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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समय सीमा तीसरी बार बढ़ाई गई

ये समीति सुब्रमण्यम समीति द्वारा तैयार किए गए एनईपी से "इनपुट" भी लेगी जिसे शिक्षा के निजीकरण, व्यावसायीकरण और भगवाकरण को बढ़ावा देने की निंदा और आलोचना के बाद रद्द कर दिया गया था।
education policy

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का मसौदा तैयार करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा गठित समीति की अंतिम रिपोर्ट जमा करने की समय सीमा तीसरी बार बढ़ाई गयी। मसौदा तैयार करने की अंतिम समय सीमा 31 जून 2018 थी जिसे अब बढ़ाकर 31 अगस्त 2018 कर दिया गया है। इससे पहले  इस समीति को अपनी  रिपोर्ट दिसंबर 2017 तक जमा करनी थी। डॉ के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली इस आठ सदसीय समीति को 24 जून 2017 को गठित किया गया था।

ये समीति 30 अप्रैल 2016 को प्रस्तुत पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली पिछली मसौदा समीति की रिपोर्ट से भी "इनपुट" लेगी। इस रिपोर्ट की आलोचना संबंधित शिक्षाविदों, पेशेवरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा की गई थी। इसकी पहली आलोचना शिक्षा क्षेत्र में व्यावसायीकरण और निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए की गई थी जबकि दूसरी आलोचना इसके ग़ैर-वैज्ञानिक, हिंदू कौमपरस्ती, दक्षिणपंथी सांस्कृति और राष्ट्रवाद की जुमलेबाजी को लेकर की गई थी। इसके बाद सरकार ने इस रिपोर्ट को रद्द कर दिया और वर्तमान समीति गठित की।

2014 के चुनावी घोषणापत्र में यह उल्लेख किया गया है कि "बीजेपी शिक्षा पर राष्ट्रीय समीति का गठन करेगी जो दो साल में शिक्षा की स्थिति और सुधार की आवश्यकताओं पर रिपोर्ट सौंपेगी। इस रिपोर्ट के आधार पर बीजेपी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करेगी।" अगले आम चुनाव में अब कुछ ही समय बाकी है और कई अन्य वादों के साथ ये वादा भी पूरा नहीं हुआ है। और जैसा कि इस सरकार को औपचारिक रूप से नीति सौंपने की आवश्यकता नहीं है और न ही स्थापित प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता है, जैसा कि इसके पिछले 4 वर्षों के अनुभव बताता है।

हालांकि सरकार इस द्वारा 'नीति' को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है, यूजीसी को समाप्त करने और शिक्षा के विशाल क्षेत्र यानी प्राथमिक से उच्च स्तर तक निजी क्षेत्र को सौंपने के लिए निरंतर अभियान स्थापित करने के माध्यम से भारत की शिक्षा प्रणाली की संरचना और अभिमुखता में संपूर्ण परिवर्तन किया जा रहा है। शैक्षिक सेवाओं में व्यापार और शिक्षा क्षेत्र खोलने के लिए वैश्विक मांगों के साथ पंक्तिबद्ध करना ऐसा लगता है कि यह प्रमुख कार्य है जबकि शैक्षिक पाठ्यक्रम का भगवाकरण अन्य कार्य है।

यद्यपि ये सारी गतिविधि नई नीति को काफी हद तक निर्रथक बनाती है, आइए हम इस बारे में सोचें कि यह कैसा हो सकता है।अब तक इस मसौदे नीति की सामग्री का कोई उल्लेख सार्वजनिक नहीं किया गया है, हालांकि मंत्रालय का कहना है कि रिपोर्ट संकलित कर लिया गया है। मानव संसाधन एवं विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और अन्य बीजेपी मंत्रियों ने कहा कि संस्कृत, हिंदी, वैदिक शिक्षा और योग तथा आयुर्वेद जैसे प्राचीन ज्ञान-प्रणालियों को नया आकर्षण मिलेगा; कि यह कौशल शिक्षा (विशेष रूप से विपणन योग्य कौशल) और "विश्व स्तरीय संस्थानों" पर ध्यान केंद्रित करेगा।

