क्या अमेजॉन का जंगल अब कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने लायक़ नहीं रहा?
पौधे पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड की सफ़ाई करते हैं। इसे प्रकाश संश्लेषण के लिए अवशोषित कर लेते हैं। पौधों को 'धरती पर कार्बन का एक अवशोषक' माना जाता है और ऐसा अनुमान है कि इन पेड़ों ने 1960 के दशक से जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन का तक़रीबन 25% अवशोषित कर लिया है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को काफ़ी हद तक संतुलित करने में मदद मिली है।
उष्णकटिबंधीय वन धरती पर कार्बन के अवशोषक के सबसे बड़े घटक रहे हैं। चूंकी अमेजॉन का जंगल इस समय का सबसे बड़ा उष्णकटिबंधीय जंगल है,इसलिए बतौर कार्बन अवशोषक इसका योगदान बहुत बड़ा है।
एक ताज़े शोध में पाया गया है कि अमेज़ॉन के जंगलों के हालात चिंता पैदा करने वाली होती जा रही है। पर्यावरण से जुड़ी मशहूर पत्रिका, ‘नेचर’ में 14 जुलाई को प्रकाशित एक अध्ययन से पता चलता है कि पश्चिमी अमेज़ॉन पहले के मुक़ाबले कार्बन की कम मात्रा को अवशोषित कर पा रहा है। हालांकि, ज़्यादा चिंता पैदा करने वाली हक़ीक़त तो यह है कि पूर्वी अमेज़ोन में वनों की कटाई और वार्मिंग ने इसकी कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता को कम कर दिया है, या फिर यहां तक कि इस जंगल द्वारा कार्बन को ग्रहण करने की स्थिति को उलट दिया है। इस अध्ययन की अगुवाई ब्राजिल स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पेश रिसर्च के जेनरल कॉर्डिनेशन ऑफ़ अर्थ साइंस की सलूसियाना वी. गट्टी ने की है।
दशकों से अमेज़ॉन के जंगलों में कार्बन जमा हो रहा है। हालांकि,वनों की कटाई के साथ-साथ वनों में आयी गिरावट, शुष्क होती जलवायु और बड़े पैमाने पर लगते आग की घटनाओं के चलते कार्बन को अवशोषित करने वाले अमेज़ॉन के इस जंगल के सामने ख़तरा पैदा हो गया है। हालांकि, ये अध्ययन बताते हैं कि अमेजॉन के इन जंगलों की कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता को कम करने में मानवीय योगदान रहा है। लेकिन सीधे-सीधे आकलन कर पाना एक मुश्किल काम है कि अमेज़ॉन पारिस्थितिक तंत्र के स्थानीय कार्बन संतुलन (कार्बन संतुलन पारिस्थितिक तंत्र द्वारा वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के बीच का अंतर को कहते हैं) किस स्थिति में है। ये जंगल अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा दुर्गम क्षेत्र है, जहां पहुंच पाना मुश्किल होता है। एक अन्य पहलू यह है कि अमेज़ॉन के जंगलों में पारिस्थितिक तंत्र की एक व्यापक विविधता है और ऐसे में स्थानीय रूप से उपलब्ध डेटा को इस पूरे क्षेत्र के लिए इस्तेमाल कर पाना मुश्किल है।
पहले के शोध में उपग्रहों से लिये गये चित्र से पता चला है कि अमेज़ॉन के जंगलों का कार्बन संतुलन सुखाड़ और आग के प्रति बहुत संवेदनशील है। इसके अलावे यह क्षेत्र लगातार बादलों से ढका रहता है, जो इस तरह के डेटा के संग्रह के काम को और जटिल बना देता है।
गट्टी और उनके सहयोगियों ने नौ साल की अवधि के लिए अमेज़न के चार क्षेत्रों के वातावरण को मापा है। उन्होंने सतह के नज़दीक और उन सभी क्षेत्रों में तक़रीबन 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक की हवा के नमूने को एकत्र करने के लिए विमानों का इस्तेमाल किया,जिनकी उन्होंने जांच-पड़ताल की थी। इन नमूनों का विश्लेषण करते हुए शोधकर्ताओं ने विभिन्न गैसों की सांद्रता का एक ऊर्ध्वाधर प्रोफ़ाइल(Vertical Profile) तैयार किया, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड शामिल थे। उन्होंने हर एक क्षेत्र में महीने में दो बार 590 ऐसे उर्ध्वाधर प्रोफ़ाइल तैयार किये।
