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#metoo : जिन पर इल्ज़ाम लगे वो मर्द अब क्या कर रहे हैं?

विकास बहल, विनोद दुआ, पीयूष मिश्रा, दिलीप, केविन स्पेसी, अज़ीज़ अंसारी, रंजन गोगोई, आलोकनाथ और metoo मूवमेंट में जिन भी मर्दों पर आरोप लगे थे, वो सब आज भी अपने-अपने क्षेत्रों में उसी तरह से काम कर रहे हैं। जबकि आरोप लगाने वाली महिलाओं को सोशल मीडिया पर और अन्य जगहों ट्रोल किया गया है, उन्हें गालियाँ दी गई हैं और मानहानि के आरोप लगाए गए हैं।
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

#metoo मूवमेंट 2017 में अमेरिका से शुरू हुआ जब विभिन्न क्षेत्रों, ख़ास तौर पर एंटर्टेंमेंट इंडस्ट्री की महिलाओं ने अलग-अलग "बड़े नाम वाले" मर्दों पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए और उस उत्पीड़न के ख़िलाफ़ खुल कर बात की, और कहा #metoo यानी "मैं भी...” 
जिन मर्दों पर ये आरोप लगे, वो मशहूर थे, और जनता उन्हें पसंद करती थी, और अभी भी करती है।

अमेरिका से शुरू हुए metoo मूवमेंट में कई मर्दों के नाम शामिल थे। वहाँ से होता हुआ ये मूवमेंट दुनिया भर में गया, भारत में भी आया और यहाँ भीं कई "बड़े नाम वाले" मर्दों पर यौन उत्पीड़न से ले कर बलात्कार तक के संगीन आरोप लगे। 

अभी हाल ही में अमेरिकी अभिनेता केविन स्पेसी पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों को कोर्ट द्वारा ख़ारिज कर दिया गया है। केविन की ही तरह कई मर्द जिन पर बेहद संगीन आरोप लगे थे, उन पर या तो आरोप ख़ारिज हो गए हैं, या उनके मुक़दमों का कुछ हुआ ही नहीं है। लेकिन दूसरी तरफ़ उन पर आरोप लगाने वाले लोग (ज़्यादातर मामलों में महिलाएँ) लगातार बेइज़्ज़ती का शिकार हुए हैं, और उनकी ज़िंदगियाँ आरोप लगाने के बाद से और मुश्किल बना दी गई हैं।

लेकिन मर्द, मशहूर मर्द, ताक़तवर मर्द- उन्हें क़रीब हर मामले में किसी भी सज़ा का सामना नहीं करना पड़ा है, बल्कि वो आज भी अपने-अपने क्षेत्र में एक मकबूलियत के साथ काम कर रहे हैं। 

आइये देखते हैं, कि metoo मूवमेंट में आरोपी मर्दों पर क्या कार्रवाई की गई, और अब वे क्या क्या कर रहे हैं। 

अमेरिका की बात करें तो केविन स्पेसी, बिल कॉस्बी, कर्क डगलस, रोमन पोलान्स्की, अज़ीज़ अंसारी जैसे कई बड़े नामों पर उत्पीड़न से ले कर बलात्कार तक के संगीन आरोप लगे थे। 

केविन स्पेसी का हाल ही में ख़ारिज हुआ मामला 2018 में सामने आया था, जब एक लड़के ने आरोप लगाया था कि 1980-90 के दशक में अभिनेता ने उनका उत्पीड़न किया था। इसके बाद कई लड़के सामने आए और कहा कि 1990 से ले कर 2013 के बीच केविन ने उनका यौन उत्पीड़न किया था। केविन पिछले साल नेट्फ़्लिक्स के एक शो "हाउस ऑफ़ कार्ड्स" में काम कर रहे थे। जब ये आरोप सामने आए, तब नेट्फ़्लिक्स ने एक अच्छा क़दम उठाते हुए उनको उस शो से बाहर कर दिया था। इसके अलावा हाउस ऑफ़ कार्ड्स की टीम के तमाम लड़कों ने अभिनेता पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। जिसके बाद 24 दिसम्बर 2018 को केविन स्पेसी ने एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें वो हाउस ऑफ़ कार्ड्स के अपने किरदार के लहजे में बात कर रहे थे और सभी आरोपों को बेहद सरल तरीक़े से ख़ारिज हुए नज़र आए थे। ये वीडियो देख कर समझ में आता है कि इस तरह के बड़े नामों को ये गुमान ही नहीं है, बल्कि उन्हें भरोसा है कि उनकी ताक़त और उनकी शोहरत की वजह से उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा। और दुर्भाग्यवश, अब तक ये सच भी साबित हुआ है। 

