अफ़ग़ानिस्तान की घटनाओं पर एक नज़र— III
मूल वासियों की वापसी
दो दशकों बाद काबुल में नाटकीय रूप से वापसी के बाद तालीबान के शुरुआती कदमों को लेकर काफ़ी दिलचस्पी है। हर किसी के मन में बड़ा सवाल यही है कि क्या 1990 के दशक वाला तालिबान इस बार 'बदला बदला हुआ' है। इसे लेकर अलग-अलग राय है। लेकिन, कम से कम अब तक दमनकारी सत्तावादी शासन की वापसी के कोई संकेत तो नहीं मिले हैं।
काबुल में मंगलवार को तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद की ओर से की गयी शानदार प्रेस कॉन्फ़्रेंस में असहमति की आवाज़ों को लेकर संयम और सहिष्णुता की एक साफ़ बयार नज़र आयी।
स्थानीय पत्रकार उत्तेजक सवाल पूछ सकते हैं और ऐसा वे बिना किसी बाधा के कर सकते हैं, यह सच्चाई साफड-साफ़ नज़र आयी। मुजाहिद भी सब्र के साथ जवाब देते रहे। उन्होंने ख़ुद को लेकर निम्नलिखित बातें कहीं:
- हम कोई बदला नहीं लेना चाहते और "सबको माफ़ कर दिया गया है"
- हम महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करेंगे, लेकिन ऐसा इस्लामी क़ानून के मानदंडों के भीतर होगा
- हम चाहते हैं कि निजी मीडिया स्वतंत्र रहे, लेकिन मीडिया को भी राष्ट्रीय हितों के ख़िलाफ़ काम नहीं करना चाहिए
- अफ़ग़ानिस्तान दूसरे देशों को निशाना बनाने वाले किसी भी व्यक्ति को ख़ुद की ज़मीन पर पनाह देने की अनुमति नहीं देगा
- अफ़ग़ानिस्तान नशीले पदार्थों से मुक्त देश होगा
मुजाहिद ने ख़ास तौर पर कहा कि महिलाओं को काम करने और पढ़ाई की इजाज़त दी जायेगी और "वे समाज में बहुत सक्रिय हो सकेंगी, लेकिन यब सब इस्लाम के ढांचे के भीतर होगा।" इसी तरह, पूर्व सैनिकों और अशरफ़ ग़नी की सरकार में काम करने वालों का ज़िक़्र करते हुए कहा कि "सभी को माफ़ कर दिया गया है", उनके इस आश्वासन ने एक ग़ैर-मामूली असर डाला है।
मुजाहिद ने कहा, "कोई आपको नुक़सान पहुंचाने नहीं जा रहा है, कोई भी आपके दरवाज़े पर दस्तक देने नहीं जा रहा है।" मुजाहिद की दो अन्य ख़ास टिप्पणियां ऐसी थीं, जो किसी भी खुले समाज के लिए दूरगामी परिणाम वाली हैं, वे हैं:
· तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल दूसरे देशों के ख़िलाफ़ नहीं होने देगा।
· निजी और स्वतंत्र मीडिया अपना काम करता रह सकता है, लेकिन उन्हें सांस्कृतिक मानदंडों का पालन करना चाहिए।
सवाल है कि मुजाहिद ने ऐसा जोखिम भरा काम क्यों किया? पहली बात तो यह कि उन्होंने जो कुछ कहा, उसे कहने के लिए वह तैयार होकर आये थे। यक़ीनन, नयी सरकार बनाने से पहले ही विश्वास-निर्माण के उपाय के रूप में उपरोक्त रुख़ को अधिकृत रूप से सामने रखते हुए उन्होंने नेतृत्व के निर्देशों के तहत ही काम किया है। वैसे, वह प्रेस कांफ़्रेंस अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए भी खुली थी।
वह प्रेस कांफ़्रेंस उन 'तालिबान-द्रोहियों' को कुछ संकट और भ्रम से बाहर निकालने में शायद मदद कर पाये, जो तालिबान की 'ज़्यादतियों' को लेकर फ़र्ज़ी ख़बरों पर जी रहे हैं, ये ख़बरें ख़ास तौर पर कही-सुनी जाने वाली कहानियों और अफ़वाहों पर आधारित हैं।
मुद्दा यह है कि 2001 की सर्दियों में रातों-रात काबुल से ग़ायब हो जाने के बाद से तालिबान के लिए समय ठहर गया है, इस तरह की रूढ़ीवादी धारणाओं को बनाये रखना मुश्किल होता जा रहा है।
हालांकि, मेरे दिमाग़ में वास्तव में चौंकाने वाली बात तो यह है कि तालिबान ने ख़ुद की तरफ़ से हमारे सामने ऐसे कुछ निश्चित मानदंड रख दिये हैं, जिन्हें लेकर वह हमसे उम्मीद करता है कि हम आने वाले समय में तालिबान शासक के कार्यों का हिसाब-किताब रखें। ज़ाहिर सी बात है कि इसी मक़सद से वह प्रेस कॉंफ़्रेंस बुलायी गयी थी। क्या इसका मतलब यह तो नहीं तालिबान अपनी व्यापक प्रासंगिकता की तरफ़ इशारा कर रहे हैं ?