मोदी शासन का कार्य बीजेपी के 2014 के चुनावी घोषणापत्र के समान है जिसमें कहा गया है कि वे "उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के कदमों के साथ स्वायत्तता प्रदान करेंगे।" शिक्षा के भगवाकरण, निजीकरण और व्यावसायीकरण की दिशा में ये क़दम समाज में समावेश और सहिष्णुता का प्रचार करते हुए, समाज के वंचित वर्गों और सरकारी शिक्षा संस्थानों में सुधार के लिए उचित पहुंच का विस्तार करते हुए नए एनईपी के मसौदे के द्वारा संभवतः आगे बढ़ाया जाएगा।

यूजीसी की जगह भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) के गठन का हालिया क़दम उनके घोषणापत्र के अनुसार है, जिसमें कहा गया है कि "यूजीसी का पुनर्गठन किया जाएगा और इसे केवल अनुदान वितरण एजेंसी होने की बजाय उच्च शिक्षा आयोग में बदल दिया जाएगा।"सुब्रमण्यम समीति की रिपोर्ट और एनईपी 2016 का मसौदा बीजेपी और आरएसएस के बयानों का पालन कर रहा था, और पूर्ववर्ती मसौदे के जवाब में उठाए गए कुछ मामलों को देखकर आने वाले मसौदे की सामग्री का संकेत प्राप्त किया जा सकता है। ये बीजेपी, आरएसएस और ग्लोबल फाइनेंस कैपिटल की इच्छाओं को स्वीकार करने और बढ़ावा देने में सुब्रमण्यम समीति की जटिलता को चित्रित करेंगे।

इंडियन कल्चर फॉरम द्वारा प्रकाशित प्रोफेसर अजय एस सेखर के एक लेख में एनईपी 2016 की व्याख्या कुछ इस प्रकार की गई है:
"संक्षेप में, इस एनईपी 2016 के मसौदे के पीछे स्पष्ट रूप से एमएचआरडी और सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी के थिंक टैंक और पूरी तरह से ब्राह्मणवादी आरएसएस विचारधारा है। यह वैदिक और वर्णाश्रम हिंदू विश्व दृष्टिकोण और नव उदार कॉर्पोरेट ब्राह्मणवाद के पक्ष में है। अगर हमें लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष भारत के विचार को बचाना है तो इसका धर्मनिरपेक्ष अकादमिक समुदाय और नागरिकों द्वारा सामान्य रूप से चुनौती, जांच और विरोध किया जाना चाहिए।"

द हिंदू में प्रकाशित रोहित धंकर द्वारा लिखा गया एक लेख सुब्रमण्यम समीति की रिपोर्ट और एनईपी 2016 मसौदा की भारी आलोचना के साथ एक पैरग्राफ के साथ समाप्त होता है। यह इस तरह है:
"अंत में कोई यह कह सकता है कि लचीले नागरिकों के निर्माण के लिए शिक्षा को बदलने की एक नीति है जो सरकार के मुताबिक काम करे जैसा कि उस पर विश्वास करे, पालन करे,उत्पादन करे लेकिन न विचार करे और न सवाल करे। यह नागरिक शिक्षा को कम करने के लिए एक शिक्षा प्रणाली तैयार करने की एक नीति है। यह भारत को एक बार फिर याद रखने की ज़रूरत है कि एक न्यायसंगत और कार्यरत लोकतंत्र पूर्णतः नागरिकों पर निर्भर करता है जो स्पष्ट रूप से और गंभीर रूप से सोच सकते हैं और जो जोखिम के मुकाबले अपनी आस्था पर काम कर सकते हैं। तथाकथित ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्थाओं में आज्ञाकारी उत्पादक इकाइयों द्वारा लोकतंत्र बनाए रखा नहीं जाता है। हालांकि यह ठीक है कि हमारे नए एनईपी 2016 पर विचार किया गया है।"
यह उम्मीद की जा सकती है कि इन मामलों को भी नई नीति में संबोधित नहीं किया जाएगा। नई नीति के रूप में भारतीय शिक्षा प्रणाली के निजीकरण, व्यावसायीकरण और भगवाकरण को बढ़ावा देना जारी रहेगा।
 

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