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बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में उलझ कर रह गया है नाटो 

नाटो महासचिव की “बुलंद मर्दाना आवाज” इस बार पहले की तुलना में तब खामोश नजर आई जब उन्होंने इस तथ्य को स्वीकारा कि तुर्की की आपत्ति की वजह से गठबंधन के शिखर सम्मेलन के दौरान स्वीडन और फ़िनलैंड की सदस्यता के प्रयासों को फिलवक्त के लिए हल कर पाना संभव नहीं है। 
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नाटो महासचिव जेंस स्टोल्टेनबर्ग (बायें) और स्वीडन की प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एन्डरसन (दायें) ने 13 जून, 2022 को संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया।

जर्मनी के लोगों में यह कहावत मशहूर है कि अधिकांश बच्चों के लिए सत्य का क्षण ग्रेड 4 के समाप्त होने पर आता है जब ग्रुंडस्चूल  में उनकी प्राथमिक शिक्षा पूरी हो जाती है। उस हिसाब से देखें तो, उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) अपने 73वें वर्ष में है, और इस लिहाज से यदि शेक्सपियर के नाटक, एज यू लाइक इट के प्रसिद्ध स्व-भाषण को उधृत किया जाये तो - यह “दूसरा बचकानापन है जो सिवाय भुलक्कड़पने/बिना दांतों, बिना आँखों, बिना स्वाद और बिना किसी भी चीज के साथ है।”

निश्चित रूप से नाटो महासचिव जेंस स्टोल्टेनबर्ग की “बुलंद मर्दाना आवाज” उस समय पूरी तरह से खामोश दिखी जब उन्होंने सोमवार को सार्वजनिक तौर पर इस बात को स्वीकारा कि तुर्की की आपत्ति के चलते मेड्रिड में इस माह के अंत में होने जा रहे गठबंधन के शिखर सम्मलेन के समय तक स्वीडन और फ़िनलैंड की नाटो सदस्यता के मसले को संभवतः हल नहीं किया जा सकता है। 

स्टॉकहोम में संवावदाता सम्मेलन के दौरान बोलते हुए स्वीडिश प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एंडरसन के साथ स्टोल्टेनबर्ग ने करीब-करीब टालने वाले अंदाज में कहा: “मेड्रिड शिखर वार्ता को कभी भी अंतिम नहीं माना जा सकता है, लेकिन इसी के साथ हम जल्द से जल्द इसके समाधान को तलाशने के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन जब इसमें कई या अनेकों देश शामिल रहते हैं, तो ऐसी स्थिति में इस बात को ठीक-ठीक कह पाना संभव नहीं है कि कब ये सभी देश इस पर एकमत होते हैं।”

यह 18 मई को उनके द्वारा तेज-तर्रार स्वर की तुलना में बड़े पैमाने पर पीछे हटने जैसा है, जब  स्टोल्टेनबर्ग ने स्वीडन और फ़िनलैंड के द्वारा सदस्यता के लिए आवदेन को औपचारिक रूप से प्रस्तुत करने को एक “ऐतिहासिक क्षण जिसे हमें (नाटो) निश्चित रूप से हथिया लेना चाहिए” के तौर पर पेश किया था। 

ख़ुशी से लबरेज स्टोल्टेनबर्ग ने नाटो में फ़िनलैंड और स्वीडन के राजदूतों के साथ खड़े होकर कहा था, “हमारी सुरक्षा के लिए यह एक बेहद महत्वपूर्ण क्षण वाला शुभ दिन है। उपरोक्त संदर्भ निश्चित रूप से पूरी तरह से नाटकीय था - दिसंबर में रूस ने नाटो से क़ानूनी गारंटी की मांग की थी, कि नाटो उसकी सीमाओं की ओर अपने विस्तार पर विराम लगा दे, जिसे गठबंधन ने सीधे-सीधे नजरअंदाज कर दिया था और स्टोल्टेनबर्ग जबरिया एक और नाटो विस्तार की घोषणा कर रहे थे। 

स्टोल्टेनबर्ग उस दौरान पूरी तरह से सक्रिय थे, क्योंकि उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का समर्थन मिला हुआ था, जो उसी दिन 18 मई को व्हाईट हाउस के रोज गार्डन में स्वीडिश प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एंडरसन और फ़िनलैंड के राष्ट्रपति सौली निनिस्तो के साथ मौजूद थे। उस दौरान यह भी घोषणा की गई थी कि दोनों नोर्डिक देशों को नाटो में शामिल होने के लिए उनके द्वारा किये गए आवेदन पर अमेरिका का “पूर्ण समर्थन” प्राप्त है।

