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चीन में प्रधानमंत्री मोदी क्या तलाश रहे हैं?

दोनों ही देश बाज़ार की ख़ोज में हैं, लेकिन मोदी काल में भारत-चीन के बीच का व्यापार में 40% से ज़्यादा कमी आई हैI
modi in china

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग के साथ दो-दिवसीय समिट के लिए चीन गये हुए हैंI 2014 में सत्ता में आने के बाद से यह मोदी की चौथी चीन यात्रा हैI इस बार वे मशहूर याँगत्से नदी के किनारे स्थित हूपे प्रोविंस के ऊहान में मिलेंगेI यह वही मशहूर नदी है जिसे 1966 में चेयरमैन माओ त्सेतुंग ने 73 साल की उम्र में दुनिया के मनोरंजन के लिए तैर कर पार किया थाI

मोदी के इस दौरा के बारे में कहा जा रहा है कि इसके दौरान उनकी शी के साथ कोई ‘अनौपचारिक’ मुलाकात हैI लेकिन इससे पहले ही भारत के राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार अजित दोवाल और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का दौरा हो चुका है जिन्हें प्रधानमंत्री के दौरे की तैयारी के रूप में देखा जा सकता हैI भारतीय आधिकारिक हलकों में इस बात को लेकर काफी गहमागहमी है कि यह मुलाकात नई दिल्ली और बीजिंग के बीचोंबीच हो रही है क्योंकि वे इसे चीन द्वारा भारत को समायोजित करने की आवश्यकता को अंकित करता हैI यह बचकाना ख्याल मोदी को पसंद करने वाले लोगों के आलावा शायद ही किसी को आ रहा होI शायद यह सिर्फ मोदी को शी का एक तोहफ़ा भर हो, क्योंकि जब वे सितम्बर 2014 में अपनी एकलौती भारत यात्रा पर आये थे तो मोदी ने उन्हें अहमदाबाद के पास स्थित महात्मा गाँधी के साबरमती आश्रम का एक विस्तृत भ्रमण करवाया थाI इसी के बदले में शी मोदी को चेयरमैन माओ के घर (जो अब एक म्यूजियम है) दिखाने ले जायेंI    

लेकिन आख़िरकार मोदी चीन में ख़ोज क्या रहे हैं? भारत में उनके समर्थक तो साफ़ तौर से विदेशियों से नफ़रत करने वाले और sinophobic तक हैं तो फिर बार-बार के इन दौरों का क्या मतलब? वैश्विक सम्बन्ध, रणनीतिक मुद्दे और यहाँ तक सीमा विवाद भी अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय उपभोग के लिए ठीक हैI लेकिन दोनों ही देश, खासकर भारत, द्विपक्षीय व्यापार को बेहतर करने की फ़िराक में हैंI इस कवायत में, मोदी और भी बेताब दिख रहे हैं क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही बुरे दौर से गुज़र रही हैI कच्चे माल के आलावा, तैयार माल और सेवाओं के लिए एक निर्यात बाज़ार मिल जाना शायद जन्नत के बराबर होगाI

लेकिन पहले आयें भारत-चीन के व्यापर पर कुछ नज़र डालेंI पिछले चार साल से या जब से मोदी सरकार में आये हैं, तब से चीन को भारतीय निर्यात लगभग रूक सा गया है, इसमें सिर्फ 4.5% की ही बढ़त हुई हैI जबकि इससे उलट इसी दौरान भारत में चीनी आयात लगभग 27% बढ़ गया हैI

modi in china 1दोनों देशों के बीच व्यापार घाटा (आयात और निर्यात का अंतर) काफी बढ़ गया हैI यह मौजूदा वित्तीय वर्ष में 3.49 लाख करोड़ रूपये है, जो साल 2014-15 में 2.4 लाख करोड़ थाI इसका मतलब क्या है? आसान शब्दों में, चीने सामान को भारतीय बाज़ारों में आसानी से जगह मिल रही है जबकि भारतीय सामान चीनी बाज़ार में अपनी जगह बनाने के लिए मुशक्कत कर रहा हैI

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इसके कई कारण हैं, सबसे प्रमुख कारण तो यही है कि चीने सामान काफी सस्ता होता है, उनके सामान की कई किस्में हैं और चीनी निर्माताओं को अपना व्यापर दुनियाभर में फ़ैलाने के लिए उनकी सरकार से काफी मदद मिलती हैI दूसरी तरफ कपड़े या रत्न और गहनों के आलावा भारत में बनी अन्य वस्तुएँ बाज़ारों में सीमित जगह ही बना पाता हैI

तो, भारत के कुल निर्यात में से सिर्फ 9% ही चीन को जाता है, जबकि मूल्य के आधार पर भारत का 19% आयात चीन से होता हैI

दुनियाभर में अमूमन संरक्षणवादी रवैया फैल रहा है जिसकी शुरुआत अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने आयात शुल्क बढ़ाने और स्वतंत्र वैश्विक व्यापार में ख़लल डालने से की, और इस स्थिति से चीन और भारत दोनों ही चिंतित हैंI चीन शायद भारत से ज़्यादा क्योंकि वह अब भी काफी हद तक अपनी निर्यात से होने वाली आय पर निर्भर हैI हालांकि यह स्थिति तेज़ी से क्योंकि पिछले कुछ सालों में वहाँ के घरेलू उपभोक्ता अब ज़्यादा खर्च करने लगे हैंI फिर भी दूसरे बाज़ारों में फिसलना चीन बर्दाश्त नहीं कर सकताI इसीलिए भारतीय बाज़ार (इसके सीमित रूप में ही सही) में प्रसार की उनकी कवायत लगातार जारी हैI    

दूसरी ओर, भारत अपना आयात को जैसे-तैसे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है क्योंकि उसे यही एकलौता रास्ता लग रहा है गिरती घरेलू माँग से उबरने काI जीडीपी के आँकड़ों को छोड़ दें तो, भारत का औद्योगिक निर्माण पिछले कुछ सालों में लगभग रूक सा गया है, इसका प्रमाण IIP के आँकड़ों से मिलते हैंI ऐसे ही रोज़गार भी रूका हुआ है- इसी वजह से माँग में कमी हैI भारत की मामूली सी निर्यात आय भी काफी हद तक सेवाओं के निर्यात पर निर्भर हैI भारत को निर्यात में कुछ उछाल चाहिए ताकि वो अपनी अर्थव्यवस्था को उबार सके, खासतौर से तब जबकि इस साल कई महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव हैं और अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैंI  

इसीलिए मोदी चीन जाने के लिए काफी उत्सुक दिखे और वैश्विक रणनीतिक मुद्दों तथा मानवता की भलाई के लिए एक प्राचीन सभ्यता का दूसरी प्राचीन सभ्यता के साथ इस संवाद की आड़ में वो भारतीय वस्तुओं के लिए खरीदार ढूँढ रहे हैंI लेकिन अगर इशारों को सही सही समझा जाए तो जानेंगे कि यह सब इतना आसान भी नहींI तो, आप चकित न हों अगर इस सब से कुछ न निकलेI

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