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बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी के दुष्प्रभाव 

कोविड-19 वैश्विक महामारी के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों और  इसके चलते हमारी दुनिया में आये बदलावों ने हमारे बच्चों पर जो असर डाला है. उनके बारे में लिखती हुईं डॉक्टर दीपिका चमोली शाही एक तकनीक भी बताती हैं कि कैसे हम अपने बच्चों को और वास्तव में वयस्कों को भी इस महामारी के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले रोज-रोज के दबावों एवं तनावों से बेहतर तरीके से निपटने में उनकी मदद कर सकते हैं।
बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी के दुष्प्रभाव 

इस मौजूदा महामारी ने पूरे विश्व स्तर पर लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्यों पर अभूतपूर्व विनाशकारी असर डाला है। रेडक्रॉस ने तो घोषणा कर दी है कि इस महामारी में खराब मानसिक सेहत के मसले एक साइलेंट किलर हो सकते हैं।  इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को तत्काल हल करने की जरूरत जताई है।  मनोवैज्ञानिक और  मनोचिकित्सक लगातार कह रहे हैं कि कोविड-19 के प्रकोप के बाद लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की कठिनाइयां बढ़ गई हैं।

मैंने स्वयं यह देखा है कि विगत एक साल में लोगों में चिंताएं, तनाव विकार और संत्रास विकार के मामले काफी हद तक बढ़ गये हैं। इसके अलावा, महामारीजनित रोज-रोज के तनावों ने मरीजों में पहले से चली आ रही मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को और बढ़ा दिया है।

इस कोरोना से सभी आयु समूह के लोग विभिन्न तरीके से दुष्प्रभावित हुए हैं।  इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष डॉ पी.के. दलाल के अनुसार, “इन संक्रमणजनित बीमारियों के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की गड़बड़ियों से निपटने की कार्यनीतियों को मौजू बनाने की जरूरत है, जो वर्तमान की ऐसी स्थिति से तो निबटने में कारगर हो। साथ ही साथ, भविष्य में भी ऐसी परिस्थिति से निबटने के लिए एक संसाधन के रूप में काम कर सके।”.

एक राष्ट्र की पहचान उसके नागरिकों से होती है और हमारे बच्चे ही हमारे भविष्य के नागरिक हैं। अतः बच्चों की मानसिक सेहत की समस्याओं को समझने और उनके हल के लिए बेहतर तैयारी की जरूरत है,जिससे कि वे आगे चल कर देश के एक सक्रिय और स्वस्थ नागरिक बन सकें। 

इस महामारी में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के मसले इतने नाजुक क्यों हैं

हम अभी भी महामारी के बाद के वास्तविक संक्रमणकाल से गुजर रह रहे हैं, जिसने हम पर काफी तनाव डाला है और यह कोई अबूझ नहीं है। यह महामारी (कोरोना पीड़ितों के लिए) चिकित्सीय आघात, दर्दनाक दुख (कोरोना से संक्रमित लोगों के कुटुम्ब-परिवार और उनके दोस्तों के लिए) और कुछ- कुछ मामलों में यह पूर्व बचपन अवस्था के आघात (उन किशोरों के लिए जिनके परिवार के सदस्य कोविड-19 से उबरने में संघर्ष कर रहे हैं) की तरफ धकेल रही है।

एक जर्मन मनोवैज्ञानिक और कैथोलिक यूनिवर्सिटी, आइचस्टैट-इंगोलस्टाद्तो में विकासात्मक और शैक्षिक मनोवैज्ञानिक प्रो. कत्जा सेत्ज़-स्टीन ने चेतावनी दी कि “महामारी और इससे जुड़े जन स्वास्थ्य कार्रवाइयां सामान्य तौर पर एक मनोरोग के लक्षण और विशेष रूप से आघात से संबंधित लक्षणविज्ञान, खास कर पहले से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों वाले संदिग्ध व्यक्तियों में।”

जबकि प्रत्येक व्यक्ति संकट में है, ऐसा मालूम होता है कि हम सब बेहद खतरनाक स्थिति में फंस गये हैं, जिसका हिस्सा हमारे बच्चे भी हैं, यहां तक कि आज एक वयस्क की तुलना में बच्चों के तनावग्रस्त होने की आशंका सबसे ज्यादा है।

