Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मध्य प्रदेश : डॉक्टरों के 4900 पद खाली पर कोई दावेदार नहीं, तीसरी लहर से कैसे लड़ेगा राज्य?

पिछले एक साल में 50 से अधिक डॉक्टरों ने इस्तीफ़ा दिया है क्योंकि वे सरकार की पुरानी नीतियों से नाखुश थे, डॉक्टरों की एसोसिएशन का दावा है कि अभी बहुत से डॉक्टर इस्तीफ़ा देने वाले हैं। 
p

भोपाल: कोविड-19 की विनाशकारी दूसरी लहर और सर पर सवार तीसरी लहर की चेतावनी ने मध्य प्रदेश सरकार को ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और बेड तैयार रखने पर मजबूर कर दिया है, लेकिन क्या राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली में मौजूद सबसे बड़ी खामियों पर ध्यान दिया जा रहा है जो खामियां डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की कमी के चलते मुँह बाए खड़ी हैं?

कई डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी, जो महामारी के मामलों की बढ़ती संख्या से जूझ रहे हैं, के पास अन्य महत्वपूर्ण चिकित्सा जरूरतों के बारे में बताने के अलावा रोगियों को कोविड के हाथों खोने के बारे में बताने के लिए दिल दहला देने वाली कहानियाँ हैं, क्योंकि उनका मानना है कि अगर कुछ और स्वस्थ्य कर्मी होते तो लोगों को बचाया जा सकता था।

रवि जायसवाल का मामला लें, उन्हे तब बड़ा आघात लगा जब उनके भाई उदय जायसवाल (38) का शहडोल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की कोविड गहन चिकित्सा इकाई (ICU) से 14 अप्रैल को बार-बार फोन यह शिकायत करने के लिए आ रहा था कि घंटों तक उन्हे कोई एक गिलास पानी भी देना वाला नहीं था। 

फोटो में उदय जायसवाल अपनी पत्नी और एक बच्चे के साथ नज़र आ रहे हैं।

 

 "उसे काफी खांसी हो रही थी और कई बार अनुरोध करने पर भी न तो वार्ड बॉय और न ही नर्स ने उसे पानी दिया," रवि ने बताया जो अंतत पानी लेकर वहाँ पहुँचा था। करीब आधे घंटे तक पानी के लिए तरसने के बाद आखिरकार उदय को एक गिलास पानी मिल ही गया। 

घटना के तीन दिन बाद, 16-17 अप्रैल की मध्यरात्रि को, रवि को अपने भाई की तरफ से एक और फोन आया, उसे लगातार खांसी हो रही थी इसलिए उसने तत्काल आने के लिए कहा। जब रवि आईसीयू में पहुंचा, तो उसने पाया कि करीब 60 आईसीयू बेड पर मरीजों को ऑक्सीजन की कमी है और जिसके चलते वे हांफ और खांस रहे थे, कुछ मरीज तो ऑक्सीजन मास्क को हटाने के लिए भी संघर्ष कर रहे थे। रवि ने बताया कि मरीजों का ध्यान रखने वाला वहाँ कोई नहीं था  यहां तक कि एक वार्ड बॉय भी मौजूद नहीं था। 

रवि ने दावा किया कि अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के कारण उदय के अलावा उस रात 21 मरीजों की मौत हुई थी, जबकि आधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 13 बताई गई थी। 

रवि कहते हैं कि, "60-बेड वाले कोविड आईसीयू वार्ड को एक नर्स, एक वार्ड बॉय और एक ऑन-ड्यूटी डॉक्टर के भरोसे चलाया जा रहा था, वह डॉक्टर भी अपने मोबाइल पर व्यस्त रहता था और शायद ही मरीजों की देखभाल कर रहा था" रवि ने खेद व्यक्त करते हुए कि उसने क्यों अपने भाई को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, कम से कम वह "कुप्रबंधन" के कारण तो नहीं मरता।

शहडोल मेडिकल कॉलेज में, जो दो-तीन साल पहले शुरू हुआ था, 50 से अधिक नर्सों और 79 डॉक्टरों की क्षमता के साथ 438-बेड वाला कोविड-19 अस्पताल चलाया जा रहा है।

उदय को शहडोल के मेडिकल कॉलेज अथवा अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां ऑक्सीजन की कमी के कारण तीन दिन बाद यानि 17 अप्रैल को उसकी मौत हो गई थी।

मौतों की खबरों ने जब राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी तो अस्पताल में डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की कमी का मुद्दा सामने आया, इसके तुरंत बाद राज्य सरकार ने 100 से अधिक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से जुड़ी नर्सों को अस्पताल भेजा। नए नर्सिंग स्टाफ को शामिल करने के साथ, अस्पताल की क्षमता को बढ़ाकर 600 बिस्तर कर दिया गया, जिसमें बच्चों के लिए 20 नवजात आईसीयू वार्ड शामिल हैं। विडंबना यह है कि शहडोल मेडिकल कॉलेज में एक भी बाल रोग विशेषज्ञ नहीं है।

शहडोल मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. मिलिंद शिरालकर ने बताया कि, "हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती डॉक्टरों और नर्सों की एक छोटी टीम के साथ इस विशाल कोविड-19 अस्पताल को चलाना है।"

“अप्रैल के मध्य में, जब सभी 438-बेड भरे हुए थे, हमारे पास एनेस्थीसिया और मेडिसिन विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं थे, जिनका होना कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होने बताया कि मेडिसिन के तीन जूनियर डॉक्टरों को मरीजों के इलाज का जिम्मा सौंपा गया है।

कॉलेज में डॉक्टरों के 168 और 253 नर्सिंग स्टाफ के स्वीकृत पद हैं। लेकिन, 89 डॉक्टरों और 238 नर्सिंग स्टाफ के पद अभी भी खाली पड़े हैं। शिरालकर ने बताया, “हम अच्छे डॉक्टर और स्टाफ के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे शहडोल नहीं आना चाहते हैं और कई तो चयन होने के बाद जॉइन करने से इंकार कर देते हैं। इसके कई कारण हैं जिन्हें नीतियों के स्तर पर सुधारने की जरूरत है।"

इसी तरह, खंडवा मेडिकल कॉलेज भी डॉक्टरों और नर्सों की कमी से जूझ रहा है, जिसके कारण अस्पताल में कोविड के मामले संभालने का कोई प्रबंध नहीं हुआ, खासकर जब कोविड के मामले चरम पर थे। पिछले तीन साल में कॉलेज ने 12 बार डॉक्टर और प्रोफेसर के रिक्त पदों का विज्ञापन निकाला है. लेकिन कोई भी नौकरी का दावेदार आवेदन के लिए सामने नहीं आया है। 168 स्वीकृत पदों में से लगभग आधे अभी भी खाली पड़े हैं।

“हम दो एनेस्थेटिस्ट और तीन चिकित्सकों की मदद से 60 आईसीयू बेड सहित 360-बेड का कोविड अस्पताल चला रहे हैं। मैंने उन्हें आठ घंटे की तय ड्यूटी के मुक़ाबले चौबीसों घंटे मरीजों की देखभाला करने को कहा है।” खंडवा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के डीन डॉ अनंत पवार ने उक्त बातें कही।

पवार ने कहा: “तीसरी लहर से निपटने के लिए हमें विशेषज्ञ डॉक्टरों और नर्सों की एक टीम की जरूरत है, लेकिन कोई भी डॉक्टर खंडवा आने को तैयार नहीं है। नीति में थोड़ा सा बदलाव करने और सुविधाओं और भत्ते में बढ़ोतरी करने से नए डॉक्टरों को आकर्षित करने में मदद मिलेगी।

प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेजों में 2,814 स्वीकृत पदों में से करीब 856 पद खाली पड़े हैं, जिनमें जबलपुर में सबसे ज्यादा 96, छिंदवाड़ा में 92 और शहडोल में 89 पद खाली हैं। भोपाल के जीएमसी में सबसे कम यानि 37 पद खाली हैं।

मप्र : रिक्त पदों वाले मेडिकल कॉलेजों की स्थिति, 6 मार्च, 2021 तक

स्रोत - मुख्यमंत्री की समीक्षा बैठक 6 मार्च, 2021

साथ ही 2650 विशेषज्ञ डॉक्टरों, 1400 चिकित्सा अधिकारियों, 8,000 नर्सिंग स्टाफ आदि के पद भी खाली पड़े हैं. विभिन्न मेडिकल स्टाफ के 40,000 पदों में से करीब 45 प्रतिशत सीटें खाली पड़ी हैं।

विभिन्न चिकित्सा कर्मचारियों के रिक्त पड़े पद

स्रोत- एमपी स्वास्थ्य विभाग

डॉक्टर छोड़ रहे हैं काम 

अकस्मात् रूप से मध्य प्रदेश में पिछले एक साल में 50 से अधिक वरिष्ठ और विशेषज्ञ डॉक्टरों ने विभिन्न कारणों से नौकरी छोड़ दी है। केंद्रीय चिकित्सा शिक्षक संघ के सचिव डॉ. राकेश मालवीय ने बताया, कि "राज्य सरकार की डॉक्टरों के प्रति पुरातन नीतियों के कारण आने वाले महीनों में नौकरी से इस्तीफा देने वाले डॉक्टरों की लंबी सूची होगी।"

राज्य सरकार 4.5 लाख कर्मचारियों को भत्ते, निवास, ग्रेड पे जैसे लाभ प्रदान करती है, लेकिन ये डॉक्टरों को नहीं दिए जाते हैं। एक चिकित्सा शिक्षक के प्रति पदोन्नति नीति वाली 1987 में बनी नीति अभी भी राज्य में जारी है, जो डॉक्टरों के मामले में "सबसे खराब नीति" है, डॉ मालवीय ने बताया कि नए डॉक्टरों को काम पर आकर्षित करने के लिए इन नीतियों को बदलने की जरूरत है।

एमपी हेल्थ ऑफिसर्स एसोसिएशन के डॉ देवेंद्र गोस्वामी ने बताया कि राज्य को खंडवा, शहडोल और छिंदवाड़ा जैसे तीन स्तरीय या विकासशील शहरों में काम करने वाले डॉक्टरों को क्वार्टर, गैर-अभ्यास भत्ता और काम का अनुकूल वातावरण प्रदान करना चाहिए।

गोस्वामी ने सवाल दगाते हुए कहा, "यदि राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों और अविकसित शहरों के लिए डॉक्टरों की भर्ती करना चाहती है, तो उसे नए डॉक्टरों को आकर्षित करने के लिए उन्हे घर, भत्ते और अन्य सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए।" और कहा कि कोई भी डॉक्टर जो इतनी मेहनत से इस मक़ाम पर पहुंचा है वह निजी अस्पताल की सफेदपोश नौकरी छोड़ गांव में क्यों काम करेगा? 

उन्होंने कहा कि डॉक्टरों की एसोसिएशन ने हाल ही में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी से अपनी मांगों को लेकर मुलाकात की और मंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह इन पर ध्यान देंगे।

मांगों को लेकर चिकित्सक एसोसिएशन के सदस्य स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी से मिलते हुए।

बार-बार प्रयास करने के बावजूद न तो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी और न ही स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग टिप्पणी के लिए उपलब्ध थे।

https://www.newsclick.in/MP-No-takers-Post-4900-Doctors-How-Will-State-Fight-Third-Wave

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest