नफ़ा-नुक़सान से आगे जाकर डीटीसी को बचाने और बढ़ाने की ज़रूरत
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार 8 जून को दिल्ली सरकार का परिणाम बजट (आउटकम बजट) जारी किया। बजट के अनुसार, दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) खराब स्थिति में है, और घाटे में है। हालांकि, दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टी-मोडल ट्रांजिट सिस्टम (डीआईएमटीएस) के तहत विभाग की क्लस्टर बसें आय में वृद्धि हुई है।
वर्ष 2017-18 में सड़क पर चलने वाली डीटीसी बसों की संख्या 3,974 थी। दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य को 2018-2019तक 4,176 तक बढ़ाना था। हालांकि, यह संख्या 3,897 पर ही रुक गई। परिणाम बजट के अनुसार, 2018-2019 में डीआईएमटीएस क्लस्टर प्रणाली की संख्या 2,758 करने का लक्ष्य रखा गया था, हालांकि, वर्तमान में क्लस्टर बसों की संख्या 1,679 ही है।
वर्ष 2018-2019 के दौरान, डीटीसी की औसत दैनिक सवारियों में थोड़ा सुधार हुआ, जो प्रतिदिन 33 लाख यात्रियों के लक्ष्य के साथ32.93 लाख थी। वर्ष 2019-2020 के लिए लक्ष्य 33.50 लाख निर्धारित किया गया है। 2018-2019 में 12.24 लाख के लक्ष्य के मुकाबले DIMTS बसों की औसत सवारियां 12 लाख थी।
इसको लेकर कई लोगो सवाल कर रहे है की डीटीसी लगातर घाटे में जा रही है जबकि निजी कम्पनी द्वार संचालित बसे फायदे में रहती है क्यों?
इसको लेकर एक बात समझनी चाहिए की डीटीसी सर्वजनिक परिवहन है न कोई प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी, जिसका आकलन और संचालन नफे-नुकसान की वजह से किया जाए, बल्कि इनका आकलन उनके काम के आधार पर किया जाना चाहिए कि क्या वो शहर के आमजन को सुविधा देने में सफल रही है। क्या आम जन के लिए पर्याप्त गाड़ियां हैं और सफ़र सुरक्षित है। क्या उसके कर्मचारियों को भी सरकार बेहतर वेतन और सुविधाएं दे पा रही है।
इसे भी पढ़ें: डीटीसी की हड़ताल सफल, सरकार ने वेतन कटौती का सर्कुलर वापस लिया
शायद हमारी सरकारें इस तरफ ध्यान नहीं देती हैं। अगर ऐसा होता तो आज दिल्ली के हज़ारों डीटीसी कर्मचारी और इस निगम की यह खस्ता हालत नहीं होती। डीटीसी के कर्मचारी पिछले काफी समय से ट्रेड यूनियन के साथ आवाज उठती रहे हैं लेकिन कभी भी किसी सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया है। डीटीसी कर्मचारियों का कहना की आज उनकी स्थिति दयनीय है, न ही उनको उनके काम का पूरा दाम मिल रहा है न ही सामाजिक सुरक्षा।
ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (एक्टू) के दिल्ली राज्य सचिव अभिषेक कुमार ने न्यूज़क्लिक से कहा, “अगर कर्मचारी खुश नहीं हैं तो डीटीसी कैसे बच सकती है? कर्मचारी, ड्राइवर, कंडक्टर लगातार अपनी आजीविका के बारे में अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। उनके पास पर्याप्त बसें नहीं हैं, कर्मचारियों को स्थायी नहीं किया जा रहा है, उन्हें उचित वेतन नहीं मिल रहा है।”
डीटीसी कर्मचारियों की अलग-अलग यूनियनों के अनुसार, ट्रांसपोर्टर के अधिकांश कर्मचारी अनुबंध के आधार पर काम करते हैं। अभिषेक ने कहा, “सरकार यूनियनों से बात नहीं करना चाहती। वे यह नहीं सुनना चाहते कि कर्मचारी क्या चाहते हैं।” उन्होंने कहा कि यूनियनों ने दिल्ली के विकास, श्रम और रोजगार, सामान्य प्रशासन विभाग और मंत्री गोपाल राय को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। यह पत्र अंतत: श्रम आयुक्त के पास पहुंचा, जिन्होंने अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक और अन्य अधिकारियों से मजदूर संघों के साथ मुद्दों पर चर्चा करने का आग्रह किया। अभिषेक ने कहा, "लेकिन वे अभी हमारे किसी भी मुद्दे पर हमसे बात नहीं करना चाहते हैं।"
इसे भी पढ़ें: भाजपा का दोहरा रवैया : डीटीसी के समर्थन का दावा, हरियाणा में रोडवेज़ कर्मियों का दमन
दिल्ली के लिए डीटीसी क्यों जरूरी है?
