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मोदी सरकार की विश्वविद्यालयों की 'स्वायत्तता' की अवधारणा, उच्च शिक्षा के लिए बुरी खबर

चयनित विश्वविद्यालयों को 'स्वायत्तता' प्रदान किया गया है प्रभावी रूप से आत्म-वित्तपोषण और निजीकरण करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जो देश में गुणवत्ता की उच्च शिक्षा को से महंगा बनाऐगा और इसे लोगों के लिए दुर्गम बना देगा |
स्वयत्तता

मोदी सरकार द्वारा 20 मार्च को घोषित 52 विश्वविद्यालयो और आठ कॉलेजों को 'स्वायत्तता' दी,ये उच्च शिक्षा की ओर आकर्षित होने वाले लाखों विद्यार्थियों के खिलाफ़ है ये स्वतंत्रता  , जहां देश  में बमुश्किल एक चौथाई जनसंख्या ही कॉलेजों में जाती है ।

 
यहाँ इसे बिना किसी संदर्भ के लिया गया, 'स्वायत्तता' शब्द आम तौर पर सकारात्मक, प्रगतिशील, यहां तक ​​कि सशक्तीकरण अर्थों के साथ जुड़ा हुआ है - स्वतंत्रता से स्वशासन ही इसका अर्थ हैं |


लेकिन इस मामले में, स्वायत्तता का प्राथमिक अर्थ 'स्व-वित्तपोषण' - संस्थानों को अपने स्वयं के पैसे की जरुरतो को स्वंय पूरा करना होगा, इसमें मुख्य रूप से छात्रों को और निजी साझेदारी के माध्यम से अत्यधिक शुल्क लेना होगा। इस बीच, सरकारी नियमों और गुणवत्ता पर जांच को कम कर दिया जाएगा, जिससे कि कॉलेज इस 'स्वायत्तता' का सबसे ज्यादा फायदा उठा सकें।


विश्वविद्यालयों के लिए यह 'स्वायत्तता' क्या मायने है - किसके लिए, किस उद्देश्य के लिए, और किस परिस्थिति / परिस्थितियों में - यह स्पष्ट करता है कि यह एक अभूतपूर्व तरीके से निजीकरण और उच्च शिक्षा का व्यावसायीकरण करने के लिए और इसके आलावा और कुछ भी नहीं है।

यह एजेंडा लोगों को उच्च शिक्षा को लाभ-उन्मुख और लोगो कि पहुंच से दूर बनाना है, जबकि सरकार देश की युवाओं के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से हाथ खींच रही हैं | इसके लिए 'परित्याग' 'स्वायत्तता' की तुलना में अधिक उपयुक्त शब्द है ।


पांच केंद्रीय विश्वविद्यालय, 21 राज्य विश्वविद्यालय, 24 डीम्ड विश्वविद्यालय और दो निजी विश्वविद्यालय हैं जिन्हें ये 'स्वायत्तता' को दी गई है - "जिन्होंने उच्च शैक्षणिक मानकों को बनाए रखा है"।

इनमें कुछ उच्चतम गुणवत्ता वाले (और कम लागत वाले) सार्वजनिक विश्वविद्यालय शामिल हैं, जैसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, उस्मानिया विश्वविद्यालय, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय। पूरी सूची यहां देखी जा सकती है (here) .।

यह मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रेरित 'वर्गीकृत स्वायत्तता' योजना का हिस्सा है। ।

 


इस योजना के अनुसार, एनएएसी (राष्ट्रीय आकलन और प्रत्यायन परिषद) के स्कोर पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले संस्थान - श्रेणी 1 और श्रेणी II के तहत वर्गीकृत विश्वविद्यालय - सर्वप्रथम उच्चतर 'वित्तीय' और 'प्रशासनिक' स्वायत्तता प्राप्त करेंगे।


12 फरवरी 2018 को, एमएचआरडी ने एक गजट अधिसूचना ( gazette notification ) जारी की, जिसका शीर्षक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग [विश्वविद्यालयो का वर्गीकरण (केवल) वर्गीकृत स्वायत्तता के अनुदान के लिए ]विनियम, 2018 किया गया था।

ये स्वायत्तता खंड राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा में भी था परन्तु राज्यसभा में विपक्ष के विरोध के कारण NDA कि सरकार इसको वापस लेने के लिए मज़बूर हुई  ।

 


यूजीसी नियमों के मुताबिक, इन विश्वविद्यालयों को अब नए पाठ्यक्रम, कार्यक्रम, विभाग, विद्यालय, केंद्र शुरू करने के लिए यूजीसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी - जब तक कि वे सरकार से धन की मांग नहीं करते हैं। उन्हें UGC आत्म-वित्तपोषण मोड में करना चाहती है।

