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द रियल केरला स्टोरी बनाम फ़ेक केरला स्टोरी

इस्लामोफ़ोबिया से दूर प्यार और मोहब्बत का संदेश देती सिद्दिक परावूर के निर्देशन में बनी एक अन्य फिल्म इन्नु स्वांथम श्रीधरन (आपका अपना श्रीधरन) चर्चा में है। जिसकी कहानी एक मुस्लिम परिवार में पले उन तीन हिन्दू बच्चों की है, जिनकी माँ की मौत के बाद उन्हें इस मुस्लिम परिवार में शरण मिली थी।
ennu swantham sreedharan

हाल ही में रिलीज हुई फीचर फिल्म 'द केरला स्टोरी' को लेकर मीडिया में चर्चा काफी गर्म है, जिसमें असफल रूप से दावा किया गया है कि केरल की 32000 महिलाओं को हिंदू धर्म से इस्लाम में परिवर्तित किया गया जो इस्लामिक स्टेट में भर्ती हुई और आज सीरिया और यमन में दफन हैं। 138 मिनट की यह फिल्म वास्तविकता के हर उपलब्ध उस पहलू को हथियार बनाती है जो यह बयां करती है कि भारत के मुट्ठी भर मुसलमान इस्लामिक स्टेट में भर्ती क्यों हुए, या लोगों ने इस्लाम धर्म का दामन क्यों थामा। केरल में कासरगोड, मल्लपुरम को इस्लामिक स्टेट के लिए खतरनाक भर्ती वाले स्थानों के रूप में दिखाया गया है। फिल्म की मुख्य किरदार आसिफा के फोन की जब रिंगटोन बजती है तो उसमें "अल्लाह" शब्द आता है, और दर्शाया गया है जैसे कि अल्लाह के नाम की रिंगटोन का होना अपने आप में कोई संदिग्ध चीज है या बड़ा कोई अपराध है। पूरी फिल्म को इस्लामोफोबिया की शिकार है।

इस्लामोफोबिया से दूर प्यार और मोहब्बत का संदेश देती सिद्दिक परावूर के निर्देशन में बनी एक अन्य फिल्म इन्नु स्वांथम श्रीधरन (आपका अपना श्रीधरन) चर्चा में है। जिसकी कहानी एक मुस्लिम परिवार में पले उन तीन हिन्दू बच्चों की है, जिनकी माँ की मौत के बाद उन्हें इस मुस्लिम परिवार में शरण मिली थी।

सफदर हाशमी मेमिरियल ट्रस्ट (सहमत) और जनसंस्कृति मंच ने दिल्ली के जवाहर भवन में 19 मई को फिल्म की स्क्रीनिंग की और इसे देखने के लिए सेंकड़ों लोग आए। इस मौके पर फिल्म के निर्देशक सिद्दिक परावूर और श्रीधरन (चक्की का बेटा) दोनों मौजूद थे। हम यहाँ इस ल्हुबसूरत फिल्म की तुलना नफरत से सराबोर द केरला स्टोरी से करेंगे।  

सिद्दिक ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि उन्हे इस कहानी के बारे में तब पता चला जब जुलाई 2019 में उम्मा (मुस्लिम मलयालम में मां को ऊम्मा कहते हैं) के निधन की दुखद खबर को साझा करते हुए, श्रीधरन ने एक फेसबुक पोस्ट में अपनी उम्मा के बारे में लिखा। तो सवाल उठा कि "'श्रीधरन' जोकि हिन्दू है उसके पास 'उम्मा' कैसे है? और कहा गया कि, “आप किसे गुमराह कर रहे हैं? क्या यह फर्जी आईडी है?” ये सवाल खड़े किए गए।   

द रियल केरल स्टोरी 

इसी कड़ी में हाल ही में एक फीचर-फिल्म सामने आई जो एक सच्ची घटना पर आधारित है। केरल के मलप्पुरम जिले के नीलांबुर के कलिकावु गांव की एक मुस्लिम दंपति थेनादन सुबैदा और अब्दुल अजीज हाजी, अपनी घरेलू नौकर चक्की की मौत के बाद उसके तीनों बच्चों को बिना उनका धर्म बदले पालती है और उनकी शादी करती है। जुलाई 2019 में किडनी की बीमारी के कारण सुबैदा का निधन हो गया और दो साल बाद उनके पति अजीज हाजी का भी निधन हो गया था। परिवार की दिल इस छू लेने वाली कहानी को अब प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सिद्दीक परवूर ने स्क्रीन पर उतारा है। चक्की के सबसे छोटे बच्चों पर आधारित फिल्म एन्नु स्वंतम श्रीधरन ('विद लव, श्रीधरन') का प्रीमियर 9 जनवरी को एडापल्ली के वनिता थिएटर में हुआ।

