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पर्वतीय शहरों की अपने-आप विकसित होने की गति को सही दिशा में मोड़ना क्यों जरूरी है?
मौजूदा विकास का स्वतःस्फूर्त मॉडल शहरी विकास या पर्यटन के सिद्धांतों को निर्धारित कर रहा है, लेकिन यह मॉडल अपने-आप में टिकाऊ नहीं है और इसमें गंभीर जोखिम की आशंका है।
टिकेंदर सिंह पंवार
30 Jun 2022
Shimla Jam

शिमला में एक टैक्सी ड्राईवर के तौर पर काम करने वाले रामू के मुताबिक आज स्थिति यह है कि एक टूरिस्ट सीजन में जब सीजन मंदा रहता है, उस दौरान कमाई करना कहीं बेहतर है। इसके पीछे की वजह के बारे में बताते हुए उनका कहना था कि इस बार के टूरिस्ट सीजन के दौरान अधिकांश सैलानी अपनी कारों में पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश की सैर के लिए आये थे।

जो लोग ट्रेन या बस का सफर कर यहाँ पहुंचे थे,उन्हें यहाँ पर आने-जाने में काफी तकलीफ का सामना करना पड़ा। रेलवे स्टेशन से लिफ्ट तक पहुँचने में कुछ नहीं तो एक घंटे का वक्त लग रहा है, जो माल रोड को कार्ट रोड से जोड़ता है, एक ऐसा गंतव्य स्थल जहाँ पर अधिकांश पर्यटक जाना पसंद करते हैं।

रेलवे स्टेशन से लिफ्ट तक की दूरी दो किलोमीटर से भी कम है; इसके बावजूद इस सीजन के दौरान इतना अधिक ट्रैफिक था कि इसमें एक घंटे से भी अधिक समय लग रहा था। ऐसी स्थिति में रामू जैसे लोगों का काम -धंधा बुरी तरह से प्रभावित हुआ है क्योंकि इस बार के टूरिस्ट सीजन के दौरान उनके हाथ में काफी कम काम ही लग पाया था।

यह किसी एक टैक्सी ड्राईवर की कहानी भर नहीं है। शिमला में रहने वाले प्रत्येक निवासी को ट्रैफिक से होने वाली इन तकलीफों से दो-चार होना पड़ रहा है। शहर में इस बार पर्यटकों की भारी भीड़ की वजह से मोटर वाहनों की इतनी अधिक रेलम-पेल रही कि चौपाया वाहन के जरिये सफर कर पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया था। मैदानी इलाकों में इस बार की भीषण गर्मी ने भी लोगों को पहाड़ों पर डेरा डालने के लिए मजबूर कर दिया है।

शहर के एक नामचीन व्यवसायी संजय ठाकुर ने बताया कि दो साल के बाद जाकर इस बार का सीजन आतिथ्य उद्योग के लिए सुनहरी संभावनाएं लेकर आया है। उन्होंने बताया कि इस दफा होटल पूरी तरह से बुक हो रखे हैं और होटलों में कोई जगह नहीं बची है। कमरों का किराया भी मूल से लगभग दोगुना बढ़ गया है।  यह साल होटल उद्योग के लिए काफी अच्छा सीजन रहा है। उनकी कामना थी कि काश मानसून थोड़ी और देर हो जाए तो इस सीजन पर्यटन उद्योग को थोड़ा और कमाई का मौका मिल जाये।

जहाँ एक तरफ ट्रैफिक जाम ज्यादा बड़ी संख्या में पर्यटकों की आवक और अधिक कारें शहर और इसके रहवासियों के लिए भारी समस्या बनी हुई हैं, वहीं दूसरी ओर इस भीड़ का मतलब आतिथ्य उद्योग के साथ-साथ मेहनतकश लोगों और आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए अच्छी अर्थव्यवस्था का सूचक है जिनकी रोजीरोटी पर्यटन पर ही आश्रित है।

हालाँकि स्वतःस्फूर्तता से निर्देशित मौजूदा विकास का यह शहरी विकास का मॉडल या पर्यटन कहीं से भी टिकाऊ नहीं है। इसके अपने खतरे बेहद मौजूं हैं। समय आ गया है कि प्रमुख हितधारकों को पर्यटन पर आधारित एक जीवंत अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक पहलुओं पर काम शुरू करने के साथ-ही साथ इस बात को भी सुनिश्चित करना होगा कि पहाड़ों और पर्वतीय शहरों की पारिस्थितिकी तंत्र के पदचिन्हों के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ न हो। गतिशीलता के कुछ मूलभूत सिद्धांतों के लिए पहाड़ों में मैदानी इलाकों में अपनाए जाने वाले सिद्धांतों का अंधानुकरण करने का कोई तुक नहीं है।

