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ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी पर ‘विकास का बुलडोजर‘ रोके बिहार सरकार 

ख़ुदाबख़्श खां लाइब्रेरी के प्रति वर्तमान सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये और तथाकथित फ्लाई ओवर निर्माण के नाम पर लाइब्रेरी के वर्तमान अध्ययन कक्ष लॉर्ड कर्ज़न रीडिंग रूम को तोड़ने के सरकारी फरमान के खिलाफ नागरिक समाज आक्रोशित होकर राजधानी समेत प्रदेश के कई हिस्सों में विरोध प्रकट कर रहा है।
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सवाल उठने लगे हैं कि बिहार की सुशासन सरकार जो आये दिन प्रदेश की ऐतिहासिक विरासत और धरोहरों को बचाने का ढिंढोरा पीटती रहती है, आखिर क्यों प्रतिष्ठित ख़ुदाबक्श खां ओरिएण्टल लाइब्रेरी को तोड़ने के अपने फैसले पर अड़ी हुई है? जबकि मुख्यमंत्री नितीश कुमार और उनकी गठबंधन सरकार के दल और नेताओं के साथ-साथ सारा प्रशासनिक महकमा ये भली भांति जानता है कि ऐतिहासिक धरोहर ख़ुदाबक्श खां लाइब्रेरी का कितना महत्व है ! जो सिर्फ बिहार ही नहीं अपितु देश और विदेशों तक में ऐतिहासिक अध्ययन  शोध और ज्ञान के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में काफी चर्चित है. प्रदेश के राज्यपाल इसके पदेन मानद अध्यक्ष (अवैतनिक ) होते हैं. ज़ल्द ही इसकी स्थापना की 130 वीं वर्षगांठ भी मनाई जानी है लेकिन नितीश कुमार सरकार इसपर विकास का बुलडोजर चलाने पर आमादा है.
                                                                                                                                                     ऐतिहासिक शोध और ज्ञान के इस धरोहर केंद्र के प्रति वर्तमान सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये और तथाकथित फ्लाई ओवर निर्माण के नाम पर लाइब्रेरी के वर्तमान अध्ययन कक्ष लॉर्ड कर्ज़न रीडिंग रूम को तोड़ने के सरकारी फरमान के खिलाफ नागरिक समाज आक्रोशित होकर राजधानी समेत प्रदेश के कई हिस्सों में विरोध प्रकट कर रह है। हालाँकि मिडिया में छन कर आ रही ख़बरों में लाइब्रेरी नहीं तोड़े जाने की बातें आ रहीं हैं लेकिन अभी तक कोई अधिकारिक बयान नहीं आने से संदेह बना हुआ है।

इस कारण लाइब्रेरी को नष्ट होने से बचाने की कोशिशों का सिलसिला जारी है।बिहार विधान सभा की पुस्तकालय समिति के सभी विधायक सदस्यों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि किसी भी सूरत में यह लाइब्रेरी नहीं टूटने दी जायेगी। इस बाबत पुस्तकालय समिति के अध्यक्ष और भाकपा माले विधायक सुदामा प्रसाद ने विधान सभा अध्यक्ष को ज्ञापन देकर अविलम्ब हस्तक्षेप करने की मांग की है। इस सवाल पर उन्होंने इससे सम्बंधित पुल एवं पथ निर्माण के विभागीय अधिकारीयों से बात भी की है लेकिन कोई सकारात्मक नतीजा अभी तक सामने नहीं आया है।  

 ख़ुदाबक्श खां लाइब्रेरी बचाने के मुद्दे पर प्रदेश के नागरिक समाज को सक्रीय बनाने के प्रयासों के तहत ही 13 अप्रैल को लाइब्रेरी परिसर में ‘ नागरिक संवाद ’ कार्यक्रम रखा गया। जिसमें राजधानी पटना के कई वरिष्ठ शिक्षाविदों, पुरातत्व विशेषज्ञ , बुद्धिजीवी, लेखक,कलाकार, सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया था। 

कार्यक्रम के लिए लाईब्रेरी प्रबंधन ने पहले तो परिसर में ही स्थान उपलब्ध कराने की सहमती दी थी लेकिन ऐन मौके पर  ‘ सरकारी दबाव ‘ का हवाला देकर पीछे हट गया।लाइब्रेरी से ही सटे दुसरे  स्थान पर संपन्न हुए नागरिक संवाद कार्यक्रम में उपस्थित नागरिक समाज के सभी महत्वपूर्ण प्रतिनिधियों ने एक स्वर से लाइब्रेरी नहीं तोड़ने देने का सर्वसम्मत निर्णय लेते हुए इस सवाल पर पुरे प्रदेश के नागरिकों से चौतरफा मुहीम छेड़ने का आह्वान किया।

इसके  लिए ‘ख़ुदाबक्श खां लाइब्रेरी बचाओ, धरोहर बचाओ संघर्ष मोर्चा‘ का गठन किया गया। इसमें विधान सभा पुस्तकालय समिति अध्यक्ष विधायक सुदामा प्रसाद , जेएनयू छात्र संघ पूर्व अध्यक्ष विधायक डा. संदीप सौरभ एवं विधान सभा पुरातत्व संरक्षण समिति सदस्य विधायक डा. अजीत कुशवाहा इत्यादि को विशेष तौर से शामिल किया गया।  

