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ख़बरों के आगे-पीछे: संसद का विशेष सत्र व सरकार का गोपनीय एजेंडा!

संसद के विशेष सत्र के गोपनीय एजेंडे समेत राहुल की यूरोप यात्रा के मायने, G-20 समिट में जिनपिंग और पुतिन की अनुपस्थिति और चीन द्वारा जारी विवादित नक़्शे पर अपने साप्ताहिक कॉलम में चर्चा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन।
supreme court
फाइल फ़ोटो। PTI

कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर प्रस्तावित सत्र में चर्चा के लिए कुछ सुझाव दिए। लोकतांत्रिक परंपरा और मर्यादा के अनुरूप अपेक्षित तो यह होता है कि ऐसे पत्रों का उत्तर सीधे प्रधानमंत्री की तरफ से आए। लेकिन नरेंद्र मोदी के शासनकाल में ऐसी कई सुस्थापित परंपराएं टूटी हैं। एक सामान्य से पत्र पर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और टीवी चैनलों पर भाजपा प्रवक्ताओं ने जो प्रतिक्रियाएं दी हैं वे निहायत अवांछित और आपत्तिजनक हैं। सत्ता पक्ष ने सोनिया गांधी के सवालों का सुसंगत जवाब देने के बजाय उन पर 'लोकतंत्र के मंदिर संसद को सियासी रंग’ देने का आरोप लगा दिया। सरकार चाहे सोनिया गांधी के सुझावों को तवज्जो दे या न दे, यह उसका विशेषाधिकार है, लेकिन संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है, तो उसका एजेंडा उसे देश को बताना ही चाहिए। संसद के विशेष सत्र को लेकर ऐसी गोपनीयता अभूतपूर्व है। जिन लोगों को सत्र में भाग लेना है, उनमें जनता से निर्वाचित विपक्षी सांसद भी हैं। किसी एक साधारण बैठक के पहले भी उसमें भाग लेने वाले यह जानना चाहते है कि बैठक किसलिए बुलाई गई है। ऐसे में अगर विपक्षी सांसद विशेष सत्र का एजेंडा पूछ रहे हैं तो वह पूरी तरह से जायज़ और विवेक सम्मत है। लेकिन सरकार शायद विपक्ष को संसदीय प्रक्रिया में वैध हिस्सेदार नहीं मानती है। विपक्ष को बदनाम और लांछित करके उसे अपने समर्थक तबकों की निगाह में गिराने की मोदी सरकार की कोशिश अब जानी-पहचानी हो चुकी है। सवाल पूछने पर सवालों से ही जवाबी हमला बोलने की उसकी रणनीति भी नई नहीं है। लेकिन उसके इन तौर-तरीकों ने भारतीय लोकतंत्र के वर्तमान एवं भविष्य दोनों को अनिश्चय में डाल दिया है।

विपक्ष भी अपना एजेंडा नहीं छोड़ेगा

सरकार ने संसद के विशेष सत्र के लिए एजेंडा बताने से इनकार कर दिया है, इसलिए विपक्ष ने भी तय किया है वह केंद्र सरकार के एजेंडा पर न तो आसानी से चर्चा होने देगा और न ही कोई प्रस्ताव पारित होने देगा। कांग्रेस के संसदीय रणनीतिक समूह की बैठक के बाद कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने पार्टी का इरादा साफ कर दिया है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां मोदी चालीसा के लिए संसद में नहीं बैठेंगी। इसका मतलब है कि विपक्ष को भी अंदाज़ा है कि विशेष सत्र कथित तौर पर 'मोदी चालीसा' के लिए आयोजित किया जा रहा है। हालांकि हो सकता है कि इसके अलावा भी कुछ हो, जिसे ऐन उसी समय सामने रख कर सरकार सबको चौंका दे। लेकिन अभी अगर मकसद सिर्फ प्रधानमंत्री का अभिनंदन करना और भविष्य की योजनाओं का संकल्प पेश करके चुनाव का एजेंडा तय करना है तो विपक्षी पार्टियां वह काम आसानी से नहीं होने देंगी। इसीलिए रणनीतिक समूह की बैठक के अगले दिन कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी और नौ विषयों की एक सूची बताई, जिन पर विपक्ष चर्चा चाहता है। इसमें मुख्य मुद्दा मणिपुर का है, जहां सरकार के तमाम दावों के उलट हिंसा अब भी जारी है और लोग मारे जा रहे हैं। इतना ही नही घटना की रिपोर्टिंग पर एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष सहित तीन सदस्यों पर खुद मुख्यमंत्री ने मुकदमा दर्ज कराया है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी हैरानी जताई है। विपक्ष चाहता है कि मणिपुर के साथ-साथ चीन की घुसपैठ, किसानों के साथ हुए समझौते, महंगाई आदि के मुद्दों पर चर्चा हो। विपक्षी गठबंधन 'इंडिया’ के संसदीय नेताओं के साथ मल्लिकार्जुन खरगे की बैठक के बाद कहा जा रहा है कि विपक्ष पहले दिन अपने एजेंडे पर चर्चा चाहेगा। वह अडानी का भी मुद्दा उठाएगा। अगर सरकार उस पर चर्चा के लिए तैयार नहीं होगी तो हंगामा होगा और विपक्ष संसद नहीं चलने देगा। दूसरे दिन कार्यवाही नए भवन में शुरू होगी। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि नए संसद भवन का पहला दिन कैसा होता है?

राहुल की यूरोप यात्रा के मायने?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी यूरोप की यात्रा पर हैं। वे 7 सितंबर को बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स पहुंचे, जो कि यूरोपीय यूनियन की भी राजधानी है। एक सप्ताह की यात्रा के दौरान वे पेरिस और ओस्लो भी जाएंगे। इन तीनों जगहों का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ किसी न किसी तरह का संयोग जुड़ रहा है। बुसेल्स में राहुल ने यूरोपीय संसद के कुछ सदस्यों के साथ राउंड टेबल बैठक में भाग लिया। गौरतलब है कि पिछले दिनों यूरोपीय संघ की संसद में मणिपुर को लेकर एक प्रस्ताव पास किया गया था, जिसमें मणिपुर में जारी जातीय हिंसा की निंदा की गई थी। राहुल ने ब्रुसेल्स में वकीलों, छात्रों और भारतीय मूल के उद्योगपतियों के साथ भी बैठक की। उनका ब्रुसेल्स से पेरिस जाने का कार्यक्रम है, जहां कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री मोदी भी गए थे। उनकी यात्रा के दौरान ही काफी प्रदर्शन हुए थे और मीडिया मे मोदी सरकार की आलोचना में काफी कुछ छपा था। राहुल गांधी पेरिस से ओस्लो जाएंगे, जहां नोबल पुरस्कार की कमेटी काम करती है। बताया जा रहा है कि वे नोबल पुरस्कार कमेटी के कुछ सदस्यो से मिल सकते हैं। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से चर्चा है कि प्रधानमंत्री मोदी का नाम नोबल पुरस्कार के लिए नामित होगा। बहरहाल, अब अगर यूरोपीय संघ, नोबल कमेटी या फ्रांस की ओर से भारत को लेकर कोई भी अप्रिय या नकारात्मक पहल होती है या बयान आता है तो मोदी, भाजपा और मेनस्ट्रीम मीडिया के निशाने पर राहुल गांधी ही रहेंगे।

