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बढ़ती हिंसा और सीबीआई के हस्तक्षेप के चलते मुश्किल में ममता और तृणमूल कांग्रेस

बढ़ती राजनीतिक हिंसा और इसमें ममता की पार्टी कई सदस्यों के शामिल होने के चलते, कोलकाता हाईकोर्ट ज़्यादा से ज़्यादा मामलों को सीबीआई को भेज रहा है।
Mamata
Image Courtesy: ANI

अक्सर होने वाली राजनीतिक हिंसाओं और दूसरे गंभीर अपराधों, जिनमें अक्सर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता ही आरोपी होते हैं, इनके चलते मुख्यमंत्री और पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए चिंताजनक स्थिति बन गई है। यह स्थिति तब और भी बदतर होती जा रही है, जब पीड़ितों के रिश्तेदार राज्य की पुलिस के प्रति अविश्वास जाहिर कर रहे हैं और कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।

प्रशासन और पार्टी के मामलों में तानाशाही भरा रवैया अपनाने वाली ममता बनर्जी अब बुरे तरीके से फंसा हुआ महसूस कर रही हैं, क्योंकि कई घटनाओं में उनकी पुलिस की संलिप्त्ता होने के बारे में विश्वास किया जा रहा है। हाल के मामलों में जो गलत व्यवहार सामने आया है, उसमें कई बार टीएमसी के पार्टी कार्यकर्ता भी शामिल रहे हैं।

इन स्थितियों में कोलकाता हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई जांच के आदेश दिए जाने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। कुछ मामलों में हाईकोर्ट ने यहां तक कहा है कि राज्य सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) जांच से पूरी तरह दूर रहें और सिर्फ़ सीबीआई द्वारा मांगे गए सहयोग को उपलब्ध कराएं।

ऊपर से एक ऐसे वक्त में जब सरकारी की कमियां और खामियां चर्चा का विषय बनी हुई हैं, तब उनकी पार्टी की आंतरिक दरारें और सामने आने लगी हैं। बोगतुई नरसंहार के कुछ दिन बाद बेहद विवादित टीएमसी जिलाध्यक्ष अनुब्रत मंडल और रामपुरहट के विधायक आशीष बनर्जी के बीच जुबानी जंग छिड़ गई। बनर्जी बंगाल विधानसभा में उपाध्यक्ष भी हैं। यह बहस ब्लॉक स्तर के टीएमसी नेता अनारुल हुसैन के किरदार को लेकर छिड़ी है। लोगों का आरोप है कि जब उन्होंने अनारुल हुसैन से पुलिस को बुलाने के लिए मदद मांगी, तो उन्होंने चुप्पी बनाए रखी। नाराज़ पार्टी नेताओं द्वारा सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराज़गी जाहिर करना इन दिनों आम हो चुका है।

व्यक्तिगत स्तर पर ममता बनर्जी कुछ घटनाओं को हल्का बता रही हैं, जबकि इन घटनाओं के चलते जनता में बड़ी नाराज़गी बढ़ी और कड़ी प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने दावा किया है कि पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति कई दूसरे राज्यों से बेहतर है और विपक्ष राज्य को बदनाम करने की साजिश कर रहा है। ममता के दुखों की इस सूची में हाल में यह जुड़े हैं: विपक्ष उनके औद्योगिकीकरण की कोशिशों को नाकाम करने की पूरी कोशिश कर रहा है, जबकि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया गैर-जिम्मेदार ढंग से बर्ताव कर रहा है। दूसरे बिंदु को विस्तार देते हुए ममता कहती हैं कि उन्होंने कॉरपोरेट को मीडिया को विज्ञापन के ज़रिए समर्थन ना देन के लिए कहा था; इसके बजाए अपने उत्पादों और सेवाओं के विज्ञापन के लिए कॉरपोरेट को होर्डिंग और दूसरे बाहरी विकल्प अपनाने चाहिए।

1 अप्रैल को न्यू टॉउन की अलियाह यूनिवर्सिटी में एक घटना हुई, जिसमें पीएचडी की सूची को लेकर वाइस चांसलर महम्मद अली के साथ पूर्व छात्र ग्यासु्द्दीन मंडल के नेतृत्व में कुछ छात्रों के समूह ने गलत व्यवहार और धक्का-मुक्की की। इसका संदर्भ देते हुए 1 अप्रैल को मुख्यमंत्री ने नबाना में कहा, "अलियाह में छात्रों की कुछ समस्याएं थीं, एक छात्र ने वाइस चांसलर के खिलाफ़ कुछ गलत भाषा का उपयोग किया, उसे गिरफ़्तार कर लिया गया है।