 वरिष्ठ इतिहासकार डा. भारती एस कुमार, वरिष्ठ कवि अरुण कमल, चर्चित चिकित्सक डा. पी एन पाल, एनआईटी शिक्षाविद प्रो. संतोष कुमार, पटना विश्वविद्यालय की वरिष्ठ शिक्षाविद प्रो.डेज़ी नारायण, सामाजिक शोध संस्थान ए एन सिन्हा इन्सिटीच्यूट के पूर्व निदेशक प्रो. डी एम दिवाकर, तलाश पत्रिका कि संपादक मीरा दत्त, पूर्व आईपीएस अमिताभ कुमार दास, वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार प्रो. सफ़दर इमाम कादरी, वरिष्ठ पत्रकार प्रणव चौधरी, बिहार महिला समाज की निवेदिता शकील , जन मुक्ति संघर्ष वाहिनी के प्रियदर्शी , लॉ एंड पब्लिक रिसर्चर के डा. गोपाल कृष्ण , एक्टिविष्ट पत्रकार पुष्पराज समेत कई अन्य वरिष्ठ शिक्षाविद – बुद्धिजीवियों, हाई कोर्ट अधिवक्ता , एक्टिविष्टों के अलावे जन संस्कृति मंच , इन्साफ मंच , आइसा, एसएफआई,  एआईएसएफ इत्यादि छात्र संगठनों व दर्जनों सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों की 57 सदस्यीय संघर्ष संचालन समिति का गठन किया गया. पटना विश्वविद्यालय के चर्चित छात्र नेता रहे जन आन्दोलनकारी डा. कमलेश शर्मा  ( ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम ) को इसका संयोजक बनाया गया।

 15 अप्रैल को संघर्ष मोर्चा के आह्वान पर लाइब्रेरी बचाओ  मानव श्रंखला कार्यक्रम को पटना पुलिस द्वारा जबरन रोके जाने पर सरकार के इस कृत्य की निदा करते हुए प्रतीकात्मक कार्यक्रम किया गया। 17 अप्रैल को इन्साफ मंच की ओर से मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा में प्रतिवाद कार्यक्रम कर नितीश कुमार सरकार से ख़ुदाबक्श खां लाइब्रेरी तोड़ने के फैसले को भाजपा, जदयू का सांप्रदायिक एजेंडा करार देते हुए अविलम्ब इस फैसले को वापस लेने की मांग की गयी.

साथ ही यह भी कहा गया कि भाजपा को देश की स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीकों से डर लगता है, इसीलिए वह ख़ुदाबक्श खां लाइब्रेरी तोड़ने पर आमादा है।

फिलहाल‘ हम बिहार की पहचान ख़ुदाबक्श खां लाइब्रेरी को ध्वस्त नहीं होने देंगे , नितीश कुमार सरकार के नापाक मंसूबों के खिलाफ आप सब भी शामिल हों!  इस  आह्वान के साथ लाइब्रेरी बचाओ संघर्ष मोर्चा की ओर से महामारी संक्रमण को देखते हुए ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। 

पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने सरकार द्वारा लाइब्रेरी तोड़ने के फैसले के विरोध में अपना पुलिस सम्मान पदक लौटाने की घोषणा करते हुए लाईब्रेरी बचाओ आंदोलन में कूद पड़े हैं। ख़बरों के अनुसार चर्चित साहित्यकार उषा किरण खां ने भी इस सवाल पर अपना पद्मश्री सम्मान लौटाने की घोषणा करते हुए सरकार की ज्ञान विरोधी नीतियों पर कड़ा विरोध जताया है।  

ख़ुदाबक्श खां लाइब्रेरी बचाओ, धरोहर बचाओ संघर्ष मोर्चा के संयोजक डा. कमलेश शर्मा ने नितीश कुमार सरकार पर बिहार में भी भाजपा प्रायोजित अघोषित डिक्टेटरशिप शासन थोपने का आरोप लगाते हुए कहा है कि पटना में सुगम यातायात व्यवस्था के नाम पर कारगिल चौक से एनआईटी तक के प्रस्तावित फ्लाई ओवर निर्माण की आड़ में गंगा किनारे वर्षों से अवस्थित सामाजिक एकता- सौहार्द के प्रतीक सभी ऐतिहासिक धरोहरों को नष्ट कर देने की साजिश है। 25 अप्रैल को लाइब्रेरी बचने की मांग का 10000 ऑनलाइन हस्ताक्षर प्रदेश के राज्यपाल को भेजा जाएगा और इस पर भी कोई संज्ञान नहीं लिया जाएगा तो आगे और भी बड़े जनांदोलन की शुरुआत की जायेगी। किसी राज्य का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि एक धरोहर लाइब्रेरी बचाने के लिए नागरिक समाज को सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरना पड़ रहा है ! 

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