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मोदी और ट्रम्प ही नहीं, इनके विरोध में खड़े लोग भी एक से हैं

भारत से लेकर न्यूयार्क तक में जो लोग इन दोनों नेताओं की दमनकारी नीतियों के ख़िलाफ़ उतरे—उनकी चिंताएं, उनके स्वर तकरीबन एक से थे।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में जो समानताएं हैं, वे सिर्फ इस देश में रहने वालों को ही नहीं, अमेरिकी नागरिकों सहित दुनिया के कई देशों के वासियों को अचम्भित करती हैं। ये समानता इन दोनों ने ख़िलाफ़ होने वाले प्रदर्शनों में साफ़ दिखाई देती है। ट्रम्प और मोदी दोनों को विरुद्ध फासिस्ट, एंटी माइनॉरिटी, संविधान-विरोधी, विरोधियों का दमन करने वाले पोस्टरों की भरमार दिखाई देती है। भारत से लेकर न्यूयार्क तक में जो लोग इन दोनों नेताओं की दमनकारी नीतियों के ख़िलाफ़ उतरे—उनकी चिंताएं, उनके स्वर तकरीबन एक से थे। विरोध में उतरी जमात की इस समानता पर बात बहुत कम होती है, हालांकि ह्युस्टन में प्रायोजित पब्लिसिटी का बखान तो चारों तरफ होता है।
 
दुनिया भर का जंतर-मंतर कहा जाता है न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र चौराहा। संयुक्त राष्ट्र के सामने विरोध-प्रदर्शन करने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं। ये तादाद उस समय बहुत बढ़ जाती है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा होती है। जैसे इस बार---जब जो लोग भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में उतरे और जो ट्रम्प की मुखालफत में बैनर-पोस्टर लेकर आए, उनके बैनर-पोस्टर की भाषा और मुद्दे एक से ही दिखाई दे रहे थे।

पीपुल्स नॉट बी साइलेंट संस्था से जुड़ी महिलाएं जहां ये बैनर लेकर खड़ी हुईं थी कि ट्रम्प झूठा है और हम सबके लिए ख़तरनाक है, वहीं यह भी मांग उठ रही थी कि ट्रम्प के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाया जाना चाहिए। ऐसे अनगिनत स्वर थे वहां और उन्हें मोदी और ट्रम्प के बीच बहुत समानता दिखाई दे रही थी।

यहां एक बात और उभरकर आई कि कश्मीर मुद्दे का ज़बर्दस्त ढंग से अंतर्राष्ट्रीयकरण हो गया है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर को जिस तरह से कैद किया गया है और वहां मानवाधिकारों का हनन हो रहा है, उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के मंसूबों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेनकाब किया है। न्यूयॉर्क का दिल धड़कता है टाइम्स स्कायर पर, जहां कंपनियां-ब्रांड का मायावी-पूंजीवादी बाजार चारों तरफ की बिल्डिंग पर अश्लील प्रदर्शन करता दीखता है, वहां पर भी बीचों-बीच कौंध रहा था कश्मीर। कश्मीर के लिए न्याय की पुकार इस मायावी बाजार में सुर्ख रंग की लेज़र किरणों में चमक रही थी—Respect UN verdict, Stand with Kashmir, Let Kashmirs Speak (संयुक्त राष्ट्र के आदेश का सम्मान करो, कश्मीर के साथ खड़े हो, कश्मीरियों को बोलने दो)।

इसके बाद दुनिया के जंतर-मंतर, यूएन स्कायर पर हजारों-हजार की तादाद में लोग अगले दिन जुटे और उन्होंने खुलकर मोदी सरकार की आलोचना की। अगर वहां बैरिकेड लगाये पुलिस वाले की बात मानें तो दिन के 12 बजे तक 20 हजार लोग इस धरनास्थल पर आ चुके थे और हजारों की तादाद में लोग न्यू जर्सी और उसके आसपास रोके गए थे। जब मैं वहां से निकली तब तक लोगों का रैला कम नहीं हुआ था। कतार थी कि खत्म नहीं होने का नाम ले रही थी।

सब लोग एक चक्कर इस जंतर-मंतर का लगा कर, वहां नारे और पोस्टर दिखाने को आतुर थे।

"आख़िर आवाज़ भी एक जगह है और इसे संयुक्त राष्ट्र के सामने उछालना, ऊंची करना बेहद ज़रूरी है।" कमोबेश इन्हीं शब्दों को पंजाब से ताल्लुक रखने वाले 82 साल के अवतार सिंह ने कहा। उनका कहना था, कश्मीर में तो मोदी सरकार ने ज़ुल्म की हद ही कर दी है, लेकिन बाक़ी देश को भी मारने पर उतारू है। किसी को गाय के नाम पर मार रहे हैं, तो किसी को बच्चा चोरी के नाम पर। कारोबार की तो रैड पीट (बर्बाद कर दिया), खाली अंबानी-अडानी को रास्ता दे रहे है। मैं तो पूरे कुनबे के साथ यहां आया हुआ, ताकि आने वाली नस्लें यह न कहें कि हम डर गए और बोले नहीं।  

