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मोदी सरकार रोज़गार के आँकड़ों को बढ़ाचढ़ा कर पेश कर रही है !

सूक्ष्म-उद्यमों (पीएमईजीपी) की स्थापना के लिए बने प्रमुख कार्यक्रम के तहत अनुमानित रोजगार को अत्यधिक बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया है।
MSME

लोकसभा में सांसदों के एक समूह द्वारा रखे गए एक सवाल के जवाब में, श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने 17 दिसंबर को कहा कि प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) ने 2014-15 के बाद से 17.6 लाख नौकरियां पैदा की हैं। उन्होंने 30 नवंबर, 2018 तक के वर्षवार आंकड़े दिए हैं।

ये आंकड़े काफी बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए गए प्रतीत होते हैं और इनका कोई स्पष्ट आधार नज़र नहीं आता है। श्रम मंत्री संसद को इन संदिग्ध आंकड़ों के बारे में रिपोर्ट कर रहे हैं जो और भी उल्लेखनीय है। इसी तरह का दावा MyGov.in पोर्टल के ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया सेक्शन में किया गया है जो सरकार की उपलब्धियों को प्रचारित करता है। वहां यह दावा किया जा रहा है कि "पिछले तीन वर्षों में" 11.3 लाख नौकरियां पीएमईजीपी के तहत पैदा हुयी हैं। संभवत: यह अवधि 2015-16 से 2017-18 के बीच की है।

पीएमईजीपी वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2014-15 और 24 दिसंबर, 2018 के दौरान कुल 1,44,596 परियोजनाओं को पीएमईजीपी के तहत क्रेडिट (कर्ज़) की सब्सिडी दी गई थी। कार्यक्रम के तहत, सूक्ष्म उद्यमी छोटे उद्यमों को स्थापित करने के लिए परियोजनाओं के लिए आवेदन करते हैं, और जिला स्तरीय टास्क फोर्स कमेटी (डीएलएफटीसी) द्वारा इसे मंजूरी देने के बाद और बैंकों द्वारा, उन्हें 25 प्रतिशत राशि कर्ज़ की सब्सिडी के रूप में दी जाती है जबकि शेष राशि को कर्ज़ के रूप में वितरित किया जाता है।

इन उद्यमों में कितने व्यक्ति कार्यरत हैं, इसका कोई भी रिकॉर्ड किसी के भी पास उप्लब्ध नहीं है – न ही  डीएलटीएफसी, न ही बैंकों और न ही खादी और ग्रामोद्योग कॉर्पोरेशन (केवीआईसी) के पास, जो इस कार्यक्रम के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त है। इसके अलावा, इस बात का भी कोई रिकॉर्ड नहीं है कि जिन व्यक्तियों को नियुक्त किया गया है, वे नए प्रवेशकर्ता हैं या बस एक नौकरी से दूसरे में स्थानांतरित हुए हैं। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार ने दावा किया है कि इस कार्यक्रम द्वारा नई नौकरियां पैदा की जा रही हैं।

तो, सरकार उत्पन्न रोजगार के मामले में इस संख्या तक कैसे पहुंचती है? ऐसा करने का एकमात्र तरीका यह हो सकता है– कि इन संख्याओं को गढ़ने के अलावा- अगर वे 2017 में किए गए एक नमूना सर्वेक्षण पर भरोसा कर रहे हैं तो इस नतीज़े पर पहुंचा जा सकता है।

यह अध्ययन गुड़गांव स्थित प्रबंधन विकास संस्थान (एमडीआई) नामक एक संस्थान द्वारा किया गया है। प्रेस सूचना ब्यूरो की आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, एमडीआई ने 2012-13 और 2015-16 के बीच पीएमईजीपी के तहत स्थापित उद्यमों के 5 प्रतिशत नमूने के आकार का एक सर्वेक्षण किया है। इसने लगभग 10,108 इकाइयों के आँकड़ों पर काम किया है। और यह अध्ययन 2017 में किया गया था।

एमडीआई ने पाया कि इन पीएमईजीपी उद्यमों में औसत रोजगार 7.62 व्यक्तियों का था और प्रति कर्मचारी निर्माण की लागत 96,209 रुपये थी।

क्या श्रम मंत्री ने प्रति यूनिट 7.62 का औसत रोजगार लिया है और क्या इसकी पूरी अवधि के लिए गणना की है? यह भी संदिग्ध लग रहा है!

इस दर पर गर गणना की जाती है तो कुल "उत्पन्न" रोजगार लगभग 11.56 लाख होगा, न कि 17.6 लाख, जैसा कि लोकसभा में दावा किया गया है। मंत्री सांसदों और आम जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे है कि इन नए उद्यमों में औसतन रोजगार प्रत्येक इकाई में 12 व्यक्ति कार्यरत हैं! जो सर्वेक्षण के अनुमान से 70 प्रतिशत अधिक बैठता है।

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जिस भी तरीके से आप पासा फेंके, उसका निष्कर्ष यही निकलता है कि मोदी सरकार रोजगार सृजन के आंकड़े को अनावश्यक विस्तार दे रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 8.9 प्रतिशत बेरोजगारी बढ़ी है और यह उनकी सबसे बड़ी विफलता है।

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