यह न केवल छात्रों की फीस में भारी वृद्धि का कारण होगा, बल्कि केवल वित्तपोषण के लिए ही विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को व्यपारिक पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए प्रेरित करेगा।

विश्वविद्यालयों को बिना किसी निरीक्षण या हस्तक्षेप के लिए ऑफ-कैंपस केंद्र खोलने के लिए स्वतंत्र हैं - जब तक वे "आवर्ती और गैर-आवर्ती राजस्व स्रोतों की व्यवस्था करने में सक्षम हैं और यूजीसी या सरकार से इसके लिए किसी भी सहायता की उन्हें आवश्यकता नहीं है" ।

 

श्रेणी-1 विश्वविद्यालय "सरकार के अनुमोदन के बिना - अनुसंधान पार्क, ऊष्मायन केंद्र, विश्वविद्यालय समाज संबंध केंद्र - स्वयं वित्तपोषण मोड में या निजी भागीदारों के साथ साझेदारी में खोल सकते हैं। इस प्रकार की बुनियादी ढांचे का निर्माण निषेधात्मक रूप से महंगा है, इसलिए विश्वविद्यालयों को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) में बदलना होगा।

 


विश्वविद्यालयों को प्रतिभाशाली संकाय को आकर्षित करने के लिए "प्रोत्साहन संरचना" बनाने के लिए कहा गया है - लेकिन "इस शर्त के साथ कि प्रोत्साहन संरचना को अपने स्वयं के राजस्व स्रोतों से भुगतान करना होगा और आयोग या सरकारी फंडों से नहीं।"

विश्वविद्यालयों को प्रभावी रूप से, विदेशी संकाय के लिए "कार्यकाल / अनुबंध के आधार पर स्वीकृत ताकत से अधिक" के लिए 20% आरक्षण जारी करने के साथ-साथ विदेशी छात्रों के लिए 20% आरक्षण "अपने घरेलू छात्रों की ताकत से ऊपर" करने के लिए भी कहा गया है - फिर से, यह सब स्वयं-वित्तपोषण मोड में होगा। विदेशी छात्रों के लिए, यूनिवर्सिटी किसी भी फीस को लागूं करने और उसे चार्ज करने के लिए स्वतंत्र होंगे, वो भी बिना किसी प्रतिबंधों के इसे पूरा कर सकतें है। "


सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के शिक्षकों ने इस 'स्वायत्तता' का जोरदार विरोध किया है, जिसमें कहा गया है कि शिक्षा कोई बाज़ार में बेचने वाली वस्तु नहीं है |


फेडरेशन ऑफ सेंट्रल यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (एफईडीक्यूटीए) ने कहा कि सरकार विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा का व्यापार करने के लिए मजबूर कर रही है।

इस फैसले की घोषणा करते हुए मानव संसाधन विकास के केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि मोदी सरकार शिक्षा क्षेत्र में ये सरकार एक उदार शासन को पेश करने का प्रयास कर रही है और यह "गुणवत्ता के साथ स्वायत्तता को जोड़ने" पर जोर दे रही है।


जावड़ेकर के वक्तव्य का जवाब देते हुए, FEDCUTA ने कहा, "इस दावे में निहित बहस यह है कि शिक्षा क्षेत्र को व्यापार योग्य सेवाओं के लिए एक बाजार के रूप में सबसे अच्छा माना जाता है और कम विनियमों और सरकारी निधियों से स्वतंत्रता इस बाजार को बढ़ने की अनुमति देगा।"

'स्वायत्तता' के अर्थ पर जोर देते हुए, फेडरेशन ने कहा, "स्वायत्तता और गुणवत्ता के बीच संबंध में उनका (जावडेकर) दावा है कि शैक्षिक संस्थानों की" स्वायत्तता "शब्द के परिवर्तित अर्थ पर आधारित है।"


"इस विचार का विरोध करते हुए कि वित्त पोषण एजेंसियों से संस्थाओं की अकादमिक स्वायत्तता, वर्तमान नीति की भाषा में ये स्वायत्तता सरकारी धन पर निर्भरता से  स्वायत्तता है,यानि की सरकार अपने कर्तव्यों से पीछे हट रही है | "

"वर्तमान सरकार के नजरिए से लगता है कि व्यपारिक गतिविधियों से होने वाले राजस्व पर परिणामस्वरूप निर्भरता के कारण शिक्षा में सुधार होता है और गुणवत्ता में सुधार होता है।"

