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नागरिकता संशोधन बिल भले पास नहीं हुआ लेकिन पूर्वोत्तर अब भी उबल रहा है

मणिपुर, मिजोरम तथा असम में कार्रवाई का सामना करते हुए प्रदर्शनकारियों ने इस विधेयक और बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई को तेज़ कर दिया है।
citizenship bill
image courtesy - indian express

बीजेपी के काफी कोशिशों के बावजूद नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 राज्यसभा में बजट सत्र के आख़िरी दिन यानी बुधवार 13 फरवरी को पारित नहीं हो सका। सदन के सदस्यों ने इसका भारी विरोध किया। उधर असम में इसका स्वागत किया गया जबकि पूर्वोत्तर के अन्य हिस्सों में विशेष रूप से मिजोरम और मणिपुर में विरोध अभी भी जारी है।

बुधवार को मणिपुर और मिजोरम सहित पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में इंटरनेट सेवाएं बाधित रहीं। राज्य सरकार द्वारा कार्रवाई के बावजूद स्थानीय स्त्रोतों ने जानकारी दी है कि विरोध प्रदर्शन अभी भी जारी है और तेज़ हो रहा है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए मणिपुर स्टूडेंट्स एसोसिएशन दिल्ली (एमएसएडी) के बीवन ने कहा, “इंटरनेट बाधित होने के बावजूद राज्य से हमें कुछ जानकारी मिल रही है। विरोध अब भी तेज़ हो रहे हैं और जगह जगह पर धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। अब इस विधेयक के पारित न होने से उम्मीद है कि इस विरोध प्रदर्शन में कमी आएगी।”

लोगों को इस आंदोलन को तेज़ करने के लिए आग्रह करते हुए लगभग 70 से अधिक संगठनों के समूह मणिपुर पीपल्स अगेंस्ट सिटिज़ेनशिप अमेंडमेंट बिल (एमएएनपीएसी) ने 12 फरवरी को 'प्रलय का दिन’ घोषित किया। एमएएनपीएसी की देखरेख में इस विधेयक के ख़िलाफ़ राज्य में बड़े पैमाने पर आंदोलन जारी है। रिपोर्ट के अनुसार खुरई में स्थानीय लोगों ने खुरई तिनसिड मार्ग को ब्लॉक कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर टायर जलाए और इस बिल के ख़िलाफ़ नारे लगाए।

इस बीच जारी कर्फ्यू के बीच थैंगमीबैंड यूनाइटेड क्लब के साथ-साथ थांगमीबैंड के निवासियों द्वारा हंगर स्ट्राइक किया जा रहा है। बिष्णुपुर बाज़ार की महिला वेंडरों ने इस इलाक़े में मशाल रैली निकाली और बाज़ार के इलाक़े में रात बिताया। थौबल बाज़ार और थौबल कियम सिफाई में भी मशाल रैली निकाली गई। इम्फाल में मायांग के स्थानीय लोगों ने विधायक रॉबिन्द्रो के घर का घेराव करने के अलावा मशाल रैली भी निकाला। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे। लोगों ने कीशामपत जंक्शन और कीशमथोंग में भी मशाल रैली निकाला। इम्फाल पश्चिमी ज़िले के कांचीपुर के लोगों ने इस विधेयक को वापस लेने की मांग को लेकर नग्न प्रदर्शन किया।

मिजोरम में विवाद तब बढ़ गया जब पूर्व मुख्यमंत्री लाल थनहवला सिविल सोसाइटी समूहों द्वारा आयोजित एक आंदोलन कार्यक्रम में भाग लिया और इस कार्यक्रम में काले बैनर लिए हुए थे जिस पर लिखा था, "हैलो इंडिपेंडेंट रिपब्लिक ऑफ मिज़ोरम"। ज्वाइंट एनजीओ कोऑर्डिनेशन कमेटी ने 'इंडिपेंडेंट रिपब्लिक ऑफ मिजोरम' की भी घोषणा की। प्लेकार्ड और बैनर पर लिखा था 'हैलो न्यू क्रिश्चियन कंट्री’, 'हैलो इंडिपेंडेंस’ वगैरह-वगैरह। स्कूली बच्चों सहित प्रदर्शनकारी शांतिपूर्ण विरोध के लिए आइज़ॉल के सिटी स्क्वायर पर इकट्ठा हुए।

बीजेपी के सहयोगी दलों सहित पूर्वोत्तर की राजनीतिक पार्टियां इस बिल का विरोध कर रही हैं जो 8 जनवरी को लोकसभा में पारित हो गया। इन पार्टियों के नेता लगातार यह कहते रहे हैं कि ये विधेयक इस इलाक़े के लोगों के हितों से समझौता करेगा। मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने बीजेपी को धमकी दी कि अगर राज्यसभा से विधेयक पारित होता है तो वह बीजेपी के अगुवाई वाली एनडीए गठबंधन से अपनी राष्ट्रीय पीपल्स पार्टी का समर्थन वापस ले लेंगे। यहां तक कि मिजोरम में बीजेपी की सहयोगी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने भी इस बिल का पूरज़ोर विरोध किया है। पिछले महीने मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने इस विधेयक के विरोध में समर्थन देने के लिए गुवाहाटी में मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा द्वारा बुलाई गई बैठक में पूर्वोत्तर के अन्य राजनीतिक दलों से मुलाक़ात की थी। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह ने सोमवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाक़ात की और उनसे राज्यसभा में इस विधेयक को पेश नहीं करने का अनुरोध किया।

अवैध अप्रवासियों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को भारतीय नागरिकता के योग्य बनाने के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 पर लगातार ज़ोर दे रही है। बीजेपी के इस कोशिश को कई लोग लोक सभा चुनावों से पहले हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नागरिकता विधेयक को पारित करने में मदद करने के लिए इसे एक ’राष्ट्रीय जिम्मेदारी’ बताया है और भारत में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के पुनर्वास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया है। मोदी के बयानों को इन इलाक़ों में सांप्रदायिक तनावों को हवा देने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। विशेष रूप से इस संदर्भ में जिसके तहत असम में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) से 40 लाख से अधिक लोगों को निकाल दिया गया है। यह उन लोगों को नागरिकता देने की एक बड़ी प्रक्रिया है जो 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थें।

हालांकि पूर्वोत्तर के लोगों ने वोट बैंकों के ध्रुवीकरण के उद्देश्य से बीजेपी के सांप्रदायिक प्रोपगैंडा को सफल नहीं होने दिया। पिछले कुछ महीनों में नाराज़ प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले को जलाकर और पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के ख़िलाफ़ नारे लगाते हुए विरोध प्रदर्शन तेज़ कर दिया है। विधेयक पारित न होने के चलते इस विधेयक को फिर से अब लोकसभा में प्रस्तुत करना होगा जो कि नई सरकार के गठन के बाद ही संभव होगा।

नागरिकता (संशोधन) विधेयक एकमात्र ऐसा विधेयक नहीं था जो पारित नहीं हो सका। विवादास्पद ट्रिपल तलाक़ बिल भी बजट सत्र का आखिरी दिन राज्यसभा में पारित नहीं हुआ।

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