बिहारः शहरी आबादी को पीएमएवाई के तहत सभी को घर देने का वादा नहीं हुआ पूरा

आज भी देश में बड़ी आबादी ऐसी है जिनके सिर पर छत नहीं है। पक्का घर तो दूर की बात उनके पास रहने के लिए कच्चा मकान तक नहीं है। बिहार की बात करें तो स्थिति बेहद भयावह है।
पिछले महीने पटना म्युनिसिपल कार्पोरेशन तथा यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड (यूएनपीएफ) द्वारा आयोजित एक वर्कशॉप के तहत जारी प्रेस रिलीज में कहा गया कि बिहार में शहरी आबादी का करीब 10 प्रतिशत अर्थात 1.2 मिलियन लोग स्लम एरिया में निवास करते हैं।
जून 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना -अर्बन (पीएमएवाई-यू) के तहत केंद्र सरकार की मदद से सभी को पक्का घर देने का वादा किया गया था। घोषणा करते समय ये कहा गया था कि साल 2022 तक शहरी क्षेत्र के सभी लोगों पक्का मकान उपलब्ध करा दिया जाएगा लेकिन अब तक बड़ी आबादी घरों से महरूम है। इस योजना के तहत बिहार में 3,26,546 घरों को स्वीकृत किया गया था और केंद्र सरकार की ओर से 5,165.61 रुपये मदद की बात कही गई थी जिसमें 2,544.76 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं।
उपरोक्त जानकारी लोकसभा में आवास तथा शहरी मामलों के मंत्री कौशल किशोर ने सांसद अजय कुमार मंडल के अतारांकित प्रश्न के उत्तर में 4 अगस्त को दी। अजय कुमार ने बिहार के भागलपुर सहित राज्य के सभी जिलों में प्रधानमंत्री आवास योजना-अर्बन (पीएमएवाई-यू) के तहत बने घरों तथा पंजीकृत लाभार्थियों की संख्या बताने को कहा था। साथ ही योजना के तहत जिलेवार तरीके से घर बनाने को लेकर स्वीकृत तथा जारी किए गए फंड का विवरण देने को भी कहा था।
पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री कौशल किशोर ने कहा कि देश भर में इस योजना के तहत 122.69 लाख घर स्वीकृत किए गए थे। स्वीकृत घरों में 102.23 लाख घरों की संरचना के लिए आधार दिया गया जिसमें से 61.50 लाख घर पूरे हुए या लाभार्थियों को दिए गए।
पिछले सात वर्षों में बिहार में स्वीकृत 3,26,546 घरों में से सिर्फ 95,643 घर ही बन कर तैयार हुए जबकि 3,07,183 घरों के लिए बुनियाद डाली गई थी। राज्य में बन कर तैयार हुए घरों के प्रतिशत की बात करें तो करीब 29 प्रतिशत ही साल 2022 तक बन पाए हैं जबकि प्रधानमंत्री की ओर से इस साल तक शहर के बेघर लोगों को पक्का घर देने का वादा किया गया था। बिहार में इस योजना के लिए केंद्र सरकार की ओर से 5,165.61 करोड़ रुपये की मदद देने की बात कही गई लेकिन 2,544.76 करोड़ रुपये ही जारी किए गए यानी स्वीकृत राशि का करीब करीब आधा ही बिहार को जारी किया गया।
राज्य के अररिया जिले की बात करें तो 7,538 घर बनने की स्वीकृति दी गई थी वहीं 7,269 घरों की बुनियाद डाली गई लेकिन अब तक बनकर तैयार हुए केवल 1,294 घर यानी स्वीकृत घरों का करीब 17 प्रतिशत ही तैयार हो पाया है। वहीं अरवल जिले के लिए शहरों में 2,343 घर स्वीकृत किए गए थें जिनमें से 2,277 घरों को बनाने का काम शुरू हुआ लेकिन सिर्फ 593 घर ही बन कर तैयार हुए यानी स्वीकृत घरों के करीब 25 प्रतिशत बनकर तैयार हुए।
बिहार की राजधानी पटना की बात करें तो 25,217 घर बनने के लिए स्वीकृत किए गए जिनमें से 21,292 घरों के लिए बुनियाद डाला गया और अब तक बन कर तैयार हुए 12,051 घर जो कि स्वीकृत घरों का करीब 48 प्रतिशत है।
वहीं राज्य के कटिहार के आंकड़ों पर नजर डालें तो 11,113 स्वीकृत घरों में से केवल 1,241 घर ही अब तक बन कर तैयार हो पाया जो कि स्वीकृत घरों का सिर्फ और सिर्फ 11 प्रतिशत है। स्वीकृत घरों के निर्माण के लिए केंद्र की ओर से करीब 200 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई लेकिन जारी किए गए करीब 94 करोड़ रुपये।
पक्के घरों के निर्माण कार्य की स्थिति को देखें तो करीब करीब यही स्थिति राज्य के सभी जिलों की है। किसी जिले में बीस प्रतिशत घरों का निर्माण हुआ है तो किसी जिले में तीस प्रतिशत। मतलब कि करीब पचास प्रतिशत से अधिक किसी भी जिले में घरों का निर्माण नहीं हुआ है।
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