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महाराष्ट्र की लावणी कलाकार महामारी की वजह से जीवनयापन के लिए कर रहीं संघर्ष

कई लावणी कलाकारों ने बताया कि वह निजी लेनदारों से क़र्ज़ा लेकर घर चला रही हैं।
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लता परालिकर(दायें) अपने ग्रुप के दो लोगों के साथ। तस्वीर : अमय तिरोडकर

जमखेड़(अहमदनगर) : लावणी- संगीत और नृत्य की एक लोक कला जो 600 साल पुरानी है, मराठी संस्कृति में बहुत अहम है। मगर पिछले कुछ सालों में राज्य की लावणी कलाकारों को मिलने वाली स्पॉटलाइट और उनके ग्लैमर में कमी आई है।

जामखेड़, अहमदनगर की पुरस्कार विजेता लावणी कलाकार 48 साल की लता पारिलकर कहती हैं कि वह दर्शकों का इंतज़ार करती-करती थक गई हैं। मराठवाड़ा की एक सर्द रात को 2 बजे उन्होंने अपनी साथी कलाकारों को पैक-अप करने को कह दिया, जब उन्हें एहसास हो गया कि कोई उनकी परफॉर्मेंस को देखने नहीं आ रहा है - एक और रात बिना बैठक हुए बीत गई।

पारिलकर ने जय अंबिका कल्चरल सेंटर, जामखेड़ में न्यूज़क्लिक से कहा, "मैंने अपनी टीम का ध्यान रखने के लिए अपने ज़ेवर बेच दिये। मगर पिछले दो सालों में हमारी कमाई गिर के 10% तक हो गई है। मैं अब क़र्ज़ में हूँ। मुझे समझ नहीं आता कि मैं उसे कब चुका पाऊँगी।

पारिलकर का 30 साल लंबा करियर है और लावणी के दर्शकों के लिए वो एक जाना माना नाम हैं। मगर अब वह अपने समूह के 8 लोगों को तंख्वाह देने के लिए भी संघर्ष कर रही हैं।

लावणी के एक ग्रुप में आम तौर पर एक हारमोनियम वादक, एक तबला वादक, एक सहायक और 3-4 महिला नृत्यकार होती हैं। पारिलकर की तरह अन्य समूह के लीडर नकद और तोहफ़े लेते हैं और उससे अपने समूह के लोगों को तंख्वाह देते हैं। एक थिएटर में ऐसे 8 से 10 समूह होते हैं जो थिएटर मालिक को किराया देते हैं।

पारिलकर ने कहा, "हम हर सिटिंग की पेमेंट थिएटर मालिक के साथ बराबर बाँटते हैं। मान लीजिये हमें एक सिटिंग/परफॉर्मेंस का 2000 रुपया मिला, हम मालिक को 1000 रुपये देते हैं। तो 8 लोगों की टीम को सिर्फ 1000 रुपये में से अपना हिस्सा मिलता है।" अगर दर्शकों ने उन्हें अतिरिक्त पैसे दिये(उनकी कला से ख़ुश हो कर), वही समूह के सदस्यों के लिए अतिरिक्त कमाई का जरिया होता है। 

पारिलकर ने कहा कि कोविड-19 से पहले, प्रत्येक टीम को प्रति रात औसतन तीन से चार बैठकें मिलती थीं। प्रत्येक नर्तक को 800-1000 रुपये मिलते थे, जबकि वादकों को कम से कम 500 रुपये मिलते थे। लावणी के चार प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र - जामखेड़ (अहमदनगर), मोदनिंब (सोलापुर) सवांगी (जालाना) और केज (बीड) - पहले संपन्न हुआ करते थे। लेकिन अब महामारी में दर्शकों की कमी के कारण कलाकारों की आय में भारी गिरावट आई है। महाराष्ट्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पूरे राज्य में लावणी केंद्रों में करीब 40,000 लोग कार्यरत हैं। उनमें से अधिकांश को कोविड-19 लॉकडाउन के कारण नुकसान उठाना पड़ा है।

दीपक कुरकुंडे लावणी कलाकार रेशमा बार्शिकर की टीम के हारमोनियम वादक हैं। वह पिछले 10 साल से हारमोनियम बजा रहे हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "2020 में कोविड-19 महामारी शुरू हुई। इससे पहले, हमने लगातार दो साल 2018 और 2019 में सूखा देखा। सूखे के वर्षों में कम बैठकें हुईं, लेकिन कोविड-19 ने पूरी तरह से बंद कर दिया। हमें करना पड़ा है। जीवित रहने में सक्षम होने के लिए निजी ऋणदाताओं से ऋण लें।”

पारिलकर ने एक निजी बैंक से 6 लाख रुपये का कर्ज भी लिया है। उन्होंने कहा, "बैंक हमें क़र्ज़ देने से इनकार करते हैं क्योंकि हमारे पास नियमित आय नहीं है। मुझे नहीं पता कि इस ऋण को चुकाने के लिए मुझे और कितने साल नाचते रहना होगा।"

उन्होंने आगे बताया कि हर रात दो से तीन घंटे घुंघरू के साथ डांस करना कोई आसान बात नहीं है। प्रत्येक घुंघरू स्ट्रैप का वजन 3-4 किलो तक हो सकता है। उन्होंने आगे कहा, "यह बहुत दर्द देता है,इससे कई बार ख़ून भी निकल जाता है। घावों को ठीक होने में कई दिन लगते हैं। लेकिन हमें जीवित रहने के लिए नृत्य करना जारी रखना है। लोग अक्सर हमें बुरा करते हैं; मगर वे हमारे संघर्षों के बारे में नहीं जानते हैं।"

महाराष्ट्र सरकार का दावा है कि वह कई पंजीकृत लावणी कलाकारों को प्रति माह 2,500 रुपये देती है। लेकिन कलाकारों को लगता है कि यह सहायता अपर्याप्त है। पारिलकर ने कहा, "लावणी थिएटर लोगों के समर्थन से ही जीवित रहेंगे। इसलिए अर्थव्यवस्था को खोलना और सभाओं पर प्रतिबंध हटाना आवश्यक है। अब, चीजें धीरे-धीरे फिर से खुल रही हैं। लेकिन हम नहीं जानते कि हम में से कितने ऐसी स्थिति में जीवित रह सकते हैं।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Lavani Artists from Maharashtra Struggle to Make Ends Meet Amid Pandemic

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