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मणिपुरः राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम लागू करने में सामने आई कई ख़ामियाँ

सीएजी की रिपोर्ट में 2.97 करोड़ की अनियमितताओं का हुआ खुलासा। ये रिपोर्ट 23 जुलाई को पेश की गई थी।

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भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजीकी एक रिपोर्ट ने मणिपुर में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपीके कार्यान्वयन में अनियमितताओं का खुलासा किया है। सीएजी ने साल 2012 से 2017 तक की अवधि में एनआरडीडब्ल्यूपी को लागू करने में करोड़ के हेर फेर को उजागर किया था। ये रिपोर्ट 23 जुलाई को पेश की गई थी।

इस रिपोर्ट के अनुसार पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट (पीएचईडीपेयजल योजनाओं को निष्पादन करने वाली प्राथमिक एजेंसी है। पीएचईडी के मुख्य तथा अतिरिक्त मुख्य सचिव के अधीन राज्य जल तथा स्वच्छता मिशन (एसडब्ल्यूएसएमकाम करता है। नियमों के मुताबिक़ एसडब्ल्यूएसएम की सर्वोच्च समिति साल में कम से कम दो बार बैठक करना चाहिएहालांकि मणिपुर के मामले में इस समिति ने साल में एक बार ही बैठक की जबकि वित्तीय वर्ष 2013-2014 में कोई बैठक नहीं हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार अन्य कार्यान्वयन प्रक्रिया में ऐसी ही स्थिति पाई गई है। अगर बैठक नियमित रूप से नहीं की जाती है तो योजना के सफल होने पर किसी को कैसे पता चलेगा?

पीएचईडी की योजना राज्य तकनीकी एजेंसी (एसटीए) - में समस्या निवारण अंतर को लेकर इस एजेंसी को काम सौंपा गया था जो कभी गठित नहीं की गई। हालांकि पीएचईडी ने कहा कि विभाग के भीतर मौजूद बड़ी संख्या में योग्य लोगों की वजह से उसने एसटीए का गठन कभी नहीं कियासीएजी ने उसके तर्क को स्वीकार नहीं किया। पीएचईडी ने योजना को लागू करने के लिए योजना तैयार नहीं की थी।

जहां तक वित्तीय अनियमितताओं का सवाल है सीएजी को 2.97 करोड़ रुपए के ख़र्च पर शक था। राज्य के सेनापति और चुराचंदपुर ज़़िलों में पाइप के लिए 41.61लाख रूपए का किया गया भुगतान अवितरित पाया गया था। जो काम पूरे नहीं हुए उसके लिए 42.68 लाख रुपए का भुगतान पहले ही किए जा चुके हैं। इस तरह टोपोकपी और नोंगमाखोंग गांव के लोगों को पीने के पानी से वंचित कर दिया गया था। थौबल डिवीजन के पीएचई को साल 2010 में लैंगमेडोंग को पानी उपलब्ध कराने के लिए टेंडर दिया गया था। ये टेंडर 48.8 9 लाख रूपए का था और बताया गया कि साल 2013 में ये काम भी पूरा हो गया था। साल 2016 में इस काम के लिए ठेकेदार को 47.68 लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया था। हालांकिसीएजी ने पाया कि पाइपलाइन आदि डालने के लिए साल 2012 और 2015 के बीच एक अन्य ठेकेदार को अतिरिक्त ख़र्च के लिए 18.44 लाख रूपए का भुगतान किया गया था। मौक़े की जांच में पाया गया कि वास्तव में काम पूरा ही नहीं हुआ था और सीएजी को इन पाइपों के बिछाने का कोई सबूत ही नहीं मिला।

साल 2013 और 2015 के बीच इस विभाग ने केकमाई में एक टैंक को पुनरूद्धार करने का प्रयास किया जिसे छोड़ दिया गया था। इस विभाग ने 5.17 लाख रुपए पाइप बिछाने के साथ-साथ चौकीदार कार्वार्टर पर भी ख़र्च किया। सीएजी के स्थानों की जांच में पाया कि उक्त जगह अभी भी वैसी ही है और इस बात का कोई सबूत नहीं था कि यहां काम का किया गया था।

इस रिपोर्ट में एक विचित्र मामले पर प्रकाश डाला गया जिसमें एक ठेकेदार ने काम की अनुमानित लागत से अधिक लागत का ख़र्च किया और किए गए काम के क़ीमत से कम भुगतान किया गया। साल 2010 में थौबल डिवीजन के पीएचई ने बित्रा के लिए पेयजल योजना शुरू की थी। अनुमानित लागत 12.88लाख रुपए था। ठेकेदार को इस काम के लिए 13.23 लाख रूपए का भुगतान किया गया जबकि इसकी लागत 13.92 लाख रूपए थी। हालांकि वास्तव में ये काम पूरा नहीं हुआ था।