अनेक मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार जन्म के ठीक बाद ही मनुष्य में अवधारणा  बनने की प्रक्रिया की शुरुआत हो जाती है क्योंकि बच्चे अपने वातावरण और अपने परिवेश से सीखते हैं। लेकिन आसपास बिखरी ढेर सारी सूचनाएं उन पर नकारात्मक असर डालती हैं। इनका उनके मनोविज्ञान पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इन दिनों बच्चों के लिए विभिन्न स्रोतों से सूचनाएं आती हैं,जैसे स्कूली कक्षाओं में शामिल होने के लिए नये-नये तकनीकी उपकरणों में पारंगत होना, फिर घर से पूरा किये जाने वाले कार्यों (असाइनमेंट्स) की बढ़ती गिनती और सोशल मीडिया के जरिए प्रति क्षण उड़ेली जाने वाली सूचनाओं आदि।

न्यू साउथ वेल्स में प्रोफेसर ऑफ एमेरिटस एक ऑस्ट्रेलियाई शिक्षा मनोवैज्ञानिक डॉक्टर जॉन स्वेलेर  के मुताबिक सूचनाओं के इन लदानों ने बच्चों में ध्यान देने, समस्याओं का हल करने तथा निर्णय लेने की क्षमताओं को सिकोड़ दिया है। इन वजहों से वे कुंठित और चिड़चिड़े हो गये हैं। उनकी यह मनोदशा ही उनमें मानसिक स्वास्थ्य की गड़बड़ियों का बड़ा स्रोत बन जाता है। 

बदलाव तो अपरिहार्य हैं और इसे हरेक को अवश्य ही स्वीकार करना चाहिए। लेकिन बच्चों के त्वरित तनावग्रस्त होने का मुख्य कारण है- माता-पिता और शैक्षणिक संस्थाओं का उन पर अपनी अधिकाधिक अपेक्षाओं को लादना। एक प्रत्येक बदलती दुनिया में बच्चों से माता-पिता की अपेक्षाएं पहले की तरह ही रही हैं।

हाल ही में हार्वर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ एजुकेशन के एर्नांडो एम. रीमर्स और  ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के महासचिव  एंड्रियास श्लीचर की पहल पर 59 देशों के शिक्षाविदों और शैक्षिक प्रशासकों के एक अध्ययन में कहा गया है कि इस “संकट ने अनेक शिक्षा प्रणालियों में छिपे दोषों को दूर करने के लिए  नवाचार की अपार संभावनाओं का खुलासा किया है।”

दुनिया भर में शैक्षणिक संस्थाओं  में काम करने वाले लोग शिक्षा के क्षेत्र में नई नीतियों और कार्यनीतियों के  नवाचारों और क्रियान्वयन के लिए जी-तोड़ प्रयास करते रहे हैं।  इसी वजह से बच्चों के अकादमिक काम का दबाव आज इस हद तक बढ़ गया है।  आज  छात्रों के लिए बड़ी संख्या में ऑनलाइन सेमिनार, वेबीनार और कार्यशालाएं आयोजित किये जा रहे हैं। लेकिन हमें अवश्य ही यह महसूस करना चाहिए कि ऑनलाइन शिक्षण की थकाऊ प्रक्रिया की वजह से छात्रों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है जो उनके मानसिक विकास पर आघात कर रहा है।

तकनीक पर आधारित घरों से पूरा कर लाने वाले अपार शैक्षणिक कार्यों (असाइनमेंट्स) का बोझ, दैनिक दिनचर्या और स्कूल की शिक्षा-परीक्षाओं की अनिश्चितता के अकृतज्ञ संयोजन की वजह से अनेक छात्र तनाव, अकेलापन,  चिंता और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कई सारी समस्याओं से पीड़ित हैं। 

इस बदलाव और  स्वीकार की अवधि में अगर हम वयस्क नई वास्तविकताओं के साथ तालमेल बिठाने में  कठिनाइयों का अनुभव करते हैं, तो ऐसे में हमारे बच्चों से विकटताओं के साथ जल्दी सामंजस्य बिठाने की अपेक्षा करना अतार्किक है।  कठोर बदलाव के साथ तालमेल बिठाना एक समय-साध्य प्रक्रिया है। किसी भी व्यक्ति को मौजूदा परिस्थिति या काम को आत्मसात करने के लिए पहले अपने मन-मस्तिष्क को धीरे-धीरे तैयार करना पड़ता है। हालांकि इस महामारी से उत्पन्न दबावों और तनावों ने बच्चों के मानसिक विकास पर कड़ा आघात किया है और उनके भविष्य को बर्बाद कर दिया है। 

कैसे करें बच्चों की मदद?

बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की सख्त आवश्यकता है।  उनके रोजमर्रा के जीवन में निम्नलिखित तकनीक पर काम  करने के लिए प्रेरित करते हुए उनके मानसिक स्वास्थ्य के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है.

1. सांस लेने की सजगता : सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया का सजगता के साथ अवलोकन करना और रोज 5 मिनट अपनी सांसों पर एकाग्र होना। यह छोटे बच्चों में तनाव घटाने की सबसे सहयोगी तकनीक है। 

2. दैनिक जीवन को लेकर सजगता:  बच्चों को अतीत  और भविष्य की चिंता करने की बजाय वर्तमान पर ध्यान देने की सीख देना। बौद्ध दर्शन का यह एक महत्वपूर्ण पहलू है। 

3. प्राकृतिक सौंदर्य-सुषमा का 10 मिनट तक परिकल्पना करना या मानस-दर्शन करना: उदाहरण के लिए मन ही मन रंग-बिरंगे फूलों वाले किसी सुंदर बगीचे, कोई नदी, किसी लॉन की  हरी-हरी मखमली घास, और चिड़ियों की सुमधुर चहचहाहट से बने मोहक वातावरण का दृश्यांकन करना।(जे.गुयेन; 2018).

4. सकारात्मक कथन :  मस्तिष्क को क्रियाशील बनाये रखने के लिए सकारात्मक शब्दों को बार-बार दोहराना और उस पर अपनी सजगता बढ़ाना। स्व-कथन की इस प्रक्रिया ने गिरते स्वास्थ्य की चिंता और तनावों को घटाने में मदद की है। 

5. रोज अपनी पांच खूबियों व क्षमताओं के बारे में लिखना। 

6. अपने विचारों को डायरी में लिखना और उन्हें अनुभव करना।

7. मस्तिष्क को तरोताजा कर मानसिक क्षमताएं बढ़ाने के लिए प्रतिदिन 15 मिनट तक मंत्रों का मानसिक जाप करना। यह निष्कर्ष मेरे द्वारा 2017 में किये गये शोध पर आधारित है। 

ऊपर लिखी गई सभी तकनीकें हमारे शरीर में एंडोर्फिन की मात्रा को बढ़ाती हैं।  एंडोर्फिन अच्छा महसूस कराने वाला एक प्रकार का हार्मोन है, जो हमें खुशियां देता है। 

ये प्रविधियां व्यक्ति के मस्तिष्क पर न्यूरोप्लास्टिक (नई परिस्थितियों और संदर्भों के अनुसार मानव शरीर के कामकाज को विनियमित करने के लिए मस्तिष्क की क्षमता) प्रभाव  डालती हैं तथा मस्तिष्क के उस हिस्से के आकार को घटाने का काम करती है, जो अवसाद और तनाव का कारक होता है।

समाहार 

कोविड-19 महामारी ने लोगों पर जबर्दस्त तनाव का भार बढ़ाया है। इसके बीच, अब हम लोगों को अपने बच्चों की मानसिकता पर इसके पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर सतर्क-सजग हो जाना चाहिए।

इस भयंकर आपदा-विपदा के समय उनसे बड़ी-बड़ी उम्मीदें पाल लेना, खास कर अकादमिक उपलब्धियों के संदर्भ में, तार्किक नहीं है। इसलिए माता-पिता अपनी अपेक्षाओं को जरा व्यावहारिक बनाएं ताकि उनके बच्चों की चिंतन प्रक्रिया बाधित न हो और आगे चल कर उनका भविष्य बर्बाद न हो। 

एक बच्चे को भी अपने परिवेश के अनुकूल होने के लिए एक वयस्क जितना ही समय देना चाहिए। तभी हम सब भविष्य के साथ बेहतर सामंजस्य कर सकते हैं। यह कठिन तो है पर असंभव नहीं है। 

(डॉ दीपिका चमोली शाही स्पिकिंगक्यूब मेंटल हेल्थ सर्विस की सह-संस्थापक और निदेशक हैं। वे एक मनोवैज्ञानिक, नैदानिक सम्मोहन चिकित्सक, व्यवहारवादी प्रशिक्षक और ध्यान विशेषज्ञ हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।) 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

The Mental Health Implications of the Pandemic on Children

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