वर्गीकृत स्वायत्तता नियम 2017-18 से 2018-19 के तीन साल के एक्शन एजेंडे पर आधारित हैं, जो कि नीती आयोग द्वारा तैयार की गई थी, जो कि FEDCUTA ने कहा कि "आधारहीन और कट्टरपंथी तर्क है कि शिक्षा के क्षेत्र में मुक्त बाजार गुणवत्ता, दक्षता और विस्तार की ओर ले जाती है।"

यह कदम किसी भी संदर्भ या विचार के बिना बनाया गया था "बुरी तरह अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और शिक्षकों की संख्या में कमी के साथ-साथ शैक्षिक संस्थानों में आज भी छात्रों की संख्या बहुत अधिक है | "

कुछ मौजूदा स्वायत्त महाविद्यालयों के अनुभव की बात करते हुए, फेडरेशन ने कहा, राजस्व संसाधनों के आत्म-वित्तपोषण / जुटाव के उनके अनुभव है कि शिक्षकों, गैर-शिक्षण कर्मचारियों और बुनियादी सुविधाओं की संख्या में आनुपातिक वृद्धि के बिना ही शुल्क और छात्रों के प्रवेश में तेजी से वृद्धि हुई है।


जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ने भी इस कदम की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया था, जिसमें मांग की गई थी कि संसद में 12 फरवरी 2018 की एमएचआरडी अधिसूचना पर बहस होनी चाहिए, क्योंकि यह संसद द्वारा पारित कानून नहीं है और प्रतियोगिता के लिए खुला है।

एसोसिएशन ने बताया कि 'स्वयं-वित्तपोषण' एक व्यावसायीकरण के लिए कोडवर्ड है और सार्वजनिक शिक्षा के स्पष्ट तौर पर निजीकरण के साथ-साथ विभेदक फीस संरचनाओं, समानता और पहुच के सवालों से समझौता' है।

 

जेएनयूटीए ने कहा कि स्वायत्तता के नाम पर सत्तारूढ़ शासन द्वारा  विश्वविद्यालय की धारणा पर इस नवीनतम और बड़े हमले का विरोध करने के लिए " FEDCUTA और AIFUCTO (ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी और कॉलेज टीचर्स ऑर्गेनाइजेशन) के साथ मिलकर लड़ने की हर संभव प्रयास करेगा |"

 

अन्य उपायों और नीति परिवर्तनों के साथ ही सरकार ने शुरूआत की है या शुरू करने की कोशिश कर रही है, जल्द ही उच्च शिक्षा पूरी तरह से जनता की वित्तीय पहुंच से बाहर कर दी जाए - सिवाय कुछ लोगो को छोड़कर जो इसे खरीद सकेंगे, या ऋण लेने के लिए तैयार हो|


इन नीतिगत परिवर्तनों में यूजीसी विनियमन मसौदा शामिल है जिसमें 70:30 के नए फंडिंग फार्मूले की घोषणा की गई है, जिसमें केंद्रीय विश्वविद्यालयों को एमएचआरडी द्वारा वित्तपोषण के कम से कम 30%  स्वंय ही उत्पन्न करने के लिए कहा जा रहा है, जिससे विद्यार्थियों की फीस में भारी बढ़ोतरी होगी।


फिर उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (एचईएफए) है। उच्च शिक्षा की किसी भी केंद्रीय संस्था को बुनियादी ढांचे के लिए धन की आवश्यकता होगी, जो एचएफएफए से उधार लेने की आवश्यकता होगी, जोकी बाजार से धन जुटाऐगी | उधार लेने वाली संस्था को समयबद्ध तरीके से ऋण की मूल राशि वापस चुकानी पड़ेगी, और वापस भुगतान करने के लिए उसे अपनी आय में वृद्धि करने की आवश्यकता होगी - मूल रूप से छात्रों की फीस में भरी वृद्धि करेगी ।


नागरिकों के 'अधिकार' और देश के विकास के लिए एक अपरिहार्य साधन के रूप में शिक्षा का सुधार करने के बजाय, सरकार विश्व व्यापार संगठन  जैसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के नवउदारवादी नियमों को लागु कर रही है, जो शिक्षा को ' वस्तु 'के रूप में  खरीदा और बाजार में बेच जा सके । और शिक्षा जैसी वस्तु- यह देखते हुए कि शिक्षा नागरिकों के जीवन स्तर को उठने ओर सामाजिक और आर्थिक गतिशील करने का प्रवेश द्वार है - भारत की तरह 'विकासशील' देश में मुनाफाखोरी के लिए अकल्पनीय क्षमता प्रदान करने के बाद  वो और बहुत कुछ मांगेगा।

 

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