सेनापति ज़िले के कंगपोक्की डिवीजन के पीएचई ने पाइप बिछाने और निर्माण सामग्री खरीदने के लिए 43.02 लाख रूपए ख़र्च कर दिया। इस योजना के ज़रिए227 सरकारी स्कूलों और 108 आंगनवाड़ी केंद्रों को पेयजल मुहैया कराना था। टेंडर आमंत्रित किए बिना ये काम दो गैर-सरकारी संगठनों और चार ठेकेदारों के माध्यम से कराया गया था। सीएजी ने पाया कि इस अनियमितता के अलावा इस योजना के निष्पादन या किए गए भुगतान को लेकर कोई दस्तावेज़ दिखाने को नहीं था।

इसी तरह की घटनाएं थौबल में हुई थी। पीएचई ने 100 आंगनवाड़ी केंद्रों को पेयजल मुहैया कराने के लिए साल 2013 में 19 .69 लाख रुपए का काम शुरू किया था। यह दिखाया गया कि ये काम को उसी साल पूरा हो गया। हालांकिसीएजी को प्रदान किए गए डेटाबेस से पता चला कि थौबल में केवल 72 आंगनवाड़ी केंद्र थे।

सीएजी ने यह भी दर्ज किया कि इस कार्यक्रम के तहत शामिल न किए जाने वाले ख़र्च को इस पर लगाया गया। कार्यालय के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ख़र्च किए गए 16.38 लाख रूपए का भार चुराचंदपुर पीएचई ने उठाया। ये कार्यक्रम प्रयोगशालाओं के निर्माण के लिए ख़र्च करने की अनुमति नहीं देता है। हालांकि,लंफेलपत में विभागीय प्रयोगशालाओं के निर्माण के लिए 10 लाख रूपए लगा दिए गए। बिष्णूपुर पीएचई डिवीजन ने एक कॉन्फ्रेंस हॉल बनाने के लिए 12.34 लाख लगा दिया। ये ख़र्च कॉन्फ्रेंस माइक्रोफोनएलईडी टीवीमोबाइल फोनअलमिराह और टेबल खरीदने के लिए किए गए। थौबल पीएचई डिवीजन ने दो वाहनों को ख़रीदने के लिए 27.15 लाख ख़र्च किए। पीएचईडी मंत्री को एक वाहन जारी किया गया था और दूसरा वाहन पीएचईडी के चीफ इंजीनियर को जारी किया गया था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएचईडी ने हेड ऑफ सस्टेनेबिलिटी के तहत स्कूलों और आंगनवाड़ी के लिए वर्षा जल संचयन प्रणाली स्थापित किया था। स्टोरेज टैंक300, 500, और 1000 लीटर वाले मुहैया कराए गए थे। सीएजी ने इसे अनसस्सटेनेबेल पाया।

चिंताजनक बात यह भी थी कि सहायक गतिविधियों के संदर्भ में ये कार्यक्रम अव्यवस्थित था। जल की गुणवत्ता और इस कार्यक्रम के निगरानी पहलू में स्टाफ की कमी थी साथ ही बुनियादी ढ़ांचे नहीं थे। राज्य प्रयोगशाला में क्षमता से कम स्टाफ थें। स्वीकृत चौदह पदों में केवल सात पदों पर ही स्टाफ थें। इसके अलावा जांच किए जाने वाले 78 मापदंडों में से उक्त प्रयोगशाला ने केवल 14 का ही जांच किया।

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उपरोक्त तालिका ज़िला प्रयोगशालाओं में कामकाज की स्थिति को बयां करती है। किसी भी ज़िला प्रयोगशालाओं में स्वीकृत क्षमता के अनुसार काम नहीं हो रहा है। आधे से अधिक प्रयोगशालाओं में आधी क्षमता या उससे कम से काम हो रहा है। यह कल्पना करना मुश्किल होगा कि ये प्रयोगशालाएं रोगजनकों की पहचान करने में सक्षम हैं।

एनआरडीडब्ल्यूपी के कार्यान्वयन की स्थिति अनावश्यक ख़र्च के लिए अपना रास्ता बनाने के परिणामस्वरूप हो सकती है। यह योजना की कमी का एक प्राकृतिक परिणाम भी हो सकता है। स्पष्ट है कि इन सभी बड़े योजनाओं के लाभार्थियों को कुछ ही पीने का पानी मिल पाता है। हालांकिजिनके पास पहुंच है वे बहुत मुश्किल से हासिल कर रहे हैंक्योंकि परीक्षण की प्रयोगशालाओं में स्टाफ की कमी है और बेहतर उपकरण नहीं हैं। क्या राज्य सरकार कोई कार्रवाई करेगी या कम से कम इस रिपोर्ट का संज्ञान लेगी जिसपर ग़ौर करना अभी बाकी है।

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