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क्या मेट्रो कर्मचारियों की हड़ताल पर रोक जायज़ है ?

गौर करने वाली बात ये है कि कोर्ट ने कर्मचारियों की हड़ताल पर रोक तो लगाई लेकिन उनकी समस्याएँ कैसे सुझाई जाए , इसका कोई समाधान नहीं दिया।
delhi metro strike

दिल्ली हाई कोर्ट ने 30 जून को होने वाली दिल्ली मेट्रो के कर्मचारियों की हड़ताल पर फ़िलहाल रोक लगा दी है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि यह निर्णय इसलिए लिया गया है क्योंकि इससे मेट्रो के सफर करने वाले 25 लाख लोगों प्रभावित होंगे दरअसल, पिछले काफी समय से दिल्ली मेट्रो के कर्मचारी उनकी माँगे पूरी न होने के कारण हड़ताल पर जाने की बात कर रहे थे। 19 जून को डीएमआरसी के इन कर्मचारियों ने मेट्रो में काले पट्टे बाँध कर काम करना  शुरू किया थाI वे चाहते थे कि उनकी माँगों पर गौर करे और कुछ निर्णय लेI लेकिन ऐसा न होने पर उन्होंने 30 जून को हड़ताल करने का फैसला किया। लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद कर्मचारी यूनियन का कहना है कि वह फैसले की अवहेलना न करते हुए हड़ताल को आगे के लिए स्थगित कर रहे हैं।  
 
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि DMRC को इस हड़ताल के लिए कोई नोटिस नहीं दिया गया और न ही इस मामले को देखते हुए उन्हें लगता है कि हड़ताल कानूनी  और जायज़  है। इससे पहले कर्मचारियों के द्वारा हड़ताल की चेतावनी के देने  के बाद DMRC कोर्ट में गयी और दिल्ली हाई कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने इस निर्णय का स्वागत किया है और मुख्यामंत्री और सरकार के बाकि मंत्री शुरू  ही कर्मचारियों के इस रुख के खिलाफ अपनी मंशा  ज़ाहिर कर चुके हैं। कोर्ट के निर्णय से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा था कि वैसे कर्मचारियों की माँगे जायज़ हैं, लेकिन हड़ताल करने से लाखों मेट्रो यात्रियों को तकलीफ़ होगी । उन्होंने कहा कि सरकार कर्मचारियों के खिलाफ अंतिम उपाय के तौर पर एस्सेंशिअल सेर्विसज़ मैनेजमेंट एक्ट (एस्मा)एस्मा भी लगा सकती है।एस्मा एक्ट को तब लगाने का प्रावधान है जब में राज्य यातायात या ऐसी ज़रूरी सेवाओं को रोका जाए जिससे लोगों का जीवन रुक जाए। इसके तहत हड़ताल करने वाले लोगों को बिना नोटिस  दिए काम से निकाकल देने के प्रावधान हैI

दिल्ली हाई कोर्ट का निर्णय कई गंभीर सवाल खड़े करता है। सवाल ये है कि क्या दिल्ली सरकार और न्यायपालिका को मज़दूरों के नज़रिये से मुद्दों को नहीं देखना चाहिए ? खासकर से तब जब इस मामले में उनकी समस्याएँ पिछले 3 सालों से सुलझायी नहीं जा रही हैं हों। एक बहुत ज़रूरी बात यह है कि कोर्ट ने अपने आदेश में ये नहीं बताया कि कर्मचारियों की समस्या कैसे सुलझेंगी, इसका कोई समाधान कोर्ट ने नहीं दिया। जब आम लोगों के जीवन पर विपरीत असर पड़ने की बात की गयी है तो सवाल उठता है कि  9,000 मज़दूरों और उनके घर वाले क्या आम लोग नहीं ? क्या कोर्ट को सिर्फ प्रशासन को यह कह देना काफी है कि वह मज़दूरों के साथ अपनी समस्या सुलझाएँ , ख़ासकर की तब जब पिछले साल हामी भरने के बाद भी ऐसा नहीं किया गया। क्या न्यायपालिका और दिल्ली सरकार इस बात पर ध्यान  दे रही है कि मज़दूर सिर्फ मजबूरी में ही हड़ताल करने का ख्याल मन में लाता है और ऐसा तभी होता है जब प्रशासन उनके मूल भूत हक़ , जैसे यूनियन बनाने और वेतन को बढ़ाने का हक़ भी नहीं मानता। क्या कोर्ट को मज़दूरों की बजाये प्रशासन की ओर रुख करके उनपर कार्यवाही नहीं करनी चाहिए ? क्योंकि उन्हींउन्ही की वायदा खिलाफी के बाद मज़दूरों ने मजबूरन हड़ताल का निर्णय लिया था।  
 
दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय 2003 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की ही तर्ज़ पर है जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मज़दूरों को किसी भी सूरत में हड़ताल करने का अधिकार नहीं है । अगस्त 2003 में तमिलनाडु सरकार और तमिलनाडु सरकारी कर्मचारियों के बीच चल रहे मामले में कोर्ट ने कहा कि किसी भी ट्रेड यूनियन या राजनीतिक दल को राज्य की आर्थिक या सामाजिक कार्यवाहियों को रोकने का अधिकार नहीं है, जिससे आम लोगों की ज़िन्दगी पर विपरीत असर पड़े। इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने हड़ताल को तबाह कर देने  वाली चीज़  की तरह पेश किया था। निर्णय के बाद मज़दूर आंदोलनों से जुड़े लोगों ने इसका पुरज़ोर विरोध किया था और दलील दी थी कि ये मज़दूरों  के मूल भूत अधिकारों के खिलाफ है। 
 इसके बाद बहुत सारे टकरावों में विभिन्न न्यायालयों ने इसी तरह के निर्णय लिए हैं। जनवरी 2018 में ही तमिलनाडु में बस कर्मचारियों की हड़ताल पर भी हाई कोर्ट ने इसी तरह का निर्णय लेते हुए सरकार को कर्मचारियों की समस्या सुलझाने  को तो कहा लेकिन तुरंत हड़ताल को खत्म करने  का निर्णय भी दिया था।  
 
दरअसल, दिल्ली मेट्रो में काम कर रहे 9,000 कर्मचारी जिसमें ट्रेन ऑपरेटर , रख रखाव स्टाफ ,स्टेशन कंट्रोलर आदि कर्मचारी शामिल हैं। पिछले काफी समय  से ही अपनी माँगे उठा रहे हैं। उनकी मुख्य माँगे कुछ इस प्रकार हैं -   अपौचारिक रूप से उन्हें यूनियन का दर्ज़ा दिया जाये , जिससे  वे संगठित तौर सेअपने हक़ के लिए लड़े सकेंके, अपने अधिकारों को  सुनिश्चितकरवा सके | जिन कर्मचारियों को हटाया है उन्हें वापस काम पर बुलाया जाए , दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) के साथ पिछले साल 23 जुलाई 2017 में हुऐ अनुबंध को पूर्णत: लागू किया जाए और 7वें  वेतन आयोग को लागू किया जाए |
 
गौरतलब है कि यहाँ वेतन के स्लैब को बढ़ाये जाने का मुद्दा उनके बड़े मुद्दों में से एक है। फिलहाल गैर- कार्यपालक मेट्रो कर्मचारीयों को 8,000 से 18,500 रुपये तक का वेतन मिलता है जबकि कार्यपालकों के वेतन  की शुरुआत 20,600 रुपये से होती है। कर्मचारियों की माँग है कि उनका वेतन  8,000 कीबजाये 10,170 रुपये से शुरू होना चाहिए , जबकि गैर पर्वेक्षक कर्मचारियों का वेतन 10,170 रुपये की बजाये 13, 500 रुपये किया जाए। साथ ही पर्वेक्षकों का वेतन 13,500 रुपये कीजगह 14,000 रुपये से शुरू होना चाहिए।  इसके आलावा कर्मचारियों के और भी मुद्दे हैं जिन्हे  पिछले साल 23 जुलाई को मान लिया गया था ,लेकिन अब तक लागू नहीं किया गया। 
 
2015 में दिल्ली मेट्रो के कर्मचारियों का पहला विरोध प्रदर्शन DMRC के दफ्तर के सामने हुआ। इसमें जिन मुद्दों को उठाया गया था वह थे वेतन का मुद्दा और DMRC में भष्टाचार का मुद्दा। इस विरोध प्रदर्शन के चलते कर्मचारी यूनियन के सचिव अनिल कुमार माहतो ,कर्मचारी रवि भारद्वाज और कर्मचारी विनोद को नौकरी से निकल दिया गया था और उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की गयी थी । इसके आलावा 10 और कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही की गयी थी। 
 
दिल्ली मेट्रो प्रबंधन द्वारा इस अवैध और अनुचित कार्यवाही  से पीड़ित पाँच हज़ार गैर- कार्यपालक मेट्रो कर्मचारी ने 20-07-2017 से सांकेतिक हड़ताल शुरू कर दी और दिल्ली मेट्रो प्रबंधन ने दिल्ली एनसीआर में मेट्रो सेवाओं को बंद करने के लिए चेतावनी दी थी । फिर,आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय, दिल्ली सरकार और उनके मुख्य सलाहकार डॉ ई.० श्रीधरन के परामर्श के बाद कर्मचारियों द्वारा उठाए गए मुद्दों की गंभीरता को देखते हुए 2017 के 22 और 23 जुलाई को उच्च स्तर की बैठक आयोजित की गई थी।
 
मीटिंग में कुल 14 एजेंडा पर चर्चा की और प्रबंधन ने कर्मचारियों को आश्वासन दिया कि वे सभी माँगों को दो महीने के भीतर पूर्ण करेंगे , लेकिन डीएमआरसी प्रबंधन द्वारा कुछ भी नहीं किया गया है ।
 
यही वजह है कि 1 साल से लगातार कर्मचारी उनकी माँगे पूरा करवाने का प्रयास कर रहे हैं।  जब ऐसा नहीं हुआ तभी उन्होंने हड़ताल पर जाने की बात की थी। फिलहाल कोर्ट ने इस मामले में अगली तारिख 6 जुलाई की दी  है , इसी दिन कर्मचारियों का पक्ष सुना जायेगा।  
 

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