उनकी टिप्पणी पर बहुत बवंडर छाया। वेस्ट बंगाल कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन, कलकत्ता विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन और जादवपुर विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन के साथ-साथ रबींद्र भारती शिक्षक संगठन के मंच तले बड़ी संख्या में शैक्षणिक क्षेत्र से संबंधित लोगों ने उनकी आलोचना की। उन्होंने पूछा, "उनकी टिप्पणी से अराजक छात्रों को बढ़ावा मिलता है। हमने देखा कि कैसे टीवी कैमरा के सामने वीसी का सब्र टूटा। एक शिक्षक के लिए इससे ज़्यादा अपमानजनक और क्या हो सकता है?" अलियाह यूनिवर्सिटी की घटना पर नाराज़गी जताते हुए शिक्षकों ने आगे कहा जिन छात्र नेताओं पर शिक्षकों के खिलाफ़ अत्याचारों का दोष है, उन्हें कॉलेजों की प्रशासनिक संस्थाओं में नामित किया जाता है।

गंभीर अपराधों को मुख्यमंत्री द्वारा हल्का बताने की दूसरी घटना, 4 अप्रैल को नाडा जिले के हांसखली में नौंवी कक्षा की छात्रा के साथ गैंगरेप के बाद, उसकी मौत से जुड़ी है। टीएमसी नेता समर गयाली का बेटे सुहैल गयाली को उसके दोस्तों के साथ मामले में गिरफ़्तार किया गया है। पीड़ित परिवार का दावा है कि उन्हें बिना ऑटोप्सी के शव का दाह संस्कार करने के लिए मजबूर किया गया, टीएमसी नेता के दबाव के चलते उन्हें मृत्यु प्रमाणपत्र भी नहीं उपलब्ध कराया गया। इस घटना की बात करते हुए सीएम ने कहा, "मैंने पुलिस से पूछा कि आप इसको क्या कह सकते हैं- रेप, गर्भधारण या प्रेम प्रसंग... यह एक छोटी घटना थी; मैं ऐसी घटनाओं को पसंद नहीं करती, लेकिन फिर भी ऐसी घटनाएं होती हैं। टीवी पर लगातार यह दिखाया गया। जब उन्हें इस घटना का पता चला, तो उन्होंने क्यों पुलिस को इसकी सूचना नहीं दी?"

जनता के बड़े हिस्से ने ममता की टिप्पणियों को असंवेदनशील बताया। अब सबसे तीव्र टिप्पणी नई दिल्ली में 2012 में गैंगरेप के बाद जान गंवाने वाली निर्भया की मां आशा देवी की तरफ से आया. उन्होंने कहा, "अगर एक पीड़ित लड़की के बारे में वे ऐसा बयान देती हैं, तो वे मुख्यमंत्री पद पर रहने लायक नहीं हैं। जो भी व्यक्ति मुख्यमंत्री के पद पर होता है, खासतौर पर महिला को तो ऐसी टिप्पणी शोभा नहीं देती."

कोलकाता की डिवीज़न बेंच ने इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया। कोर्ट ने कहा है कि वो पूरी प्रक्रिया पर निगरानी रखेगा और सीबीआई से समय-समय पर मामले में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। पश्चिम बंगाल सीपीआई (एम) के सचिव मोहम्मद सलीम ने ममता की टिप्पणियों को अंसवेदनशील बताते हुए कहा कि यह "बंगाल का यूपीकरण" है।

बोगतुई मामले को 25 मार्च को सीबीआई को सौंपे जाने से पहले, सीबीआई; 80 अवैधानिक वित्तीय कंपनियों की जांच कर रही है, जिसमें सारदा और रोज़ वैली भी शामिल हैं; जनेश्वरी एक्सप्रेस दुर्घटना में पीड़ितों के रिश्तेदारों को नौकरी देने में हुए भ्रष्टाचार; नारदा स्टिंग ऑपरेशन; अवैध कोयला लेनदेन; बांग्लादेश में अवैध ढंग से पशुओं की तस्करी और 2021 के चुनाव के बाद हुई हिंसा की जांच कर रही थी। 25 मार्च के सीबीआई को झालदा (पुरुलिया) कांग्रेस पार्षद तपन कांडू का मामला (4 अप्रैल को), भाडू शेख की हत्या (बोगतुई से संबंधित, 8 अप्रैल को आदेशित), निरंजन बैश्नब (कांडू केस से संबंधित, 12 अप्रैल को आदेशित), नादिया में हांसखली गैंगरेप (12 अप्रैल को आदेशित) और राज्य शिक्षा कर्मचारी आयोग ग्रुप-डी व ग्रुप-सी कर्मचारियों की भर्ती में हुई अनियमित्ताओं की जांच सौंपी गई। भर्ती में अनियमित्ताओं के मामले को सीबीआई को सौंपे जाने का आदेश मार्च में एक जज वाली बेंच ने दिया था और शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी को सीबीआई के पास 13 मार्च को साढ़े पांच बजे तक हाजिर होने के लिए कहा, लेकिन बाद में एक डिवीज़न बेंच द्वारा इस आदेश पर उसी दिन रोक लगा दी गई।