इसी तरह, शीर्ष तालिबान नेता (और ताक़तवर हक़्क़ानी नेटवर्क के एक वारिस) अनस हक़्क़ानी ने पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई के घर पर मुलाक़ात की है। हक़्क़ानी के इस दौरे पर बहुत ग़ौर किया जाना चाहिए। करज़ई ने एक सबको साथ लेकर संक्रमणकालीन व्यवस्था बनाने का रास्ता साफ़ करने के लिए ख़ुद, अब्दुल्ला अब्दुल्ला और मुजाहिदीन नेता गुलबुद्दीन हिकमतयार को लेकर एक समन्वय समूह बनाने की पहल की है। हक़्क़ानी का वह दौरा इसी सिलसिले में था। अब्दुल्ला भी उस बैठक में मौजूद थे। इस दौरे की अहमियत इस वजह से है कि हक़्क़ानी सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
मंगलवार को रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने सरकार गठन में इस क़वायद की स्थिति पर कुछ रौशनी डाली। कलिनिनग्राद दौरे पर मीडिया से बात करते हुए लावरोव ने कहा:
“बाक़ी तमाम देशों की तरह हम भी उन्हें मान्यता देने की जल्दी में नहीं हैं। कल ही मैंने चीन जनवादी गणराज्य के विदेश मंत्री वांग यी से बात की थी। हमारी स्थिति कुछ हद तक एक ही तरह की है।
“हमें तालिबान की तरफ़ से उत्साहजनक संकेत दिख रहे हैं, जो कह रहे हैं कि वे अन्य राजनीतिक ताक़तों की भागीदारी से सरकार बनाना चाहते हैं।” उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी की अगुवाई वाली पिछली सरकार के तहत काम करने वाले अधिकारियों के लिए दरवाज़ा बंद किये बिना वे शिक्षा, लड़कियों की शिक्षा और आम तौर पर सरकारी मशीननरी के कामकाज सहित तमाम प्रक्रियाओं को जारी रखने के लिए तैयार हैं।
हम काबुल की उन सड़कों पर सकारात्मक प्रक्रिया देख रहे हैं, जहां हालात काफ़ी शांत है और तालिबान असरदार ढंग से क़ानून और व्यवस्था को लागू कर रहे हैं। लेकिन, हमारी ओर से किसी भी तरह के एकतरफ़ा राजनीतिक क़दम को लेकर बातें करना जल्दबाज़ी होगी।
“हम सभी अफ़ग़ान राजनीतिक जातीय और धार्मिक ताक़तों की भागीदारी के साथ एक व्यापक राष्ट्रीय वार्ता की इस शुरुआत का समर्थन करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई और राष्ट्रीय सुलह की उच्च परिषद के अध्यक्ष अब्दुल्ला अब्दुल्ला पहले ही इस प्रक्रिया के पक्ष में बोल चुके हैं। वे काबुल में हैं। वे ही इस प्रस्ताव को लेकर आये हैं। उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान के नेताओं में से एक, गुलबुद्दीन हिकमतयार भी इस पहल में शामिल हैं।
“वस्तुतः इन दिनों, जैसा कि मैं समझता हूं, जिस समय मैं आपसे बात कर रहा हूं, शायद इस समय भी तालिबान के किसी प्रतिनिधि के साथ बातचीत चल रही है। मुझे उम्मीद है कि इससे किसी ऐसे समझौते पर पहुंचा जा सकेगा, जिसके तहत अफ़ग़ान पूरी तरह सामान्य हालातों की दिशा में आगे बढ़ेगा और सबके साथ मिलकर एक संक्रमणकालीन निकाय बनाने की पहल करेगा।”
बीजिंग में 19 अगस्त की एक ब्रीफ़िंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन की बातों में वही कुछ प्रतिध्वनित हुआ, जो कुछ लावरोव ने 18 अगस्त को कहा था। झाओ ने कहा, "इस बारे में इतनी ही बात करना मुमकिन है कि चीन अफ़गानिस्तान के साथ नये राजनयिक रिश्ते तभी स्थापित कर पायेगा, जब वहां ऐसी सहिष्णु और खुली सरकार बनेगी, जो इस देश के हितों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व करती हो।"
उन्होंने कहा कि अफ़ग़ान मुद्दों पर बीजिंग की स्थिति "एकदम साफ़ है। हम इंतज़ार करेंगे और नयी सरकार बनने के बाद ही हम उसे मान्यता दे पायेंगे।'
अफ़ग़ान शतरंज की बिसात पर नाटकीय रूप से जो खाका उभर के सामने आ रहा है, उसमें मास्को और बीजिंग के बीच ज़बरदस्त तालमेल की मदद से अफ़ग़ानिस्तान में एक प्रतिनिधिक, समावेशी, व्यापक-आधार वाली एक ऐसी सरकार के गठन की ओर इशारा कर रहा है, जिसमें तालिबान भी शामिल है। इसके लिए अलग से विश्लेषण की ज़रूरत है, क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से क्षेत्रीय राजनीति में एक अभूतपूर्व घटनाक्रम है।
मेरी समझ में यहां जो कुछ चल रहा है, उसमें पाकिस्तान भी शामिल है। इस्लामाबाद में नॉर्दन एलायंस के नेताओं की मेज़बानी के बाद विदेश मंत्री क़ुरैशी ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से फिर बात की।
विचार निजी हैं।
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