Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

क्या सरकार ने धर्म और समाज के तथाकथित ठेकेदारों के सामने घुटने टेक दिए हैं ?

इस पूरे विवाद में जिस इतिहास से छेड़ छाड़ की बात की जा रही है वो अपने आप में लोक कथाओं पर आधारित है। 
padmavati

पद्मावती फिल्म पर बवाल लगातार बढ़ता जा रहा है।  इसके केंद्र में  एक राजपूत संस्था करणी सेना है ,  जिसके राजस्थान प्रमुख का कहना है कि अगर ये फिल्म रिलीज़ हुई तो वह इसकी मुख्य अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की नाक काट देंगे। करणी सेना ने कहा है कि अगर 1 दिसंबर को ये फिल्म रिलीज़ हुई तो वो देश भर में  उग्र प्रदर्शन करेंगे और साथ ही उन्होंने भारत बंद का आवाहन  किया है । करणी सेना का आरोप है कि इस फिल्म में एतिहासिक तत्थ्यों से छेड़ छाड़ की गयी है। उन्होंने  खास तौर पर दो बातों पर आपत्ति जताई है।  एक ये कि उनके हिसाब से फिल्म में एक स्वप्न दृश्य है जिसमें पद्मावती और ख़िलजी के बीच  रोमांस दिखाया गया है और दूसरी ये कि फिल्म में पद्मावती  को नाचते हुए दिखाया गया है। उनके हिसाब से इन दोनों चीज़ों से उनकी पूजनीय रानी का अपमान होता है। 

 करणी सेना ने इससे पहले जनवरी में जयपुर के जयगढ किले में चल रही पद्मावती फिल्म की शूटिंग में तोड़ फोड़ करी थी और फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली को थप्पड़ भी जड़ा था।  मार्च में भी करणी सेना ने चित्तौड़गढ़  में  इसी तरह का हंगामा किया था।  राजस्थान की बीजेपी सरकार के कई मंत्रियों ने कहा है कि इतिहास से इस तरह  छेड़ छाड़ से लोगों की भावाएं आहत हो सकती है। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी अदियानाथ ने भी फ़िल्म रिलीज़ पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इससे हंगामा हो सकता है और कानून व्यवस्था को बनाये रखने में तकलीफ हो सकती है। यूपी सरकार ने इसी मुद्दे पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को चिठ्ठी लिखी है।

इसी दौरान राजस्थान सरकार ने कहा है कि फिलहाल इस फिल्म पर रोक नहीं लगायी जाएगी।  सरकार ने आगे कहा है कि उन्होंने सूचना  एवं  प्रसारण मंत्रालय को चिट्ठी लिख कर कहा है कि फिल्म में कथिक तौर पर इतिहास को तोड़ मरोड़ कर के दिखाया गया है और इसके खिलाफ़ काफ़ी जन आक्रोश है।  इसीलिए सरकार की  मंत्रालय से दरख्वास्त है कि वह सेंसर बोर्ड से अनुरोध करें कि फिल्म प्रमारण का निर्णय लेते समय वो जन भावनाओ का ख्याल रखें । आज चितौड़गाढ़ किले को इसी विरोध में बंद कर दिया गया है। 

ये पहली बार नहीं है कि करणी सेना ने किसी फिल्म का विरोध  किया हो इससे पहले भी उन्होंने जोधा अकबर फिल्म को राजस्थान में रिलीज़ नहीं होने दिया था।  जोधा अकबर सीरियल की शूटिंग के दौरान भी करणी सेना ने तोड़ फोड़ की  थी। उनका कहना था कि  जोधा ऐतिहासिक किरदार नहीं है और ये फिल्म राजपूती  शान के खिलाफ है।  इस  मुद्दे पर इतिहासकार इरफ़ान हबीब  का कहना था कि जोधा नामक कोई ऐतिहासिक किरदार तो नहीं है लेकिन इस  बात के प्रमाण हैं  कि आमेर की एक राजपूत राजकुमारी  का विवाह अकबर से हुआ था , जिनका नाम बदलकर बाद में मरियम उज़ ज़मानी किया गया था।  
 
इस पूरे विवाद में जिस इतिहास से छेड़ छाड़ की बात की जा रही है वो अपने आप में लोक कथाओं पर आधारित है।  इतिहासकारों की माने तो अलाउद्दीन खिलजी 14 वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत का सुलतान था जिसने 1303 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया और वहाँ के राजा रतन सिंह को हराया ।  खिलजी की मौत 1316 में हुई और उसके समय में रानी पद्मावती का कोई ज़िक्र नहीं पाया जाता है।  रानी पद्मावती एक काल्पनिक किरदार है जिसे अवध के सूफी कवी मलिक मोहम्मद जायसी ने गढ़ा और लोक प्रिय बनाया ।  इस किरदार का जन्म 1540 में  जायसी की कविता पद्मावत से हुआ जिसके अनुसार  पद्मावती को पाने के लिए अलाउद्दीन ख़िलजी  ने चित्तौड़  पर हमला किया , पर पद्मावती ने उसके हाथ लगने के बजाये जौहर करना स्वीकार किया। ये कहानी खिलजी के शासन काल से करीबन 224  साल बाद रची गयी और धीरे धीरे जन चेतना में सम्मलित हो गयी।  इतिहासकर इरफ़ान हबीब ने कहा है कि ये कहानी बहुत सी और लोक कथाओं जैसी है जिनका इतिहास ने कोई सीधा वास्ता नहीं।  सवाल ये  है कि फिर इतिहास के साथ छेड़ छाड़ का सवाल ही कैसे उठता है ?  क्या भारत में अब काल्पनिक पात्रों पर भी बोलने की आज़ादी नहीं है ? क्या सरकार ने धर्म और समाज के तथाकथित  ठेकेदारों के सामने घुटने टेक दिए हैं ? क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी अब बस कागज़ी बात है ? 

ये कहानी बाकी लोक कथाओं की तरह समय के साथ इतिहास का हिस्सा मान ली गयी। इसे धीरे धीरे राजपूती शान का प्रतीक बनाकर पेश किया गया।  इस कहानी में मुख्य  घटना  इस बात को माना गया कि एक मुसलमान के द्वारा जीते जाने से बेहतर राजपूत रानी ने आग में झुलसना बहतर समझा।  आज की दक्षिणपंथी राजनीति के लिए ये अच्छा मुद्दा है क्यूंकि यहाँ मुस्लमान राजा को हवस का प्रतीक दिखाया गया है जबकि राजपूत रानी को एकआदर्श महिला।  ये इतिहास को जानबूझ कर सांप्रदायिक  एक चश्मे में दिखाने की राजनीति है जिसका इस्तेमाल पहले से होता आ रहा है।  इसी की तहत  मुसलमान शासकों को हमलावर दर्शाकर आज के मुसलमानों के प्रति घृणा पैदा की जाती है।  इसी राजनीति के तहत ही ताज महल को तेजो महल कहा जाता है , बाबरी मस्जिद को राम मंदिर और टीपू सुलतान को देश द्रोही कहा जाता है ।  इन बातों का इतिहास से कोई वास्ता नहीं है ये सिर्फ जन भावनाओं को भड़काने और हिन्दू बनाम मुस्लिम की राजनीति से प्रेरिक है।  

पद्मावती की कहानी में आदर्श महिला का चित्रण भी पुरुष प्रधान मानसिकता से प्रेरित है जहाँ जौहर और सती परंपरा  को एक महान परंपरा की तरह पेश किया जाता है। राजस्थान में  1987  में जब  रूप कंवर सती हुई तो उस पूरी घटना को भुनाने में इन्ही दक्षिण पंथी ताकतों का हाथ था ,जो आज जन भावना की दुहाई दे रहे हैं । चित्तौड़ में  कुछ दिन पहले हुए  "वन्दे मातरम " नामक एक कार्यक्रम में जौहर को एक महान परंपरा की तरह दर्शाया गया । वहाँ छोटी बच्चीयों  को रानियाँ बनाकर आग में कूदते हुए दिखाया गया  . ये  पूरा घटनाक्रम इसी खतरनाक राजनीति की तरफ़ समाज को धकेल रहा है। 

 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest