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लो एक और साध्वी मंत्री का गीता-ज्ञान

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्ववाली आजकल की केंद्र सरकार ने अवाम को जो सुनहरे सपने दिखाये थे, वे अभी सपने ही बने हुए हैं, लोग काले धन में से पंद्रह लाख रुपये मिलने की आस लगाये बैठे हैं, उधर महंगाई बढ़े जा रही है, सरकार जब डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ा रही है तो हर चीज़ महंगी हो ही जायेगी, इज़ारेदारों और बड़े व्यापारियों को इसका पूरा फायदा मिल रहा है, उनके तो ‘अच्छे दिन’ आ ही गये, जनता भूखी नंगी रहे तो सरकार की बला से। जनता में क्रोध पनपना शुरू हो, उससे बचने के लिए मोदी सरकार के नाकारा मंत्री कोई न कोई ऐसा बयान दे देते हैं जिससे हंगामा शुरू हो जाये और असली मुद्दे जस के तस बने रहें। यह अजब संयोग है कि ऐसे बयान महिला मंत्रियों की ओर से आ रहे हैं, वे आर एस एस की सदस्य नहीं बन सकतीं, मगर सारे कारनामे वे ही करती हैं जिनसे समाज में सांप्रदायिक नफरत फैले, संविधान के अपमान में उनकी गिरफ्तारी की मांग भी करने में हमारे भद्र समाज को संकोच होता है, क्योंकि हम महिलाओं की इज्जत करते हैं।

अभी मुश्किल से एक साध्वी मंत्री के क्षमा मांग लेने के बाद माहौल पटरी पर आ ही रहा था कि दूसरी साध्वी, सुषमा स्वराज ने गीता को ‘राष्ट्रीय ग्रंथ’ घोषित करने की अपनी मांग एक उत्सव में रख दी। वे यह भूल गयीं कि ईश्वर की सौगंध खा कर उन्होंने यह शपथ ली थी कि वे भारत के संविधान के प्रति वफादार रहेंगी और बिना किसी भेदभाव के और बिना किसी के दबाव में आ कर अपना प्रशासनिक काम करेंगी। मगर यह क्या कर रही हैं सुषमा जी। भारत का संविधान इस देश को ‘धर्मनिरपेक्ष’ बताता है जो कि यह है, और सभी धर्मों, संप्रदायों, जातियों, संस्कृतियों और भाषाओं का यह देश अपनी विविधता में ही एकता हासिल किये हुए है। ऐसे देश के लिए किसी एक धर्म की कोई पुस्तक पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हुए ‘राष्ट्रीय’ होने का दर्जा नहीं पा सकती, न वेद, न पुराण, न बाइबिल, न कुरान। गीता में कृष्ण तो आह्वान कर डालते हैं कि “सर्वधर्माणि परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज’ यानी सभी धर्म छोड़ कर मेरी शरण में आओ’। भारत अब एक आधुनिक देश है जहां वे सब जो सदियों से रह रहे हैं और जो यहां के नागरिक हैं, जिनकी पिछली पीढ़ियों ने आजादी के लिए जानें कुर्बान की हैं, जो अपने तन धन से आज देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं, केंद्र के मंत्रियों से इस तरह के संकीर्ण सांप्रदायिक दृष्टिकोण की अपेक्षा नहीं रखते।

सुषमा स्वराज को पूरा हक है कि वे अपने घर में खूब गीता पढ़ें, मंत्रालय का काम तो नरेंद्र मोदी खुद संभाल ही रहे हैं, इसलिए आफिस में भी दस बारह घंटे गीता ही पढ़ें। अपनी पार्टी के सदस्यों को भी सारा कामधाम छोड़ कर गीता पढ़ने में ही लगा दें, मगर बहुत से धर्मों वाले इस सतरंगी देश को ‘हिंदू राष्ट्र’ की तरह चलाने की कोशिश न करें। उन्हें गीता से प्यार हो सकता है, यह उनका अधिकार है, जन्मना हिंदू होते हुए भी, मुझे गीता में लिखे हुए बहुत से श्लोकों से आज के समय में एक लोकतांत्रिक देश में ऐसे असंगत उपदेशों की गंध आती है जो मानव समाज के विकास के लिए रोड़ा जैसे लगते हैं। सुषमा जी तो एक नारी भी हैं, वे गीता पढ़ते समय क्या यह श्लोक नहीं पढ़तीं जिसमें नारी के बारे में कैसा कुत्सित विचार प्रकट किया गया है

उक्त उद्धरण ज्यों का त्यों गीता में से स्कैन करके यहां चिपकाया है जिससे कोई यह आरोप न लगाये कि गीता में यह श्लोक नहीं है, मेरा बना बनाया हुआ या क्षेपक है। यहां कुल स्त्रियों को प्रदूषित न होने देने और वर्णशंकर औलाद न पैदा होने देने के लिए नारियों पर वही नियंत्रण रखने की सलाह है जो मनुस्मृति में दी गयी है, और रामचरितमानस में रामभक्त तुलसी बाबा ने और भी गंदे तरीके से दोहरायी है, “जिमि स्वतंत्र हुइ बिगरहिं नारी” या “ढोल गंवार शूद्र पसु नारी/ये सब ताड़न के अधिकारी’ या ‘अवगुन आठ सदा उर रहहीं’ और कलियुग में वर्णशंकर लोग होने का रोना रोया है।

इस देश की महिलाओं के प्रति ऐसा हिकारतभरा उपदेश जिस किताब में हो, उसे इस देश का ‘राष्ट्रीय’ ग्रंथ बनवाने की सिफारिश एक महिला की ओर से ही आ रही है, इससे बड़ा दुर्भाग्य इस देश का क्या हो सकता है। यही नहीं, गीता उस सदियों पुराने ब्राह्मणवादी मनुवादी सामाजिक ढांचे को बनाये रखने की वकालत करता है जिसे एक आजाद और लोकतांत्रिक आधुनिक गणराज्य में समाज के बहुसंख्यक दलित समाज और वैज्ञानिक सोच का कोई भी भारत का नागरिक स्वीकार नहीं कर सकता। उसमें वर्णव्यवस्था को यह कह कर गौरवान्वित किया गया है कि यह व्यवस्था तो स्वयं कृष्ण की बनायी हुई है। कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि

अब जिस वर्णव्यवस्था को सुषमा स्वराज के भगवान कृष्ण ने बनाया है तो उसके उन्मूलन का काम तो ईश्वरविरोधी हो जायेगा, और हमारा संविधान भी इस तरह कृष्णविरोधी हुआ। ऐसे कृष्णविरोधी संविधान के नियमों की रक्षा और उसका पालन करने की शपथ उसी ईश्वर को साक्षी मान कर क्यों ली। इस तरह खुद सुषमा स्वराज ईश्वरविरोधी हो गयीं।

गीता और संविधान दो विराधी दृष्टिकोणों से रचे ग्रंथ हैं, दोनों के समय और समाज भिन्न हैं, गीता बहुत दूर अतीत में रचे एक महाकाव्य का हिस्सा है जो उसी तरह पढ़ा जाता है जैसे कविता, कहानी, उपन्यास, महाकाव्य पढ़े जाते हैं, वह हमारे रोजमर्रा के काम काज में और जीवन व्यवहार में अमल में लाने के लिए नहीं है, न अमल संभव ही है। अगर हर नागरिक अमल करने लगेगा तो कोई जिंदा ही नहीं बचेगा, क्योंकि गीता में कृष्ण अर्जुन को यही सिखा रहे हैं, कि अपने सगे संबंधियों का कत्ल करना कोई गुनाह नहीं, शरीर तो पुराने वस्त्रों की तरह है, आत्मा थोड़े ही मरेगी, इसलिए बेहिचक मारो, तुम्हें पाप नहीं लगेगा, युद्ध में जीते तो मजे और मारे गये तो स्वर्ग में मजे, बकौल तुलसीदास, दोनों हाथों में लड्डू, “दुहूं हाथ मुद मोदक तोरे’’।

गीता के तर्क से सभी हत्या के जुर्म में कैद सभी अपराधियों को रिहा कर देना चाहिए क्योंकि उन्होंने गीता के मुताबिक कोई पाप किया ही नहीं, जिसे मारा, उसका पुराना चोला ही फट गया, आत्मा जो कि असली चीज है, वह तो अक्षुण्ण है, फिर इन मुकदमों पर हजारों रुपया क्यों बरबाद कराया जा रहा है, इतनी पुलिस, इतने जज, इतने कालेज, इतनी किताबें, जर्नल्स, और न जाने कितने उद्योग, मसलन कागज, छापाखाने, कूरियरवाले, सब बेकार अपना अपना धंधा इसी हत्या के अपराध पर चला रहे हैं, ये सब बंद हो जायेंगे, आर्थिक सुधारों में यह नया मोड़ गीता पर अमल करने से आ सकता है। सुषमा जी, जल्दी करो, इन सबकी दुकानें बंद करा दो। गीता से एक आर्थिक सुधार उधार जरूर ले लिया है, वह है कर्म कराओं, मजदूरी के बारे में मत सोचो, श्रम करना तुम्हारा अधिकार है, मजदूरी मांगना तुम्हारा अधिकार नहीं। जाओ, सुषमा जी, यह श्लोक मारतीय मजदूर संघ की किसी सभा में सुनाओ कि “कर्मण्येवाSधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’’। वहां मजदूर आपका टमाटरों से स्वागत करेंगे, यह आपको मालूम नहीं क्योंकि ट्रेड यूनियनें मंहगाई का सूचकांक बढ़ने पर अपनी कम मजदूरी को बढ़वाने के लिए रोज संघर्ष करती हैं, तब जा कर वे जीवनयापन करने की मामूली हालत में मजदूरों को ला पाती हैं। आप उन्हें गीताज्ञान सिखाने की कोशिश करके देखिए, तो असलियत का पता लग जायेगा। मंत्रालय में कामधाम है नहीं, मोदी सरकार का कोई ऐसा महान काम अभी दिखा नहीं जिसका गुनगान कर सकें, तो खाली दिमाग शैतान का अड्डा ही हो सकता है, सो हो रहा है।

                                                                                                                            

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

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