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खोरी तोड़फोड़: निवासियों का आरोप उन्हें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वे गरीब हैं

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के फरीदाबाद क्षेत्र में वन के इलाके को संरक्षित करने के लिए 10,000 से अधिक घरों को ढहाने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है
खोरी

सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने 7 जून को अरावली जोन में अतिक्रमण हटाने की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय राजधानी के निकट हरियाणा के खोरी गांव में लगभग 10 हजार से अधिक घरों–जिसमें 1 लाख से अधिक लोग रहते हैं– को हटाने का आदेश दिया था। इस सप्ताह अदालत ने निवासियों की मानवीय चिंताओं तथा बेदखली से संबंधित आदेश पर रोक लगाने के उनके आग्रहों को दरकिनार करते हुए एक बार फिर दोहराया कि घरों को ध्वस्त करना ही पड़ेगा।

कानूनी लड़ाई के बीच, गांव के प्रवासी मजदूर वर्ग के निवासी वर्तमान में महामारी के बीच अपने भविष्य और जीवन को लेकर चिंतित हैं, जहां बिजली और पानी के कनेक्शन पहले ही काट दिए गए हैं उसके ऊपर अब बेदखली की तलवार सर पर लटक रही है। निवासियों ने इसके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया जिसके बाद 150 से अधिक लोगों पर कई मामलों में जिनमें आपदा प्रबंधन कानून, हिंसा भडक़ाने, अधिकारियों को उत्पीड़ित करने का आरोप शामिल है, लगा दिया गया है। 

बताया जाता है कि भविष्य को लेकर चिंता और व्याकुलता के कारण पांच व्यक्तियों ने खुदकुशी भी कर ली है। 

गांव में जाने पर, वहां के निवासी तपती गरमी से बचने के लिए अपने घरों के बाहर तंग गलियों में बैठे दिखाई देते हैं। 


बिजली कटने के कारण बाहर बैठा एक निवासी

45 वर्षीया मीरा जो लगभग 20 वर्ष से यहां रह रही है, कहती है, “हमें उजाड़ कर यूं ही खुद के हाल पर छोड़ दिया गया है और हमारी आंखों के सामने ही हमारी दुनिया खत्म होते देखने के लिए हमें मजबूर किया जा रहा है। पिछले 15 दिनों से हम लगातार डर की स्थिति में जी रहे हैं। हम कैसे अपना सारा कुछ यहां छोड़कर कहीं और चले जाएं। हम कहां जाएं?

उन्होंने न्यूजक्लिक को आगे बताया, “हमने दिल्ली में घर पाने के लिए अपने गांव में सब कुछ बेच दिया। यही मेरा मंदिर है, यही मेरी मस्जिद है। मैं यहां मर जाउंगी, लेकिन इस जगह को नहीं छोड़ूंगी, मेरे पास कहीं कोई ठिकाना नहीं है। इस महामारी के बीच हम गहरे तनाव में जी रहे हैं। हम कामकाजी लोग हैं, जिनके पास आमदनी का अब कोई जरिया नहीं रह गया है। यहां के अधिकांश लोगों के पास राशन नहीं है और हम कर्ज पर जीवन गुजार रहे हैं। हमारे पास केवल सर पर एक छत थी, अब वह भी नहीं रह गई है।‘ 

इस क्षेत्र के निवासी 1990 के दशक के आरभ में ही आ गये थे। उनका दावा है कि मूल रूप से वे खदान में काम करने वाले कामगार थे और जीवनयापन के लिए उन्होंने फिर बाद में दूसरे काम ढूंढ़ लिये। निवासियों का आरोप है कि अधिक किराया देने से बचने के लिए तथा बिल्डरों की लॉबी और बिचौलियों के बहकावे में आकर उन्होंने यह जमीन खरीद ली। 

एक दूसरे निवासी दिनेश ने कहा कि, “हमें अतिक्रमणकारी करार दिया जा रहा है। रोजाना घोषणाएं हो रही हैं और पोस्टर चिपका कर हमें यहां से जाने को कहा जा रहा है। लेकिन हम अतिक्रमणकारी नहीं हैं। हमने यह जमीन खरीदी है और हमारा इस पर अधिकार है। जब भी कोई इसके खिलाफ आवाज उठाता है, तो उसे पुलिस पकड़ लेती है। उन्होंने यहां आतंक और खौफ का माहौल बना दिया है जिसमें कोई कुछ बोलना नहीं चाहता।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि “इतने तनाव के कारण पांच व्यक्तियों ने खुदकुशी कर ली है। कई लोगों को अलग-अलग आरोप लगा कर गिरफ्तार किया जा रहा है और जेल भेजा जा रहा है। हमें सभी तरफ से दबाया जा रहा है। मैं भी अपना जीवन खत्म कर लेना चाहता हूं।”

