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न्यूज़ीलैंड नरसंहार : मुस्लिमों को विलेन बनाने की साज़िश का नतीजा

“बहुत लम्बे समय से पूरी दुनिया में मुस्लिमों को खलनायक के तौर पर पेश करने का कारोबार चल रहा है। यह कारोबार इतना बड़ा हो चुका है कि दुनिया आर्थिक संकट से गुजरी है और इसके लिए दुनिया में मौजूद राइट विंग पार्टियां मुस्लिमों को दोषी मानती हैं।”
newzealand
image courtesy- daily express

 

आतंक का गहरा अर्थ नफरत होता है और नफ़रत एक तरह की ऐसी प्रवृत्ति है जो दुनिया के हर हिस्से में मौजूद होती है। 

ऐसा सोचना मुश्किल हो रहा है कि मानव विकास सूचकांक में 16वें रैंक पर मौजूद  न्यूज़ीलैंड जैसे देश में भी दिल दहला देने वाली आतंकी घटना घटेगी।

लेकिन दुनिया की हकीकतें बदल रही हैं, जिसमें नफरत हावी हो रही है।

यह नफरत इतनी हावी हुई है कि शुक्रवार को कुछ लोग हाथ में बंदूक लेकर न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च की दो मस्जिदों में घुस गए और अंधाधुंध फायरिंग कर दी। जिसमें तकरीबन 49 लोगों की जान चली गयी और कई लोग घायल हुए। मस्जिद में मौजूद लोगों में ज्यादातर लोग दुनिया में अपने मूल निवास के हिस्से से परेशान होकर न्यूज़ीलैण्ड में रहने आये थे। यानी ज्यादातर प्रवासी थे और शरणार्थी के तौर पर न्यूज़ीलैण्ड में रह रहे थे।

इस हमले में शामिल चार लोगों को अभी तक  गिरफ्तार कर लिया गया है। इसमें से एक ऑस्ट्रेलिया का नागरिक भी शामिल है। उसने हमले से पहले ही हमले की जिम्मेदारी लेते हुए एक फेसबुक पोस्ट लिखी थी।  जिस पोस्ट में 74 पेज का मेनिफेस्टो है और इस मेनिफेस्टो में प्रवासियों और शरणार्थियों के खिलाफ नफरत से जुडी विचारधारा से भरे शब्द हैं। इस तरह से उसकी नस्लवादी और एंटी इमिग्रेंट विचारधारा इस हमले के लिए अपराधी के तौर पर सामने आती है। इनकी नफरत इतनी भयावह थी कि हमलावर में से एक  इस दर्दनाक घटना का फेसबुक लाइव कर रहा था। अभी इससे जुड़े वीडियो को इंटरनेट से हटा लिया गया है। पुलिस ने यह आदेश दिया है कि इस घटना से जुड़े वीडियो को न फैलाया जाए। इतनी बड़ी आतंकी घटना न्यूज़ीलैण्ड के अब तक के इतिहास में कभी भी नहीं हुई थी। 

प्रवासन समय के हर दौर में होता रहा है।  लेकिन  मौजूदा समय में होने वाला प्रवासन एक जटिल परिघटना के तौर पर सामने आया है। लोग गृह युद्धआंतरिक कलह,  गरीबीतबाहीपर्यावरण संकटधार्मिक कट्टरता, नृजातीय हिंसा की वजह से अपने मूल  स्थान को छोड़कर ऐसे देशों में जाने के मजबूर हुए हैंजहाँ पर शांति से अपनी जिंदगी गुजार सकें।

ये हकीकत है कि विकसित देशों की केवल खुद को फायदा पहुँचाने वाले नीतियों ने विश्व के एक बहुत बड़े हिस्से को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। नव उपनिवेशवाद की वजह से मध्य एशिया के देशों को हमेशा मौजूद रहने वाला आंतरिक कलह पैदा हुआ है। इसके मूल में विकसित देशों का आर्थिक लाभ छुपा होता है जबकि गरीब देश की जनता पहचान के आधार पर एक दूसरे लड़ती रहती है।