बाइडेन ने कहा था कि वे उसी दिन कांग्रेस के समक्ष उनकी बोलियों का अनुमोदन करने के लिए कागजी कार्यवाही को भिजवा रहे हैं और घोषणा की कि, “फ़िनलैंड और स्वीडन के शामिल होने से नाटो पहले से अधिक सशक्त हो जायेगा। और एक मजबूत और एकताबद्ध नाटो, अमेरिका की सुरक्षा के लिए एक नींव के समान है।” निश्चित रूप से, यह पार्टी अपनेआप में कमाल की थी।

किंतु न तो बाइडेन और न ही स्टोल्टेनबर्ग ने इस बारे में पूर्वानुमान लगा रखा था कि सेब में लगा कोई कीड़ा उनके किये-कराए पर पानी डाल सकता है। उनकी ओर से इस बात पर भी यथोचित ध्यान नहीं दिया गया कि एक हफ्ते पहले, जब एक बार फिर से नाटो विस्तार के बारे में खबरें सामने आ रही थीं, तो उसी दौरान तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन की ओर से हल्के-फुल्के ढंग से असहमतिपूर्ण स्वर में आवाज उठाई जा रही थी। उनकी ओर से कहा गया था कि, “हम स्वीडन और फ़िनलैंड से संबंधित गतिविधियों पर निगाह बनाये हुए हैं, लेकिन हमारी राय इसके पक्ष में नहीं है।”

एर्दोगन ने इसके बाद से ही स्वीडन एवं अन्य स्कैन्डिनेवियाई देशों के द्वारा कुर्दिश आतकवादियों एवं अन्य जिन्हें तुर्की आतंकवादियों के तौर पर मानता है, के प्रति खुल्लमखुल्ला समर्थन का हवाला देते हुए अपने विरोध को व्याख्यायित करना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपनी बात में कहा है कि वे अतीत में तुर्की के द्वारा की गई “गलती” को नहीं दुहराना चाहते हैं, जब तुर्की के द्वारा 1980 में ग्रीस को नाटो के सैन्य दस्ते में फिर से शामिल करने पर सहमति दी गई थी, और बाद में जाकर गठबंधन ने ग्रीस को नाटो के समर्थन से “तुर्की के खिलाफ रुख अपनाने के लिए” इजाजत दी थी। 

एर्दोगन ने यह नहीं कहा कि वे इन दोनों नोर्डिक राष्ट्रों के द्वारा किसी भी प्रकार के शामिल होने के प्रयासों को रोकने जा रहे हैं, लेकिन यह देखते हुए कि नाटो को अपने सभी फैसलों को सर्वसम्मति से लेना आवश्यक है उनका यह संकेत अपनेआप में पर्याप्त रूप से अशुभ था। व्हाईट हाउस के प्रेस सचिव ने इस पर सिर्फ यह नोट जारी किया कि वाशिंगटन “तुर्की की स्थिति को स्पष्ट करने के बारे में काम कर रहा है।” विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन उस सप्ताहांत जर्मनी में अपने नाटो के समकक्षों के साथ मिलने वाले थे, जिसमें तुर्की के विदेश मंत्री भी शामिल थे।

निश्चित रूप से इस बात को कहा जा सकता है कि व्हाईट हाउस, जो कि गठबंधन की ओर से सभी महत्वपूर्ण फैसलों और अधिकांश छोटे-मोटे फैसले लेता आया है, ने एर्दोगन की बात को हल्के में लिया था कि वे एक बार फिर से उपरी तौर पर नाराजगी दिखा रहे हैं और उनके अहंकार को यदि थोड़ा सा सहला दिया जाये तो उन्हें काबू में लाया जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए स्वीडन और फ़िनलैंड के विदेश मंत्रियों ने एक प्रतीकात्मक यात्रा के तौर पर अंकारा के लिए उड़ान भरी थी।

