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मेरी अपनी आवाज़ में: कश्मीरियत

हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और शांति वापस लाने की दिशा में काम करना चाहिए, यही कश्मीरियत है - लाल डेड और कश्मीर की सच्ची विरासत।
kashmir
image courtesy- zubair sofi

‘मेरे सामने वाली खिड़की में 
एक चांद का टुकड़ा रहता है; 
अफसोस ये है कि वो हमसे;
कुछ उखड़ा उखड़ा रहता है.’ 
(सामने वाली खिड़की में, चांद का एक टुकड़ा रहता है, लेकिन दुख की बात है कि वह मुझसे थोड़ा नाराज़ सा रहता  है।)

हिंदी फिल्म पडोसन के इस गीत से मेरा उस वक्त स्वगात किया, जब मैं लाहौर में जानी-मानी मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्मा जहाँगीर के घर गयी थी। गायकों में खुद अस्मा जहाँगीर और उनके अन्य साथी पाकिस्तानी सामाजिक कार्यकर्ता थे, क्योंकि उन्होंने सन्‌ 2000 में लाहौर में महिला पहल के लिए दक्षिण एशिया में (WIPSA) प्रतिनिधिमंडल के अन्य सदस्यों के साथ मेरा स्वागत किया था। गांधीवादी निर्मला देशपांडे के नेतृत्व में, हमने लाहौर, इस्लामाबाद, तक्षशिला और नान्का साहिब की यात्रा की थी, और हमने बँटवारे पर एक-दूसरे के देश की कहानियों को सुना, दोस्ताना स्वागत हुआ और हमारी उत्कट अभिलाषाओं की अदला-बदली के रूप में बधाई दी गयी एक-दुसरे के देश की यात्रा की इच्छा भी जताई गयी। हर कोई शांति चाहता है, और बातों में एक दुसरे के प्रति प्यार झलकता था। वह समय लगभग एक अन्य ही युग लगता था।

26 फरवरी को, विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र में हवाई हमला किया था, और बालाकोट में आतंकी शिविर को ध्वस्त कर दिया था। उन्होंने 'गैर-सैन्य पूर्व-निर्धारित हमला' शब्द का इस्तेमाल किया था, जो कि उस आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद द्वारा चलाए जा रहे शिविर पर हमले करने के वर्णन करने के लिए किया गया है, जिसने उस आतंकवादी समूह की कश्मीर के पुलवामा में गंभीर आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी ली है, जिसमें 40 से अधिक जवान मारे गए हैं।

चूंकि भारत में कोई आतंकी शिविर मौजूद नहीं है, इसलिए हमारा मानना था कि इस हमले का कोई प्रतिशोध नहीं होगा। मैं कैसे कामना करूँ कि यह सच हो! आज, सरकार ने दावा किया है कि उसने एक पाकिस्तानी विमान को मार गिराया है, लेकिन दुर्भाग्य से एक भारतीय पायलट भी लापता है। पाकिस्तान का दावा है कि वह उनकी हिरासत में है। हम उसकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। हिंसा का दायरा बढ़ेगा, और यह मत भूलिए कि दोनों देशों के पास परमाणु बम हैं! इस बीच, पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने बातचीत के लिए कहा है; सौम्य पाठकगण, बस किसी तरह से युद्ध को रोकने के लिए, पुरी तरह तैयार हूँ! टेलीविज़न की बहसों में मजबूत दृष्टिकोण पर एक विवाद है और बीजेपी ने कोने-कोने के चुनावों के मद्देनज़र चुनावी लाभ के लिए इसका पूरा फायदा उठाया है।


लेकिन एक कदम पीछे हटिए और खुद से पूछिए। क्या कभी कश्मीर समस्या का सैन्य समाधान किया जा सकता है? यदि ऐसा है, तो पहले युद्ध में, जब महाराजा हरि सिंह ने 1947 में भारत में प्रवेश पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, तो आदिवासी समूहों ने कश्मीर के पश्चिमी भाग पर लड़ाई नहीं की होती और न ही कब्जा किया होता। एक कश्मीरी युवक ने "1947 से एके 47 तक" पर चुटकी लेते हुआ कहा। लेकिन लंबे समय तक जारी संघर्ष से  वास्तविक अर्थ में, कश्मीरी युवाओं ने उनकी अपनी असली आज़ादी (स्वतंत्रता) को क्रूर उग्रवाद और सेना की चल रही उपस्थिति दोनों ने तबाह कर दिया है। कश्मीरी युवाओं के बीच अलगाव की भावना चिंता की बात है, और 168 युवाओं को अंधाधुंध छर्रों के जरी अंधा बना देना – वह भी सुरक्षा बलों की गोली बंदूकों द्वारा - जैसा कि उनके पथराव करने के जवाब में किया गया, एक विचलित करने वाला क्षण था।