गट्टी की टीम ने गैसों की इस सांद्रता की पृष्ठभूमि को स्थिर करने के लिए दक्षिण अटलांटिक महासागर के आसपास के कई दूर स्थित द्वीपों के डेटा का भी इस्तेमाल किया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया,ताकि इन पृष्ठभूमि क्षेत्रों और अमेज़ॉन के चार क्षेत्रों के बीच कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के स्थानिक सांद्रता के अंतर की गणना की जा सके। उन्होंने इन क्षेत्रों में कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड की सांद्रता के भिन्नताओं के स्थानिक स्वरूप को निर्धारित करने के लिए विभिन्न मौसमों और से जुटाये गये डेटा का विश्लेषण किया। और अंत में इस टीम ने आकलन किया कि क्षेत्रीय कार्बन प्रवाह जंगलों के विकास और क्षरण के साथ-साथ आग से होने वाले कार्बन उत्सर्जन से जुड़ा हुआ है।
अध्ययन की इस अवधि में उत्तर-पश्चिमी अमेज़ॉन क्षेत्र में कार्बन संतुलन पाया गया, यानी कि पौधों द्वारा कार्बन के ग्रहण और कार्बन का उत्सर्जन बराबर था। इस इलाक़े में नमीं हमेंशा बनी रहती है।
हालांकि, शोधकर्ताओं को पूर्वी और दक्षिणी अमेज़ॉन को जोड़ने वाला एक कारक मिला। इस क्षेत्र में अमेज़ॉन के उत्तर-पश्चिमी भाग के उलट हर समय नमी नहीं रहती है, इनमें समय-समय पर शुष्क मौसम भी होते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि शुष्क मौसम (जब वर्षा एक महीने में 100 मिलीमीटर से कम होती है) लगातार लम्बा होता जाता है, कुछ मामलों में तो पांच महीने से ज़्यादा समय तक चलता है, क्योंकि यह जंगल सवाना में बदल जाता है। नमी के मौसम के दौरान अमेज़ॉन के उत्तरपूर्वी और दक्षिणपूर्वी हिस्से कार्बन संतुलन के आस-पास रहते हैं, लेकिन सूखे के दौरान कार्बन संतुलन की स्थिति कार्बन के अवशोषण के बनिस्पत कार्बन उत्सर्जन की ओर ज़्यादा स्थानांतरित हो जाती है। इस अध्ययन की अवधि के दौरान वार्षिक आंकड़ों में यही प्रवृत्ति पायी गयी।
शुष्क मौसम के दौरान पूर्वी अमेज़ॅन के जंगलों का कार्बन के अवशोषक से कार्बन के उत्सर्जक में बदल जाने की घटना सही मायने में ज़बरदस्त क्षेत्रीय वार्मिंग से जुड़ी हुई है। पिछले 40 सालों में पूर्वी अमेज़ॉन क्षेत्र प्रति दशक लगभग 0.6 डिग्री सेल्सियस गर्म हुआ है। चिंता की बात यह है कि यह दर ग्लोबल वार्मिंग की दर से तीन गुना ज़्यादा है। गट्टी और उनकी टीम का निष्कर्ष था कि संभव है मानव गतिविधियों के कारण हुए वनों के क्षरण के साथ-साथ वनों में आयी गिरावट के बढ़ने से पूर्वी अमेज़ॅन में शुष्क अवधि की वार्मिंग दर में तेज़ी आयी हो।
शोधकर्ताओं ने वायुमंडलीय गैसों के बड़े पैमाने पर सांद्रता के ढलान को सीधे-सीधे मापने के आधार पर कार्बन अवशोषक से कार्बन उत्सर्जक में बदल जाने की इस तेज़ी को दर्ज किया था। वनों की कटाई, लंबी और गर्म शुष्क अवधि, शुष्कता का दबाव और लगातार लगती आग की घटनाओं ने इसके कार्बन अवशोषण की विशेषता को गंभीर रूप से खतरे में डाल दिया है, जिसका नतीजा उष्णकटिबंधीय वनों द्वारा आने वाले दिनों में कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषित नहीं किये जाने के रूप में सामने आ सकता है।
यह नयी खोज जलवायु परिवर्तन और वनों की कटाई पर हो रहे अनुसंधान के लिए बेहद उपयोगी है। भले ही उत्सर्जन में वृद्धि हुई हो, लेकिन दशकों से भूमि के पारिस्थितिक तंत्र द्वारा जीवाश्म-ईंधन उत्सर्जन का अवशोषण तक़रीबन स्थिर रहा है। पौधों के बढ़ाने वाले मौसम के लंबा होते जाने के चलते उच्च अक्षांश वाले वन कार्बन जमा कर रहे हैं, जिसका नतीजा जलवायु परिवर्तन के रूप में सामने आ रहा है। पोषक तत्वों (जैसे कि प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड) में बढ़ोत्तरी होने के चलते मध्य अक्षांश के जंगलों में भी इसी तरह की प्रवृत्ति देखी जा रही है।
इसके उलट, जैसा कि गट्टी की टीम के काम में उदाहरण दिया गया है कि उष्णकटिबंधीय जंगलों की क्षेत्रीय रूपरेखा यह दर्शाती है कि वनों की कटाई, वनों के क्षरण और बढ़ती गर्मी से कार्बन के अवशोषण के सामने बहुत बड़ा ख़तरा पैदा हो गया है।
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