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केरल में कोविड-19 के मामले बढ़ने के बावजूद मृत्यु दर 0.36 फीसदी बनी हुई है: शैलजा

केरल की स्वास्थ्य मंत्री ने स्वास्थ्यकर्मियों के अथक प्रयासों की सराहना की और लोगों से अपील की कि अपनी लापरवाही के कारण वह स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर दबाव नहीं बढ़ाएं।
शैलजा
Image courtesy: Social Media

तिरुवनंतपुरम: केरल की स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कहा है कि राज्य में कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं लेकिन अच्छी बात यह है कि संक्रमण के कारण मरने वालों की दर महज 0.36 फीसदी है।

उन्होंने स्वास्थ्यकर्मियों के अथक प्रयासों की सराहना की और लोगों से अपील की कि अपनी लापरवाही के कारण वह स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर दबाव नहीं बढ़ाएं।

शैलजा ने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों के प्रयासों के चलते ही राज्य में कोरोना वायरस के कारण मृत्यु दर 0.36 फीसदी बनाकर रखी जा सकी है, वह भी तब जब संक्रमण के मामले यहां बढ़ रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘अंत में मायने यह रखता है कि हम मृत्यु दर कितना कम कर पाते हैं, कितनी जिंदगियां बचा पाते हैं। यही हमारा ध्येय है।’’

देश में कोरोना वायरस का पहला मामला राज्य में 30 जनवरी को आया था। मई में राज्य ने घोषणा की थी कि उसने कोरोना वायरस को लगभग मात दे दी है। लॉकडाउन की पाबंदिया हटाने और बाहर से लोगों के राज्य में आने के बाद संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ने लगे।

सात अक्टूबर को यहां संक्रमण के कुल मामले ढाई लाख से अधिक हो गए और शुक्रवार को संक्रमितों की संख्या बढ़कर 2.66 लाख के पार पहुंच गई।

विशेषज्ञों ने पहले ही अनुमान जताया था कि अगस्त-सितंबर में राज्य में मामले तेजी से बढ़ेंगे।

इस बारे में स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि ओणम त्योहार के दौरान कई लोगों ने स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप संक्रमण के मामले बढ़े।

उन्होंने कहा कि कई राजनीतिक दलों ने भी कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन किए बगैर प्रदर्शन आयोजित किए।

शैलजा ने कहा, ‘‘किसी भी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की एक क्षमता होती है। हमारा विभाग बीते आठ से दस महीनों से नि:स्वार्थ तथा प्रभावी तरीके से काम कर रहा है ताकि प्रणाली पर क्षमता से अधिक भार न पड़े। इसलिए लोगों से अनुरोध है कि वे एकत्रित होकर भीड़ न बढ़ाएं।’’

राज्य के स्वास्थ्य विभाग के संचारी रोगों संबंधी नोडल अधिकारी डॉ. अमर फेटले ने कहा, ‘‘लेागों को सार्वजनिक स्थानों पर जिम्मेदाराना बर्ताव करना चाहिए। फार्मास्युटिकल टीके से अधिक जरूरत हमें व्यवहार सुधारने वाले टीके की है। लोगों का व्यवहार ही दवा, टीका और रोकथाम का काम करेगा।’’

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