'आज कौन?' 'आज कितने?'
'आज कौन?' 'आज कितने?'
शायद आसां होता
ख़त्म हो जाना
मायूस सुबहों के
अंतहीन चक्के में फँसे रहने से,
जो शुरू होती हैं
दो सवालों से
'आज कौन?'
'आज कितने?'
आज कौन?
जो तय न कर पाया
दो साँसों के बीच का फ़ासला।
आज कौन?
जिसे जगह न मिली अस्पताल में
और मर गया
एम्बुलेंस, गाड़ी, रिक्शे
या शायद सड़क पर…
आज कितने?
जो कल तक इन्सां थे
बन गए आज आँकड़ा सरकारी फ़ाइल का,
और मिल गए कल के आँकड़ों से,
कल के आँकड़ों से मिलने के लिए।
शायद आसां होता
ख़त्म हो जाना
और निकल जाना इस अंधेरे कुएँ से।
लेकिन मेरी परवरिश 'वाम' है, जनाब
लड़ना और लड़ते रहना
हमारा पहला सबक़।
हम लड़ते आये हैं
पल-पल दम घोटे जा रहे
मज़लूमों के कंधे से कंधा मिलाकर,
जिन्हें ज़िंदा रखा जाता है
बस इतना कि
उनकी हड्डियों से निचोड़ा जा सके मुनाफ़ा।
हम लड़ते रहेंगे कि
मिले हर किसी को
उसके हक़ की ख़ुशहाल ज़िंदगी
और उसके हिस्से की क़ुदरती मौत।
आप में से जो न समझ पाए
'आज कौन?' 'आज कितने?'
और हमारी लड़ाई का रिश्ता
तो जनाब, आपका इल्म
अभी कच्चा है
आपके सबक़ बाक़ी हैं अभी।
.....
( इस उदास मौसम में 10 मई को कॉमरेड रंजना निरुला हमसे अलविदा कह गईं। वे 75 वर्ष की थीं और 27 अप्रैल से कोविड संक्रमण के चलते अस्पताल में थीं। कॉमरेड रंजना फिलहाल ऑल इंडिया कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ आशा वर्कर्स (सीटू) की कन्वीनर थीं। वे 70 के दशक में भारत में वाम आंदोलन से जुड़ीं। उन्होंने ताउम्र मज़दूरों के बीच रहकर काम किया। खासतौर से महिला मज़दूरों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी।
वे एक बेहद खुशमिजाज़, ज़िंदादिल और सकारात्मक इंसान थीं। मुश्किल हालात में भी संघर्ष जारी रखना उन्हें बखूबी आता था। कॉमरेड रंजना आज भले ही हमारे बीच नहीं लेकिन उनकी सोच, उनकी सकारात्मकता, वाम विचारधारा और मज़दूर वर्ग के प्रति प्रतिबद्धता हमें हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।– सोनाली)
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।