कॉमेडियन अज़ीज़ अंसारी पर Babe नाम की एक वेबसाइट पर एक आर्टिकल लिखा गया था जिसमें एक महिला ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। ये दावा किया जाता है, कि यौन उत्पीड़न के मामलों के बाद मर्दों की ज़िंदगी "ख़राब" हो जाती है, लेकिन न ऐसा कोई मर्द देखा गया है; न ही अज़ीज़ अंसारी की ज़िंदगी में ऐसा कुछ हुआ। नेट्फ़्लिक्स, जिसने केविन स्पेसी को शो से बाहर कर दिया था, उसने अज़ीज़ अंसारी पर कोई कार्रवाई नहीं की। आज भी अज़ीज़ अंसारी के शो नेट्फ़्लिक्स पर जारी किए जा रहे हैं, और हाल ही में उनका शो "Right Now” जारी हुआ है, जिसमें डेढ़ साल में पहली बार अज़ीज़ अंसारी ने ख़ुद पर लगे आरोपों के बारे में बात की है। और सिर्फ़ इतना कहा है, “इस एक साल में मैंने बहुत कुछ महसूस किया है। और मुझे खेद है कि उस इंसान को ऐसा महसूस हुआ। मुझे उम्मीद है कि मैं एक बेहतर इंसान बन गया हूँ।" अमेरिका के साथ दिल्ली में अज़ीज़ अंसारी के शो आज भी हाउसफ़ुल जाते हैं, नेट्फ़्लिक्स पर आज भी उनके शो जारी किए जा रहे हैं। 

#metoo भारत में 

metoo  भारत में तब आया जब बॉलीवुड की तनुश्री दत्ता ने अभिनेता नाना पाटेकर पर आरोप लगाए कि नाना ने 2008 में एक फ़िल्म "हॉर्न ओके प्लीज़" के दौरान उनका यौन शोषण किया था । इस तरह का आरोप बॉलीवुड में पहली बार लगाया गया था। इन आरोपों के बाद बॉलीवुड में बहुत शोर मचा और ज़्यादातर लोगों ने नाना पाटेकर को निर्दोष कहा। सोशल मीडिया पर तनुश्री दत्ता को गालियाँ दी गईं, ख़राब बातें कही गईं। आख़िर में मुंबई पुलिस ने तनुश्री दत्ता द्वारा नाना पाटेकर पर किया गया मुक़दमा सबूतों की कमी की वजह से ख़ारिज कर दिया। जिस पर तनुश्री दत्ता ने कहा था, कि उनके गवाहों के बयान रिकॉर्ड भी नहीं किए गए थे। तनुश्री दत्ता ने metoo के बारे में कहा था, “अगर इस मूवमेंट में कोई महिला किसी मर्द के ख़िलाफ़ उत्पीड़न, छेड़छाड़, बलात्कार या गैंगरेप तक के आरोप लगाती है, और 99% मामलों में उस महिला के पास सबूत नहीं होंगे क्योंकि ये घटनाएँ निजी जगहों पर होती हैं, तो ये मर्द या इनके ग्रुप बहुत आसानी से पीड़ितों को निशाना बना सकते हैं।" 

6 अक्टूबर 2018 को फ़िल्म "क्वीन" से शोहरत पाने वाले निर्देशक विकास बहल पर एक क्रू मेम्बर ने आरोप लगाया कि 2015 में निर्देशक ने उनके सामने हस्तमैथुन किया था। विकास बहल के मामले में "Phantom फ़िल्म्स" की इंटरनल को कम्प्लेंट्स कमेटी (ICC) ने उनको क्लीन चिट दे दी थी, और अभी हाल ही में विकास बहल ने रितिक रोशन के साथ फ़िल्म "सुपर 30” निर्देशित की है।

गायक अनु मलिक पर सोना महापात्रा, श्वेता पंडित के अलावा अन्य महिलाओं ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, जिसके बाद अनु मलिक को इंडियन आइडल के जज पैनल से हटा दिया गया था। लेकिन अनु मलिक ने अपने आरोपों को लगातार ख़ारिज किया था। बल्कि सोना महापात्रा को सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया था, उन्हें गालियाँ दी गई थीं। अनु मलिक आज भी फ़िल्मों में गाने गाते हैं, और संगीत देते हैं। 

2018 में इस समय के सफलतम निर्देशकों में से एक, राजकुमार हिरानी पर एक महिला ने उनकी फ़िल्म "संजू" के दौरान उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था और मुक़दमा किया था, जिसे निर्देशक ने ख़ारिज किया, और आज भी फ़िल्में बना रहे हैं।

जुलाई 2017 में, मलयालम स्टार दिलीप को पुलिस ने एक महिला के उत्पीड़न मामले में हिरासत में लिया था, और अक्टूबर में बरी कर दिया। 2018 में अभिनेता ने पुलिस पर इल्ज़ाम लगाया कि उन्हें फंसाया जा रहा है। दिलीप आज भी फ़िल्मों में काम कर रहे हैं। 

लेखक-अभिनेता पीयूष मिश्रा पर 2018 में एक महिला ने आरोप लगाया था कि किसी पार्टी में पीयूष मिश्रा ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया था। जिसे पीयूष मिश्रा ने ये कह कर टाल दिया कि वो नशे में थे।