गिरफ्तारियां जारी हैं और पानी तथा बिजली के कनेक्शन काट दिये गए हैं।  

क्षेत्र में तनाव और बेचैनी की भावना के व्याप्त होने तथा आत्महत्या की रिपोर्टों के बीच, फरीदाबाद के जिला प्रशासन ने मंगलवार (15 जून) को खोरी गांव के आसपास के 200 मीटर के दायरे में धारा 144 लागू कर दी। इस आधिकारिक आदेश के कारण इस क्षेत्र के आसपास पांच या इससे अधिक लोग एक साथ इकट्ठा नहीं हो सकते हैं। 

किसी वैकल्पिक निवास की खोज के लिए संघर्ष कर रही शबनम कहती हैं, “वे चाहते हैं कि हम एक साथ इकट्ठे न हों, कुछ बोले भी  नहीं और लड़ाई भी न करें। वे ऐसा प्रतीत कराना चाहते हैं जैसे हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है। मेरे पड़ोसी ने पेड़ पर टायर से लटक कर अपनी जान दे दी। उसने बहुत सारा पैसा खर्च कर हाल ही में अपने मकान को पक्का कराया था। हम इतने कम समय में इतने बड़े नुकसान से कैसे निपटेंगे।

लेफ्टिनेंट कर्नल सर्वदमन सिंह ओबेराय जिन्होंने वन संरक्षण पर कई मामले दायर करा रखे हैं, कहते हैं कि इस वन भूमि को फिर से प्राप्त करने की मानवीय लागत अरावली में सर्वाधिक होगी। उनके एक व्यापक अनुमान से प्रदर्शित होता है कि इसकी वजह से प्रति एकड़ 600 लोगों का विस्थापन होगा और गरीब लोगों के प्राथमिक निवासों का नुकसान होगा। 

गांव के निवासियों का समझ नहीं आ रहा है कि अगर उनके इर्द-गिर्द की इमारतें जब बनी ही हुई हैं तो निवासियों का सवाल है कि आखिर उन्हें ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में निवासियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजालविस का कहना है, “हरियाणा सरकार की पुनर्वास नीति संदिग्ध है। हमने अदालतों से अपील की है कि लोगों को बेदखल करने और उनके पास जीने का कोई साधन नहीं छोड़ने से पहले उन्हें बसाया जाए। बहरहाल, अदालत ने हमें सूचित किया है कि इस मामले पर बेदखली के बाद ही विचार किया जाएगा।”

एक तरफ मनोहर लाल खट्टर की सरकार रियल एस्टेट के विकास का रास्ता प्रशस्त करने के लिए हरियाणा में पंजाब भूमि संरक्षण (हरियाणा संशोधन) अधिनियम में संशोधन करने की कोशिश में है, तो दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान में इस देश पर स्टे लगा दिया है। बहरहाल, अदालत ने कहा है कि अतिक्रमण का हटाया जाना राज्य में वन संरक्षण की कुंजी है।

जैसाकि मंजू मेनन लिखती हैं, “जून 2020 में हरियाणा वन विभाग द्वारा लंबे समय से चले आ रहे मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को प्रस्तुत एक रिपोर्ट में, पीएलपीए भूमियों पर निर्माण अतिक्रमण के अनगिनत मामलों की पहचान की गई। केवल फरीदाबाद में ही, ऐसे 123 मामले हैं। हालांकि वन विभाग का दावा है कि वह समय-समय पर इस सूची में चयनित गतिविधियों पर नोटिस जारी करता रहा है, पर कुल मिलाकर वन अतिक्रमणों से निपटने में इसे बहुत कम सफलता प्राप्त हुई है। ऐसा मुख्य रूप से इसलिए है कि इनमें से अधिकांश अतिक्रमण गांव की सार्वजनिक जमीन पर हैं और इनमें से कई निजी कर दिये गए हैं और अब कई लोगों का उस पर सह-स्वामित्व है।”

एक निवासी अख्तरी कहती है, “अगर आप खोरी गांव की तरफ जब आते हैं तो आप ऐसी सड़कें देखेंगे जो फार्म हाउस, बैंक्वेट हॉल तथा मॉल से पटे पड़े हैं। अदालत उन निर्माणों को अतिक्रमण क्यों नहीं कहती? अदालत का कहना है कि वन सबसे पहले आते हैं, पर क्या हमारे जीवन का कोई मूल्य नहीं है? जब हम यहां अपना मकान बना रहे थे, तब प्रशासन कहां था? हमें तो तब किसी ने भी नहीं रोका क्योंकि वन विभाग भी पैसे बनाना चाहता था और अब हमारी यह स्थिति है कि यहां पीढ़ियों तक रहने के बाद हमें सड़कों पर रहना होगा।”

जहां निवासी इस गंभीर संकट को धीरे-धीरे स्वीकार कर रहे हैं, अदालत ने हरियाणा सरकार को अतिक्रमण हटाने के लिए छह सप्ताह का समय दिया है और यह भी कहा है कि मकान ध्वस्त करने के अभियान में पूरी पुलिस तथा लॉजिस्टिक संबंधी सहायता उपलब्ध कराई जाए।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Khori Demolitions: We Are Being Targetted as We Are Poor, Allege Residents

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