वैकल्पिक गतिशीलता

शिमला शहर की आबादी तकरीबन 2 लाख होगी लेकिन सालाना 45 लाख से अधिक सैलानी शहर में पर्यटन के लिए आते हैं। इसके साथ ही सैलानियों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ शहर में सैलानियों के प्रवेश की वजह से ही मोटर चालित गतिशीलता में इजाफा हो रहा है बल्कि स्थानीय आबादी के द्वारा भी हर साल बड़ी संख्या में नई कारों की खरीद के जरिये इसमें अभिवृद्धि की जा रही है।

हिमाचल प्रदेश के मुख्य मंत्री जयराम ठाकुर ने राज्य विधानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि वर्तमान में शिमला में वाहनों की कुल संख्या 77,939 हो चुकी है। यह सड़क की लंबाई की क्षमता के बूते से बाहर हो चुकी है। जबकि शहर में सड़कों का घनत्व जस का तस बना हुआ है, ऐसे में ये कारें कहाँ दौड़ेंगी? पर्वतीय शहरों, विशेषकर शिमला में मोटर चालित परिवहन के साथ संचालित गतिशीलता योजना अथवा डिजाइन के सतत विकास को सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से उलट कर रख देना होगा।

इस लेखक के द्वारा डिप्टी मेयर के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान शिमला मोबिलिटी प्लान में इस बारे पारित और स्वीकृत रणनीति को काफी स्पष्ट रूप से रखा गया था।शिमला शहर के लिए गतिशीलता के सिद्धांत अत्यंत सरल हैं: और इसके लिए हमें बुनियादी बातों पर वापस लौटना होगा, जैसे कि पैदल चलने को बढ़ावा देना; के साथ ही क्षैतिज एवं उर्ध्वाधर गतिशीलता दोनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक सुदृढ़ एवं सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को खड़ा करना; गैर-मोटर चालित परिवहन के लिए वैकल्पिक साधनों को सुनिश्चित करना, लोगों की आवाजाही को आसान बनाने के लिए पहाड़ों में सुरंगों की खुदाई के जरिये बुनियादी ढांचे को तैयार करने का काम; कम से कम सबसे व्यस्त घंटों के दौरान कारों में अकेले सफर करने वाले लोगों को सामूहिक तौर पर यात्रा करने के लिए बाध्य करने जैसे कदमों को उठाना होगा। कुलमिलाकर लब्बोलुआब यह है कि: कारों की गतिशीलता पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय लोगों की गतिशीलता को ध्यान में रखे जाने की जरूरत है।

दुर्भाग्य की बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों से, शिमला मोबिलिटी प्लान की चर्चा तक नहीं की जा रही है, और स्मार्ट सिटी के पैसे का इस्तेमाल सड़कों के चौड़ीकरण पर किया जा रहा है। नतीजतन कारों के लिए और अधिक स्थान को तैयार किया जा रहा है जो लोगों को और कारें खरीदने के लिए प्रेरित कर रही है। पैदल चलने को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया गया है; उल्टा अधिकाधिक सड़कों को मोटर चालित परिवहन के लिए खोल दिया गया है। उदाहरण स्वरुप ऐसी दो सड़कें हैं: बोइलोगंज से विधानसभा तक और संजौली से आईजीएमसी तक। लोगों के एक खास वर्ग के दबाव में आकर, प्रशासन ने सोचा की इससे कार्ट रोड पर दबाव कम होगा। हाल ही में शिमला की यात्रा करने पर पता चला कि अब ये दोनों सड़कें भी पूरी तरह से जाम हो चुकी हैं। पैदल चलने वालों के पूरी तरह से माकूल इन दोनों सड़कों पर अब पैदल यात्रियों के लिए चल पाना पूरी तरह से दुःस्वप्न बन चुका है।