जांच की सुपर बॉडी बनी तो विवाद तय

मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार इन्वेस्टिगेशन की एक सुपर बॉडी बनाने जा रही है। यानी जिस तरह से केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद बनाया गया है, उसी तरह एक सेंट्रल इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर (सीआईओ) यानी केंद्रीय जांच अधिकारी का पद बनाया जा सकता है। ये खबरें आना तब शुरू हुईं जब पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय मिश्रा को हटाने का निर्देश दिया। कहा जा रहा है कि सीआईओ का पद बना कर संजय मिश्रा को उस पर नियुक्त किया जाएगा और सीबीआई व ईडी के मुखिया उन्हें रिपोर्ट करेंगे। जब से यह चर्चा शुरू हुई है तभी से सरकार के इस संभावित कदम का विरोध भी शुरू हो गया है। कई वरिष्ठ नौकर अधिकारी इस पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि ऐसा होने पर सुप्रीम कोर्ट और नाराज़ हो सकता है। दूसरा, इससे लोगों में भी गलत संदेश जाएगा। विपक्ष को यह कहने का मौका मिलेगा कि सरकार की कोई कमज़ोर नस संजय मिश्रा के हाथ में है या सरकार उनसे कुछ ऐसा काम कराना चाहती है, जो दूसरे अधिकारी नहीं कर रहे हैं। एक समस्या यह बताई जा रही है कि आईपीएस काडर में इससे नाराज़गी होगी। गौरतलब है कि सीबीआई का निदेशक कोई वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी बनता है, जबकि संजय मिश्रा भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी हैं। अगर वे सीआईओ बनते हैं तो पुलिस सेवा पर राजस्व सेवा का वर्चस्व बनेगा।

एफआईआर की राजनीति कब तक?

तमिलनाडु के खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म पर दिए बयान को लेकर बिहार में एक मुकदमा दर्ज हो गया है। हो सकता है कि उस एफआईआर का मामला अदालत में पहुंचे और अदालत उदयनिधि को हाज़िर होने का समन जारी कर दे। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मानहानि के एक मुकदमे में गुजरात की एक अदालत में हाज़िर होना है। राहुल गांधी के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र से लेकर गुजरात, बिहार, झारखंड तक मुकदमे दर्ज हैं। गुजरात के कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवानी पर असम में मुकदमा दर्ज हुआ और रातों-रात असम की पुलिस उन्हें गुजरात से पकड़ कर ले गई थी।

इसी तरह असम की पुलिस कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा को गिरफ्तार करने दिल्ली पहुंच गई थी और उन्हें हिरासत में भी ले लिया था। ऐसे ही पंजाब की पुलिस कुमार विश्वास को गिरफ्तार करने दिल्ली पहुंची थी। इसके अलावा भी हज़ारों मामले हैं, जिसमें किसी प्रदेश के नेता पर किसी दूसरे प्रदेश मे मुकदमा दर्ज किया गया और इस बहाने उन्हें परेशान करना शुरू किया गया। एक तरह से एफआईआर को राजनीतिक हथियार बना दिया गया। जिस पार्टी की जहां सरकार होती है और पुलिस हाथ में होती है वहां विपक्षी पार्टियों के नेताओं के ख़िलाफ़ मुकदमे दर्ज होने लगते हैं और पुलिस धरपकड़ शुरू कर देती है। सिर्फ नेता ही इसका शिकार नहीं हैं, सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकार, लेखक, पत्रकार आदि भी शिकार हो रहे हैं। इस सिलसिले पर रोक लगना चाहिए।

जिनपिंग के नहीं आने से किसे फर्क पड़ा?

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग G-20 के शिखर सम्मेलन में शिरकत करने भारत नहीं आए। उनके नहीं आने पर से भारत को निराशा होनी चाहिए थी, क्योंकि भारत मेजबान है और भारत की अध्यक्षता में यह आयोजन हो रहा है लेकिन भारत के बजाय इस पर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने निराशा जताई है। चीन के राष्ट्रपति के साथ ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन या सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस भारत नहीं आए हैं तो इस पर भारत को निराश होना चाहिए लेकिन भारत ने निराशा वाली कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। दूसरी ओर जो बाइडेन ने कहा है कि शी जिनपिंग के भारत नहीं पहुंचने से वे निराश हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि नई दिल्ली में शी से उनकी मुलाकात होगी। पिछली बार G-20 की बैठक बाली में हुई थी, जहां शी जिनपिंग और बाइडेन के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई थी। उस पूरे आयोजन में G-20 का एजेंडा पीछे था और शी-बाइडेन की मुलाकात मुख्य थी। दोनों की मुलाकात में शिखर सम्मेलन दब गया था। इस बार भी अगर नई दिल्ली में दोनों की मुलाकात होती तो G-20 का एजेंडा दब जाता। अंतरराष्ट्रीय मीडिया का सारा फोकस उन दोनों की मुलाकात पर रहता, क्योंकि बाली के बाद बाइडेन ने अपने कई वरिष्ठ अधिकारियों को बीजिंग भेजा था और संबंध सुधार की कोशिश की थी। बहरहाल, पुतिन और शी के नहीं आने से शिखर सम्मेलन का महत्व थोड़ा तो कम हुआ ही है।