एक दिन बाद, श्रीधरन ने फैसला किया था कि वह समाज के भीतर छाई इस किस्म की हठधर्मिता का जवाब देगा। श्रीधरन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “उम्मा और उप्पा (पिता) की खुद की तीन संताने थी। जिनमें जोशिना भी शामिल थी, जो हमारे घर में शरण लेने के कुछ साल बाद पैदा हुई थी। लेकिन हमें कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि हम कोई अलग हैं या किसी आँय धर्म से हैं। वह एकमात्र घर है जो लगा कि यह मेरा अपना घर है। मैंने बड़ों से यह भी सुना था कि उम्मा मुझे और जाफर को एक साथ स्तनपान कराती थी।" श्रीधरन ने अपनी फेसबुक पोस्ट में अपने जीवन की जो कहानी की, उसका मक़सद दुनिया को यह बताना था कि प्यार और आपस में मिलजुलकर रहना ही असली केरल की कहानी है।”

श्रीधरन कहा कि उन्होंने उम्मा और अप्पा से पूछा था कि वे उन्हें इस्लाम धर्म क्यों नहीं कबूल करा लेते? यह सुन वे चिंतित हो गए। "उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या किसी ने मुझे कुछ बुरा कहा है। जब मैंने उन्हें कहा कि ऐसा कुछ नहीं है, तो उन्होंने मुझे समझाया कि हमें धर्म को किसी को परिभाषित नहीं करने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी धर्म एक ही बात का प्रचार करते हैं वह है लोगों से प्यार करना और उनकी मदद करना, और बतया कि ये इंसान ही हैं जो जो धर्म या उसकी शिक्षाओं की गलत व्याख्या करते हैं।”

“उन्होंने हमें यह भी सिखाया कि कोई भी धर्म हो इससे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। मैं और मेरी बहनें मंदिर जाते थे, अपने माथे पर चंदन के टीके लगाते थे। उम्मा को इससे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता था वे हमसे केवल यह चाहती थीं कि हम झूठ न बोलें, चोरी न करें या दूसरों को चोट न पहुँचाएँ। और हमने इस बात का भी ध्यान रखा कि कभी भी ऐसा कुछ न करें जिससे उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे।"

श्रीधरन इस बात से भी वाकिफ हैं कि अगर उन्हें और उनकी बहनों को सुबैदा ने गोद नहीं लिया होता, तो उनका जीवन बहुत अलग होता, खासकर उनके परिवार की जाति पृष्ठभूमि को देखते हुए। “हम निचली जाति के हैं। जब हम बड़े हो रहे थे तो लोग हमसे उम्मीद करते थे कि हम उनके अधीन रहेंगे। उस समय की यही संस्कृति थी। लेकिन उप्पा और उम्मा ने हमें ऐसा नहीं करना सिखाया। उन्होंने हमसे कहा कि हमें बिना वजह किसी के सामने नहीं झुकना चाहिए।'

फिल्म निर्देशक सिद्दीक को याद है कि जब सुबैदा के गाँव पहुँचने के बाद उनके बारे में दिल को छू लेने वाली कहानी सुनी तो वे दंग रह गए। सुबैदा के गाँव “कालीकावु में हर कोई उसे जानता था और उससे प्यार करता था। अपने पूरे जीवन में, उन्होंने अपने पुश्तैनी धन को खुद पर नहीं, बल्कि वंचितों तबकों की मदद करने के लिए खर्च किया। सुबैदा हर साल उनके लिए कपड़े और आभूषण खरीदती थी। उसके पास करीब 12 एकड़ जमीन थी, जिसे उसने जरूरतमंद लोगों को दान कर दिया था। यहां तक कि सुबैदा ने गरीब लोगों की मदद के लिए कर्ज़ तक लिया। जब उनकी मृत्यु हुई, तो वह लगभग 28 लाख रुपये के कर्ज में डूबी हुई थीं। बाद में उनके बड़े बेटे ने इस कर्ज़ को चुकाया था।” 

सिद्दिक बताते हैं कि “खुद अजीज हाजी थे जिन्होंने केमरे का पहले शॉट लिया था। वे सभी इस बात से खुश थे कि अधिक से अधिक लोग अब उनकी सुबैदा और उस परोपकारी महिला के बारे में जानेंगे जो वह थी। दुर्भाग्य से, अजीज हाजी का एक साल बाद कोविड-19 महामारी के दौरान निधन हो गया था।“