पाकिस्तान के पास एक ऐसी सेना है जो भारत को एक हज़ार जगहों से खून बहाना चहती है 'और यही आतंकवाद करता है। हमें नहीं पता कि यह कब और कहां पर हमला करेगा, और इस तरह के हमले शांति, सुरक्षा और मुक्त गतिशीलता को लोगों को आंतरिक तौर पर मुक्त रहने की भावना को दूर ले जाता है।
दक्षिण एशिया, सिंधु घाटी सभ्यता का ख़जाना है - दुनिया की सबसे प्रारंभिक सभ्यताओं में से एक है – इसे हमेशा के लिए संघर्ष के मैदान में उतरने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। जबकि यूरोप एक मुद्रा और एक पासपोर्ट उपयोग करने की तरफ बढ़ रहा है, तो हम ऐसे में संभवतः कांटेदार तारों को स्थापित नहीं कर सकते हैं और सीमाओं पर रक्त नहीं बहा सकते हैं।

सबसे जरूरी चीज युद्ध को रोकना है, और शांति बनाए रखना है। इसके लिए हमें अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना चाहिए; संयुक्त राष्ट्र और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल आतंकवाद को आर्थिक सहायता देने के लिए किसी भी देश को ब्लैकलिस्ट कर सकता है। आइए हम सभी देशों से समर्थन प्राप्त करने के लिए अपने राजनयिक चैनलों का उपयोग करें, फिर नियंत्रण रेखा का पालन करने के लिए वार्ता को फिर से शुरू करें। यदि बर्लिन की दीवार को ध्वस्त किया जा सकता है, तो कोई कारण नहीं है कि कश्मीरी लोगों की सद्भावना सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष का एक सौहार्दपूर्ण समाधान नहीं खोजा जा सकता है।

कश्मीर ऐतिहासिक रूप से सूफीवाद का देश रहा है, जो प्रेम और मानवता पर आधारित है। बहती नदियों और प्राचीन जंगलों के साथ स्वर्ग की इस भूमि में, लल्लेश्वरी (1320 -1392) का जन्म हुआ, जो घर में ही शिक्षित हुई थीं, और उनकी शादी पंपोर में एक ब्राह्मण परिवार में हुई थी। जब वह पानी इकट्ठा करने के लिए नदी के तट पर जाती थी, तब वह प्रार्थना करने के लिए नौका से नट केशव भैरव मंदिर जाती थी। उस पर बेवफाई का झूठा आरोप लगाया गया था, और उसकी सास और यहाँ तक कि उसके पति ने भी क्रूरता का व्यवहार किया था। उसने घर छोड़ दिया और एक भटकने वाली भाट बन गई, जिसमें 'वाक्स' की रचना की और जिसका शाब्दिक अर्थ है भाषण।

उन्हौने लिखा:
‘मैंने खुद को पहना, खुद को ढूंढा 
संहिता को तोड़ने के लिए कोई भी इतनी कड़ी मेहनत नहीं कर सकता था।
मैंने खुद को खो दिया और एक शराब के तहखाने में, अमृत पाया, मैं आपको बताती हूं।
अच्छे सामान से भरे जार ही जार थे वहां और इन्हे पीने के लिए कोई नहीं था। '
कश्मीरी में उनकी कविताओं ने संस्कृत के कब्ज़े को तोड़ दिया।
 मूर्ति केवल एक पत्थर है
मंदिर पत्थर का है,
ऊपर से नीचे तक सब पत्थर है,
आप किसकी पूजा करेंगे,
हे जिद्दी पंडित? '


उसने अपनी कविता और प्रेम के माध्यम से  साथ दमनकारी ब्राह्मणवादी संरचनाओं का गला को तोड़ दिया था, और यह वही है जो अंत तक चला है। भारत के लोगों के इतिहास को बंदूक चलाने वाले सम्राटों से नहीं, बल्कि उसके कवियों, घुमक्कड संतों और शास्त्रों द्वारा जाना जाता है।
इस बार, हमें कश्मीरी लोगों की आवाज को गहरे प्रेम से सुनने की जरूरत है। हमें युद्ध नहीं शांति की जरूरत है। हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और शांति लाने की दिशा में काम करना चाहिए, यही कश्मीरियत है - लाल डेड और कश्मीर की सच्ची विरासत।
‘मेरे सामने वाली खिड़की में 
एक चांद का टुकड़ा रहता है...

लेखक एक पुरस्कार विजेता लेखक और फिल्म निर्देशक हैं।
 

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