एक बड़ा सवाल यह उठता है कि हजारों की संख्या में ये लोग जो यहां आएं, ये आख़िर कौन थे। जितना मैं पता कर पाई, जो भारतीय इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए वे कुछ सालों से यहां बसे हुए हैं, अलग-अलग पेशों और कुछ  लोग संगठनों से जुड़े हुए हैं। हालांकि अधिकांश स्वतंत्र रूप से ही आए थे, क्योंकि उनके दिल में गुस्सा था। उन्हें लग रहा था कि जिस देश से उनका ताल्लुक है वहां नाइंसाफ़ी हो रही है। दलितों ने भी अच्छी संख्या में विरोध प्रदर्शन किया। दलितों में रामदासी संप्रदाय से जुड़े लोगों की तादाद ज्यादा थी, वे दिल्ली के तुगलकाबाद इलाके में संत रविदास के मंदिर तोड़े जाने और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर की गिरफ्तारी से नाराज़ थे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ पोस्टर लिये हुए थे, सिर पर पट्टियां बांधी हुई थीं, जिस पर लिखा था—Modi is Killer—(मोदी हत्यारा है)

इसमें शामिल लोगों का सीधे-सीधे कहना था कि मोदी के आने के बाद से देश बदल गया है। आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ) की सरकार है, यह दलित विरोधी है, दलित विरोधी है।

इसी जगह पर हिंदुओं की जमात भी थी जिनमें से कुछ हिंदूस फॉर ह्यूमन राइट्स संस्था से जुड़े हुए थे। इनका कहना था कि मोदी और आरएसएस हिंदुओं को दुनिया भर में बदनाम कर रहे हैं। हिंदू धर्म वसुधेव कुटंबकम की बात करता है, सबको साथ लेता है, आज हिंदू धर्म को हिंदुत्व का पर्याय बना दिया गया है, जो बेहद दुखद है। इस संस्था से जुड़ी हुई सुनीता विश्वनाथन से जब हमने बात कि तो पता चला कि अमेरिका में बसने वाले हिंदू बड़ी तादाद में मोदी और आरएसएस की फासीवादी राजनीति के ख़िलाफ़ हैं और वे खुलकर कहते हैं कि हिंदू का मतलब वह नहीं है जो भाजपा और संघ दिखा रहे हैं।

इससे जुड़ी सुनीता विश्वनाथन से जब हमने बात कि तो उन्होंने बताया कि हिंदूस फॉर ह्यूमन राइट्स कोलिएशन अगेंस्ट फासिज़्म इन इंडिया का हिस्सा है। सुनीता का दृढ़ विश्वास है कि जिस तरह से मोदी और ट्रम्प हाथ मिला रहे हैं, वह ख़तरनाक है, क्योंकि दोनों ही जनता औऱ अधिकारों के ख़िलाफ़ है। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के नाम पर जिस तरह का अन्यायभारत में किया जा रहा है, वह एक आपातकाल जैसी स्थिति है, गंभीर हालात है। हिंदू आस्था पर कलंक लगाया जा रहा है और धर्मनिरपेक्ष संविधान की भी धज्जियां उड़ाई जा रही है। इसका विरोध हर हिंदू को करना चाहिए।

इन तमाम आवाजों का दर्ज होना बेहद जरूरी है और इनकी गूंज लंबे समय तक बनी रहनी चाहिए। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि जो लोग मोदी के जयकारे को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हैं, वे साथ ही ये कोशिश करते हैं कि विरोध की ये आवाजें पूरी तरह से गायब हो जाएं...अदृश्य। जबकि इन आवाज़ों ने अपनी गूंज बहुत मजबूती से अमेरिका से लेकर लंदन तक में दर्ज कराई है। इन संगठनों और लोगों ने मजबूती से फासीवादी गठजोड़ के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाला है। ऐसा नहीं कि वहां विरोध में उठने वाली आवाज़ों पर ख़तरा नहीं। ख़तरा है, पर उतना नहीं जितना भारत में है।

यहां तो प्रधानमंत्री को पत्र लिखने पर ही एफआईआर हो जाती है। लेकिन वहां भी जिन भारतीयों को देश वापस आना होता है, जिनके रिश्तेदार यहां हैं, उन्हें चिंता होती है। अमेरिका में भी वे इन मुद्दों पर खुलकर बोलने से डरते हैं—कम से कम कैमरे पर आने से हिचकिचाते हैं। इससे पहले कई दफा उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। इस बारे में अमेरिका के शहर बोस्टन में कई लोगों ने अपने अनुभव भी साझा किये और साथ ही यह भी कहा कि जिस तरह से दुनिया के फासिस्ट एक हो रहे हैं, उसी तरह से ट्रम्प और मोदी के ख़िलाफ़ ताकतें भी एकजुट हो रही है।

अमेरिका में कोलिएशन अगेंस्ट फासिज़्म इन इंडिया एक मजबूत गठबंधन है, जो कई शहरों में सक्रिय है। इस नेटवर्क से जुड़ी पेनसेलवेनिया विश्वविद्यालय में प्रो. आन्नया लुंबा का कहना बहुत मौजू है कि मोदी और ट्रंप के बीच दोस्ती स्वर्ग में बनी लगती है। दोनों ही इस्लाम से नफ़रत करने वाले, फासिस्ट, मानवाधिकार विरोधी और अल्पसंख्यक विरोधी हैं।  

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