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मुजफ्फरनगर दंगा और कुछ गंभीर सवाल

मुजफ्फरनगर में 2013 के दंगे से जुड़े मामलों में जो घटित हो रहा है वह पुलिस, प्रशासन और न्याय प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
मुजफ्फरनगर दंगा
प्रतीकात्मक तस्वीर Image courtesy: Patrika

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने बुधवार को मुजफ्फरनगर दंगे के 20 और मामलों को वापस लेने की अनुमति दी है। इसके साथ मुजफ्फरनगर दंगे मामले में कुल वापस लिए गए मामलों की संख्या 74 हो गई। सरकार द्वारा जिन मामलों को वापस लेने की अनुमति दी गई है, वे पुलिस व जनता की तरफ से दर्ज किए गए हैं। 

ये सभी मामले आगजनी, चोरी व दंगे से जुड़े हैं और फुगना पुलिस थाने में दर्ज किए गए थे। इसमें से कुछ मामले भौराकलां, जनसठ, न्यू मंडी व कोतवाली पुलिस थानों में दर्ज किए गए थे। 

योगी सरकार बीते साल से मुजफ्फरनगर दंगे के मामलों को वापस लेने की प्रक्रिया में है। लोकसभा चुनाव से पहले 8 मार्च तक सात आदेशों में 48 मामलों को वापस लेने की अनुमति दी गई। 

अदालत में पांच मामलों को निपटाया गया, जबकि एक मामले में पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट दाखिल की है। लोकसभा चुनावों के बाद तीन आदेश जारी किए गए, इसमें दंगों के 20 मामलों को वापस लेने की अनुमति दी गई। 

आपको बता दें कि दंगों के बाद पुलिस ने 500 से ज्यादा लोगों पर मामला दर्ज किया था।

हालांकि 74 मामलों को बंद करने की उत्तरप्रदेश सरकार की मांग के बावजूद उसे अदालत से अभी एक भी मामले को वापस लेने की अनुमति नहीं मिली है। 

अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट अमित कुमार सिंह के मुताबिक, ‘राज्य सरकार ने दंगे के कुल 74 मामलों को वापस लेने के लिए पिछले छह महीने में 10 अलग-अलग अधिसूचना जारी की।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि, सरकार को एक भी मामला वापस लेने की अनुमति नहीं मिली है।’जिला प्रशासन को करीब दो महीने पहले 20 मामले वापस लेने के अंतिम निर्देश मिले थे लेकिन सभी अनुरोध अदालत के सामने विचार के लिए लंबित है।

41 में से 40 मामलों में आरोपी हुए बरी

अभी हाल में इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने मुजफ्फरनगर दंगा मामले में बड़ा खुलासा किया था। अखबार ने बताया कि 41 में से 40 मामलों में आरोपी बरी हो गए। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मुजफ्फरनगर दंगों में पुलिस ने अहम गवाहों के बयान दर्ज नहीं किए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि हत्या में इस्तेमाल हथियारों को पुलिस ने कोर्ट में पेश नहीं किया।

रिपोर्ट के मुताबिक, 41 मामलों में फैसला सुनाया गया। इनमें से हत्या के सिर्फ एक मामले में सजा हुई। मुस्लिमों पर हमले के बाकी सभी मामलों में आरोपी बरी हो गए। आपको बता दें कि साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के सिलसिले में बीते दो सालों में चले हत्या के 10 मुकदमों में अदालतों ने सभी आरोपियों को छोड़ दिया है। 

रिपोर्ट के अनुसार, अभियोजन पक्ष के पांच गवाह कोर्ट में गवाही देने से इसलिए मुकर गए कि अपने संबंधियों की हत्या के वक्त मौके पर मौजूद नहीं थे। वहीं 6 अन्य गवाहों ने कोर्ट में कहा कि पुलिस ने जबरन खाली कागजों पर उनके हस्ताक्षर लिए है। इतना ही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक, 5 मामलों में हत्या में इस्तेमाल हुए हथियार को पुलिस ने कोर्ट में पेश ही नहीं कर पाई।

साल 2017 के बाद दंगों से जुड़े 41 मामलों में मुजफ्फरनगर की स्थानीय कोर्ट ने फैसला सुनाया है। इन 40 मामलों में आरोपी छूट गए हैं। सिर्फ एक मामले में सजा का एलान हुआ है। बता दें कि जिन 40 मामलों में जो आरोपी छूटे हैं उनके ऊपर मुस्लिम समुदाय पर हमले करने के आरोप थे।

इंडियन एक्सप्रेस ने जिला सरकार के वकील के हवाले से लिखा है कि चूंकि आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट गवाहों के बयानों पर आधारित थी और गवाह अदालत के सामने अपने बयानों से मुकर गए, इसलिए राज्य सरकार रिहा हुए आरोपियों के संबंध में कोई अपील नहीं करेगी।

गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान 65 लोग मारे गए थे। इसके खिलाफ सभी मुकदमों को पूर्व अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में दायर किया गया था। इनकी जांच भी अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई। हालांकि इनकी सुनवाई वर्तमान योगी सरकार के कार्यकाल में चल रही थी। जिसमें सभी को बरी किया गया है।

उठते सवाल

2013 में मुजफ्फरनगर दंगों में 65 लोगों की जान गई थी। बड़े पैमाने पर लोग हताहत हुए। दंगे के दौरान कर्फ्यू लगा दिया गया। सेना बुला ली गई। कर्फ्यू करीब 20 दिनों तक रहा था। 

जस्टिस विष्णु सहाय आयोग ने इस मामले में सरकार को क्लीन चिट दी, लेकिन तत्कालीन गृह सचिव, ज़िलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को दोषी ठहराया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में आयोग का गठन 9 सितंबर 2013 को किया गया था।

इसका काम दंगे रोकने में हुई प्रशासनिक चूकों का पता लगाना था। इसके अलावा दंगा भड़काने में मीडिया और राजनेताओं की भूमिका की जांच भी करनी थी। आयोग को दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था। इसकी कार्य अवधि सात बार बढ़ाई गई।

अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने दंगों के दौरान दर्ज 74 मामलों को वापस ले रही है।  41 में से 40 मामलों में आरोपी बरी हो गए हैं। सरकार इन मामलों में आगे अपील भी नहीं करने के मूड में है। दोषी अधिकारियों पर अभी तक कोई खास कार्रवाई नहीं की गई है तो इससे साफ जाहिर हो रहा है कि मुजफ्फरनगर दंगे मामले में जो घटित हो रहा है वह सही नहीं है।

इस मामले में लोगों को न्याय मिले इस बात की सबसे ज्यादा जरूरत है। न्यू इंडिया के हुक्मरानों को यह बात समझनी होगी कि अल्पसंख्यक समुदाय की विश्वास न्यायिक प्रक्रिया में बना रहना इस देश के हित में है। इतने बड़े मामले में अगर पीड़ितों को न्याय नहीं मिला तो निसंदेह यह हमारे पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान खड़ा करेगा।

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