निर्देशक सिद्दिक कहते हैं कि "लोग स्वाभाविक रूप से अच्छे होते हैं। लेकिन कभी-कभी हमें उनकी अच्छाई याद दिलाने के लिए ऐसी कहानियों की जरूरत होती है। नफरत और दुष्प्रचार के इस माहौल में सुबैदा को याद किया जाना चाहिए, और उनकी कहानी को बार-बार सुनाया जाना चाहिए।”

फ़ेक केरला स्टोरी

लेकिन दुष्प्रचार पर आधारित फिल्म द केरला स्टोरी के तथ्यों और मुसलमानों के खिलाफ प्रचार को लेकर देश के बड़े हिस्से में और खासकर केरल में इसे चुनौती दी गई है। सर्वोच्च न्यायालय के सामने बंगाल में फिल्म पर लगे प्रतिबंध को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान फिल्म निर्माता की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील हरीश सालवे ने खुद इस बात को माना कि “इस बात का कोई प्रामाणिक डेटा नहीं है कि जो फिल्म में दिया गया धर्म परिवर्तन के आंकड़े को समर्थन कर सके कि 32000 महिलाओं का धर्म परिवर्तन किया गया है या कोई अन्य स्थापित आंकड़ा नहीं है और फिल्म इस मुद्दे का काल्पनिक संस्करण है, जिसे फिल्म दिखाते वक़्त जोड़ा जाना चाहिए।” 

द केरला स्टोरी, काल्पनिक मनगढ़ंत कहानियां और मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार को बढ़ावा देने के लिए झूठे आंकड़ों पर बनाई गई फिल्म है जिसका प्रचार प्रधानमंत्री मोदी खुद कर रहे हैं और भाजपा राज्य सरकारें फिल्म को टैक्स-फ्री कर रही हैं। इस दुष्प्रचार का यह अपने आप में खतरनाक पहलू है कि मोदी सरकार भाजपा शासित राज्य सरकारें मुस्लिम समुदाय के खिलाफ इस किस्म के दुष्प्रचार में शामिल हैं।  

दूसरी तरफ ऐसी हजारों कहानियाँ हैं जो एक ऐसे केरल के बारे में बताती है जहां देश में नफरत भरे माहौल के बावजूद सभी समुदाय के लोग धार्मिक और जातीय विद्वेष से दूर शांतिपूर्ण तरीके से रहते हैं। 

फिल्म के दुष्प्रचार का जवाब देने के लिए कई हस्तियाँ सामने आई हैं। यूट्यूबर ध्रुव राठी ने विस्तार से बताया कि केरल की तस्वीर जो फिल में दिखाई गई है वह झूठी और बेबुनियाद है। उन्होने आंकड़े देकर समझाया कि एनआईए के आंकड़े भी यह साबित नहीं कर पाते हैं कि केरल इस्लामिक स्टेट में भर्ती का कोई बहुत बड़ा स्थान है। एनआईए के मुताबिक कुल 6 महिलाएं हैं जो इस्लामिक स्टेट का हिसा बनी उनमें से 3 मुस्लमान थीं, 3 महिलाओं ने इस्लाम कबूल  किया और इन तीन में 2 ईसाई और एक हिन्दू थी। यानि कहां 32000 का झूठा आंकड़ा और कहां मात्र 3 महिलाओं का धर्म परिवर्तन करना?

प्रसिद्ध फिल्म कलाकार जॉन अब्राहम से जब तीन साल पहले मीडिया ने पूछा कि ऐसा क्यों है कि केरल अभी तक मोदी की तरफ नहीं झुका है? अब्राहम ने जवाब में कहा कि केरल एक ऐसी जगह है जहां मंदिर, मस्जिद और गिरजाघर 10 मीटर की दूरी पर पाए जाते हैं और सभी धर्मों के लोग एक-साथ मिलकर शांतिपूर्ण तरीके से रहते हैं। वहां धर्म के नाम पर कोई नफ़रत नहीं है। ऐसी हाजारों कहानियाँ और किस्से हैं जो केरल के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को दर्शाती हैं।

हजारों कहानियां और किस्से हैं जो केरल के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को दर्शाते हैं। कोई भी गलत सूचना या नफरत का अभियान केरल की छवि को धूमिल नहीं कर सकता है, जिसे केरल के लोगों ने सामाजिक, राजनीतिक और स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के माध्यम से अर्जित किया है।

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