदा देश के पूजीपतियों को सौंपा जा रहा है। आप एलआईसी जैसी कंपनियों को देखें जो देश के विकास में एक केंद्र सरकार को हर बजट में एक लाख रुपया देती है उसको भी बचेने की साजिश की जा रही है। अब बैंक को भी प्राइवेट क्षेत्र को दे रही है जिन लेागों ने आम जनता का पैसा लूटा बैंकों को उनके ही हवाले किया जा रहा है। अब किसान आंदोलन पूरे देश में फैला हुआ है। बिहार में पहले से एपीएमसी को खत्म कर दिया गया। आप बिहार के किसानों से पूछ लीजिए उनका धान नहीं बिक रहा है। ‘पैक्स’में किसानों को पैसा मिलता नहीं है। औने-पौन दामों में किसानों का धान बिक रहा है। बिहार सरकार को इन किसानों की चिंता करनी चाहिए लेकिन उसकी जगह वह मोदी जी का भजन गा रहे हैं। आवाज मोदी जी तक पहुंचानी चाहिए। उधर मोदी जी क्या कर रहे हैं वे बनारस में रौशनी से नहायी हुई जगह में संगीत का आनंद ले हे हैं जबकि किसान दिल्ली में ठंड में पानी की बौछारें सह रहे हैं, लाठियां खा रहे
हैं। बिहार के किसान जिस ढंग से खड़े हो रहे हैं यदि वो संघर्ष में उतर गए तो मोदी की की ताकत भी उनको रोकने में नाकाम रहेगी।’’
धान 900 रु., मक्का 800 रु. बेचने को मजबूर हैं बिहार के किसान -अवधेश कुमार
सीपीएम राज्य सचिव अवधेश कुमार ने अपने सम्बोधन में कहा, “ये बड़े दुख की बात है कि देश के प्रधानमंत्री किसानों की बात सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। एक ओर वे वार्ता कर रहे हैं दूसरी ओर गृहमंत्री व प्रधानमंत्री समर्थन में बातें कर रहे हैं। बगैर किसान संगठनों व राज्य सरकारों से सलाह मशविरा किये लॉकडाउन पीरियड में इस कॉरपोरेट परस्त एजेंडे को लागू कर दिया गया है। बिहार में धान बिचैलियों के हाथों 900-1000 रुपये तो मक्का मात्र 800 रुपये में किसानों को बेचना पड़ता है। स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने बिहार से जिस तरह पूरे देश के किसान आंदोलन को नई दिशा दी थी वैसे ही आज बिहार के किसान मोदी सरकार को चेतावनी दे रहे हैं कि यदि इन काले कानूनों को वापस नहीं लिया गया तो चक्का जाम होगा।”
सामाजिक कार्यकर्ता व शिक्षाविद अक्षय कुमार के अनुसार ‘‘ इस आंदोलन का मूल लक्ष्य है कि एमएसपी की प्रक्रिया को वैधानिककृत करना। उसके बगैर बात आगे नहीं बढ़ेगी।”
सभा को राजद नेता व विधायक आलोक मेहता, सीपीआई नेता जानकी पासवान, माले और किसान नेता राजाराम सिंह, केडी यादव, ग़ज़नफ़र नवाब ने भी सम्बोधित किया।
प्रतिरोध सभा के बाद जुलूस बुद्धा स्मृति पार्क से डाकबंगला चौराहा पहुंचा। यहां ‘किसान विरोधी, नरेंद्र मोदी’लिखे हुए पुतले को जलाकर इस विरोध कार्यक्रम का समापन हुआ।
वामपंथी दलों के इस आह्वान में शहर के बुद्धिजीवी, रंगकर्मी, छात्र, नौजवान , सामाजिक कार्यकर्ता भी एकजुट हुए। प्रमुख लोगों में विश्विद्यालय व महाविद्यालय शिक्षकों व प्रोफेसरों के राष्ट्रीय नेता (AIFUCTO) अरुण कुमार, राजद नेता तनवीर हसन, महिला नेत्री निवेदिता शकील, शिक्षाविद गालिब खान, सफाई कर्मचारियों के नेता मंगल पासवान, जीतेंद्र कुमार, विश्वजीत कुमार, एआईएसएफ के राष्ट्रीय सचिव सुशील कुमार, इरफान अहमद फातमी, माकपा नेता सर्वोदय शर्मा, रामपरी, गणेश शंकर सिंह, मनोज कुमार चंद्रवंशी, भाकपा-माले पोलित ब्यूरो सदस्य प्रभात कुमार चौधरी, धीरेंद्र कुमार झा, माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, आशा कर्मचारियों की नेता शशि यादव, अभ्युदय, कुमार परवेज, उमेश कुमार सिंह, सुधीर कुमार, केदारदास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान के अशोक कुमार सिन्हा, प्रगतिशील लेखक संघ के राजकुमार शाही, संमुत शरण, होटल कर्मचारियों के नेता हरदेव, अभियान सांस्कृतिक मंच के विनीत राय आदि प्रमुख थे।
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