संस्कारी अभिनेता के तौर पर पहचान बना चुके अभिनेता आलोकनाथ पर 8 अक्टूबर 2018 को एक प्रोड्यूसर ने facebook पोस्ट के ज़रिये संगीन इल्ज़ाम लगाए। जिसके बाद मुंबई पुलिस ने आलोकनाथ पर बलात्कार का मुक़दमा दर्ज किया। आलोकनाथ ने एनसीडबल्यू से बात करने से इंकार कर दिया और ख़ुद पर लगे आरोपों को भी ख़ारिज करते नज़र आए। बाद में आलोकनाथ को रिहा कर दिया गया और वो आज भी फ़िल्मों में काम कर रहे हैं। 
बॉलीवुड के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी महिलाओं ने कई मर्दों पर यौन उत्पीड़न से जुड़े कई आरोप लगाए हैं। 

एनडीटीवी और उसके बाद द वायर में काम कर चुके पत्रकार विनोद दुआ अक्टूबर 2018 में यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए जो 1989 में हुआ था। वायर ने इस मामले में एक कमेटी बिठाई थी। लेकिन कुछ हफ़्ते तक विनोद दुआ का शो जारी था और एक शो में उन्होंने ये कहा कि metoo मूवमेंट ने आने वाले लोकसभा चुनाव से ध्यान हटा दिया है। विनोद दुआ पर फ़िल्मकार निष्ठा जैन और पत्रकार सुनीता ठाकुर ने इल्ज़ाम लगाए थे। द वायर ने एक कमेटी का गठन किया जिसमें कहा गया कि दोनों में से कोई भी उस वक़्त वायर में नहीं था जब ये घटना हुई थी। हालांकि, metoo के बारे में विनोद दुआ के बयानों के बारे में द वायर ने माफ़ी मांगी थी। 

अब, विनोद दुआ HW News में बतौर एंकर काम कर रहे हैं। 

चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया रंजन गोगोई पर इस साल अप्रैल में कई संगीन इल्ज़ाम लगे थे। जिन्हें कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया। मुक़दमे के दौरान भी रंजन गोगोई काम करते रहे थे। आरोप ख़ारिज होने पर देश भर में इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए। रंजन गोगोई अब निर्दोष बताए जाते हैं। 

पूर्व केन्द्रीय मंत्री एमजे अकबर पर पत्रकार प्रिय रमानी ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए जिसके बाद दसियों महिला पत्रकारों ने उन आरोपों का साथ दिया और एमजे अकबर पर और संगीन आरोप लगाए। मामला बहुत बढ़ने पर अकबर को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। एमजे अकबर का मामला अभी कोर्ट में है। अकबर ने प्रिय रमानी पर मानहानि का मुक़दमा किया और कहा कि सभी आरोप झूठे हैं। अप्रैल की एक सुनवाई में अकबर ने कहा कि "उन्हें याद नहीं है कि ऐसा कुछ हुआ था।" 

इन सभी मामलों में शामिल मर्द और अन्य कई मामलों में आरोपी मर्द आज भी अपने-अपने क्षेत्रों में काम कर रहे हैं और शोहरत कमा रहे हैं। उन पर या तो केस ख़ारिज कर दिये गए हैं या उन्हें बेल मिल गई है।

वहीं दूसरी तरफ़ महिलाओं को metoo मूवमेंट में ख़ुद पर हुए यौन उत्पीड़न, ग़लत व्यवहार पर बोलने की वजह से सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया है, उन्हें झूठा साबित किया गया और कहा गया कि वो लाइमलाइट में रहने के लिए ये सब कर रही हैं। 

ज़्यादातर मामले इसलिए ख़ारिज कर दिये गए हैं क्योंकि उनमें सबूतों की कमी थी, या ये कि महिलाएँ उन मामलों को साबित नहीं कर पाईं। 
metoo जब आया तब देखा गया था कि कितने पहले के मामलों में महिलाओं ने मुखर हो के आवाज़ उठाई और हिम्मत करते हुए ख़ुद पर हुई हिंसा के बारे में बात की। लेकिन उसके बाद क्या हुआ?

किसी भी यौन उत्पीड़न मामले के बाद महिलाओं से उस मामले को 'साबित' करने को कहा जाता है। उनसे सबूत मांगे जाते हैं। उनसे कहा जाता है कि वो प्रूव करें कि उन पर यौन उत्पीड़न, यौन हिंसा या उनके साथ बलात्कार हुआ था। हम ऐसे समाज में हैं जहाँ महिलाओं के बारे में ये सोच रखना कोई नई बात नहीं है कि वो "फ़ेमस" होने के लिए किसी पर इल्ज़ाम लगा रही हैं। 

जिन पर आरोप लगे उन मर्दों ने या तो शराब का हवाला दे कर, या याददाश्त का हवाला दे कर या तो उन आरोपों को ख़ारिज कर दिया, या महिलाओं पर मानहानि के दावे किए, या उनका मज़ाक़ उड़ाया।

महिलाओं से हर मामले में साबित करने को कहा गया है, और मर्दों को शुरू से ही निर्दोष माना गया है।

ऐसा क्यों है? क्योंकि वो मर्द हैं? हाँ! दुर्भाग्यवश हाँ! 

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