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#महाराष्ट्र_सूखाः हज़ारों किसान ऋण माफ़ी योजना से मदद का कर रहे हैं इंतज़ार

महाराष्ट्र सरकार द्वारा महत्वाकांक्षी ऋण माफ़ी योजना के शुरू होने के दो साल बाद भी सूखे से प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र के कई हज़ार किसान अभी भी अपने ऋण माफ़ होने का इंतज़ार कर रहे हैं।
#महाराष्ट्र_सूखाः हज़ारों किसान ऋण माफ़ी योजना से मदद का कर रहे हैं इंतज़ार

[वर्ष 1972 के बाद से महाराष्ट्र कई बार सूखे की मार झेल चुका है लेकिन इस बार ये राज्य सबसे ज़्यादा प्रभावित है। राज्य सरकार ने 350 में से 180 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। पूरा मराठवाड़ा (दक्षिणी और पूर्वी महाराष्ट्र का क्षेत्र) क्षेत्र अब बेहद ख़तरनाक स्थिति में है। न्यूज़क्लिक द्वारा ग्राउंड रिपोर्ट की श्रृंखला का यह अगला भाग है।]


महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने 24 जून 2017 को भारत के इतिहास में सबसे बड़ी कृषि ऋण माफ़ी योजना की घोषणा की। इसके लिए उन्होंने क़रीब 34,044 करोड़ रुपये की घोषणा की। इसका नाम 'छत्रपति शिवाजी महाराज शेतकरी सम्मान योजना' रखा गया था। उन्होंने दावा किया कि 5 एकड़ से कम भूमि वाले राज्य के लगभग सभी किसानों को इस योजना के तहत कवर किया जाएगा। इस योजना के तहत किसानों के डेढ़ लाख रुपये तक के क़र्ज़ को माफ़ करना था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के कुछ ही हफ़्तों के भीतर किसान क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा के बाद यह दूसरी ऋण माफ़ी योजना की घोषणा की थी।

किसानों की ऐतिहासिक हड़ताल के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणा ने मुख्यमंत्री फडणवीस को महाराष्ट्र में इसी तरह की ऋण माफ़ी योजना की घोषणा करने के लिए मजबूर किया।

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इस योजना को शुरू हुए लगभग दो साल हो गए हैं। हालांकि धरातल पर इस योजना के कार्यान्वयन में कई खामियाँ हैं।

विनोद भाऊराव जगदाले उस्मानाबाद ज़िले में भूम तहसील के हिवरा गांव के रहने वाले हैं। उनके पास तीन एकड़ ज़मीन है। उन पर भारतीय स्टेट बैंक और ज़िला सहकारी बैंक का ऋण लगभग 60,000 रुपये है। उन्होंने ऋण माफ़ी योजना के लिए आवेदन किया था लेकिन अब तक उन्हें कोई राशि नहीं मिली है।

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(निलंगा के सवनगिरा गांव में मौजूद किसान)

निलंगा तहसील के मुगाव ग्राम के संदीपन शंकरराव कावाले के पास पांच एकड़ ज़मीन है। उन पर एसबीआई का 65,000 रुपये ऋण है। लेकिन उन्हें भी इस योजना का लाभ नहीं मिला है।

निलंगा के सावंगिरा ग्राम के पंडित तुकाराम जाधव पर 50,000 रुपये का क़र्ज़ है। लेकिन जाधव भी उन हज़ारों किसानों में शामिल हैं जिनके ऋण अब तक माफ़ नहीं किए गए हैं।

राज्य सरकार की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार इस ऋण माफ़ी योजना ने अब तक 17,000 करोड़ रुपये के ऋण को चुका दिया गया है। मुख्यमंत्री फडणवीस ने हाल ही में कहा कि "जब तक हर एक किसान को लाभ नहीं मिल जाता है तब तक हम इस योजना को बंद नहीं करेंगे।" लेकिन इस हक़ीक़त का दूसरा पहलू यह है कि महाराष्ट्र सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है।

राज्य सरकार ने 350 में से 180 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। यह ऐसा समय है जब किसानों को ख़रीफ़ फ़सलों में उनके निवेश का रिटर्न नहीं मिल पाया है। इनमें से कई पहले से ही क़र्ज़ की मार झेल रहे हैं। और सूखे के कारण मौजूदा ऋण को अदा करने में विफ़ल होने से उन पर क़र्ज़ का दबाव और बढ़ेगा। दूसरे शब्दों में इस ऋण माफ़ी योजना का धीमी रफ़्तार से कार्यान्वयन किसानों को गंभीर सूखे से निपटने और अगले मौसम में फसल की बुआई करने में मददगार नहीं है।

मुगाव ग्राम के गोविंद सोमवंशी कहते हैं, “अगर इस सरकार ने अब तक हमारे ऋणों को चुका दिया होता तो आज हमें कम तनाव होता। हम तहसील में कृषि अधिकारियों के पास जाते रहते हैं। लेकिन वे हमें इंतज़ार करने के लिए कहते हैं। हमें कितना समय इंतज़ार करना चाहिए? यह ऋण माफ़ी योजना का दूसरा वर्ष है।”

दूसरी ओर महाराष्ट्र सरकार ने 'शेतकरी कल्याण’ (किसानों के कल्याण) के कई विज्ञापन दिए हैं जिनमें ऋण माफ़ी योजना के लाभ शामिल हैं। टेलीविज़न चैनलों या समाचार पत्रों के उन विज्ञापनों के बारे में पूछे जाने पर किसान इसे धोखा बताते हैं। हिवरा ग्राम के निशिकांत गरद कहते हैं, “सरकार हमसे झूठ बोल रही है। हो सकता है कि इसने अन्य किसानों का क़र्ज़ माफ़ कर दिया हो। लेकिन कई किसान ऐसे हैं जो अभी भी इंतज़ार कर रहे हैं।”

क़रीब क़रीब सभी विपक्षी दल और किसान संगठन कुछ निश्चित राशि तक के ऋण के लिए 'कार्पेट ऋण माफ़ी’ की मांग कर रहे हैं। हालांकि महाराष्ट्र सरकार की ऋण माफ़ी योजना को लागू करने की रफ़्तार उसके द्वारा लगाई गई कई शर्तों के कारण धीमी रही है। महाराष्ट्र में अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव डॉ अजीत नवाले कहते हैं, “चल रही ऋण माफ़ी योजना पूरी तरह से अपर्याप्त है। हम शुरू से मांग कर रहे हैं कि ऋण की ऊपरी सीमा के बावजूद यह योजना सभी किसानों पर लागू होनी चाहिए। लेकिन इस सरकार ने हमारी मांग को नज़रअंदाज़ कर दिया और इसके क्रियान्वयन की विफ़लता हम सभी के सामने है।”

सूखाग्रस्त इलाक़े का दौरा करते हुए न्यूज़क्लिक ने आठ में से छह ज़िलों के किसानों से मुलाक़ात की। सबसे दिलचस्प यह है कि इलाक़े के लगभग सभी किसानों ने इस ऋण माफ़ी योजना को लेकर टिप्पणी की। उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि वे ये ऋण माफ़ी योजना नहीं चाहते हैं अगर उन्हें उनकी फसलों की पर्याप्त क़ीमत दी जाए।

सबसे बड़ी मांग जो सामने आई है वह ये है कि सरकार को स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को वास्तव में लागू करना चाहिए। अगर किसानों को अच्छी क़ीमतें दी जाती हैं तो वे अन्य सभी बाधाओं से पार पा सकते हैं। 

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