भारत कैसे और क्या जवाब देगा चीन को?

जब से चीन ने अपने आधिकारिक नक्शे में अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया है तब से सवाल उठ रहा है कि भारत तीखे शब्दों में या चीन को उसी के अंदाज़ में ही ऐसा जवाब क्यों नहीं दे रहा है, जिससे कि चीन बिलबिला जाए। इस सवाल के जवाब में भाजपा के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी बहुत खतरनाक बातें कह रहे हैं। उन्होंने ट्वीट करके कहा है कि चीन के पास मोदी को शर्मिंदा करने वाला कोई वीडियो हैं। उनका कहना है कि "गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी के चीन दौरे के समय का कोई वीडियो चीन के पास है या मोदी पूरी तरह से हिम्मत हार चुके हैं।" भाजपा की ओर से किसी ने भी स्वामी के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। वैसे भारत बड़ी आसानी से चीन को उसी की भाषा में जवाब दे सकता है। भारत एक नक्शा जारी कर सकता है, जिसमें वह तिब्बत को विवादित क्षेत्र दिखा सकता है। गौरतलब है कि आज़ादी के बाद भारत की सीमा तिब्बत से मिलती थी। तिब्बत भारत का पड़ोसी था। मैकमोहन रेखा भारत और तिब्बत को अलग करती थी। भारत अगर अभी इस तरह का नक्शा जारी कर दे, जिसमें तिब्बत पड़ोसी हो या तिब्बत विवादित क्षेत्र हो तो चीन बिलबिला जाएगा। इसके अलावा दूसरा तरीका यह है कि भारत तिब्बतियों के सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा को भारत रत्न से सम्मानित कर दे। लेकिन लगता नहीं है कि सरकार की ओर से ऐसा कोई क़दम उठाया जाएगा।

अब शिंदे और अजित पवार में खटपट?

महाराष्ट्र सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपने उप मुख्यमंत्री अजित पवार से नाराज़ हैं। वैसे नाराज़गी तो पहले से थी क्योंकि शिंदे नहीं चाहते थे कि भाजपा किसी और पार्टी को साथ में ले। लेकिन भाजपा ने एनसीपी के एक धड़े को सरकार में शामिल किया और नौ लोगों को मंत्री बनाया। अब नाराज़गी इसलिए बढ़ी है क्योंकि अजित पवार मनमाने फैसले कर रहे है। वे किसी भी फैसले के लिए मुख्यमंत्री से बात नहीं करते हैं और सीधे भाजपा आलाकमान के संपर्क में रहते हैं। भाजपा की ओर से भी अजित पवार और उनके खेमे के नेताओं को ज़्यादा महत्व दिया जा रहा है। शिंदे की नाराज़गी पिछले दिनों राज्य सरकार में जारी उस आदेश से भी बढ़ी है, जिसमें अजित पवार की सारी फाइलें उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के ज़रिए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को भेजने को कहा गया है। वैसे भी अजित पवार के महायुति सरकार में शामिल होने के बाद मुख्यमंत्री का खेमा अपने को कमज़ोर मान रहा है क्योंकि भाजपा को अब सरकार चलाने के लिए शिंदे गुट के विधायकों की ज़रूरत नहीं रह गई है। शिंदे की चिंता यह भी है कि सीटों के बंटवारे में भी उनकी मोलभाव करने की ताकत कम हो गई है। मराठा वोट की चिंता में भाजपा अजित पवार खेमे को ज़्यादा सीटें दे सकती है।

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