लेकिन तब तक, एर्दोगन ने मन बना लिया था और तुर्की ने उग्रवादी कुर्दिश कार्यकर्ताओं के प्रत्यावर्तन को लेकर कुछ विशिष्ट मांगों को तैयार कर रखा था, जिन्हें स्कैंडिनेवियाई देशों में खुलकर काम करने की छूट मिली हुई है। पर एर्दोगन को संभवतः इस बात का अहसास था कि इन मांगों को पूरा कर पाना काफी कठिन कार्य है। तुर्की ने 2019 से लेकर 2022 के बीच में फ़िनलैंड से कुल 10 प्रत्यर्पण के अनुरोध किये थे, जबकि हेलसिंकी ने इनमें से सिर्फ दो को स्वीकार किया था। जहाँ तक स्वीडन का सवाल है, इसकी सरकार को सत्ता में बने रहने के लिए कुर्दिश कानूननिर्माताओं के समर्थन की जरूरत है और स्टॉकहोम में सोशल डेमोक्रेट्स ने पिछले नवंबर में कुर्द सांसदों के साथ जो सौदा किया था, उसमें इस बारे में सार्वजनिक शपथ भी शामिल थी।   

जाहिरा तौर पर वाशिंगटन और ब्रुसेल्स (स्टॉकहोल्म और हेलसिंकी) इस सबसे बेहद हतप्रभ स्थिति में हैं। एर्दोगन के आकलन में, नाटो या अमेरिका सिर्फ इस बिना पर तुर्की से टकराने की हिमाकत नहीं कर सकते हैं कि तुर्की के भीतर गठबंधन के अपूरणीय ठिकाने स्थापित हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि तुर्की के पास मॉन्ट्रो कन्वेंशन के तहत खाड़ी के शासन (1936) के संबंध में काला सागर तक नियंत्रण बना हुआ है। इसके अलावा, एर्दोगन के आकलन के मुताबिक उत्तरी सीरिया से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में (पीकेके से संबद्ध) कुर्द उग्रवादी समूहों के ठिकानों के सफाए के लिए यह सबसे अच्छा मौका है। 

सीधे तौर पर कहें तो तुर्की उत्तरी सीरिया में एक नए अभियान की योजना बनाकर वर्तमान दौर में बहुध्रुवीय आधार को देखते हुए “स्विंग स्टेट” के तौर पर अपनी स्थिति का लाभ उठा रहा है, जहाँ वाशिंगटन और मास्को के द्वारा समर्थित कुर्द धड़ों ने पूर्व में अंकारा के लक्ष्यों का विरोध किया था। 

30 मई को एर्दोगन के प्रवक्ता और मुख्य सलाहकार, इब्राहीम कालिन के साथ अपनी बातचीत में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जेक सुलीवन ने आग्रह किया कि “नाटो की सदस्यता के लिए उनके आवेदनों पर चिंताओं को हल करने के लिए तुर्की के द्वारा स्वीडन और फ़िनलैंड के साथ की जा रही सीधी वार्ता जारी है, जिसका अमेरिका दृढ़ता से समर्थन करता है।” वहीँ दूसरी तरफ उन्होंने “सीरिया में मौजूदा युद्धविराम रेखाओं को बनाये रखने और भविष्य में किसी भी प्रकार की अस्थिरता से बचने के लिए तनाव से बचने के महत्व को भी दोहरा दिया।” 

हालांकि, तुर्की के आधिकारिक बयान के मुताबिक, कालिन, ने इस बात को इंगित करते हुए इसका प्रतिकार किया कि “जो देश नाटो की सदस्यता पाना चाहते हैं उन्हें सुरक्षा और आतंकवाद का मुकाबला करने के गठबंधन के मूल्यों और सिद्धांतों को भी अपनाना चाहिए।” और इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि स्वीडन और फ़िनलैंड को “उन आतंकी संगठनों के खिलाफ कदम उठाना होगा जिन्होंने तुर्की की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल रखा है।”

जहाँ तक उत्तरी सीरिया में योजनाबद्ध अभियान चलाने का प्रश्न है, इसके बारे में कालिन ने कहा, “पीकेके/पीवाईडी/वाईपीजी जैसे आतंकवादी संगठन तुर्की की राष्ट्रीय सुरक्षा और सीरिया की क्षेत्रीय अखंडता के लिए लगातार खतरा उत्पन्न कर रहे हैं” और तुर्की “निर्णायक तौर पर इन सभी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ अपनी लड़ाई को जारी रखने जा रहा है।”