एकमात्र जिस चर्चित केस पर एसआईटी काम कर रही है, वह छात्र कार्यकर्ता अनीस खान का है, जिनकी हावड़ा जिले के आमटा में संदिग्ध स्थितियों में मौत हो गई थी। उनकी हत्या में भी पुलिस भूमिका पर सवाल उठे हैं। लेकिन उनके परिवार ने अबतक सीबीआई जांच की मांग नहीं की है।

जब हमने सीपीआई (एम) नेता और राज्यसभा सांसद बिकास रंजन भट्टाचार्य से पूछा कि संवेदनशील बोगतुई केस को सीबीआई कैसे ले रही है, तो उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि एजेंसी को अतिरिक्त सावधानी रखनी पड़ रही है, क्योंकि उसे पारिस्थिजन्य सबूतों और बातचीत के आधार पर काम करना है, क्योंकि यहां कोई "डॉक्यूमेंटरी एविडेंस (दस्तावेजी साक्ष्य)" मौजूद नहीं है। भट्टाचार्य मशहूर वकील भी हैं, उन्होंने कहा, "हम नज़र बनाए हुए हैं; इस वक्त हमारी तरफ से कार्रवाई की कोई जरूरत नहीं है।"

नागरिक समाज का वह वर्ग, जो मूलत: वामपंथ समर्थक था, लेकिन 2011 में ममता बनर्जी की जीत के बाद उनके खेम में चला गया, उसके लिए हाल की राजनीतिक हिंसा, दूसरे अपराध और टीएमसी छात्रों द्वारा बड़े पैमाने पर अनुशासहीनता परेशान करने वाली रही है। इनमें से कुछ ने इन घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण और हैरान करने वाला बताया है। लेकिन दिलचस्प ढंग से उन्होंने यह भी कहा कि ममता बनर्जी दक्षिणपंथी राजनीतिक धड़े का चेहरा बनती जा रही हैं। उन्हें ज़्यादा ध्यान रखना चाहिए।

इन नागरिक समूहों ने वाम मोर्चे की सरकार के वक़्त नंदीग्राम और सिंगूर के बाद सड़कों पर प्रदर्शन किया था। बिकास रंजन भट्टाचार्य से जब हमने इस बिंदु पर टिप्पणी करने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा, "उनकी हिम्मत नहीं है कि इस सत्ता में हो रहे अत्याचारों और अन्याय के खिलाफ़ सामने आकर विरोध करें। वे डरे हुए हैं; आप उनके शब्दों से यह समझ सकते हैं।"

वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद प्रोफ़ेसर प्रदीप भट्टाचार्य ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके पास ऐसा मानने की वज़ह मौजूद हैं कि इन नागरिक समूहों को लोग अब मौजूदा सत्ता से दूरी बनाना चाह रहे हैं; यह उनकी तरफ से बुद्धिमत्ता भरा कदम है। "ममता बनर्जी ने उदारवादी पुरस्कारों और कार्यों की योजना से उन्हें अपने पाले में मिलाया था। उन्होंने नहीं सोचा था कि वे एक बेहद भ्रष्ट सत्ता की प्रमुख बन जाएंगी।"

पश्चिम बंगा गणतांत्रिक लेखक शिल्पी संघ के महासचिव रजत बंधोपाध्याय का मानना है कि नागरिक समाज के इस वर्ग ने मार्च 2021-22 से हो रहे इन घृणित अपराधों की कोई निंदा नहीं की है। इसलिए उन्हें शांति हासिल ना होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। बंदोपाध्याय जादवपुर विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार भी हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि विश्व रंगमंच दिवस, 27 मार्च के दिन कुछ वामपंथी और लोकतांत्रिक संगठनों ने साथ आकर (जो उनकी चलती आ रही परंपरा से अलग है) सबसे पहले तो बोगतुई नरसंहार के खिलाफ़ प्रतिरोध बैठक बुलाई और उसके बाद रैली निकाली। यह रैली बाकी के कार्यक्रम के लिए तय की गई जगह पर जाकर खत्म हुई। बंदोपाध्याय के संगठन द्वारा समन्वित इस रैली को कई लोगों ने संबोधित किया, जिनमें एशियाटिक सोसायटी के अध्यक्ष पल्लब सेनगुप्ता, थिएटर कलाकार असित बसु और वो खुद भी शामिल थे।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Mamata, TMC in Tight Spot With Rising Violence and CBI Stepping in

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