डीटीसी अभी दिल्ली में वर्किंग क्लास के लिए लाइफ लाइन है। उनके लिए कहीं आने जाने का एक अहम साधन हैं डीटीसी बसें। कैब इत्यादि तो छोड़िए मेट्रो का किराया भी आम लोगों की क्षमता से बाहर जा रहा है। दिल्ली सरकार मेट्रो को भी महिलाओं के लिए मुफ्त करने की बात कर रही है, लेकिन फिलहाल इसमें कई दिक्क़ते हैं। इसके अलावा सरकार ने यह नहीं माना है कि डीटीसी बसें महिलाओं के लिए असुरक्षित हैं, उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि दिल्ली मेट्रो महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन का सबसे सुरक्षित साधन है। लेकिन किसी भी बस सेवा की तुलना में डीटीसी कहीं बेहतर है।
परिणाम बजट के अनुसार, 2017-2018 में डीटीसी बसों में यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैनात बस मार्शल की संख्या 3,153 थी।2018-2019 में यह संख्या बढ़कर 4,280 हो गई, लेकिन बसों में केवल 3,041 मार्शल ही उपलब्ध थे। सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के दौरान सभी डीटीसी और क्लस्टर बसों में मार्शल तैनात करना है। परिणाम के बजट से यह भी पता चला है कि बसों में अभी तक सरकार सीसीटीवी कैमरे लगाने में सफल नहीं हुई हैं। हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने दावा किया है कि जून में ही सभी बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और नवंबर 2019 तक काम पूरा हो जाएगा।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, डीटीसी कर्मचारी राजेश कुमार ने कहा, “हर कोई DIMTS की कमाई में वृद्धि के बारे में बात कर रहा है। हालांकि, जो कोई नहीं जानता है कि डीआईएमटीएस के कर्मचारियों को हर रोज एक निश्चित संख्या में किलोमीटर कवर करना पड़ता है। जब तक वे पूर्व निर्धारित दूरी को कवर नहीं करते, तब तक उन्हें उनके वेतन का भुगतान नहीं किया जाता है। जिस कारण कर्मचारियों द्वारा बसों को सवारी की जान को जोखिम में डालकर तेज़ी से भगाई जाती है। क्योंकि वो अपना टारगेट पूरा करना चाहते हैं और अपना वेतन प्राप्त करना चाहते हैं। वे इसके लिए भीड़-भाड़ वाले बस स्टैंड पर रुकते हैं, लेकिन जिस बस स्टैंड पर यात्रियों की संख्या कम होती है वहाँ नहीं रुकते हैं, क्योंकि वो जितने अधिक टिकटों को बेचेंगे उसके आधार पर प्रोत्साहन मिलता है।"
महिलाओं को लिए डीटीसी मुफ़्त करना अच्छा लेकिन जब डीटीसी के पास संसाधन नहीं तो यह कैसे होगा?
अभिषेक कुमार ने कहा, “हम महिलाओं को सार्वजनिक परिवहन मुफ्त बनाने के लिए इस प्रस्ताव का स्वागत करते हैं। हालाँकि, हम यह नहीं समझ सकते कि इस योजना को कैसे लागू किया जाएगा, क्योंकि दिल्ली सरकार के पास पहले से पर्याप्त बसें नहीं हैं?एक साल से डीटीसी में कोई नई सरकारी बस नहीं आई है।”
उन्होंने कहा, "हर कोई जानता है कि इस योजना को दिल्ली मेट्रो में लागू नहीं किया जा सकता है। DMRC में केंद्र सरकार की समान भागीदारी है, वे ऐसा नहीं होने देंगे।” दिल्ली मेट्रो दिल्ली सरकार के साथ-साथ आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत आती है। विभाग के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने केजरीवाल की घोषणा के तुरंत बाद कहा कि महिलाओं के लिए मेट्रो की सवारी को मुफ्त बनाना संभव नहीं है। उन्होंने योजना को जुमला कहा, और कहा कि सीएम की कोई निश्चित योजना नहीं है।
अभिषेक ने कहा, “डीटीसी बसों में इस योजना को लागू किया जा सकता है। लेकिन अगर डीटीसी बसों की संख्या नहीं बढ़ाई गई तो महिलाएं इस योजना से कैसे लाभान्वित होंगी?”
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।