साल 2018 की वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट के तहत दुनिया भर में इस समय तकरीबन 244 मिलियन लोग प्रवासी के तौर पर मौजूद हैं। यह आबादी दुनिया की कुल आबादी की  तकरीबन 3.3  फीसदी है। साल 2018 में यूरोप और एशिया में दोनों महादेशों  में तकरीबन 150 मिलियन लोग प्रवासी के तौर पर मौजूद है।  यह संख्या कुल प्रवासी आबादी की तकरीबन 62 फीसदी है। ओसनिया यानी ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड देशों में यह प्रवासियों की संख्या कुल प्रवासियों की तकरीबन फीसदी है।  प्रवासी की तौर पर आये लोग दूसरे देशों में अपना जीवन गुजारने के लिए काम करते हैं। इनका काम करना वहाँ की आम जनता द्वारा उनका रोजगार हड़पना समझा जाता है। उनके जीवन शैली में दखल अंदाजी मानी जाती है। इस भावना को राइट विंग पार्टियां हवा देती है। इस पर ही अपनी राजनीति  करती हैं। और नफरत की बयार जमकर बहती है। इन सारी स्थितियों की जिम्मेदार प्रवासन की मजबूरियां तो होती ही हैंइसके साथ इसका सबसे बड़ा कारण दुनिया की खस्ताहाल हो रही अर्थव्यवस्थाएं भी हैं।  जहाँ से रोजगार पैदा होना बंद हो गया है और दुनिया की सारी सम्पति कुछ लोगों के हाथों में कैद होती जा रही है। साल 2015 में हर मिनट तकरीबन 24 लोग काम की तलाश में अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हुए। यह स्थिति तब और खतरनाक लगती है जब यह आंकड़ा सामने  आता है कि दुनिया के कुल शरणार्थियों में आधी आबादी 18 साल से कम की है। यानी इनके साथ सही से डील नहीं किया गया तो भविष्य में स्थिति और खराब होने की सम्भवना है। 

जहाँ तक न्यूज़ीलैण्ड की बात है तो इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश के रे न्यूज़लॉन्ड्री पर लिखते हैंयदि हम न्यूज़ीलैंड का इतिहास और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य देखेंतो भले ही वहां घनघोर राइट विंग पार्टियों की नकारात्मक और ख़तरनाक वैचारिकी सत्ता या संसद में सीधे तौर पर मौजूद नहीं रही हैपर हमेशा ही ऐसे तत्वहाशिये पर ही सहीपर सक्रिय रहे हैं। लेबर पार्टी की मौजूदा सरकार में घटक दल के रूप में शामिल ‘न्यूज़ीलैंड फर्स्ट’ पार्टी भी ख़ुद को राष्ट्रवादी और पॉपुलिस्ट के रूप में चिह्नित करती है। इस पार्टी की मुख्य विचारधारा प्रवासन नीतियों को कठोर बनाने और क़ानून-व्यवस्था को मज़बूत बनाने पर आधारित है। पिछले महीने ‘एनज़ेड सॉवरेनिटी’ नामक संगठन के बैनर तले संयुक्त राष्ट्र के प्रवासन समझौते का विरोध किया गया था। इस संस्था से जुड़े लोग दूसरे देशों से आनेवाले लोगोंविशेष रूप से शरणार्थियोंपर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं

 इन देशों में प्रवासन के खिलाफ होने वाली हिंसक कार्रवाइयों को घरेलू दक्षिणपंथी आतंकियों की कार्रवाई की जगह साधारण आपराधिक कार्रवाई माना जाता है और आतंकी महज़ एक हत्यारे के तौर पर देखा जाता है। इसे कोई खुलकर आतंकी कार्रवाई नहीं कहता है।  इस तरह से अपना वक्तव्य जाहिर करने के लिए न्यूज़ीलैण्ड की प्रधानमंत्री जसिंडा आर्डर्न की सरहाना की जा रही है।  प्रधानमंत्री कहती हैं, जिन लोगों को मौत हुई वह शरणार्थी और प्रवासी थेउन्होंने एक खुशहाल जिंदगी के लिए न्यूज़ीलैण्ड को चुना था।  ये हमारे अपने लोग थे।  जिन लोगों ने यह हमला किया है वे हमारे लोग नहीं है। इस तरह के लोगों के लिए हमारे देश में कोई जगह नहीं है 

जब इस घटना को न्यूज़क्लिक के हमारे सहयोगी और वैश्विक मामलों के  जानकार प्रशांत के सामने रखा गया और पूछा गया कि आख़िरकार ऐसा क्या है कि पूरी दुनिया में मुस्लिम लोगों के साथ ऐसी दर्दनाक घटनाएं बार-बार देखने को मिल रही हैं? तो प्रशांत ने कहा कि विकसित देशों ने हमेशा से दुनिया में अपना  साम्राज्य फैलाने की कोशिश की है और इसमें सबसे पहला शिकार मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग रहे हैं। इस समय की नव उपनिवेशवाद की नीतियां तो ऐसी है कि मुस्लिम देश पूरी तरह से विकसित देशों के उपनिवेश बन चुके हैं। इसके साथ बहुत लम्बे समय से पूरी दुनिया में मुस्लिमों को खलनायक के तौर पर पेश करने का कारोबार चल रहा है। यह कारोबार इतना बड़ा हो चुका है कि दुनिया आर्थिक संकट से गुजरी हैऔर इसके लिए दुनिया में मौजूद राइट विंग पार्टियां मुस्लिमों को दोषी मानती हैं। इसलिए प्रवासन की समस्या तो है ही लेकिन मुस्लिमों का शिकार बनना  इस बात से भी जुड़ा है कि उनके लिए पूरी दुनिया में एक तरह की खलनायक वाली राय भी गढ़ दी गयी है। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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