पैदल चालन एवं सार्वजनिक परिवहन की स्थिति

आज भी शहर में पैदल चलने वालों की संख्या अच्छी-खासी है, जो शायद देश में सबसे अधिक पैदल चलने वाले शहरों में से एक है। शिमला में लगभग 45% लोग अभी भी पैदल चलना पसंद करते हैं, एक ऐसी प्रथा जिसे शहर में और ज्यादा स्थान प्रदान करके मजबूती प्रदान किये जाने की आवश्यकता है। इसके लिए नए आधारभूत ढांचे को तैयार करना होगा। इसके साथ ही साथ उर्ध्वाधर गतिशीलता पर भी जोर दिए जाने की जरूरत है। मैदानी क्षेत्रों के विपरीत, जहाँ पर क्षैतिज (समतल) आवजाही ही एकमात्र स्वरूप है, की तुलना में पर्वतीय शहर, जो शंकु की तरह होते हैं, में शंकु के शीर्ष हिस्से पर तय की जाने वाली दूरी के लिए कहीं अधिक लंबी दूरी को तय करना होता है, बशर्ते कि एक उर्ध्वाधर गतिशीलता वहां पर उपलब्ध हो। इसलिए यहाँ पर अधिक से अधिक स्वचालित सीढ़ियों और लिफ्ट का निर्माण कर ज्यादा आधारभूत ढांचे को खड़ा किये जाने की आवश्यकता है।

इसके अलावा सार्वजनिक परिवहन को मजबूत किये जाने की जरूरत है और इसे और अधिक सुरक्षित एवं विश्वसनीय बनाये जाने की आवश्यकता है। अधिकांश परिवार अपने बच्चों को बस के माध्यम से यात्रा में भेजना पसंद नहीं करते हैं, जो कि उनके लिए फिलहाल बेहद असुरक्षित और गैर-भरोसेमंद परिवहन के माध्यम बने हुए हैं। इसके लिए स्मार्ट समाधान पर काम किये जाने की जरूरत है और मौजूदा बेड़े में और बसों को शामिल किया जाना चाहिए। इसी के साथ-साथ पहले से ही स्वीकृत रोपवे के काम को शुरू किये जाने की आवश्यकता है, और इसका मकसद सिर्फ मजे के लिए या केवल पर्यटकों के लिए नहीं बल्कि परिवहन के एक साधन के तौर पर इस्तेमाल करना होगा, जिसे प्राथमिकता के आधार पर निर्मित किये जाने की जरूरत है।

जो लोग व्यस्ततम घंटों के दौरान अपनी कारों में अकेले यात्रा करते हैं, उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए बाध्य करना होगा और इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि इसके लिए एक साझा परिवहन तंत्र मौजूद है।

यह समस्या अपने वजूद में कई वजहों के चलते बनी हुई है। हालाँकि, इसमें से एक कारण यह है कि कई एजेंसियों के जिम्मे गतिशीलता क्षेत्र की देखभाल की जिम्मेदारी बनी हुई है। ट्रैफिक पुलिस, शहरी परिवहन विभाग, लोक निर्माण विभाग, शहरी विकास विभाग, शहरी शासन को देखने वाली शिमला नगर निगम इत्यादि विभिन्न एजेंसियां हैं, जो एक ही काम करती हैं- गतिशीलता को सुनिश्चित करना। राज्य सरकार के तहत काम करने वाला तंत्र शायद ही कभी शहरी प्रशासन की समस्या पर ध्यान देता है, जिसका नतीजा यह है कि शहरी गतिशीलता को बनाये रखने के लिए स्थापित बुनियादी उसूलों को ताक पर रखकर कारों के लिए अधिकाधिक स्थान को बनाने पर जमकर पैसा खर्च होते देखा जा सकता है।

समय का तकाजा है कि नगर प्रशासन के तहत एक एक नगर परिवहन उपयोगिता को सृजित किया जाए, जिसके तहत शासन के सभी अंग हों। इसे लंबे पैदल चालन की राह में महज छोटी शुरुआत कहा जा सकता है। अन्यथा, शिमला में हम वर्तमान में जैसी समस्या से दो-चार हो रहे हैं, असल में देखें तो सभी पर्वतीय शहरों में ये समस्या बनी हुई है, वह एक भयावह विकास है, जिसकी न तो कोई जरूरत है न ही यह कहीं से भी टिकाऊ है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें: 

Nightmarish Urban Mobility has hit Hill Towns, but There’s a way out

Public Transport
Environment
shimla
Shimla Traffic
City Planning
Himachal Pradesh
tourism

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