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  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता: देखो, तो कितनी चुस्त-दुरुस्त और पुरअसर है हमारी सदी की नफ़रत
    03 Jul 2022
    आज जब हमारे देश में चारों तरफ़ जानबूझकर नफ़रत और हिंसा का माहौल बनाया जा रहा है। राजनीति इसे अपने हित में इस्तेमाल कर रही है। तो ऐसे में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पोलैंड की कवि विस्वावा शिम्‍बोर्स्‍…
  • saare sukhan hamare
    न्यूज़क्लिक टीम
    अभी और कितने दिन सदियों का संताप सहना है!
    02 Jul 2022
    हमारा दलित साहित्य वास्तविक अर्थों में प्रतिरोध का साहित्य है। और इसके मज़बूत स्तंभ हैं ओमप्रकाश वाल्मीकि। ओमप्रकाश जी न केवल हिंदी के महत्वपूर्ण कवि हैं, बल्कि उन्होंने कहानियां भी लिखीं और आलोचना…
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • kavita
    न्यूज़क्लिक टीम
    सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी
    21 May 2022
    देश में डीज़ल-पेट्रोल महंगा, गैस महंगी, आटा महंगा… लेकिन सड़कें अगर सरगर्म हैं तो धार्मिक जुलूस से। मुद्दा है, बहस है तो अज़ान का, लाउडस्पीकर का, हनुमान चालीसा का और अब शिवलिंग का। न्यूज़क्लिक के ख़ास…
  • PROTEST
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र
    11 May 2022
    अजय सिंह की कविता अपने तौर पर एक चेतावनी है। साफ़ चेतावनी। जिसे बुलंद आवाज़ में पढ़ा और समझा जाना चाहिए।
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान
    28 Apr 2022
    आजकल भारत की राजनीति में तीन ही विषय महत्वपूर्ण हैं, या कहें कि महत्वपूर्ण बना दिए गए हैं- जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र। रात-दिन इन्हीं की चर्चा है, प्राइम टाइम बहस है। इन तीनों पर ही मुकुल सरल ने…
  • राज वाल्मीकि
    फ़ासीवादी व्यवस्था से टक्कर लेतीं  अजय सिंह की कविताएं
    23 Apr 2022
    अजय सिंह हमारे समय के एक बेबाक और बेख़ौफ़ कवि हैं। शायद यही वजह है कि उनकी कविताएं इतनी सीधे सीधे और साफ़ साफ़ बोलती हैं। इन्हीं कविताओं का नया संग्रह आया है—“यह स्मृति को बचाने का वक़्त है”, जिसका…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो
    17 Apr 2022
    “धर्म से आदम नहीं है, आदमी से धर्म है/ गुल का ख़ुशबू से नहीं, गुल से है ख़ुशबू का वजूद” ये शेर है ओम प्रकाश नदीम का, लेकिन इत्ती सी बात आज भी हमें समझ नहीं आ रही है। तभी वे कहते हैं कि सर जोड़ के…
  • poem
    न्यूज़क्लिक टीम
    सरोकार: जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएंगे
    12 Apr 2022
    कवि राजेश जोशी ने 80 के दशक के आख़िरी में 'मारे जाएंगे' शीर्षक से जो कविता कही थी वो आज हू-ब-हू हमारे सामने आकर खड़ी हो गई है। अपनी पूरी सच्चाई के साथ। इसे पढ़ना-सुनना और समझना बेहद ज़रूरी है, ताकि…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!
    27 Mar 2022
    पुनर्प्रकाशन : यही तो दिन थे, जब दो बरस पहले 2020 में पूरे देश पर अनियोजित लॉकडाउन थोप दिया गया था। ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं लॉकडाउन की कहानी कहती कवि-पत्रकार मुकुल सरल की कविता- ‘लॉकडाउन—2020’।
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