इस बीच, एर्दोगन यूक्रेन और तुर्की-रुसी द्विपक्षीय सहयोग से जुड़े हुए कई मसलों पर अक्सर राष्ट्रपति पुतिन के साथ बातचीत के क्रम को जारी रखे हुए हैं, और इस बात को भलीभांति समझा जा सकता है कि इस बातचीत में स्वीडन और फ़िनलैंड के नाटो में शामिल होने के बारे में भी बातचीत चल रही होगी। तुर्की ने रूस पर प्रतिबंध लगाने से इंकार कर दिया है और यहाँ तक कि स्विफ्ट को दरकिनार करते हुए उसके स्थान पर मीर भुगतान प्रणाली को भी मंजूरी दे दी है। तुर्की में सभी रुसी परियोजनाएं धड़ल्ले से चल रही हैं, जिसमें अक्कुयू में 20 अरब डॉलर का परमाणु उर्जा संयंत्र भी शामिल है। उम्मीद है कि इससे तुर्की के कुल बिजली उत्पादन का करीब 10% हिस्सा उत्पन्न होने जा रहा है। 

हाल के दिनों में, तुर्की और रूस ने यूक्रेन से अनाज के निर्यात पर काम करना शुरू कर दिया है, जो पश्चिमी योजनाओं को ध्वस्त करते हुए रूस के उपर यूक्रेन के काला सागर बंदरगाहों की समुद्री नाकाबंदी से पीछे हटने के लिए मजबूर कर रहा है। इस मामले पर चर्चा करने के लिए विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने अपने विमान से तुर्की की यात्रा की थी। एर्दोगन अगले सप्ताह ब्लैक सी से “अनाज गलियारे” पर पुतिन के साथ बातचीत करने जा रहे हैं।    

वहीं दूसरी ओर, एर्दोगन ने खुले तौर पर यूक्रेन में पश्चिमी देशों की नीतियों की आलोचना करनी शुरू कर दी है और रुसी-यूक्रेनी वार्ता में एक मध्यस्थ के तौर पर अपनी भूमिका को और भी सशक्त बनाने के प्रयासों को तेज कर दिया है। तुर्की को नाटो से निष्काषित कर पाना लगभग नामुमकिन है और मास्को इसे अपने लिए लाभकारी स्थिति के तौर पर देखता है। तुर्की के भीतर एर्दोगन अभी भी सबसे लोकप्रिय राजनेता बने हुए हैं। जाहिर सी बात है कि उनके पास बाइडेन या स्टोलटेनबर्ग के साथ बराबरी के आधार पर शर्तों पर बात करने से डरने की कोई वजह नहीं है।

13 जून को, एर्दोगन ने एक बार फिर से इस बात को दोहराया है कि तुर्की किसी भी सूरत में स्वीडन और फ़िनलैंड के शामिल होने पर समझौता नहीं करने जा रहा है। और स्टोलटेनबर्ग को अंततः सार्वजनिक तौर पर इस बात को स्वीकार करना पड़ा है कि नाटो, जहाँ एक तरफ फ़िनलैंड और स्वीडन को गठबंधन में जल्द से जल्द शामिल होने के लिए वादा कर रहा है, वहीँ उसने तुर्की से इस प्रकार के कड़े एतराज की उम्मीद नहीं की थी।

इस उभरती हुई बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के साथ मौजूदा उथल-पुथल की स्थिति इस पृष्ठभूमि के आलोक में है कि ब्रुसेल्स में आज और कल एक के बाद एक लगातार दो बैठकें होने जा रही हैं। इस तथाकथित रामस्टीन प्रारूप की अध्यक्षता अमेरिकी रक्षा मंत्री लायड ऑस्टिन और नाटो रक्षा प्रमुखों के द्वारा की जानी है। नाटो के सामने अब यही विकल्प बचा है कि कीव को भारी हथियारों की आपूर्ति से लैस किया जाये या नहीं। 

विशेषकर नाटो की वायुसेना की मदद से पश्चिमी यूक्रेन के उपर “नो-फ्लाई” जोन को स्थापित करने के लिए अमेरिकी प्रस्ताव अभी भी लंबित है, जिसका इस्तेमाल यूरोपीय संघ और अमेरिका से बड़े पैमाने पर हथियारों की आपूर्ति के लिए किया जा सकता है। रूस के साथ सीधे संघर्ष के संभावित जोखिम के मद्देनजर यह विचार अभी अभी अधर में लटका हुआ है। लेकिन यह भी सच है कि अमेरिका किसी भी सूरत में नाटो को निष्प्रभावी स्थिति में बने रहने के जोखिम को नहीं उठा सकता है।  

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

NATO Runs Into Multipolar World Order

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